पिछले कुछ सालों से इस बात को लेकर बड़ी चिंता जाहिर की जाती रही है कि चीन की आबादी लगातार बूढ़ी हो रही है, जिसका असर उसके आर्थिक विकास पर होगा. लेकिन बहुत सी कंपनियों ने इन बुजुर्गों में ही नया बाजार खोज लिया है.
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कोई योग सीख रहा है तो अफ्रीकी ड्रम बजाने की क्लास ले रहा है. चीन के मध्यवर्गीय बुजुर्गों ने सक्रिय रहने के बहुत से रास्ते खोज लिए हैं और कंपनियां इसका पूरा लाभ उठा रही हैं.
बुजुर्गों के लिए क्लास चलाने वाली कंपनी मामा सनसेट की बीजिंग में प्रमुख की पेइलिन कहती हैं, "शिक्षा उद्योग अब सिल्वर इकोनॉमी के लिए बदल रहा है.” अप्रैल 2023 में शुरुआत के बाद से अब तक चीनी राजधानी में इस कंपनी के पांच केंद्र खुल चुके हैं.
कंसल्टिंग फर्म फ्रॉस्ट एंड सलिवन का अनुमान है कि चीन में बुजुर्गों की कक्षाओं का बाजार 2027 तक 34 फीसदी बढ़कर 120.9 अरब युआन यानी लगभग 1.3 अरब रुपये का हो जाएगा. 2022 में यह सिर्फ 28 अरब युआन का था.
30 करोड़ ग्राहक!
अगले एक दशक में चीन में करीब 30 करोड़ लोग रिटायरमेंट की उम्र में पहुंच जाएंगे. यानी अमेरिका की पूरी आबादी जितने लोग. यूरोमॉनिटर संस्था का कहना है कि 2040 तक एशिया-पैसिफिक में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की आधी आबादी चीन में होगी.
कहां घट रही है और कहां बढ़ रही है आबादी
दुनिया की आबादी ने भले ही आठ अरब का आंकड़ा पार कर लिया हो, लेकिन चीन समेत कई देशों की आबादी घट रही है. जानिए दुनिया के किस कोने में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं.
तस्वीर: Roberto Paquete/DW
कम बच्चे पैदा हो रहे हैं
कई देशों की आबादी घट रही है और यह गिरावट आगे भी जारी रहेगी. इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, जैसे खर्चों का बढ़ना, ज्यादा महिलाओं का नौकरी करना, लोगों का देर से बच्चे पैदा करना, आदि. इन सब की वजह से कई देशों में पहले के मुकाबले कम बच्चे पैदा हो रहे हैं.
तस्वीर: CFOTO/picture alliance
चीन नहीं रहेगा नंबर एक
पिछले साल चीन की आबादी 60 सालों में पहली बार घट गई, जिसकी वहज से अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसी साल वो दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश की पहचान खो देगा. साल 2100 तक चीन की आबादी आज के स्तर से लगभग आधी, यानी 1.4 अरब से 77.1 करोड़ हो सकती है. भारत इसी साल चीन की जगह ले सकता है.
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यूरोप में गिरी आबादी
जुलाई 2022 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 सालों में एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले आठ देशों की आबादी कम हो गई. इनमें से अधिकांश देश यूरोप में हैं, जिनमें यूक्रेन, यूनान, इटली, पोलैंड, पुर्तगाल और रोमानिया शामिल हैं.
तस्वीर: Emmanuelle Chaze/DW
यूरोप के बाहर भी गिरावट
इस सूची में सिर्फ जापान और सीरिया गैर-यूरोपीय देश हैं. सीरिया में 2011 से युद्ध चल रहा है और उसका देश की आबादी पर गहरा असर पड़ा है. लेकिन आने वाले सालों में सीरिया की आबादी के बढ़ने का अंदाजा है. बाकी सात देशों में आबादी में आई गिरावट जारी रहेगी.
तस्वीर: Baderkhan Ahmad/AP/picture alliance
जापान में दोहरी समस्या
जापान में ज्यादा बुजुर्गों के होने की वजह से देश की कुल आबादी गिर रही है. वहां आप्रवासन भी कम हो रहा है. 2011 से 2021 के बीच जापान की आबादी में तीस लाख से ज्यादा की गिरावट आई.
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कई और देशों में भी आएगी गिरावट
2030 तक रूस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और स्पेन की आबादी भी घटनी शुरू हो जाएगी. 2050 तक थाईलैंड, फ्रांस, उत्तर कोरिया और श्रीलंका की आबादी भी गिरने लगेगी. कई दूसरे देशों के लिए इस सदी के दूसरे हिस्से में आबादी के गिरने का पूर्वानुमान है. इनमें भारत, इंडोनेशिया, तुर्की और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
अफ्रीका में अलग तस्वीर
जहां साल 2100 तक यूरोप, अमेरिका और एशिया की आबादी में गिरावट आ रही होगी, वहीं उस समय तक अफ्रीका में अलग तस्वीर उभरने का पूर्वानुमान है. अनुमान है कि अफ्रीका की आबादी बढ़ती रहेगी और 2100 तक 1.4 अरब से बढ़कर 3.9 अरब हो जाएगी. जहां इस समय अफ्रीका में दुनिया की आबादी करीब 18 फीसदी हिस्सा रहता है, वहीं 2100 तक यह आंकड़ा बढ़कर 38 प्रतिशत हो जाएगा.
तस्वीर: Roberto Paquete/DW
कई दशक बाद गिरेगी दुनिया की आबादी
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कुल मिला कर धरती की आबादी में गिरावट 2090 के दशक में शुरू होगी. गिरने से पहले पूरी दुनिया की दुनिया बढ़ कर 10.4 अरब तक पहुंच जाएगी. (एएफपी)
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
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एक तरफ तो यह चिंता की बात है क्योंकि काम करने की उम्र वाले लोगों की संख्या घट रही है. इसका सीधा असर चीन के औद्योगिक और आर्थिक उन्नति पर होगा लेकिन बहुत से निवेशक इस बूढ़ी होती आबादी को एक नए और तेजी से उभरते बड़े बाजार के रूप में देख रहे हैं.
मामा सनसेट अपने केंद्रों में 20 से ज्यादा तरह की कक्षाएं मुहैया कराती है. 50 से अधिक आयु वाले हजारों लोग ये कक्षाएं ले रहे हैं. अब कंपनी अपने घरेलू निवेशकों के साथ इस बात पर चर्चा कर रही है कि देशभर में 200 फ्रैंचाइजी केंद्र खोले जाएं. कंपनी इस लक्ष्य तो तीन साल में पूरा करना चाहती है, जब वह हांग कांग स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने की योजना बना रही है.
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‘उगता हुआ सूरज'
इसी तरह का काम कर रही एक अन्य कंपनी क्वानटेजिंग है. फ्रॉस्ट एंड सलिवन के मुताबिक अमेरिकी शेयर बाजार में सूचीबद्ध यह कंपनी चीन में बुजुर्गों को क्लास उपलब्ध करवाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है. यह कंपनी वीडियो एडिटिंग जैसे तमाम तरह के कोर्स चलाती है. अब क्वानटेजिंग ताई ची और पारंपरिक चीनी इलाज जैसी नई कक्षाएं शुरू करने के लिए बड़े पैमाने पर शिक्षकों की भर्ती कर रही है.
व्यापार सिर्फ कक्षाओं पर ही खत्म नहीं होता. अपने मध्यवर्गीय बुजुर्ग छात्रों को ये कंपनियां उनके काम के उत्पाद भी बेच रही हैं. जैसे क्वानटेजिंग अपने ग्राहकों को चीनी शराब बाइजियू से लेकर पारंपरिक चीनी दवाओं में इस्तेमाल होने वाली बूटी मोक्सा भी बेच रही है.
कोलकाता का मशहूर, लेकिन सिमटता चाइनाटाउन
भारतीय-चीनी समुदाय ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक विशिष्ट संस्कृति और खान-पान की परंपरा बनाई है. अब आबादी घटने की वजह से यह समुदाय एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है.
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300 साल पुराना इतिहास
कोलकाता 18वीं सदी से भारतीय-चीनी समुदाय का घर रहा है. कुछ अनुमानों के मुताबिक शहर में इस समुदाय के करीब 70,000 लोग रहा करते थे. उनमें से अधिकांश लोग चीनापाड़ा में रहते थे, जिसे पुराना चाइनाटाउन भी कहा जाता है. इस इलाके को अभी भी शहर का केंद्र माना जाता है. समुदाय के कई लोग टांगड़ा, या नए चाइनाटाउन, में भी बस गए.
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संस्कृतियों का अनूठा मिलन
चाइनाटाउन में चीनी और भारतीय संस्कृतियों और प्रभावों का अनूठा मिश्रण मिलता है. जैसे टांगड़ा के इस मंदिर को चीनी काली मंदिर कहा जाता है. इसे एक चीनी आप्रवासी ने बनवाया था. यह मंदिर कुछ खास मौकों पर श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में चॉप सुए नूडल्स बांटने के लिए मशहूर है.
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जरूरत की वजह से हुई शुरुआत
पुराने चाइनाटाउन के शुरुआती दिनों में चीनी आप्रवासी अक्सर अकुशल मजदूरों के रूप में काम किया करते थे. परिवार सिर्फ अपने ही लिए नहीं, बल्कि चीनी समुदाय में दूसरों के लिए भी खाना बनाया करते थे. धीरे-धीरे तिरेती बाजार नाम से फेरीवालों के लिए एक बाजार का जन्म हुआ. यह कभी अपने सुबह के चीनी नाश्ते के लिए मशहूर था. अब हर रविवार यहां आने वाले लोग लजीज भारतीय-चीनी पकवानों का आनंद लेते हैं.
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भारतीय-चीनी पहचान
यहां के भारतीय-चीनी समुदाय ने धीरे-धीरे अपनी एक अलग ही संस्कृति और अपना अलग खानपान बना लिया. जब सबसे पहले चीनी आप्रवासी यहां आए थे, तब उनके पास कुकिंग वाइन और सेजवान पेपर कॉर्न जैसा खाना बनाने का चीनी सामान नहीं था. ऐसे में जो उपलब्ध था, उन्होंने वही इस्तेमाल किया, जैसे अदरक, लहसुन और हरी मिर्च आदि.
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ध्यान रहे, यह चीनी खाना नहीं है
आज का जो भारतीय-चीनी खाना है, उसमें और चीनी खाने में बहुत थोड़ी सी समानता है. अक्सर चीनी खाना कहे जाने वाले चिली चिकन, सेजवान आलू, गोभी मंचूरियन और चिली पनीर जैसे व्यंजनों का चीन में कोई अस्तित्व नहीं है.
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भारतीय-चीनी खानपान की लोकप्रियता
भारतीय-चीनी खाना भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय है. लेकिन कोलकाता में यह उतना ही लोकप्रिय है, जितना वहां का स्थानीय भोजन.
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सिमटता समुदाय
आज भी भारत में भारतीय-चीनी लोगों की सबसे ज्यादा आबादी कोलकाता में ही है, लेकिन यहां भी इनकी आबादी अब काफी कम हो गई है. अनुमान है कि अब शहर में इस समुदाय के सिर्फ करीब 2,500 लोग ही रह गए हैं. इनकी संख्या का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है. हाल के सालों में इनमें से कई लोग भारत के दूसरे शहरों में चले गए हैं.
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भूराजनीतिक तनाव
1962 के युद्ध के बाद इस समुदाय के खिलाफ लोगों में गुस्से की वजह से कई भारतीय-चीनी लोगों ने तो उस समय ही कोलकाता छोड़ दिया था. कई युवा बेहतर भविष्य की तलाश में पश्चिमी देश चले गए हैं. भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव और भारत में चीनी सामान के बहिष्कार की बढ़ती हुई मांग की वजह से जो लोग यहां रह गए हैं, उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
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धुंधला हो रहा है प्रभाव
चाइनाटाउन के पुराने रेस्तरां में से कई या तो रखरखाव की कमी की वजह से बंद हो चुके हैं या भारतीय मालिकों के हाथों में चले गए हैं. जो अभी भी चालू हैं, उनमें से कई चलते रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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कुछ बेचैनी भी है
यह समुदाय एक कठोर हकीकत का सामना कर रहा है. ये लोग पीढ़ियों से भारत में हैं, यहां इन्होंने शादियां भी कीं, ये खुद को भारतीय ही मानते हैं, स्थानीय भाषाएं बोलते हैं और भारतीय त्योहार मनाते हैं. फिर भी इन्हें अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. हालांकि इन समस्याओं के बावजूद, तिरेती बाजार के भारतीय-चीनी लोग अपनी चिंताओं को जबान पर लाने से कतराते हैं. (महिमा कपूर)
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क्वानटेजिंग का रेवन्यू पिछले साल की आखिरी तिमाही में 98 करोड़ युआन यानी लगभग 11 अरब रुपये का था जो बीते साल की इसी तिमाही से लगभग 24.7 फीसदी ज्यादा था. इस दौरान उसके ग्राहकों की संख्या 44.6 प्रतिशत बढ़ी.
कंपनी के सीईओ मैट पेंग कहते हैं, "यह उद्योग उगता हुआ सूरज है.”
चीन की सरकार भी इस बाजार को गंभीरता से ले रही है. जनवरी में सरकार ने बुजुर्गों के लिए सेवाओं और उत्पादों पर करों में छूट का ऐलान किया था. प्रधानमंत्री ली कियांग ने इसी महीने वादा किया कि ‘सिल्वर इकोनॉमी' को और बढ़ाने के लिए ज्यादा प्रयास किए जाएंगे.
सब इतना अच्छा नहीं
दूसरी तरफ, कुछ विश्लेषक इस क्षेत्र में आ रहे निवेश को लेकर चेतावनी भी देते हैं. उनकी चिंता है कि रिटायर हो गए लोग कम आय वर्ग में आते हैं और उनकी सबसे बड़ी चिंताएं मूलभूत जरूरतों को पूरा करना होती हैं. इनमें स्वास्थ्य सेवा एक बड़ी चिंता है. चीन जैसे समाज में यह चिंता इसलिए भी बड़ी है क्योंकि बड़ी संख्या में बुजुर्ग अपनी जरूरतों के लिए बच्चों पर निर्भर हैं.
कहां तक बढ़ेगी दुनिया की आबादी, जानिए
07:28
यूरोमॉनिटर में रिसर्च मैनेजर रेचल ही कहती हैं कि चीन के बुजुर्ग उपभोक्ताओं का बड़ा बाजार तो है लेकिन यह जापान या दक्षिण कोरिया जैसी अहमियत हासिल कर सकता है, इसे लेकर संदेह है. रेचल कहती हैं कि चीन में आमतौर पर नजरिया रूढ़िवादी है और आय-असमानता बहुत ज्यादा है, इसलिए बुजुर्गों की अपने ऊपर खर्च करने की संभावना कम होती है.
देश के शहरी क्षेत्रों में औसत पेंशन गरीब राज्यों में 3000 युआन से लेकर बीजिंग में 6,000 युआन तक है. एक संस्था नोमूरा के मुताबिक 16 करोड़ चीनियों को सौ युआन मासिक की ग्रामीण पेंशन मिलती है. मामा सनसेट में एक क्लास 50-60 युआन की होती है, जबकि 36 क्लास के लिए लगभग 2,000 युआन लगते हैं.