सिद्धार्थ वरदराजन को डॉयचे वेले का फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड
३ मई २०२०
फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड 2020 दुनिया भर के उन सभी साहसी पत्रकारों को समर्पित है जो कोरोना महामारी पर रिपोर्टिंग के कारण दमन का सामना कर रहे हैं. इस साल 17 पत्रकारों को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है.
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2015 से डॉयचे वेले हर साल एक ऐसे व्यक्ति या संस्था को इस पुरस्कार से सम्मानित करता आया है जिन्होंने मानवाधिकारों और पत्रकारिता में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है. लेकिन इस बार डॉयचे वेले ने दुनिया भर के 17 पत्रकारों को सम्मानित करने का फैसला किया है. इस मौके पर डॉयचे वेले के महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग ने कहा, "हम अपने उन सभी साथियों का सम्मान करना चाहते हैं जिन्हें इस मुश्किल दौर में अपना काम करने से बलपूर्वक रोका जा रहा है. कोविड-19 की रिपोर्टिंग के कारण दुनिया भर में जिन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है, डॉयचे वेले उन सब की रिहाई की मांग करता है."
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की उच्चायुक्त और चिली की पूर्व राष्ट्रपति मिचेल बाचेलेट इस साल की स्पीकर हैं. डॉयचे वेले को भेजे वीडियो मेसेज में उन्होंने कहा, "पहले की तुलना में आज सूचना के प्रसार और लोगों तक उसकी पहुंच की बहुत ज्यादा जरूरत है. सरकारों को जमीनी स्तर पर बदलाव लाने वाले सटीक फैसले लेने के लिए सूचना की जरूरत है. आम जनता को - हम सब को - महामारी के बारे में पूरी और सटीक जानकारी की जरूरत है और उन फैसलों में हिस्सेदारी की भी, जो हमारी ओर से लिए जा रहे हैं. उन फैसलों में हिस्सेदारी महामारी से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों के प्रति लोगों की समझ को, उन पर अमल करने को बढ़ावा देती है."
मिचेल बाचेलेट ने कहा कि यह चौंकाने वाला है कि महामारी के इस वक्त में पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं, उन्हें धमकाया जा रहा है, गिरफ्तार किया जा रहा है, उन पर आपराधिक आरोप लग रहे हैं और महामारी पर रिपोर्ट करने के कारण उन्हें गायब किया जा रहा है, "ये मीडिया की आजादी पर हमले हैं और लोगों के सूचना के अधिकार पर हमले हैं."
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी को लेकर दुनिया भर के कई देशों में प्रतिक्रया मानवाधिकारों के हनन के रूप में दिखी है, खास कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आजादी का हनन हुआ है, "नेताओं ने डाटा के साथ छेड़छाड़ की, तथ्यों को छिपाया और पत्रकारों पर हमले कराए. वायरस के संक्रमण के बावजूद हिरासत में लिए गए पत्रकार अब भी जेलों में हैं." बाचेलेट के अनुसार आरएसएफ, आईपीआई और सीपीजे जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अनुसार पिछले कुछ महीनों में कोरोना संकट पर रिपोर्ट कर रहे पत्रकार गायब हुए हैं, गिरफ्तार किए गए हैं और उन्हें धमकाया गया है.
ऐसी खबरें चीन, ईरान, कई अफ्रीकी और लातिन अमेरिकी देशों से आ रही हैं और यह सूची बढ़ती जा रही है. बाचेलेट ने कहा, "मैं उन पत्रकारों के हौसले को सम्मानित करना चाहती हूं जो इन हमलों के बावजूद आवाज उठा रहे हैं और बिना डर के छान बीन कर रहे हैं और रिपोर्ट कर रहे हैं. मैं उन सबके हौसले को सलाम करती हूं जिन्हें अपना काम करने के कारण गायब किया गया, गिरफ्तार किया गया या धमकाया गया. मेरा कार्यालय और संयुक्त राष्ट्र इनके अधिकारों के लिए आगे भी खड़े रहेंगे."
फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड के जरिए डीडब्ल्यू उन सभी पत्रकारों को सम्मानित करता है जो सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों के खतरे के बावजूद मीडिया की आजादी के लिए काम कर रहे हैं. डॉयचे वेले के महानिदेशक पेटर लिम्बर्ग ने कहा, "एक वैश्विक स्वास्थ्य आपातस्थिति के क्षण में पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान होता है और हर पत्रकार बड़ी जिम्मेदारी निभाता है. किसी भी देश के नागरिकों को तथ्यों पर आधारित जानकारी और महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त करने का अधिकार है. किसी भी तरह की सेंसरशिप का परिणाम बुरा हो सकता है और मौजूदा स्थिति पर रिपोर्टिंग को आपराधिक घोषित करने की कोशिशें साफ तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करती हैं."
इस साल पुरस्कार के लिए भारत से द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन को भी चुना गया है. इनके अलावा इन 16 पत्रकारों को भी पुरस्कार दिया जा रहा है:
सिद्धार्थ वरदराजन (भारत)
चेन किउशी (चीन)
ली जेहुआ (चीन)
फैंग बिन (चीन)
सोवान रिथी (कंबोडिया)
मारिया विक्टोरिया बेल्तरान (फिलीपींस)
ब्लाज जगागा (स्लोवेनिया)
आना लालिक (सर्बिया)
एलेना मिलाशीना (रूस/चेचेन्या)
सेर्गेय साजुक (बेलारूस)
मोहम्मद मोसाइद (ईरान)
फारस सायेघ (जॉर्डन)
इसमेत सिगित (तुर्की)
नुरकान बायसाल (तुर्की)
बीटीफिक न्गुंबवांडा (जिम्बाब्वे)
डाविड मूसीसी कार्यानकोलो (यूगांडा)
डारविनसन रोजास (वेनेज़ुएला)
पिछले पांच सालों में डॉयचे वेले इन लोगों को फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड से सम्मानित कर चुका है:
2015 - राइफ बदावी (जो अब तक सऊदी अरब की जेल में कैद हैं.)
2016 - तुर्की के अखबार हुर्रियत के पूर्व मुख्य संपादक सेदात एरगिन
2017 - अमेरिका की व्हाइट हाउस कॉरस्पॉन्डेंट्स एसोसिएशन
2018 - ईरान के राजनीतिक जानकार सादेघ जिबाकलाम
2019 - मेक्सिको की खोजी पत्रकार और लेखिका अनाबेल हेर्नानडेज
फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड डॉयचे वेले के वार्षिक आयोजन ग्लोबल मीडिया फोरम का मुख्य आकर्षण होता है लेकिन इस साल कोविड-19 के कारण इसका आयोजन रद्द कर दिया गया है.
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
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1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
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2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
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4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
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5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
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6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
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7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
तस्वीर: picture alliance/maxppp/F. Launette
8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
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10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
तस्वीर: picture alliance/Global Travel Images
11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
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अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
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पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.