जर्मनी में कई सरकारी संस्थानों पर रोमा और सिंती अल्पसंख्यकों से भेदभाव करने के गंभीर आरोप लगे हैं. इन समुदायों के साथ होने वाले भेदभाव पर पहली बार रिपोर्ट आई है.
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एंटीजिग्निज्म रिपोर्टिंग एंड इंफॉर्मेशन सेंटर (एमआईए) जर्मनी में रोमा लोगों के साथ होने वाले भेदभाव की स्पष्ट तस्वीर चाहता है. रोमा जिप्सियों के साथ होने भेदभाव और उनके प्रति पूर्वाग्रह को एंटीजिग्निज्म कहा जाता है. जर्मन सरकार द्वारा वित्तपोषित पर्यवेक्षक संस्था, एमआईए ने अपनी 2022 की जानकारियां, सोमवार को पेश की. रिपोर्ट में संस्था ने इस मुद्दे पर सूचनाओं के "सिस्टमैटिक" संग्रह की मांग की है.
इस मुद्दे पर पहली बार आई इस तरह की रिपोर्ट की प्रस्तावना में सेंट्रल काउंसिल ऑफ जर्मन सिंती एंड रोमा के चेयरपर्सन रोमानी रोज लिखते हैं, "एमआईए, एंटीजिग्निज्म अपराधों और घटनाओं की बड़ी अनदेखी पर प्रकाश डाल रहा है."
रिपोर्ट में रोमा और सिंती समुदाय के खिलाफ हुई 621 घटनाओं का जिक्र किया गया है. इनमें से 119 में जर्मनी के सरकारी संस्थान भी शामिल थे. सरकारी संस्थानों का ऐसी वारदातों में शामिल होना, कितना व्यापक है, इसका पता हर साल होने वाले वार्षिक मूल्यांकन से ही लगाया जा सकता है.
जर्मनी में रोमा और सिंती समुदायों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक की मान्यता दी गई है. सिंती समुदाय के लोग करीब 600 साल से जर्मनी में रह रहे हैं. अनुमान है कि आज उनकी आबादी 70,000 से 1,50,000 के बीच है. 19वीं सदी के अंत से यूरोप के जर्मनभाषी इलाकों में करीब 30,000 रोमा बंजारे भी रह रहे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि रोमा और सिंती बंजारे सैकड़ों साल पहले भारत से यूरोप आए.
यूरोप में नाजी काल के दौरान सिंती और रोमा समुदाय को सुनियोजित तरीके से प्रताड़ित किया गया. इस समुदाय ने जनसंहार भी झेले. हिटलर की तानाशाही में रोमा और सिंती समुदाय को जड़ के खत्म करने की नीति लागू थी. उस दौरान हजारों लोगों को हत्या की गई. इन समुदायों को लेकर कुछ पूर्वाग्रह आज भी जिंदा हैं.
भारत से निकल कर यूरोप तक पहुंचने वाले रोमा कौन हैं?
नेटफ्लिक्स की फिल्म रोमा ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोमा भारत से निकली बंजारा जाति है. जानिए इनके बारे में और.
दसवीं सदी में भारत से पलायन करने वाली रोमा बंजारा जाति को दुनिया भर में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. आज भी ये समुदाय हाशिए पर जीने को मजबूर है.
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
यूरोप भर में
यूरोप में मौजूद जातीय रूप से अल्पसंख्यकों में रोमा लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. करीब सवा करोड़ रोमा यूरोप भर में फैले हुए हैं. अधिकतर मध्य और पूर्वी यूरोप में रहते हैं.
तस्वीर: Tomas Rafa
गरीबी रेखा के नीचे
2016 में यूरोपीय संघ के नौ सदस्य देशों में हुए एक सर्वे के अनुसार यूरोप में रहने वाले लगभग 80 प्रतिशत रोमा गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं.
तस्वीर: DW/M.Smajic
भेदभाव का सामना
एक रिपोर्ट के अनुसार हर चार में से एक रोमा व्यक्ति ने कहा कि उसे भेदभाव का सामना करना पड़ा है लेकिन इनमें से महज दस फीसदी लोगों ने ही इसके खिलाफ शिकायत दर्ज की.
तस्वीर: DW/J. Djukic Pejic
जिप्सियों से दूरी
एक अन्य शोध के अनुसार यूरोप के आधे से ज्यादा लोगों का कहना था कि वे अपने आसपड़ोस में "जिप्सी" लोगों को रहते नहीं देखना चाहते. नशा करने वालों और अपराधियों के अलावा लोगों को बस इन्हीं से दिक्कत थी.
तस्वीर: DW/J. Djukic Pejic
छोटा जीवन
आंकड़े दिखाते हैं कि यूरोप के बाकी लोगों की तुलना में रोमा लोग दस साल कम जीते हैं. साथ ही इनमें बाल मृत्यु दर भी यूरोप के औसत से ज्यादा है.
तस्वीर: DW/A. Feilcke
साक्षरता भी मुद्दा
यूरोप में रहने वाले लगभग बीस फीसदी रोमा लोग पढ़ लिख नहीं सकते. हर चार में से बमुश्किल एक ही रोमा व्यक्ति स्कूली शिक्षा पूरी करता है.
तस्वीर: DW/S. Kljajic
कहां की राष्ट्रीयता?
2016 की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि केवल इटली में ही 15 हजार बच्चों पर स्टेटलेस यानी किसी भी देश की नागरिकता ना होने का खतरा है.
तस्वीर: DW/M.Smajic
मान्यता भी नहीं
लातिन अमेरिका में केवल कोलंबिया और ब्राजील ही रोमा को अल्पसंख्यक जाति का दर्जा देते हैं. बाकी देशों में इन्हें कोई मान्यता प्राप्त नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Paduano
बुरा जीवनस्तर
रोमा लोग अधिकतर ऐसे घरों में रहते हैं जहां जीवनस्तर बेहद बुरा होता है. साथ ही इन्हें पुलिस की कार्रवाई का डर भी रहता है. इटली और बुल्गारिया में कई रोमा लोगों को जबरन घर से निकाला गया है.
तस्वीर: DW/A. Burakow
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भेदभाव और अपराध के आंकड़े
रोमा और सिंती लोगों के खिलाफ होने वाले अपराधों की सटीक जानकारी अब भी नहीं हैं. अगर कोई पीड़ित खुद ही आपबीती बताए तो ही ऐसे मामले सामने आ पाते हैं. आधिकारिक दस्तावेजों में कुछ ही मामले दर्ज हैं. राजनीति से प्रेरित होकर किए गए अपराधों की जांच जर्मनी की संघीय अपराध पुलिस करती है.
एमआईए की रिपोर्ट बताती है कि अल्पसंख्यक समुदायों के लिए धुर दक्षिणपंथ का उभार और बढ़ता राष्ट्रवाद भी एक खतरा है. रिपोर्ट में रोज लिखते हैं कि ऐसा खतरा, सिंती, रोमा, यहूदियों और अन्य समुदायों पर भी है. रोज के मुताबिक रोजमर्रा की जिंदगी में एंटीजिग्निज्म के प्रति "गलत समझ" भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही है.
निष्कर्ष में रिपोर्ट कहती है, "यह सिर्फ सड़कों पर ही नहीं है, बल्कि दुख तो ये है कि ऐसा नियमित रूप से सरकारी संस्थानों के द्वारा भी होता है." रिपोर्ट के मुताबिक एंटीजिग्निज्म के करीब 20 फीसदी मामलों में सरकारी संस्थान शामिल हैं.
उदाहरण के तौर पर सामाजिक कल्याण के फायदे पाने के लिए भी जॉब सेंटर जैसी संस्थाएं रोमा परिवारों के साथ भेदभाव करती हैं. अतिरिक्त दस्तावेज मुहैया नहीं कराने पर रोमा परिवारों को मिलने वाले लाभ निलंबित कर दिए जाते हैं. रिपोर्ट में एक मामले का जिक्र इस तरह किया गया है, "मां कहती हैं कि जॉब सेंटर का कर्मचारी जानता है कि वे रोमा हैं और इसीलिए उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है."
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संस्थागत भेदभाव का स्रोत
एमआईए का कहना है कि जांच के लिए संबंधित विभागों और लोगों तक पहुंच नहीं होने की वजह से भी भेदभाव के मामलों को सूचीबद्ध करना मुश्किल है. लेकिन इसके बावजूद कुछ मामलों से नजर नहीं चुराई जा सकती. मसलन 2021 में दक्षिण जर्मनी में पुलिस ने 11 साल के एक सिंती बच्चे की तलाशी ली. बच्चे के पास एक छोटा सा चाकू मिला. उसे गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले जाया गया. इस पूरी प्रक्रिया में बच्चे की उम्र को नजरअंदाज किया गया. उसे परिवार से संपर्क करने की अनुमति भी नहीं दी गई.
हालांकि कुछ देर की पूछताछ के बाद बच्चे को रिहा कर दिया गया. बच्चे के परिवार ने इस मामले की शिकायत की और 2022 में केस भी जीता. इस वाकये में शामिल पुलिस अधिकारियों पर बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन करने के दोष में 3,600 यूरो का जुर्माना लगाया गया.
सिंती और रोमा के नाजी नरसंहार की याद
भारत से आई बंजारा जातियां सिंती और रोमा 600 साल से अधिक से यूरोप में रहती हैं. नाजी जर्मनी में उनके साथ भारी भेदभाव हुआ, जबरन नसबंदी की गई और बहुतों को मार डाला गया. बाद में जर्मन समाज ने भी उनके उत्पीड़न को नकारा.
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
मातृभूमि की सेवा
बहुत से जर्मन सिंतियों ने सिर्फ प्रथम विश्वयुद्ध में ही नहीं, बल्कि 1939 के बाद नाजी सेना में भी लड़ाई लड़ी. 1941 में जर्मन हाई कमान ने सभी जिप्सियों और अर्ध जिप्सियों को नस्लवादी कारणों से सेना की सक्रिय सेवा ने निकालने का फैसला किया. अलफोंस लाम्पर्ट और उनकी पत्नी एल्जा को यातना शिविर आउशवित्स भेज दिया गया जहां उन्हें मार डाला गया
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
नस्ली नाप और रजिस्ट्रेशन
नर्स एवा जस्टिन ने सिंती और रोमा का विश्वास जीतने के लिए रोमानी भाषा सीखी. वैज्ञानिक नस्लवाद की विशेषज्ञ के रूप में उसने पूरे जर्मनी में घूम घूमकर लोगों के नाप लिए और "जिप्सी" तथा "अर्द्ध जिप्सी ब्रीड" का पूरा रजिस्टर तैयार किया. ये बाद में सिंती और रोमा के नरसंहार का आधार बना. उन्होंने पारिवारिक संबंधों और चर्च के रिकॉर्ड की जांच की.
तस्वीर: Bundesarchiv
गिरफ्तारी और कुर्की
1930 के दशक में सिंती और रोमा परिवारों को उनके घरों से निकालकर शहर के बाहर बाड़े में घिरे कैंपों में रहने को विवश किया गया. दक्षिण पश्चिमी जर्मनी के रावेंसबुर्ग कैंप की तरह कैंपों की सुरक्षा कुत्तों वाले पुलिसकर्मी करते थे. उन्हें कैंप से बाहर नहीं निकलने दिया जाता और बंधुआ मजदूरों की तरह काम करना पड़ता था. बहुतों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी गई.
तस्वीर: Stadtarchiv Ravensburg
लोगों के सामने डिपोर्टेशन
मई 1940 में दक्षिण पश्चिमी जर्मन शहर आस्पैर्ग में सिंती और रोमा परिवारों को शहर की गलियों से होते हुए स्टेशन तक ले जाया गया और वहां से उन्हें सीधे नाजी कब्जे वाले पोलैंड में भेज दिया गया. बाद में एक पुलिस रिपोर्ट में लिखा गया कि उन्हें डिस्पैच करने की कार्रवाई बिना किसी बाधा के पूरी हुई. डिपोर्ट किए गए ज्यादातर लोग लेबर कैंपों में मारे गए.
तस्वीर: Bundesarchiv
स्कूल से आउशवित्स
कार्ल्सरूहे के एक स्कूल की 1930 के दशक की इस तस्वीर में कार्ल क्लिंग भी हैं. उन्हें 1943 में स्कूल से उठाया गया और आउशवित्स के "जिप्सी कैंप" में भेज दिया गया जहां वे नाजी नरसंहार के शिकार हुए. पीड़ित बताते हैं कि डिपोर्ट किए जाने से पहले स्कूलों में भी उनके साथ भेदभाव किया जाता था और कई बार तो क्लास में शामिल भी नहीं होने दिया जाता था.
झूठी उम्मीद
नौ साल का हूगो होएलेनराइनर जब मवेशी गाड़ी में सवार होकर अपने परिवार के साथ 1943 में आउशवित्स पहुंचा तो उसने सोचा था, "मैं काम कर सकता हूं." कैंप के बाहर बोर्ड लगा था, "काम आजाद करता है." बाद में होएलेनराइटर ने बताया कि इससे उम्मीद बंधी थी. वह अपने पिता की मदद करना चाहता था ताकि वे सब आजाद हो सकें. लेकिन आउशवित्स भेजे गए सिर्फ 10 फीसदी लोग बचे.
तस्वीर: DW/A. Grunau
बंदियों के साथ बर्बर प्रयोग
नाजी संगठन एसएस का कुख्यात डॉक्टर जोसेफ मेंगेले आउशवित्स में काम करता था. वह और उसके साथी बंदियों को कठोर यातना देते थे. वे बच्चों के शरीर की चीड़फाड़ करते, उन्हें बीमारियों का इंजेक्शन देते और जुड़वां बच्चों पर बर्बर प्रयोग करते. मेंगेले ने उनकी आंखें, शरीर के अंग और पूरे के पूरे शरीर बर्लिन भेजे. बाद में वह यूरोप से भाग गया और उस पर कभी मुकदमा नहीं चला.
तस्वीर: Staatliches Museum Auschwitz-Birkenau
Liberation comes too late
जब रूस की रेड आर्मी ने 27 जनवरी 1945 को आउशवित्स के यातना कैंप को आजाद कराया तो कैद में बच्चे बचे थे. सिंती और रोमा बंदियों के लिए आजादी की रात देर से आई थी. 2-3 अगस्त 1944 की रात को कैंप के प्रभारी अधिकारी ने सिंती और रोमा बंदियों को गैस चैंबर में भेजने का आदेश दिया था. अगले दिन "जिप्सी कैंप" से दो बच्चे रोते हुए बाहर निकले, उन्हें भी मार दिया गया.
तस्वीर: DW/A. Grunau
नस्लवादी उत्पीड़न
नाजी यातना शिविरों को आजाद कराए जाने के बाद मित्र देशों की सेना और जर्मन अधिकारियों ने जिंदा बचे लोगों को नस्लवादी उत्पीड़न और कैद होने का सर्टिफिकेट दिया. बाद में उनसे कहा गया कि उन्हें अपराधों के लिए सजा मिली है और हर्जाने की उनकी मांग ठुकरा दी गई. हिल्डेगार्ड राइनहार्ट ने आउशवित्स में अपनी तीन छोटी बेटियों को खोया है.
तस्वीर: Dokumentations- und Kulturzentrum Deutscher Sinti und Roma
मान्यता की अपील
1980 के दशक के आरंभ में सिंती और रोमा समुदायों के प्रतिनिधियों ने डाखाऊ के पूर्व यातना शिविर के सामने भूख हड़ताल की. वे अपने समुदाय को अपराधी बताने और नाजी यातना को मान्यता दिए जाने की मांग कर रहे थे. 1982 में तत्कालीन चांसलर हेल्मुट श्मिट ने पहली बार औपचारिक रूप से स्वीकार किया कि सिंती और रोमा समुदाय के लोग नाजी नरसंहार के शिकार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में स्मारक
2012 में बर्लिन में जर्मन संसद बुंडेसटाग के निकट नाजी उत्पीड़न के शिकार सिंती और रोमा लोगों के लिए स्मारक बना. ये स्मारक दुनिया भर के सिंती और रोमा के लिए भेदभाव के खिलाफ लंबे संघर्ष की निशानी है. इस समुदाय के लोगों को आज भी जर्मनी और यूरोप के दूसरे देशों में भेदभाव का शिकार बनाया जा रहा है.