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भारत का नेशनल पाम ऑयल मिशन

२६ अगस्त २०२१

विश्व में पाम ऑयल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत में किया जाता है. लेकिन भारत को अपने कुल उपयोग का 60 फीसदी से ज्यादा तेल इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात करना पड़ता है. यही दोनों देश दुनिया में इसके सबसे बड़े उत्पादक हैं.

तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

खाने के तेल में आत्मनिर्भर बनने की कवायद भारत सरकार की ओर से शुरू की गई है. इसमें सबसे ज्यादा ध्यान पाम ऑयल पर दिया जाना है. इसके लिए नेशनल मिशन फॉर एडिबल ऑयल-ऑयल पाम (NMEO-OP) नाम की एक योजना की शुरुआत भी की गई है. इस योजना के तहत 11 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया जाएगा जिससे पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ऑयल पाम की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा.

पूरे विश्व में पाम ऑयल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत में किया जाता है. लेकिन भारत को अपने कुल उपयोग का 60 फीसदी से ज्यादा तेल इंडोनेशिया और मलयेशिया से आयात करना पड़ता है. यही दोनों देश दुनिया में इसके सबसे बड़े उत्पादक हैं. साल 2020 से 2021 के बीच पाम ऑयल के दामों में 50 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. जिससे खाने के तेल की कीमतें डेढ़ गुना से भी ज्यादा बढ़ गई हैं.

आत्मनिर्भर भारत

बढ़ती कीमतों को काबू करने के लिए सरकार को आयात शुल्क कम करना पड़ा है. लेकिन कोरोना से खराब हुई अर्थव्यवस्था के बीच भारत की बढ़ी महंगाई चिंता का सबब बनी हुई है. यह बढ़ा खर्च भी भारत को पाम ऑयल के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रहा है. इसीलिए भारत सरकार ने साल 2029-30 तक करीब 10 लाख हेक्टेयर भूमि पर पाम की खेती का लक्ष्य रखा है. इतनी जमीन भारत के त्रिपुरा राज्य के बराबर होगी.

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भारत में फिलहाल 3 लाख हेक्टेयर जमीन पर पाम की खेती हो रही है, इसमें 6.5 लाख हेक्टेयर यानी सिक्किम के बराबर जमीन पर खेती और बढ़ाई जानी है. ऐसा करके भारत अपने पाम ऑयल उत्पादन को बढ़ाकर 11 लाख टन करना चाहता है. हालांकि कई जानकार इससे डरे हुए भी हैं. वे मानते हैं कि भारत बिना पर्यावरणीय सुरक्षा के बारे में सोचे जितनी तेजी से यह योजना लागू करने की कोशिश कर रहा है, वह मुसीबत का सबब भी बन सकती है.

बिन पाम ऑयल सब सून

ज्यादातर भारतीय पकवान 'खाने के तेल' के बिना नहीं बन सकते. इसके लिए रिफाइंड ऑयल और वनस्पति तेल आदि नाम से मिलने वाले पाम ऑयल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है. इसके अलावा यहां सरसों का तेल, नारियल तेल और मूंगफली के तेल का इस्तेमाल भी होता है. लेकिन भारत में अन्य खाने के तेल में भी पाम ऑयल की मिक्सिंग की जाती है. इस तरह भारत में इस्तेमाल होने वाले कुल खाने के तेल में पाम ऑयल का हिस्सा करीब दो-तिहाई होता है.

साल 2019-20 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल 'खाने के तेल' की मांग 2.5 करोड़ टन थी. जबकि इस साल भारत में आयात किए गए पाम ऑयल की मात्रा 1.3 करोड़ टन रही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि खाने के तेल के अलावा पाम ऑयल का इस्तेमाल डिटर्जेंट, प्लास्टिक, कॉस्मेटिक, साबुन-शैम्पू, टूथपेस्ट और बायो फ्यूल के तौर पर भी किया जाता है. हालांकि भारत में मौजूद कुल पाम ऑयल का करीब 94 फीसदी फूड प्रोडक्ट्स में ही इस्तेमाल होता है. खाने के तेल के अलावा चॉकलेट, कॉफी, नूडल्स और आइसक्रीम के उत्पादन में भी इसका जमकर इस्तेमाल होता है.

पूर्वोत्तर और अंडमान क्यों

ऑयल पाम की सबसे अच्छी खेती उन इलाकों में हो सकती है, जहां तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस या इससे कुछ ज्यादा रहता हो और नमी 80 फीसदी से भी ज्यादा हो. दक्षिण एशिया इसके लिए एक उपयुक्त जगह है. इसके अलावा यह अफ्रीका में भी उगाया जाता है. भारत सरकार ने तापमान और नमी के मामले में अनुकूल होने के चलते पाम की खेती के लिए पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान-निकोबार को चुना है. यही जानकारों के लिए चिंता की वजह भी है.

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उनके मुताबिक भारत के पूर्वोत्तर राज्य पर्यावरण के लिहाज से बहुत ही संवेदनशील इलाके हैं. सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक जीवी रामंजनैयुलू कहते हैं, "सरकार का प्लान ऑयल पाम को बहुत बड़े इलाके में लगाने का है और यह डर की बड़ी वजह भी है. ऐसा करने पर ये तापमान, मौसम और मानसून के पैटर्न को बदल सकते हैं. इसके अलावा खेती में केमिकल के इस्तेमाल से जमीन और आसपास के वनों को भी बहुत नुकसान हो सकता है."

भारत सरकार की ओर से पर्यावरण को होने वाले संभावित हानि पर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है. हालांकि एक भारतीय समाचार एजेंसी से बातचीत में एक सरकारी अधिकारी ने कहा है कि इस पहलू पर ध्यान दिया जा रहा है.

जलवायु परिवर्तन में हाथ

पाम ऑयल की दिनोदिन बढ़ती मांग को इंडोनेशिया और मलयेशिया में मौजूद जबरदस्त जैव विविधता वाले जंगलों को खत्म करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इसने ओरेंगऊटान, पिग्मी हाथियों और सुमात्रन गैंडों के पर्यावास को भारी नुकसान पहुंचाया है. पाम के लालच में कई बार इन जानवारों को मारे जाने की खबरें भी सामने आई हैं. यहां इसकी खेती ने पर्यावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने वाले कई एकड़ दलदल (पीटलैंड) को भी खत्म कर दिया है और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कई मिलियन टन बढ़ाने वाला साबित हुआ है.

इस तबाही का अंदाजा भारतीय वैज्ञानिकों को भी है. साल 2002 में अंडमान और निकोबार प्रशासन ने द्वीप समूह में पाम के पेड़ लगाने पर रोक लगा दी थी. भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च ऐंड एजुकेशन (ICFRE) से सुझाव मांगा था. भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली इस काउंसिल ने अगस्त 2020 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इससे पर्यावास को होने वाले नुकसानों का अध्ययन किए बिना अच्छी बायोडायवर्सिटी वाले इलाकों में ऑयल पाम लगाने से बचा जाना चाहिए.

विकल्प तलाशने जरूरी

कई जानकार यह भी कहते हैं कि फिलहाल भारत के मध्यमवर्गीय ग्राहकों के लिए पाम ऑयल बेहद जरूरी है और वे इससे बने उत्पादों के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. ऐसे में भारत का आयात पर निर्भरता कम करने का कदम समझदारी भरा है. कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना के मुताबिक, "भारत में पाम ऑयल की भारी खपत होती है. सिर्फ आयात पर निर्भर रहे तो आयातक देशों से संबंध बिगड़ने पर बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी."

वे कहते हैं, "जो ऑयल पाम की अंडमान या पूर्वोत्तर राज्यों में खेती का विरोध कर रहे हैं उन्हें एक वैकल्पिक प्लान के साथ आना चाहिए क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत को सस्ते पाम ऑयल की भारी जरूरत है. इसका एक तरीका यह हो सकता है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च के साथ मिलकर अंडमान और पूर्वोत्तर राज्यों के प्रशासन एक ऐसा रास्ता निकालें जिससे पर्यावरण को होने वाला नुकसान कम से कम किया जा सके."

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उधर, जीवी रामंजनैयुलू कहते हैं, "भारत सरकार को इसके बजाए अन्य तेलों को प्रमोट करने पर जोर देना चाहिए. फिर भारत आवश्यकता से ज्यादा कई फसलों, जैसे- धान का उत्पादन करता है. इसे उगाने के बजाए वह किसानों को मदद देकर दक्षिण भारतीय राज्यों में ऑयल पाम की खेती के लिए प्रेरित कर सकता है. यहां मेघालय और अंडमान जितना उत्पादन तो नहीं हो सकेगा लेकिन फिर भी वह पर्याप्त होगा."

कॉरपोरेट लॉबिंग का रोल

कुछ भारतीय जानकार कहते हैं कि विदेशी कॉरपोरेट लॉबी, विदेशी एनजीओ का सहारा लेकर भारत में ऑयल पाम की खेती को हतोत्साहित करने के लिए पर्यावरण के डर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है. वैसे पर्यावरण से जुड़े तमाम डर के बावजूद भारत सरकार ने अंडमान और उत्तरी-पूर्वी राज्यों में ऑयल पाम की खेती को मंजूरी दे दी है जिसके बाद जानकारों ने सरकार की तेजी के पीछे कई बड़ी पाम ऑयल कंपनियों के दबाव को जिम्मेदार ठहराया है.

सरकार के नेशनल पाम ऑयल मिशन शुरू करने से पहले ही 2 अगस्त को भारतीय योगगुरु और उद्योगपति रामदेव ने अपनी कंपनी रुचि सोया के जरिए असम, त्रिपुरा और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में पाम की खेती की घोषणा की थी. इसके अलावा भारत में पाम ऑयल की सबसे बड़ी कंपनी अडानी विलमार भी भारतीय शेयर बाजार में लिस्ट होने की तैयारी में है. हालांकि फिलहाल भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कंपनी के IPO पर रोक लगाई हुई है.

ज्यादातर जानकार मानते हैं कि चूंकि भारत कच्चे तेल और सोने के बाद तीसरा सबसे ज्यादा कीमत का आयात खाने के तेल का ही करता है, ऐसे में यह बड़ा कदम उठाना उसके लिए जरूरी हो गया था, भले ही यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो.

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