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समाज

गरीबों के लिए क्या जरूरी मास्क या खाना?

२९ अप्रैल २०२०

दक्षिण एशियाई देशों के गरीबों के सामने कोरोना संकट के समय बड़ी चुनौती है. या तो वे मास्क खरीद सकते हैं या फिर भोजन.

Corona-Alltag weltweit, Singapur
तस्वीर: Reuters/E. Su

अफगान मजदूर हयातुल्लाह खान के पास एक ही विकल्प है, मास्क खरीद लो और परिवार भूखा रहे या फिर भोजन खरीद लो और भीड़भाड़ वाले इलाके में बिना मास्क के जाओ. कोरोना महामारी के समय हयातुल्लाह खान की मजदूरी घटकर डेढ़ डॉलर के नीचे हो गई है. दक्षिण एशिया के कई गरीबों की तरह खान के पास घर छोड़कर बाहर काम पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन महामारी के कारण कमाई में आई कमी के बावजूद उन्हें मास्क खरीदने में संघर्ष करना पड़ रहा है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से खान कहते हैं, "मैंने आज 100 अफगानी मुद्रा से भी कम कमाए हैं. मैं इससे क्या करूंगा. मैं मास्क खरीदूं या फिर परिवार के लिए भोजन?"

भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका में सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य है. अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भी यही सलाह दी गई है जिस वजह से मास्क की कीमतों में उछाल आई और मांग बढ़ गई है. इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले बेसिक मास्क की कीमत कई जगहों पर 7 डॉलर के करीब पहुंच गई है और इसने शहरों में असमानता का एक नया रूप पैदा कर दिया है जहां करोड़ों लोग महामारी के बावजूद तंग और अस्वच्छ हालात में जीने को मजबूर हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली का कहना है कि कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन ने हाशिए पर खड़े समुदायों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. गांगुली कहती हैं, "निश्चित तौर पर कोरोनो वायरस अमीर या गरीब, धर्म या नस्ल के बीच भेद नहीं करता है, लेकिन यह लोगों को कैसे प्रभावित करता है यह उनके भोजन, रहने की जगह, स्वास्थ्य और बुनियादी जरूरतों तक पहुंच पर निर्भर करता है."

भारत में पुलिस विभाग भी अपने कर्मचारियों के लिए मास्क बना रहा है. तस्वीर: Reuters/P. Ravikumar

श्रीलंका में प्रशासन ने सर्जिकल मास्क की कीमत 15 रुपये तय कर दी है. यह मास्क इस्तेमाल के बाद फेंक दिए जाते हैं. जबकि पूरी तरह से बंद मास्क जिसे रेस्पिरेटर भी कहा जाता है उसकी कीमत 150 रुपये तय है. तब भी स्थानीय लोगों का कहना है इन दामों पर भी मास्क खरीद पाना मुश्किल है और दवा की दुकानें इन्हें दाम बढ़ा कर बेच रही हैं. कोलंबो की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले हसन कहते हैं, "पहले हम 15 रुपये में सर्जिकल मास्क खरीद लेते थे लेकिन अब वह इस कीमत में नहीं मिल रहा है. कुछ दुकानदार इसे 75 रुपये में बेच रहे हैं. इसलिए हमारे इलाके में अधिकतर लोग घर पर बने मास्क ही पहन रहे हैं."

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि मास्क उन्हीं लोगों को पहनना चाहिए जो बीमार हैं और जिनमें कोरोना के लक्षण दिखाई दे रहे हैं या फिर ऐसे लोगों को जो संदिग्धों की देखभाल में जुटे हुए हैं. भारत में सरकार ने खुद से मास्क बनाने पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं. कई लोग संक्रमण से बचने के लिए रुमाल या फिर गमछे का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. इस बीच कई संस्थाएं, महिला समूह और पुलिस टीम मास्क बनाने के काम में जुटी हुई हैं. यह मास्क गरीबों और ग्रामीण क्षेत्रों में मुफ्त में बांटे जाते हैं. मुंबई स्थित एक स्टार्टअप जो कि सस्ते दाम पर सैनिटरी नैपकिन बनाता है, अब मास्क बनाने के काम में जुट गया है. यह स्टार्टअप हर मिनट में करीब 70 डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क बनाता है और इसकी कीमत भी 10 रुपये के करीब है.

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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