तमिलनाडु में लागू हुआ "बैठने का अधिकार"
११ अक्टूबर २०२१तमिलनाडु में लागू हुआ "बैठने का अधिकार" खासकर महिला कर्मचारियों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है. वे कई-कई घंटों तक खड़े हो कर दुकानों और रिटेल स्टोर में काम करती हैं. चेन्नई के एक रिटेल स्टोर में काम करने वाली एस लक्ष्मी को हर रोज करीब 10 घंटे खड़े होना पड़ता था. जब वह घर लौटतीं तो वह थकान से चूर हो जातीं और उनकी एड़ियों में दर्द होता.
पिछले महीने तमिलनाडु दूसरा भारतीय राज्य बना जो कानूनन रिटेल स्टोर और दुकानों में कर्मचारियों को "बैठने का अधिकार" देता है. कानून के मुताबिक स्टोर मालिकों से कहा गया है कि वे कर्मचारियों की बैठने की व्यवस्था करें और कर्मचारियों को काम के दौरान जब भी संभव हो आराम करने का मौका दें.
पिछले 10 सालों से कपड़े के स्टोर में काम करने वाली 40 साल की लक्ष्मी कहती हैं, "अब तक इन शिफ्ट के दौरान एकमात्र आराम का समय हमें 20 मिनट के लंच ब्रेक में मिलता था. हमारे दुखते पैरों को सहारा देने के लिए हम कुछ पल के लिए शेल्फ के सहारे आराम कर लेते थे."
वह कहती हैं, "ग्राहक नहीं होने पर भी हमें फर्श पर बैठने की इजाजत नहीं होती."
भारत में कई दुकानों और रिटेल स्टोर्स में काम करने वाले कर्मचारियों को खड़े होकर काम करना होता है. यह एक ऐसा नियम हो जो समान रूप से सभी कर्मचारियों पर लागू होता है.
तमिलनाडु समेत दक्षिणी राज्यों में बड़े परिवार द्वारा आभूषण, साड़ी और कपड़ों के रिटेल स्टोर चलाए जाते हैं. वे महिला ग्राहकों की सेवा के लिए कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को काम पर रखते हैं.
साल 2018 में करेल ने इसी तरह का कानून लागू किया था. टेक्सटाइल स्टोर में काम करने वाले कर्मचारियों ने इस अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया था. अधिकार समूहों का कहना है कि श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह देर से उठाया गया स्वागत योग्य कदम है.
कामकाजी महिला समन्वय के तमिलनाडु राज्य संयोजक समिति की एम धनलक्ष्मी कहती हैं, "यह लंबे समय से लंबित मांग थी." वह कहती हैं, "जब से वे काम पर जाने के लिए बस में चढ़ती हैं, तब तक 12-14 घंटे की शिफ्ट के बाद घर लौटती हैं वे मुश्किल से बैठ पाती हैं. वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती हैं और उन्हें लगातार तनाव में काम करना पड़ता है. यह नियम लंबे समय से लंबित था."
केरल से शुरू हुआ आंदोलन
पेशे से दर्जी पी विजी ने केरल में बैठने का अधिकार आंदोलन को शुरू किया है. उन्होंने यूनियन का गठन किया, यह खासकर ऐसे कर्मचारियों के लिए था, जो असंगठित क्षेत्र जैसे कि दुकानों में सहायक के तौर पर काम करते हैं.
विजी कहती हैं, "चूंकि महिलाओं को काम पर बैठने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, इसलिए वे अपने सिर पर कुर्सियां लेकर विरोध में चल पड़ीं." वे तमिलनाडु के नए कानून को लेकर उत्साहित हैं.
विजी कहती हैं, "लेकिन असली परीक्षा इसको लागू करना है. एक संघ के रूप में हम लगातार दुकानों की जांच करते हैं और शिकायत दर्ज करते हैं यदि (बैठने की) सुविधाएं नहीं हैं. कानून का कोई मतलब नहीं है अगर इसे लागू नहीं किया जाता है."
तमिलनाडु के श्रम सचिव आर किर्लोश कुमार कहते हैं कि इंस्पेक्टर जांच करने दुकानों पर जाएंगे ताकि कानून को लागू किया जा सके. वह कहते हैं, "हम इसे श्रमिकों के लिए एक प्रमुख कल्याणकारी उपाय के रूप में देखते हैं और स्टोर मालिकों की तरफ से कानून का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे."
"लंबा सफर अभी बाकी"
यूनियन नेताओं और महिला अधिकार आंदोलनकर्ताओं का कहना है कि बैठने में सक्षम नहीं होना दुकान के कर्मचारियों के सामने आने वाली दैनिक कठिनाइयों में से एक है. दुकान सहायकों को अक्सर न्यूनतम वेतन से कम भुगतान किया जाता है और उन्हें सप्ताह के सातों दिन काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. उन्हें प्रबंधकों द्वारा निरंतर निगरानी में और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. आरोप तो यह भी लगते हैं कि महिला कर्मचारियों को बाथरूम के इस्तेमाल से भी रोका जाता है.
धनलक्ष्मी कहती हैं, "बैठने का अधिकार उन मांगों में से एक है जो पूरी हो गई हैं. लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है." वह कहती हैं, "उचित वेतन, उचित टॉयलेट ब्रेक और कम निगरानी की लड़ाई जारी है जबकि दुकान मालिक सीसीटीवी कैमरों को सही ठहराते हैं यह कहते हुए कि यह ग्राहकों द्वारा चोरी को रोकता है. वे असल में इसका इस्तेमाल कर्मचारियों पर जासूसी करने के लिए करते हैं."
वह कहती हैं, "दुकानों का माहौल गला घोंटनेवाला है."
केरल में यूनियन सीसीटीवी निगरानी पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं. यूनियन के सदस्य कहते हैं कि इसका इस्तेमाल कर्मचारियों को आपस में बात करने या कुछ समय के लिए अपनी जगह छोड़ने के लिए दंडित करने के लिए किया जाता है.
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)