जब पूरी दुनिया में सरकारें एआई को नियमित करने के लिए विचार-विमर्श कर रही हैं, सिंगापुर उसका इस्तेमाल रोजमर्रा की समस्याएं हल करने में कर रहा है.
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सिंगापुर में करीब सौ कम्यूनिटी सेंटर हैं. अगर किसी को बैडमिंटन कोर्ट बुक करना हो तो पहले वेबसाइट पर टाइम और जगह तब तक सर्च करने पड़ते थे जब तक कि खाली जगह और वक्त ना मिल जाए. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने यह दिक्कत चुटकियों में हल कर दी है.
कम्यूनिटी सेंटरों को चलाने वाली संस्था पीपल्स एसोसिएशन और सरकारी टेक-एजेंसी ने जेनरेटिव एआई की मदद से एक सिस्टम तैयार किया, जिसमें लोगों के लिए अपनी सहूलियत के टाइम पर खाली कोर्ट खोजना बहुत आसान हो गया है. यह सिस्टम चार स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध है. लोग चैटबॉट से पूछते हैं कि इस वक्त कौन सा कोर्ट खाली है, और चैटबॉट सर्च करके उन्हें बता देता है.
यह बुकिंग चैटबॉट ऐसे सौ से ज्यादा समाधानों में से एक है जो ‘एआई ट्रेलब्लेजर्स' प्रोजेक्ट के तहत सिंगापुर में लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार किए गए हैं. गूगल और सिंगापुर सरकार द्वारा चलाया जाने वाला यह प्रोजेक्ट नौकरियों के लिए आईं अर्जियों को स्कैन करने से लेकर पढ़ाई का सिलेबस तैयार करने और कस्टमर केयर सेंटर में बातचीत को टाइप करने तक तमाम तरह के कामों के लिए एआई सॉल्यूशन तैयार कर रहा है.
सबके लिए एआई
सिंगापुर की सूचना व संचार मंत्री जोसेफिन टियो कहती हैं कि ‘एआई ट्रेलब्लेजर्स' प्रोजेक्ट सरकार की 'सबके लिए एआई' नीति का हिस्सा है, जिसमें जोर नियम-कानून बनाने पर कम और सबको इस तकनीक का लाभ पहुंचाने पर ज्यादा है.
क्या इंसान की जगह ले लेंगे रोबोट?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक में विकास ने यह डर भी पैदा कर दिया है कि ये रोबोट या ह्यूमनोएड कहीं इंसान की ही जगह तो नहीं ले लेंगे. देखिए, क्या ऐसा हो सकता है?
तस्वीर: YouTube/CNET
आइंस्टाइन जैसा बुद्धिमान और मजाकिया
हांगकांग की कंपनी हैन्सन रोबोटिक्स इंसानों जैसे दिखने वाले रोबोट बनाती है. इसका एक रोबोट है प्रोफेसर आइंस्टाइन. कंपनी कोशिश कर रही है कि यह रोबोट महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन जितना बुद्धिमान हो जाए.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
कितना ज्यादा इंसानी
रोबोट दिखने में भी इंसान जैसे लगें, इसके लिए फ्रबर नाम के एक त्वचा जैसे पदार्थ का विकास किया जा रहा है. नैनोटेक्नोलॉजी पर आधारित इस त्वचा से बने रोबोट के हाव-भाव भी इंसानों जैसे होंगे.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
पहली नागरिक, सोफिया
सोफिया दुनिया की पहली ऐसी रोबोट है जिसके पास नागरिकता भी हासिल है. सऊदी अरब ने उसे अपनी नागरिकता दी है और वह संयुक्त राष्ट्र की इनोवेशन दूत के रूप में भी काम करती है.
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सारे कामों में सक्षम
रोबोट बियोमनी को अमेरिकी कंपनी बियॉन्ड इमैजिनेशन ने बनाया है. यह रोबोट बर्तन धोने से लेकर इंजेक्शन लगाने तक हर तरह का काम कर सकती है. इसे अंतरिक्ष में ले जाने की भी योजना है.
तस्वीर: YouTube/CNET
कलाकार रोबोट
आइ-डा एक रोबोट-आर्टिस्ट है जिसे 'इंजीनियर्ड आर्टिस्ट' कंपनी ने बनाया है. 2019 में बना यह रोबोट दुनिया का पहला रोबोटिक आर्ट सिस्टम है और एल्गोरिदम से ड्राइंग, पेंटिंग और मूर्तियां बना सकता है.
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कौन है असली, कौन है नकली
जापानी रोबोटविज्ञानी हिरोशी इशीगुरो का बनाया यह रोबोट जेमिनोएड उनका हमशक्ल है. उन्होंने जापान के तकनीकी मंत्री तारो कोनो का रोबोटिक क्लोन भी बनाया है. जेमिनोएड अमेरिका में कई कार्यक्रम कर चुका है, बिना इशीगुरो की मदद के.
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ऑफिस वर्कर लेना
जर्मनी में 2022 में बनी लेना को ‘लीप इन टाइम‘ लैब में विकसित किया गया. वह आठ हफ्ते तक एक दफ्तर में बाकी लोगों के साथ सहकर्मी के रूप में काम कर चुकी है. वहां वह प्रेजेंटेशंस भी दे रही थी.
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एआई के खतरे
‘गॉडफादर ऑफ एआई’ कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन ने गूगल में अपनी नौकरी छोड़ दी. वह कहते हैं कि एआई इंसानियत के लिए बेहद खतरनाक है और इसका विकास जिस तेजी से हो रहा है, बहुत जल्द बड़े बदलाव दिख सकते हैं.
गूगल के सिंगापुर दफ्तर में मीडिया से बातचीत में पिछले महीने टियो ने कहा, "नियम निश्चित तौर पर अच्छे शासन का हिस्सा होते हैं लेकिन एआई में हमें यह सुनिश्चित करना है कि काम को सहारा देने के लिए अच्छा ढांचा उपलब्ध हो. दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है क्षमताओं का विकास और यह सुनिश्चित करना कि लोगों की इन युक्तियों तक पहुंच हो बल्कि उनके पास अपने कौशल के विकास का मौका भी हो जिससे वे इन युक्तियों के इस्तेमाल के लिए तैयार हो सकें.”
पिछले कुछ महीनों में जेनरेटिव एआईका पूरी दुनिया में विस्फोटक विकास हुआ है. इस तेज विकास के कारण एक तरफ तो इसका लाभ उठाने के लिए होड़ मची है, दूसरी तरफ सरकारों में इसके गलत इस्तेमाल को लेकर चिंता भी है. इन दोनों भावनाओं के बीच सामंजस्य बिठाने में तमाम देशों की सरकारों को मुश्किल आ रही हैं. इसलिए इस बात पर बहस भी हो रही है कि एआई को नियंत्रित करने के लिए किस तरह के नियम कानून बनाए जाएं.
बीच का रास्ता
सिंगापुर का ध्यान एआई को इस तरह से अपनाने पर है कि आम जनता और उद्योगों को लाभ पहुंचे. देश की सरकारी डिजिटल स्ट्रैटिजी बनाने वाली संस्था इन्फोकॉम मीडिया डिवेलपमेंट अथॉरिटी (आईएमडीए) की उप प्रमुख डिनीस वॉन्ग कहती हैं कि सरकार एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रही है जिसमें शोध, कौशल और सहयोग का विकास हो.
AI से क्या कराएं कि हमें फुर्सत मिल सके
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वह बताती हैं, "हम नियम बनाने पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. हम मानते हैं कि जनता के लिए एआई का इस्तेमाल हो, ऐसा तभी हो सकता है जब व्यवस्था पर भरोसा हो. इसलिए हमें एक ऐसा माहौल चाहिए जिसमें कंपनियां इनोवेशन पर ध्यान दे सकें और उसे सुरक्षित व जिम्मेदार तरीके से इस्तेमाल कर सकें. इससे भरोसा पैदा होता है.”
ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में सिंगापुर की जगह हमेशा सबसे अच्छे देशों में रही है. पिछले साल वह पांचवें नंबर पर था. इसे देश के संस्थानों, मानव संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर की ताकत माना जाता है. सिंगापुर उन शुरुआती देशों में से था जिन्होंने एआई को सबसे पहले अपनाया था. 2019 में ही देश ने एक एआई रणनीति तैयार कर ली थी जिसका मकसद था कि लोग, उद्योग और समुदाय सुरक्षित और भरोसेमंद तरीके से एआई का इस्तेमाल कर पाएं.
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तौर-तरीके भी तैयार
पिछले साल ही सिंगापुर की अदालतों में एआई का इस्तेमाल शुरू हुआ था. उसके बाद स्कूलों और सरकारी एजेंसियों में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ. पिछले साल दिसंबर में देश की दूसरी एआई रणनीति जारी की गई जिसका मिशन थाः लोगों के, सिंगापुर और दुनिया के भले के लिए एआई.
2023 में कितनी बदली सोशल मीडिया की दुनिया
ट्विटर नहीं रहा, लेकिन एक्स और थ्रेड्स पैदा हुए. एआई के चर्चे धीरे-धीरे हर जुबान पर आ गए. एक नजर 2023 में सोशल मीडिया की बड़ी हलचलों पर.
तस्वीर: STEFANI REYNOLDS/AFP
ट्विटर बिका, एक्स हुआ
एक साल पहले इलॉन मस्क ने ट्विटर को खरीद उसके सीईओ समेत कई बड़े अधिकारियों को निकाल दिया और बदल कर एक्स बना दिया. जुलाई में लोगो सामने आया और नीले रंग की चिड़िया हर जगह से उड़ा दी गई.
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कम हुआ प्लेटफॉर्म का स्टेटस
मशहूर हस्तियों के सक्रिय होने के कारण 17 सालों में ट्विटर का पॉप कल्चर पर काफी असर रहा है. मस्क के खरीदने से पहले ही उसमें कमी आ चुकी थी. हालांकि अब भी छोटे-मोटे समूहों के लिए ये अहम अड्डा बना हुआ है.
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मस्क इफैक्ट
गलत जानकारियां फैलाने और नस्लवाद जैसे कई आरोप मस्क की इस कंपनी पर लगे. कंपनी की विज्ञापनों से कमाई और यूजर्स की तादाद में भी भारी कमी दिखी. ट्विटर पर बैन कई हस्तियों को मस्क एक्स पर वापस ले आए.
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मैस्टोडॉन, ब्लूस्काई और थ्रेड्स
मस्क के एक्स से नाखुश लोगों के लिए कई नए विकल्प सामने आए. ट्विटर से ही निकले मैस्टोडॉन, ब्लूस्काई जैसे कई प्लेटफॉर्म पेश हुए. इसकी मांग को देखते हुए फेसबुक की पेरेंट कंपनी भी अपना प्लेटफॉर्म थ्रेड्स लेकर आ गई.
तस्वीर: STEFANI REYNOLDS/AFP
थ्रेड्स के खुल गए धागे
जुलाई में थ्रेड्स के खूब चर्चे हो रहे थे. दुनिया भर में करोड़ों लोगों ने साइन अप किया. लेकिन दिसंबर में मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने अपने इस बयान ने सबको चौंका दिया कि उनकी कंपनी 'इंटरऑपरेबिलिटी' को टेस्ट कर रही है.
तस्वीर: Susan Walsh/Francois Mori/AP/dpa/picture alliance
क्या है 'इंटरऑपरेबिलिटी'
मैस्टोडॉन और ब्लूस्काई पहले से ही 'इंटरऑपरेबिलिटी' पर काम रहे हैं. आइडिया यह है कि जैसे हम सबका कोई फोन नंबर और ईमेल अकाउंट होता है, वैसे ही हमारे सोशल मीडिया अकाउंट हों जिन्हें हम किसी भी प्लेटफॉर्म पर यूज कर सकें.
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थ्रेड्स पर दिखा नमूना
दिसंबर में मार्क जकरबर्ग ने थ्रेड्स पर पोस्ट किया कि थ्रेड्स अकाउंट मैस्टोडॉन और दूसरी ऐसी सर्विसेज पर उपलब्ध रहेंगे, जो एक्टिविटीपब प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करते हैं. माना जा रहा है कि इससे यूजर्स पहले से कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ पाएंगे.
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मेंटल हेल्थ की चिंताएं
लोगों, खासकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के बुरे असर को लेकर इस साल खूब चर्चा हुई. अमेरिकी सर्जनों ने कहा कि इसके पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि सोशल मीडिया बच्चों और टीनएजर्स के लिए सुरक्षित है.
तस्वीर: Panthermedia/IMAGO
टेक कंपनियों और पेरेंट्स से मांग
मजबूत सामाजिक संबंधों को सेहत की कुंजी मानने वाले अमेरिका के 'नेशनल डॉक्टर' सर्जन जनरल डॉक्टर विवेक मूर्ति कह चुके हैं कि पेरेंट्स को अपने बच्चों को सोशल मीडिया से बचाना होगा. उनका कहना है कि इसके इस्तेमाल से बच्चों की दुनिया के बारे में और खुद अपने बारे में राय तक बदल जाती है.
तस्वीर: Democratic National Convention/CNP/MediaPunch/picture alliance
अमेरिकी मां-बाप सवाल उठा रहे हैं, और आप?
अक्टूबर में अमेरिका के दर्जनों राज्यों ने मेटा को सू कर दिया. आरोप लगाया कि वह युवाओं को नुकसान पहुंचा रहा है और उनके मानसिक स्वास्थ्य के साथ जानबूझ कर खेल रहा है. खासकर इंस्टाग्राम और फेसबुक के ऐसे फीचरों पर सवाल खड़े किए गए हैं, जिनकी लत लग जाती है.
तस्वीर: DW
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पिछले साल वहां एआई वेरिफाई फाउंडेशन भी स्थापित की गई, जो एआई के जिम्मेदाराना इस्तेमाल के लिए तौर-तरीके विकसित कर रही है. आईएमडीए के अलावा आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और सेल्सफोर्स जैसी टेक-कंपनियां फाउंडेशन की सदस्य हैं.
वॉन्ग कहती हैं कि कोड-शेयरिंग वेबसाइट गिटहब पर जब इस टूलकिट को साझा किया गया तो दुनियाभर की दर्जनभर कंपनियों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है.
वॉन्ग कहती हैं, "हम चाहते हैं कि सभी एआई का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करें. लेकिन सरकारें ऐसा अपने आप नहीं कर सकतीं.”