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समाजजर्मनी

जर्मनी में बदल रहा है क्रिसमस मनाने का तरीका

महेश झा
२७ दिसम्बर २०२२

दुनिया भर में क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है, जबकि जर्मनी में क्रिसमस से पहले का दिन खास है जब परिवार के सदस्य एक साथ होते हैं और पारंपरिक माहौल में तोहफे लेते-देते हैं. लेकिन परिवारों में हालात बदल रहे हैं.

Symbolbild | Gemeinsames Essen
तस्वीर: lev dolgachov/Zoonar/picture alliance

जर्मनी में 24 दिसंबर का दिन आधी सरकारी छुट्टी का दिन है. इस दिन बाजार आधे दिन खुले होते हैं. शाम का समय परिवार का समय होता है. आधे दिन की छुट्टी का इस्तेमाल लोग अपने माता-पिता के पास पहुंचने के लिए करते हैं जहां पारंपरिक माहौल में क्रिसमस ट्री के नीचे तोहफे रखे होते हैं. बच्चे गीत गाकर अपने तोहफे लेते हैं और पूरे परिवार के बीच उसकी पैकिंग खोलते हैं. अगर कभी आपको जर्मन परिवारों में इस दिन जाने का मौका मिले तो अद्भुत किस्म का पारिवारिक माहौल मिलेगा. और परिवारों से बाहर निकलें तो आपको सब कुछ बंद दिखेगा. दुकानें, सुपर मार्केट, रेस्तरां, पेट्रोल पंप लगभग सब कुछ. हां लगभग.

सेकेंड हैंड चीज तोहफे में देना बुरा तो नहीं लगेगा

कुछ साल पहले ऐसा नहीं था. 24 दिसंबर को सड़कों पर घूमें तो जर्मनी में बदलाव दिखता है. अब अधिक दुकानें खुली दिखती हैं, सड़कों पर अधिक लोग नजर आते हैं और जर्मन परिवारों में भी पारंपरिकता की जगह नवाचार ले रहे हैं. ये बदलाव एक ओर तो बड़ी संख्या में प्रवासियों के जर्मनी आने की वजह से हो रहे परिवर्तन को दिखाता है तो दूसरी तरफ खुद जर्मन समाज भी बदल रहा है.

क्रिसमस के एक दिन पहले दोपहर से ही जर्मनी में सबकुछ बंद होजाता हैतस्वीर: Rupert Oberhäuser/IMAGO

एकाकी होते लोगों का रेस्तरां ही सहारा

मेरे इलाके में एक पाकिस्तानी शेफ अली का रेस्तरां है. 24 दिसंबर के दिन रेस्तरां खुला था. यह रेस्तरां फ्रेंच-जर्मन स्टाइल कुइजीन के लिए जाना जाता है. मैं भी खाने गया था. रेस्तरां खचाखच भरा था और मुझे ये देखकर हैरानी हुई कि ज्यादातर ग्राहक जर्मन थे. तो क्या जर्मनों ने परिवारों में परंपरागत रूप से क्रिसमस मनाना बंद कर दिया है? सच्चाई कहीं बीच में है. बच्चों वाले परिवारों में क्रिसमस की पूर्व संध्या अभी भी परंपरागत रूप से मनाई जाती है. इसलिए 24 की शाम अली के यहां जर्मन ग्राहक तो थे लेकिन बच्चे नहीं थे. बहुत से परिवारों में बच्चे बड़े हो गए हैं और अब वे क्रिसमस ट्री के नीचे तोहफे रखने की रस्म अदायगी नहीं करते. घर में त्योहार का खाना बनाने की मेहनत से बचकर बुजुर्ग मां-बाप वयस्क बच्चों के साथ रेस्तरां का ही रुख करते हैं.

अली ने एक और वजह बताई. रेस्तरां रिहायशी इलाके में है और वहां आने वाले बहुत से लोग नियमित ग्राहक हैं. जर्मनी तेजी से बदल रहा है, नौकरी के लिए बच्चे दूसरे शहरों में जाने लगे हैं, माता-पिता एकाकी होते जा रहे हैं. ऐसे में भरे पूरे घर का अहसास बहुत से लोगों को रेस्तरां में मिलता है. खासकर यदि वह हाईएंड रेस्तरां हो जहां वे मनपसंद खाना खा सकें, पसंद की वाइन पी सकें.

पारिवारिक डिनर बहुत से लोग रेस्तरां में करने लगे हैंतस्वीर: lev dolgachov/Zoonar/picture alliance

गिरजे का गिरता सामाजिक महत्व

क्रिसमस का त्योहार जर्मनी में सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और पारिवारिक त्योहार हुआ करता था. लेकिन क्रिसमस की पूर्व संध्या का घटता महत्व जर्मनी की आबादी में आ रहे बदलाव के साथ साथ चर्च के घटते महत्व का भी नतीजा है. अभी पिछले दिनों जर्मनी की प्रतिष्ठित संस्था बैर्टेल्समन फाउंडेशन ने एक सर्वे कराया है, जिसके अनुसार जर्मनी में चर्चों का सामाजिक महत्व गिर रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह चर्च के सदस्यों का कम होना है.

जर्मनी अकेला देश है जहां सरकार चर्चों के लिए सदस्यता टैक्स वसूलती है और चर्चों को देती है. चर्च की सदस्यता छोड़ने के लिए सदस्यों को अदालत में अर्जी देनी होती है. तभी उनका चर्च छोड़ना आधिकारिक होता है और उन्हें टैक्स देने की बाध्यता नहीं रहती. पिछले सालों में चर्च के संस्थानों में बाल यौन शोषण की घटनाओं के कारण बहुत से सदस्यों ने चर्च छोड़ दिया है. सर्वे में कम से कम एक चौथाई ने माना है कि पिछले बारह महीनों में उन्होंने चर्च छोड़ने के बारे में सोचा है. 16 से 25 साल के युवाओं के वर्ग में तो 41 फीसदी ने चर्च छोड़ने का इरादा बना रखा है.

अभी भी करीब 4 करोड़ चर्च सदस्य

8.4 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में 2.17 कैथोलिक ईसाई हैं और 1.97 करोड़ प्रोटेस्टेंट. जिस तरह से सदस्य चर्चों को छोड़ रहे हैं फ्राइबुर्ग यूनिवर्सिटी के अनुसार 2060 तक उनकी संख्या सिर्फ 2.2 करोड़ रह जाएगी. चर्च सदस्यों की घटती संख्या के बावजूद ऐसा नहीं है कि जर्मनी में आस्था में कमी हो रही है. 38 फीसदी लोग खुद को अत्यंत धार्मिक मानते हैं, 17 प्रतिशत परिवारों में रोजाना प्रार्थना आम है और 80 फीसदी लोगों का मानना है कि चर्च से बाहर रहने के बावजूद आप ईसाई हो सकते हैं. और खासकर कैथोलिक गिरजे से लोगों के मुंह फेरने की वजह उसकी सुधारों में बाधा डालने की नीति है.

बहुत से लोग चर्च की सदस्यता छोड़ रहे हैंतस्वीर: Jens Schlueter/Stadt Leipzig/EPA-EFE

सदस्यों को संभाल कर रखने की ईसाई गिरजों में चल रही बहस में दिलचस्प तथ्य ये भी है कि लोग चर्चों के विशेषाधिकार पर सवाल उठाने लगे हैं. मसलन जर्मनी को पारंपरिक तौर पर ईसाई देश माना जाता है, इसलिए सामाजिक जीवन में उसका दबदबा है और उसकी हिस्सेदारी इस्लाम, बौद्ध या हिंदू धर्म के मुकाबले कहीं ज्यादा है. सारी छुट्टियां भी ईसाई छुट्टियां हैं. मुसलमानों, बौद्धों या हिंदुओं के लिए किसी भी तरह की धार्मिक छुट्टी का इंतजाम नहीं है. यहां तक कि चर्च सदस्यों का बहुमत भी गिरजे के विशेषाधिकारों का आलोचक है.

आबादी में पर्याप्त वृद्धि ना होने के कारण जर्मनी देश को कुशल विदेशियों के लिए खोल रहा है. जो आप्रवासी जर्मनी आ रहे हैं उनमें मुसलमानों, हिंदुओं और बौद्धों की तादाद ज्यादा है. उन्हें आकर्षित करने के लिए आने वाले सालों में धर्म पालन की संभावना और धार्मिक छुट्टियों का मामला अहम रहेगा. जर्मनी में बहुत सालों से दुर्गा पूजा या छठ जैसे त्यौहार होते रहे हैं लेकिन इस साल पहली बार रावण दहन भी हुआ. बहुलता के मामले में जर्मनी धीरे धीरे ही सही, लेकिन बदल रहा है.

जर्मनी में क्रिसमस मेलों की रौनक

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