खालिस्तानी अमृतपाल सिंह की जीत-हार पर होगी सरकार की नजर
३१ मई २०२४
असम की एक कड़ी सुरक्षा वाली जेल में बंद अमृतपाल सिंह पंजाब की खडूर साहिब सीट से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार हैं. वह खालिस्तान समर्थन के आरोपों में जेल में हैं.
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लोकसभा चुनाव 2024 के बीच अमृतपाल सिंह अपने चुनाव क्षेत्र से करीब तीन हजार किलोमीटर दूर एक जेल में बंद हैं. अपने समर्थकों के दम पर चुनाव लड़ रहे सिंह की हार-जीत पर भारत सरकार भी निगाह होगी. उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है.
31 साल के अमृतपाल सिंह असम की कड़ी सुरक्षा वाली जेल में बंद हैं. वह पंजाब के खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां गांव-गांव में उनके बुलेटप्रूफ जैकेट पहने और तलवार हाथ में थामे तस्वीरों वाले पोस्टर चिपके हैं.
सिंह को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था, जब वह और उनके सैकड़ों समर्थकों ने एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया था. यह हथियारबंद भीड़ अमृतपाल सिंह के एक सहयोगी को छुड़वाना चाहती थी.
भारत-कनाडा विवाद: क्या क्या है दांव पर
कनाडा में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या को लेकर भारत और कनाडा के बीच गंभीर कूटनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. अगर विवाद और गहराया तो इसका असर दोनों देशों के रिश्तों के कई पहलुओं पर पड़ सकता है. आखिर क्या क्या है दांव पर?
तस्वीर: AFP
व्यापारिक रिश्तों पर असर
जून, 2023 में दोनों देशों ने कहा था कि एक महत्वपूर्ण व्यापार संधि पर इसी साल हस्ताक्षर हो जाएंगे. लेकिन सितंबर में कनाडा ने बताया कि उसने भारत के साथ इस प्रस्तावित संधि पर बातचीत को रोक दिया है. अनुमान लगाया जा रहा था कि इस संधि से दोनों देशों के बीच व्यापार में करीब 541 अरब रुपयों की बढ़ोतरी हो सकती थी.
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किन चीजों का होता है व्यापार
दोनों देशों के बीच व्यापार में लगातार बढ़ोतरी की वजह से 2022 में दोनों देशों के बीच 666 अरब रुपयों का व्यापार हुआ. भारत ने करीब 333 अरब रुपयों का सामान कनाडा से आयात किया और उतने ही मूल्य का सामान कनाडा निर्यात किया.
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भारत में है कनाडा की दालों की मांग
भारत में कनाडा से आयातित दालों की मांग बढ़ती जा रही है. इसके अलावा भारत कनाडा से कोयला, खाद, न्यूजप्रिंट, कैमरे, हीरे आदि जैसे सामान भी आयात करता है. कनाडा भारत से दवाएं, कपड़े, गाड़ियों के पुर्जे, हवाई जहाज के उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसी चीजें आयात करता है.
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अरबों रुपयों का निवेश
कनाडा भारत का 17वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. उसने पिछले 22 सालों में करीब 299 अरब रुपयों का भारत में निवेश किया है. इसके अलावा कनाडा के पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय स्टॉक और डेट बाजारों में अरबों रुपयों का निवेश किया है. कनाडा का पेंशन फंड भारत के रियल एस्टेट, रिन्यूएबल ऊर्जा और वित्तीय क्षेत्रों में मार्च 2023 तक 1,248 अरब रुपयों का निवेश कर चुका है.
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कंपनियों को क्या फायदा हुआ है
बॉम्बार्डियर और एसएनसी लावलीन जैसी 600 से भी ज्यादा कनाडा की कंपनियों की भारत में मजबूत उपस्थिति है. भारत की तरफ से टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस जैसी कम से कम 30 कंपनियों ने कनाडा में अरबों रुपये लगाए हैं और हजारों नौकरियों को पैदा दिया है.
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भारतीय छात्रों की पसंद
2018 में भारत कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा रहा. 2022 में तो उनकी संख्या में करीब 47 प्रतिशत का उछाल आया और यह संख्या 3,20,000 पर पहुंच गई. कनाडा में पढ़ रहे कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 40 प्रतिशत भारतीय छात्र हैं.
तस्वीर: NurPhoto/picture alliance
सिखों के लिए इस विवाद के क्या मायने हैं
कई समीक्षकों का कहना है कि दोनों देशों के रिश्ते खराब होने से पंजाब में रह रहे हजारों सिख परिवारों के आर्थिक हितों पर असर पड़ेगा, क्योंकि उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य कनाडा में रहता है और उन्हें हर साल वहां कमाए हुए डॉलरों का एक हिस्सा भेजता है. कनाडा में पिछले 20 सालों में सिखों की आबादी में दोगुने से भी ज्यादा बढ़ोतरी आई है और अब वह बढ़ कर देश की कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत हो गई है. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Chris Helgren/REUTERS
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अमृतपाल सिंह को खालिस्तान का समर्थक माना जाता है. चुनाव में उनकी जीत ना सिर्फ उनके कथित दावों को मजबूत आधार दे सकती है बल्कि भारत सरकार की चिंता यह होगी कि उनकी जीत से खालिस्तान का आंदोलन फिर से जोर पकड़ सकता है.
सिंह के पिता, 61 साल के तरसेम सिंह कहते हैं, "लोग पहली जून को अपना फैसला सुनाएंगे. वे उसकी छवि खराब करने वाले और पंजाब व हमारे समुदाय के लोगों का नाम खराब करने वालों को एक अहम संदेश भेजेंगे.”
अलगाववाद की भावना
खडूर साहिब में 1 जून को मतदान होना है. उससे पहले अमृतपाल सिंह के समर्थक जमकर प्रचार में लगे रहे. वहां एक गुरुद्वारे में उनके समर्थक तरसेम सिंह से मिल रहे थे. इस गुरुद्वारे की दीवारों पर 1990 के दशक में पुलिस और सेना द्वारा मुठभेड़ आदि में मारे गए सिखों की तस्वीरें लगी हैं, जिन्हें शहीद कहा गया है.
मिलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमशक्लों से
लोग उनकी पहली झलक देख कर अवाक रह जाते हैं और फिर उनके साथ सेल्फियां खिंचवाते हैं. कोई क्यों ना चौंके भला? वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमशक्ल जो हैं.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
'हमारा मोदी'
राशीद अहमद दिल्ली में बिजली से चलने वाले रिक्शा चलाते हैं. लोग उन्हें प्यार से "हमारा मोदी" कहते हैं, क्योंकि उनकी शक्ल मोदी से काफी मिलती है. 60 साल के अहमद दो कमरों के एक मकान में अपनी पत्नी, बच्चों और पोते-पोतियों के साथ रहते हैं.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
'मोदी अंकल'
अहमद अपने मोहल्ले में एक सेलिब्रिटी हैं. लोग उन्हें अक्सर उनके काम के बीच में रोक कर उनके साथ तस्वीर खिंचवाने का अनुरोध करते हैं. आस-पड़ोस के बच्चे भी उन्हें "मोदी अंकल" ही बुलाते हैं. उनमें से कई बच्चों को वो अपने रिक्शे में स्कूल छोड़ने जाते हैं.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
एक इत्तेफाक
अहमद कहते हैं, "मैं तो शुरू से ऐसा ही दिखता हूं, लेकिन जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से इस बात की ज्यादा चर्चा होने लगी है." अहमद बीजेपी की रैलियों में भी शामिल हुए हैं. उन्हें देख कर लोग उत्साहित हो जाते हैं.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
रैली में जाते हैं
ऐसी रैलियों में हिस्सा लेकर अहमद करीब 1,000 रुपए कमा लेते हैं, जो उनके रिक्शा से एक दिन में होने वाली कमाई के आस पास ही है. वो कहते हैं, "हां लोग हमें (रैलियों के लिए) पैसे देते हैं और हमें लेने भी पड़ते हैं क्योंकि हमें उस दिन काम छोड़ना पड़ता है."
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सब साथ रहें
हाल ही में मुसलमानों पर मोदी के बयानों को लेकर जो विवाद हुआ था, उस पर अहमद का मानना है कि प्रधानमंत्री नहीं बल्कि पार्टी में निचले दर्जे के लोग "धर्मों को बांटते हैं." चुनावों के नतीजों के बारे में वो कहते हैं, "समय ही बताएगा. हम तो बस इतना चाहते हैं कि अच्छा काम हो...विकास हर तरफ होना चाहिए...सबको साथ रहना चाहिए."
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एक और हमशक्ल
68 साल के रियल एस्टेट व्यापारी जगदीश भाटिया भी मोदी के हमशक्ल हैं. वो शहर के एक समृद्ध इलाके में रहते हैं और निरंकारी पंथ के अनुयायी हैं.
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मोदी के प्रशंसक
जगदीश कहते हैं कि वो बीजेपी की रैलियों में शामिल होने के लिए पैसे नहीं लेते हैं, क्योंकि वो इसे "समाज सेवा" मानते हैं. वो मोदी के नजरिए को पसंद करते हैं.
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पार्टी का काम
जगदीश कहते हैं, "मुझे मोदी के काम करने का तरीका और जो चीजें उन्होंने देश के विकास के लिए की वो बेहद पसंद है. इसलिए मुझे अच्छा लगता है अगर मैं पार्टी के किसी काम आ सकूं."
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कपड़े भी मोदी जैसे
जगदीश मोदी के जैसे दिखने के लिए कपड़े भी उन्हीं के जैसे पहनते हैं. इसके विपरीत, अहमद खुद को मोदी का हमशक्ल होना महज एक इत्तेफाक बताते हैं.
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सिख समुदाय के कुछ लोग 1970 के दशक से ही अपने अलग देश की मांग करते रहे हैं लेकिन 1990 में यह आंदोलन हिंसक हो गया था और उसे भारत सरकार ने बेहद सख्ती से कुचला था. उस दौरान कई हजार लोगों की जानें गईं.
1990 के दशक में पंजाब पुलिस और भारतीय सेना ने बहुत बेरहमी से इस आंदोलन को कुचला. तब पंजाब में शांति हो गई. लेकिन पिछले साल इस आंदोलन ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनाईं जब कनाडा और अमेरिका ने आरोप लगाया कि भारत सरकार खालिस्तानी नेताओं की हत्याओं या हत्या की साजिशों में शामिल थी. भारत इस आरोप को गलत बताता है.
पिछले साल अमृतपाल सिंह सुर्खियों में रहे थे. 2023 में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि वह सिखों और पंजाब के लोगों के लिए एक अलग देश चाहते हैं. हालांकि चुनाव प्रचार में उनके समर्थक इस मुद्दे से ज्यादा पंजाब में नशीली दवाओं, पूर्व उग्रवादियों को जेलों से छुड़वाने और हिंदू बहुल भारत में सिख पहचान की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात करते हैं.
मीडिया से बातचीत में उनके समर्थक और पिता खालिस्तान के मुद्दे पर बात करने से भी बचते हैं. सिंह के वकील, 27 वर्षीय ईमान सिंह खारा कहते हैं, "अमृतपाल सिंह के नाम की सूनामी चल रही है और उसके खिलाफ जो भी खड़ा होगा, बह जाएगा.”
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जीत पाएंगे अमृतपाल?
समर्थकों के मुताबिक सिंह को खडूर साहिब से चुनाव लड़ने के लिए समुदाय ने ही तैयार किया. पाकिस्तान से लगता खडूर साहिब सिखों का बड़ा ऐतिहासिक केंद्र है. हालांकि वह जेल में हैं और समर्थकों के मुताबिक चुनाव लड़ने में झिझक रहे थे लेकिन बाद में तैयार हो गए. भारतीय कानून के मुताबिक वे लोग भी चुनाव लड़ सकते हैं, जिन पर मुकदमा चल रहा है लेकिन आरोप साबित नहीं हुए हैं.
निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा में तीन गिरफ्तार
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सिंह एक निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सारे प्रतिद्वन्द्वी भी सिख ही हैं. उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से है. बीजेपी उम्मीदवार मनजीत सिंह मन्ना कहते हैं कि अमृतपाल सिंह के पास जीतने लायक समर्थन नहीं है.
मन्ना ने कहा, "लोगों ने उग्रवाद का समय देखा है और वे नहीं चाहते कि वैसा समय दोबारा लौटे.”
विशेषज्ञों का मानना है कि खालिस्तान के लिए समर्थन देश के भीतर से ज्यादा विदेशों में बसे सिखों के बीच है, लेकिन स्थानीय तत्व भी मजबूत हो सकते हैं. चंडीगढ़ स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डिवेलपमेंट एंड कम्यूनिकेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार बताते हैं, "जब आप उदारवादियों को कमजोर कर देते हैं तो हाशिये पर मौजूद उग्रवादी तत्वों को भी आवाज मिल जाती है. मुकाबला चार गुना है लेकिन अमृतपाल जीत सकते हैं.”