हाल में प्रधानमंत्री मोदी के मध्यपूर्व दौरे पर प्रवासी मजदूरों की जरूरतें भी फोकस में थीं. केसरिया पासपोर्ट वाला प्रस्ताव तो वापस ले लिया गया है लेकिन विदेशों में काम करने वाले मजदूरों के सशक्तिकरण का मुद्दा बना हुआ है.
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लगता यही है कि अकुशल कामगारों के लिए देश हो या विदेश, हालात विडम्बनापूर्ण ही हैं. खाड़ी की ओर भारतीय कामगारों का रुझान सदी डेढ़ सदी पुराना है. लेकिन माना जाता है कि सत्तर के दशक में पहले "ऑयल बूम” ने इस रुझान को तीव्र कर दिया था. एक आकलन के मुताबिक करीब सत्तर से अस्सी लाख भारतीय, खाड़ी सहयोग परिषद् (जीसीसी) कहलाने वाले छह खाड़ी देशों- सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, ओमान और बहरीन में काम करते हैं. हालांकि तेल की कीमतों में कमी, अपने बेरोजगारों को प्राथमिकता देने की नीति और खाड़ी में अपेक्षाकृत अशांत माहौल के बीच पिछले दो साल में कामगारों की संख्या में करीब दो लाख की गिरावट दर्ज की गई है.
भारतीय मजदूर हर साल 40 अरब डॉलर घर भेजते हैं. 2014-15 में भारत ने करीब 70 अरब डॉलर हासिल किए थे. लेकिन इसमें भी गिरावट आई और 2015-16 में ये आंकड़ा घटकर करीब 65 अरब डॉलर का रह गया. संख्या और राशि में गिरावट के बावजूद यह भी सच है कि ये मजदूर देश के विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान तो दे ही रहे हैं. बदले में प्रवासी कामगारों को क्या मिलता है, ये देखना जरूरी है क्योंकि विदेश की तैयारी करने, वहां पहुंचने और वहां जीवन शुरू करने के विभिन्न चरणों में ये लोग भ्रष्टाचार, दलाली और ठगी समेत कई तरह की समस्याओं का सामना करते हैं. सुरक्षा और कल्याण से जुड़े इन प्रवासियों के बुनियादी मुद्दे अनसुलझे ही रह जाते हैं.
इन देशों में रहते हैं सबसे ज्यादा भारतीय
अंतरराष्ट्रीय प्रवासी रिपोर्ट कहती है कि विदेशों में रहने वाले प्रवासियों के मामले में भारत पहले स्थान पर है. कुल 1.659 करोड़ भारतीयों में से आधे से अधिक खाड़ी देशों में रहते हैं. जानिए कहां कितने भारतीय रहते हैं.
सबसे पहली मुश्किल तो पासपोर्ट हासिल करने को लेकर ही आती है. जैसे तैसे पासपोर्ट बनकर तैयार हो जाए तो नियोक्ता एजेंसियां और एजेंट इन्हें काम पर रखते हैं. वे अक्सर सेवा शर्तों, काम की अवधि और अन्य जरूरतों या सुविधाओं के बारे में तफ्सील से पूर्व जानकारी देने से बचते हैं. इस नाते इन देशों में स्थित भारतीय मिशनों या दूतावासों की भी जवाबदेही बनती है कि कम से कम वे कंपनियों के प्रोफाइल और उनकी विश्वसनीयता की पूरी जांच परख तो करें. दोतरफा समझौतों में इस बात पर बल दिया जा सकता है कि अकुशल वर्कफोर्स के लिए नियुक्ति की प्रत्यक्ष प्रक्रिया अपनाई जाए, यानी कंपनियां सीधी भर्ती करें. कुछ तकनीकी दिक्कतों के बावजूद ये प्रक्रिया इस लिहाज से बेहतर होगी कि इसमें दलालों और एजेंटों की भूमिका और विदेशी जमीन पर कंपनी की असलियत को लेकर कोई संदेह नहीं रहेगा. इमीग्रेशन चेक की जरूरत को लेकर भी पासपोर्ट नीति में पुनर्विचार की जरूरत है. पासपोर्ट का रंग बदलना इस समस्या का स्थायी हल नहीं हो सकता.
अगर प्रवासी मजदूरों के प्रति भारत सरकार वास्तव में सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखती है तो उसे फौरन कुछ सुधार इस दिशा में करने चाहिए. सरकारों के स्तर पर संवाद और समझौते तो एक वृहद उपाय है ही, इसके अलावा इन देशों में तैनात अपने दफ्तरों या दूतावासों को नियुक्ति प्रक्रिया में दखल देने को कहा जाना चाहिए. उन्हें न सिर्फ इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने में सहयोग करना चाहिए बल्कि आगे बढ़कर मजदूरों को भरोसे में लेना चाहिए. नियुक्ति के फर्जीवाड़े पर कानूनी कार्रवाई के अलावा उन कंपनियों या एजेंटों को चिंहित करना चाहिए जो मजदूरों के साथ खराब व्यवहार करते या सेवा शर्तों का उल्लंघन करते पाये जाएं. जानकारों के मुताबिक वीजा ट्रेडिंग को भी आपराधिक घोषित करना चाहिए.
किसका पासपोर्ट है सबसे ताकतवर
हेनले एंड पार्टनर्स कंसल्टेंसी फर्म ने अपने 'वीसा प्रतिबंध इंडेक्स' 2015 में दुनिया के 199 देशों की रैंकिंग में पासपोर्ट की ताकत को दिखाया है कि किस नागरिक को कितने अधिक देशों में बिना वीसा के यात्रा करने का अधिकार है.
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इस रैंकिंग के अनुसार जर्मन और ब्रिटिश नागरिकों का पासपोर्ट दुनिया में सबसे ताकतवर माना जाता है. इसका अर्थ हुआ कि यूके या जर्मन पासपोर्ट धारक दुनिया के 173 देशों में बिना वीसा के प्रवेश कर सकता है.
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रैंकिंग में दूसरे स्थान पर हैं फिनलैंड, स्वीडन और अमेरिका - जहां के नागरिक 172 देशों में वीसा-फ्री यात्रा कर सकते हैं.
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तीसरा स्थान संयुक्त रूप से मिला है डेनमार्क, फ्रांस, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड्स और नॉर्वे को.
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कनाडा, बेल्जियम, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल और स्पेन चौथे स्थान पर हैं. जबकि ऑस्ट्रिया, आयरलैंड, सिंगापुर और स्विट्जरलैंड पांचवें पर. यूरोप के आठ अन्य देशों के पासपोर्ट भी इंडेक्स में टॉप दस स्थान में शामिल हैं.
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स्टडी में पाया गया कि यूएई के पासपोर्ट की ताकत अचानक काफी बढ़ गई है. कारण है मई 2015 में यूरोपीय संघ के साथ हुआ वीसा-फ्री यात्रा का करार. अब यूएई नागरिक कुल 113 देशों की यात्रा कर सकते हैं जिनमें शेंगन क्षेत्र के 26 देश भी शामिल हैं.
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इंडेक्स में भारत का नंबर है 84वां, और स्कोर 51 जिसका मतलब हुआ कि भारतीय पासपोर्ट धारक दुनिया के 51 देशों में बिना पहले से वीसा लिए यात्रा कर सकते हैं.
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ये भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि किसी संकट या आपात हालात में भारतीय कामगारों की सुरक्षा के लिए या उन्हें सुरक्षित निकाल लाने के लिए एक सुचिंतित और स्थायी व्यवस्था बनाई जाए. ऐसे मौकों पर कामगारों से संवाद और उनकी आर्थिक मदद भी बहुत जरूरी है. जो कामगार काम के हालात से निराश होकर लौटना चाहते हैं, उनके लिए भी एक्सिट नियम लचीले और सहानुभूतिपूर्ण हों. यही नहीं स्वदेश लौटने पर वे अवसाद और तकलीफ के नए दुष्चक्र में न फंस जाएं, इसके लिए राज्य सरकारें एक सहायता पैकेज या पेंशन या मामूली कर्ज की व्यवस्था कर सकती हैं. उनके स्वास्थ्य और रोजगार के लिए सरकारें अगर उपाय कर सकें तो वे सही शासन धर्म निभाएंगी. उन्हें अपने हाल पर छोड़ देने की प्रवृत्ति इधर बढ़ी है, लोग इधर कुआं उधर खाई जैसे हालात में भटकने को विवश हैं. करीब 80 फीसदी कामगार गरीब होते हैं. सरकारों का दायित्व है कि वे अपने नागरिकों से ऐसे वक्त में मुंह न मोड़ें और उन्हें सामान्य जीवन की ओर लौटने में मदद करें.
ये भी कम ध्यान देने वाली बात नहीं कि अत्यधिक कमाई के लालच में या कर्ज जैसे किसी वित्तीय संकट से उबरने के लिए मजदूर विदेशों में गलत हाथों में न फंस जाएं. इसके लिए उनकी निरंतर काउंसिलिंग की व्यवस्था भी दूतावास स्तर पर होनी चाहिए. बेशक ये समय, निरंतर उत्पादन और निरंतर उपभोग की विकट भूमंडलीयता को रेखांकित करता है लेकिन ऐसे में बुनियादी जिम्मेदारी सरकारों और संस्थाओं की भी है कि वे उस अंतरराष्ट्रीयता को न भूलें जिसमें एक सहज और सौहार्दपूर्ण नागरिक आवाजाही संभव रहती है और जो पारस्पारिकता की भावना पर आधारित है.
अपना देश छोड़ने वालों में अव्वल हैं हिंदुस्तानी
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दिसंबर 2017 तक दुनिया भर में अपना देश छोड़ने वालों की संख्या 25.8 करोड़ हो गई. डालते हैं नजर किस देश के कितने लोग विदेशों में रहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Kilic
11. अफगानिस्तान
युद्ध और हिंसा झेल रहे अफगानिस्तान के 48 लाख नागरिक विदेशों में रहते हैं. 1990 में अफगानिस्तान इस सूची में सातवें स्थान पर था, जब विदेश में रहने वाले उसके नागरिकों की संख्या 67 लाख थी. लेकिन 1995 तक 22 लाख अफगान अपने वतन लौट गए.
तस्वीर: DW/Omid Deedar
10. ब्रिटेन
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अपना देश छोड़ने वालों में ब्रिटिश नागरिक दसवें स्थान पर आते हैं. लगभग 50 लाख ब्रिटिश नागरिक दूसरे देशों में रहते हैं. वहीं ब्रिटेन में रहने वाले विदेशियों की संख्या 88 लाख है.
तस्वीर: Reuters/P. Nichols
9. फिलीपींस
विदेशों में बसे अपने 57 लाख नागरिकों के साथ फिलीपींस इस रैंकिंग में नौंवें नंबर पर है. 2000 तक फिलीपींस से बाहर जाने वालों की संख्या तीस लाख थी. पिछले 17 बरसों के दौरान ज्यादातर फिलीपीनी लोगों ने अमेरिका का रुख किया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ F. R. Malasig
8. यूक्रेन
सोवियत संघ के विघटन के बाद 90 के दशक में यूक्रेन इस सूची में पांचवें नंबर पर था. लेकिन इसके बाद यूक्रेन के लोगों के विदेश जाने के रुझान में कमी देखने को मिली. रूस और यूक्रेन के हालिया तनाव के कारण फिर से यह रुझान बढ़ा है. फिलहाल यूक्रेन के 59 लाख लोग विदेश में रहते हैं.
तस्वीर: Picture alliance/dpa/Matytsin Valeriy
7. पाकिस्तान
साठ लाख से ज्यादा पाकिस्तानी दूसरे देशों में रहते हैं और इस तरह पाकिस्तान इस रैंकिंग में सातवें स्थान पर आता है. 1990 में यह संख्या 34 लाख थी जबकि 2005 में यह बढ़कर 39 लाख हो गई. लेकिन 2007 के बाद पाकिस्तानियों में विदेश जाने का चलन बढ़ा है.
तस्वीर: Reuters/S. Nenov
6. सीरिया
गृह युद्ध झेल रहे सीरिया के लगभग 70 लाख लोग विदेशों में रहते हैं. 1990 में सीरिया इस सूची में 26वें नंबर पर था. लेकिन 2011 में शुरू हुए गृह युद्ध के बाद लाखों लोगों को देश छोड़ कर अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Kose
5. बांग्लादेश
संयुक्त राष्ट्र की इस सूची में बांग्लादेश पांचवें स्थान पर आता है. आकंड़ों के मुताबिक 75 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी नागरिक दूसरे देशों में रहे हैं. काम की तलाश में खाड़ी और पश्चिमी देशों की तरफ बहुत से बांग्लादेशी रुख करते हैं.
तस्वीर: dapd
4. चीन
चीन के नागरिकों में भी विदेशों में बसने की चाह बढ़ रही है. दिसंबर 2007 तक एक करोड़ लोगों के साथ चीन इस सूची में चौथे नंबर पर आता है. 1990 में विदेशों में रहने वाले चीनी नागरिकों की संख्या 44 लाख थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Infantes
3. रूस
इस सूची में तीसरे नंबर रूस आता है जिसके एक करोड़ से ज्यादा नागरिक अपने देश की बजाय किसी और देश में रह रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 2000 में रूस इस सूची में पहले नंबर पर था जब उससे 1.1 करोड़ नागरिक विदेश में रहते थे.
मेक्सिको के एक करोड़ तीस लाख लोग विदेश में रहते हैं. इनमें से 90 फीसदी लोग अमेरिका में रहते हैं. 1990 में विदेश में रहने वाले मेक्सिकन लोगों की संख्या 44 लाख थी जबकि 2000 में यह आंकड़ा 1.24 करोड़ तक जा पहुंचा था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Str
1. भारत
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2017 के आखिर तक विदेशों में रहने वाले भारतीयों की संख्या एक करोड़ सत्तर लाख तक पहुंच गई. 2000 में विदेशों में रहने वाले भारतीयों की संख्या अस्सी लाख थी और तब वह इस मामले में तीसरे स्थान पर था. लेकिन अब वह टॉप पर है.