सिक्किम जल्द एक साल का मातृत्व अवकाश देने वाला भारत का पहला राज्य बन सकता है. करियर और मातृत्व के बीच संतुलन बनाने के इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए और भी कदम उठाये जाने की जरूरत है.
विज्ञापन
सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने घोषणा की है कि अब से राज्य सरकार की महिला कर्मचारियों को 12 महीनों का मातृत्व अवकाश मिलेगा. साथ ही पुरुष कर्मचारी एक महीने का पितृत्व अवकाश ले सकेंगे.
तमांग ने आश्वासन दिलाया कि इसके लिए राज्य के सेवा नियमों में बदलाव किये जाएंगे ताकि सरकारी कर्मचारी अपने बच्चों और अपने परिवारों का बेहतर ख्याल रख सकें. नया नियम लागू हो जाने पर सिक्किम भारत में सबसे लंबा मातृत्व अवकाश देने वाला राज्य बन जाएगा.
छह महीने काफी नहीं
भारत के प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम के तहत 26 सप्ताह या करीब छह महीनों के मातृत्व अवकाश का प्रावधान है. 2017 से पहले सिर्फ 12 हफ्तों का अवकाश मिला करता था. कई ऐक्टिविस्ट और संगठन लंबे समय से मांग करते आए हैं कि मातृत्व अवकाश को कानूनी रूप से कम से कम नौ महीनों का कर देना चाहिए.
भारत में पुरुष नसबंदी क्यों नहीं कराते
05:30
नीति आयोग ने भी हाल ही में इसकी अनुशंसा की थी. आयोग के सदस्य वीके पॉल ने मई 2023 में कहा था कि सरकारी और निजी क्षेत्रों में नौ महीनों का मातृत्व अवकाश दिया जाना चाहिए. हालांकि जानकारों का यह भी कहना है कि सिर्फ कानूनी रूप से मातृत्व अवकाश की अवधि तय कर देना अधूरा कदम है.
कई जानकारों का मानना है कि मातृत्व अवकाश देने और उस दौरान उस महिला कर्मचारी का काम करने के लिए किसी अस्थायी कर्मचारी को नौकरी पर रखने का खर्च पूरी तरह से कंपनी को ही उठाना होता है. कंपनियां इससे कतराती हैं जिसका असर महिलाओं को नौकरी मिलने की संभावनाओं पर पड़ता है.
कई सर्वेक्षणों ने दावा किया है कि कानून के इन प्रावधानों की वजह से लाखों महिलाओं की नौकरी चली जाती है. नई नौकरियों के लिए भी महिलाओं का चयन गिर जाता है. इससे अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी की दर उठ नहीं पाती.
पिता की भूमिका भी जरूरी
दूसरा पहलू पितृत्व अवकाश का भी है. भारत में पितृत्व अवकाश के लिए कानूनी प्रावधान बस 15 दिनों का है. बड़ी संख्या में ऐसी निजी कंपनियां है जो पितृत्व अवकाश देती भी नहीं हैं. यह सुविधा सरकारी और निजी क्षेत्र की कुछ नौकरियों में उपलब्ध है.
हालांकि जानकारों का कहना है कि पिताओं के लिए सिर्फ 15 दिनों की छुट्टी का मतलब है उसके बाद बच्चे की देखरेख की जिम्मेदारी मुख्य रूप से मां के ऊपर डाल देना. इन्क्लूसिविटी विशेषज्ञ मुग्धा कालरा ने एक लेख में लिखा है कि इस वजह से पिता तो तुरंत काम पर लौट जाता है लेकिन मां को छह महीनों के लिए अपने करियर को रोक देना पड़ता है.
कुल मिलाकर जानकारों की राय यह है कि करियर और मातृत्व के बीच संतुलन बनाने की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए मौजूदा कानूनी प्रावधान पर्याप्त नहीं हैं और उन्हें को कानूनी रूप से और समर्थन दिए जाने की जरूरत है.
कामकाजी मांओं की मुश्किलें
कामकाजी महिलाओं के जीवन में मातृत्व एक निर्णायक मोड़ होता है. कई बार मां की जिम्मेदारियों के चलते पेशवर जिम्मेदारियां पूरी कर पाना असंभव हो जाता है और नौकरी छोड़ने का ही विकल्प रह जाता है. ऐसे कीजिए इस चुनौती को पार.
तस्वीर: Fotolia/easyshooting.de
जानकारी
गर्भधारण के साथ ही महिलाओं के लिए करियर संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. वजन बढ़ना, सूजन, उल्टियां और ना जाने कितनी स्वास्थ्य समस्याएं लगी रहती हैं. ऐसे में अपनी संस्था, कंपनी या नौकरी देने वाले को अपनी कठिनाईयों के बारे में जानकारी देनी चाहिए.
तस्वीर: picture alliance
जिम्मेदारी
कंपनी और अपने बॉस को जानकारी देना इसलिए भी जरूरी है ताकि वह समय रहते आपके लिए छुट्टियों की योजना बना सके और यह भी सोच सके कि उस दौरान काम कैसे चलाना है. ध्यान रखें कि जिस तरह कंपनी की आपके प्रति कुछ जिम्मेदारी है, आप की भी उसके हित के प्रति जवाबदेही है.
तस्वीर: imago/CHROMORANGE
रेस में बने रहें
दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों के प्रमुखों में कुछ ही महिलाएं हैं और विश्व के 197 राष्ट्रप्रमुखों में केवल 22 महिलाएं. किसी भी क्षेत्र में टॉप स्तर पर इतनी कम महिलाओं के होने का कारण महिलाओं का इस रेस से बहुत जल्दी बाहर होना है, जो कि सबसे अधिक मां बनने के कारण होता है.
कामकाजी महिलाओं के जीवन में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवरोध आते हैं. गहरे बसे लैंगिक भेदभाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक. ऐसे में घबरा कर रेस छोड़ देने के बजाए इन रोड़ों को बहादुरी से हटाते हुए आगे बढ़ने का रवैया रखें. अमेरिकी रिसर्च दिखाते हैं कि पुरुषों को उनकी क्षमता जबकि महिलाओं को उनकी पूर्व उपलब्धियों के आधार पर प्रमोशन मिलते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa Themendienst
सपोर्ट नेटवर्क
एक ओर बाहर के रोड़ हैं तो दूसरी ओर कई महिलाएं अपने मन की बेड़ियों में कैद होती हैं. समाज की उनसे अपेक्षाओं का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वे अपनी उम्मीदें और महात्वाकांक्षाएं कम कर लेती हैं. आंतरिक प्रेरणा के अलावा अपने आस पास ऐसे प्रेरणादायी लोगों का एक सपोर्ट नेटवर्क बनाएं जो मातृत्व, परिवार और करियर की तिहरी जिम्मेदारी को निभाने में आपका संबल बनें.
तस्वीर: Fotolia/Kitty
पार्टनर की भूमिका
कामकाजी मांओं के साथ साथ उनके पति या पार्टनर को भी घर के कामकाज में बराबर का योगदान देना चाहिए. परिवार को समझना चाहिए कि महिला के लंबे समय तक वर्कफोर्स में बने रहने से पूरा परिवार लाभान्वित होता है. अपनी पूरी क्षमता और समर्पण भाव के साथ किया गया काम हर महिला की सफलता सुनिश्चित कर सकता है. जरूरत है बस रेस पूरी करने की.