पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना की शान में कसीदे पढ़ने वालों की कमी नहीं है. लेकिन गिलगित बल्तिस्तान इलाके में लोगों को इसके चलते कई डर सता रहे हैं. इस इलाके को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है.
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गिलगित बल्तिस्तान पाकिस्तान प्रशासित सबसे उत्तरी इलाका है जिसकी सीमा दक्षिण में पाकिस्तान और भारत के नियंत्रण वाले कश्मीरी इलाकों से मिलती हैं, तो अन्य दिशाओं से वह पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत, अफगानिस्तान और चीन से सटा हुआ है. 2009 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इस इलाके को सीमित स्वायत्तता दी थी.
गिल्गित बल्तिस्तान एक विवादित इलाका है और अरबों डॉलर की लागत से बनने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर इसी इलाके से होकर पाकिस्तान में दाखिल होगा. पाकिस्तान को उम्मीद है कि उसके ग्वादर बंदरगाह को चीन के कशगर शहर से जोड़ने वाले इस कोरिडोर से गिलगित बल्तिस्तान समेत पाकिस्तान के सभी इलाकों में बहुत समृद्धि और प्रगति आएगी. लेकिन गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही है.
क्या है चीन का "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट
900 अरब डॉलर की लागत से चीन कई नए अंतरराष्ट्रीय रूट बनाना चाहता है. वन बेल्ट, वन रोड नाम के अभियान के तहत बीजिंग ये सब करेगा.
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चीन-मंगोलिया-रूस
जून 2016 में इस प्रोजेक्ट पर चीन, मंगोलिया और रूस ने हस्ताक्षर किये. जिनइंग से शुरू होने वाला यह हाइवे मध्य पूर्वी मंगोलिया को पार करता हुआ मध्य रूस पहुंचेगा.
न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज
इस योजना के तहत चीन यूरोप से रेल के जरिये जुड़ चुका है. लेकिन सड़क मार्ग की संभावनाएं भी बेहतर की जाएंगी. 10,000 किलोमीटर से लंबा रास्ता कजाखस्तान और रूस से होता हुआ यूरोप तक पहुंचेगा.
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चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर
56 अरब डॉलर वाला यह प्रोजेक्ट चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत को कश्मीर और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा.
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चाइना-सेंट्रल एंड वेस्ट एशिया कॉरिडोर
सदियों पुराने असली सिल्क रूट वाले इस रास्ते को अब रेल और सड़क मार्ग में तब्दील करने की योजना है. कॉरिडोर कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की को जो़ड़ेगा.
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दक्षिण पूर्वी एशियाई कॉरिडोर
इस कॉरिडोर के तहत चीन की परियोजना म्यांमार, वियतनाम, लाओस, थाइलैंड से गुजरती हुई इंडोनेशिया तक पहुंचेगी.
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चाइना-बांग्लादेश-इंडिया-म्यांमार कॉरिडोर
इस परियोजना के तहत इन चार देशों को सड़क के जरिये जोड़ा जाना था. लेकिन भारत की आपत्तियों को चलते यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है. अब चीन बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ेगा.
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चाइना-नेपाल-इंडिया कॉरिडोर
म्यांमार के अलावा चीन नेपाल के रास्ते भी भारत से संपर्क जोड़ना चाहता है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन ने नेपाल को भी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल किया है.
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प्रोजेक्ट का मकसद
वन बेल्ट, वन रूट जैसी योजनाओं की बदौलत चीन करीब 60 देशों तक सीधी पहुंच बनाना चाहता है. परियोजना के तहत पुल, सुरंग और आधारभूत ढांचे पर तेजी से काम किया जा रहा है. निर्यात पर निर्भर चीन को नए बाजार चाहिए. बीजिंग को लगता है कि ये सड़कें उसकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवनधारा बनेंगी.
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अमेरिका नहीं, चीन
डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दुनिया भर के देशों को अमेरिका से मोहभंग हो रहा है. चीन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है. बीजिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की धुरी बनाने का सपना देख रहा है. इसी वजह से इन परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
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इस इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग शिया हैं, जबकि पाकिस्तान सुन्नी बहुल देश है. गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को डर है कि कोरिडोर परियोजना से न सिर्फ इलाके की पारिस्थितिकी, बल्कि यहां की आबादी में भी बड़े बदलाव होंगे. उन्हें अपनी जमीनें हड़प लिए जाने का भी डर सता रहा है. साथ ही उन्हें लगता है कि इससे उनकी अपनी संस्कृति के लिए खतरे पैदा होंगे.
गिलगित बल्तिस्तान के अपर हुंजा में रहने वाले एक राजनीतिक विश्लेषक फरमान अली कहते हैं, "चीनी लोग विकास परियोजनाओं को लागू करने के लिए जाने जाते हैं और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की वे ज्यादा परवाह नहीं करते हैं." वह कहते हैं, "इस इलाके से हर रोज 70 हजार ट्रक गुजरेंगे, जो बड़ी मात्रा में कार्बन छोड़ेंगे. सरकार इस पहाड़ी इलाके में रेलवे लाइनें भी बिछाएगी, जिसके लिए बहुत सारी सुरंगें बनानी होंगी. इससे भूस्खलन होगा और इलाके के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान होगा."
खोखला वादा
पाकिस्तान सरकार का कहना है कि इस परियोजना से गिलगित बल्तिस्तान में 18 लाख नौकरियों के अवसर पैदा होंगे. हालांकि स्थानीय लोग इस दावे पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं. यह इलाका पाकिस्तान के सबसे ज्यादा साक्षरता वाले इलाकों में शुमार होता है, फिर भी यहां के युवाओं को काम नहीं मिलता.
चीन ने पाकिस्तान में लगाया बड़ा दांव
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लोवर हुंजा में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक आमिर हुसैन रोजगार के मुद्दे पर सरकार के आश्वासनों को सिर्फ एक झुनझुना कहते हैं. उनका मानना है, "चीनी लोग जहां भी जाते हैं, वे अपने लोगों को साथ लेकर जाते हैं. कोरिडोर परियोजना के लिए वे 70 लाख चीनी मजदूरों को पाकिस्तान में ला सकते हैं. उनमें से लगभग चार लाख गिलगित बल्तिस्तान में काम करेंगे. तो फिर स्थानीय लोगों को कहां से नौकरियां मिलेंगी?"
हुसैन ने कहा, "नौकरियां तो भूल ही जाइए, हालत यह है कि स्थानीय लोगों को इस प्रोजेक्ट की वजह से अपनी रोजी रोटी गंवानी पड़ रही है. छोटे उत्पादक और दुकान मालिक बाजार में चीनी माल की बाढ़ से परेशान हैं. सरकार ने स्थानीय खनिकों के लाइसेंस भी रद्द कर दिए हैं. इलाके में खनन का काम भी चीनियों को सौंप दिया गया है."
चीन कर रहा है अफ्रीकी रेलवे में निवेश
विदेशों में परिवहन ढांचे को बेहतर बनाने के लिये चीन अब अफ्रीका के रेल नेटवर्क में भारी निवेश कर रहा है. रेल नेटवर्क की ये बहाली यहां के लोगों को भी खूब रास आ रही है.
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तेज ट्रेन
बीती जुलाई से लेकर अब तक नाइजीरिया की राजधानी अबुजा से देश के उत्तरी प्रांत को 175 किलोमीटर लंबे रेल मार्ग के जरिये जोड़ा गया है. इसकी लागत तकरीबन 80 करोड़ यूरो आंकी गई है जिसके लिये चीन के एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक (आयात-निर्यात बैंक) ने 45 करो़ड़ यूरो मुहैया कराये थे.
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राष्ट्र प्रमुख की सवारी
नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मदु बुहारी ने इस नई ट्रेन की पहली यात्रा पर एक विशेष अतिथि के रूप में शिरकत की थी. 2 घंटे 40-मिनट की यात्रा के लिये इकोनॉमी क्लास में 3 यूरो का भुगतान तय किया गया है और प्रथम श्रेणी के लिये यह राशि 4.25 यूरो है.
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सिटी रेल
इथोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में पहली लाइट रेल लाइन ने साल 2015 से काम करना शुरु किया था. यह रेल लाइन भी चीन के रेलवे समूह ने ही तैयार की थी और इसके लिये वित्त भी चीन के एक्सिम बैंक ने ही दिया था.
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पूर्वी अफ्रीका
तकरीबन 25 हजार केन्याई और तीन हजार चीनी मजदूर मोम्बासा और नैरोबी के बीच बनाये जा रहे 472 किलोमीटर लंबे मार्ग को तैयार रहे हैं. इसका भी तकरीबन 90 फीसदी लागत खर्च चीन वहन कर रहा है.
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रेलवे म्यूजियम
अफ्रीका में रेल परिवहन का एक लंबा इतिहास है. साल 1856 में अलेक्जेंड्रिया और काहिरा के बीच रास्ता शुरू किया गया था. भाप के इंजन भी 20वीं सदी की शुरुआत से ही चल रहे हैं. इन्हें रेलवे संग्रहालय में रखा गया है.
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रेलवे लाइन
अफ्रीका में अपने उपनिवेश स्थापित करने वाले यूरोपीय देशों ने यहां रेल नेटवर्क शुरू किया था जिसका इस्तेमाल वे कच्चे माल को समुद्र तट तक पहुंचाने के लिये करते थे और इसके बाद समुद्र तट से कच्चे माल को यूरोप भेजा जाता था. वर्तमान में ये मार्ग जीर्णावस्था में पहुंच गये हैं.
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अफ्रीकी रेल नेटवर्क
साल 2015 में, अफ्रीकी विकास बैंक ने महाद्वीप में रेलवे नेटवर्क की महत्ता पर बल दिया था. बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि रेलवे के जरिये शहरी भीड़भाड़ से राहत मिलेगी और माल-भाड़ा भी सस्ता होगा. लेकिन बैंक ने देश के खराब रेल नेटवर्क पर चिंता जताई थी.
बंद स्टेशन खुलेंगे
अफ्रीकी देशों की अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो रही है और इसका नजर परिवहन क्षेत्र पर भी नजर आ रहा है. अगर चीन और अन्य निवेशक, निवेश जारी रखते हैं तो बंद पड़े ऐसे स्टेशनों पर जल्द ही ट्रेनों की सीटियां दोबारा सुनाई पड़ने लगेंगी.
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दक्षिण अफ्रीका
गौट्रेन क्षेत्रीय रेल नेटवर्क, प्रिटोरिया और जोहान्सबर्ग को अफ्रीका के सबसे बड़े हवाई अड्डे के साथ जोड़ती है. यह अगले 20 वर्षों में वर्तमान 80 से 230 किलोमीटर तक विस्तार किया जाना है. 21,000 किलोमीटर के ट्रैक के साथ, दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप में अब तक का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है.
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जमीनों पर खतरा
पहाड़ी इलाके में जमीन बहुत कीमती संपत्ति होती है. और स्थानीय लोगों को डर है कि कोरिडोर परियोजना के कारण उनसे उनकी जमीनें छीनी जा सकती हैं. हुसैन बताते हैं कि सरकार ने मकपून दास इलाके में 500 एकड़ जमीन एक विशेष आर्थिक जोन बनाने के लिए आवंटित कर दी है. हुसैन का दावा है, "कोरिडोर परियोजना के नाम पर इस इलाके को लिया गया है. इसके अलावा सेना कोरिडोर परियोजना के लिए सुरक्षा मुहैया कराने के लिए चेकपोस्ट बना रही है. इसलिए वे हुंजा और नगर जिलों से लोगों को दूसरी जगहों पर भेजने की योजना बना रहे हैं. ये दोनों जिले चीनी सीमा के नजदीक पड़ते हैं."
वह कहते हैं, "कोरिडोर परियोजना पाकिस्तान में एक पवित्र गाय बन गई है. स्थानीय लोगों को इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं है. जो प्रदर्शन करते हैं, उनके खिलाफ आंतकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमे शुरू हो जाते हैं और उन्हें राष्ट्रविरोधी करार दे दिया जाता है."
लेकिन अधिकारी इन सब बातों को खारिज करते हैं. उनका कहना है कि गिलगित बल्तिस्तान में कोरिडोर परियोजना को लेकर आम सहमति है. गिलगित बल्तिस्तान की स्थानीय सरकार के प्रवक्ता फजलुल्लाह फराक कहते हैं कि सभी लोग इलाके में हो रहे विकास का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा, "कोरिडोर परियोजना गिलगित बल्तिस्तान को पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों से जोड़ेगी. इलाके में स्पेशल आर्थिक जोन बनेगा, रेलवे ट्रैक बिछाया जाएगा, फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट लगेगा और मवेशियों के लिए योजनाएं चलेंगी. स्थानीय लोग इस सब को लेकर बहुत खुश हैं."
वह कहते हैं, "सरकार ने एक भूमि सुधार आयोग बनाया है. कोरिडोर परियोजना के विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए सिर्फ जमीनों की पहचान की गई है, अभी उनका अधिग्रहण नहीं किया गया है. आयोग फैसला करेगा कि इन जमीनों का अधिग्रहण होना चाहिए या नहीं. और इसके लिए पहले जमीन मालिकों को मुआवजा दिया जाएगा."
स्थानीय लोगों को सिर्फ चीनी लोगों के आने का डर नहीं हैं, बल्कि उन्हें यह भी आशंका है कि पाकिस्तान के अन्य इलाकों खासकर खैबर पख्तून ख्वाह और पंजाब से आए लोग कोरिडोर परियोजना से पैदा होने वाली नौकरियां ले लेंगे.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को आप कितना जानते हैं?
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पांच साल में होने वाली कांग्रेस बीजिंग में हो रही है. 19वीं कांग्रेस के जरिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता पर अपनी पकड़ को और मजबूत किया है. एक नजर पार्टी की अहम कांग्रेसों पर.
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चीन की ताकत
आम तौर पर गोपनीयता के लबादे में लिपटी पार्टी कांग्रेस एक अहम आयोजन होता है. चीन पर 68 साल से राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन इसकी ताकत में लगातार इजाफा होता रहा है. पार्टी कांग्रेस में क्या क्या होता है, इसकी पक्की जानकारी आज भी मिल पाना मुश्किल है.
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पहली कांग्रेस
कांग्रेस 1921 में बेहद गोपनीय तरीके से शंघाई के आसपास हुई थी. इसी कांग्रेस में औपचारिक तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्य और चार्टर को तैयार किया गया था. इस कांग्रेस में कम्युनिस्ट नेता माओ त्सेतुंग भी मौजूद थे, हालांकि उस वक्त वह बहुत युवा थे.
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जब माओ बने नेता
पार्टी की सांतवी कांग्रेस 1945 में उस समय बुलायी गयी जब चीन-जापान युद्ध खत्म होने ही वाला था. शांक्शी प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी के गढ़ यानान में यह बैठक हुई जिसमें माओ सुप्रीम लीडर के तौर पर उभरे. इसी कांग्रेस में माओ के "विचारों" को पार्टी की विचारधारा का आधार बनाया गया.
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सांस्कृतिक क्रांति का दौर
पार्टी की नौवीं कांग्रेस 1969 में हुई. यह वह दौर था जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति अपने चरम पर थी. सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए माओ ने इस क्रांति का इस्तेमाल किया जिससे देश में दस साल तक भारी अव्यवस्था रही और लगभग गृह युद्ध जैसे हालात हो गये थे.
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चीनी चरित्र वाला समाजवाद
1982 में 12वीं कांग्रेस में चीनी नेता तंग शियाओफिंग ने "चीनी चरित्र वाले समाजवाद" का प्रस्ताव रखा, जिससे चीन में आर्थिक सुधारों का रास्ता तैयार हुआ और देश विशुद्ध कम्युनिस्ट विचारधारा से पूंजीवाद की तरफ बढ़ा. यही वजह है कि आज चीन की चकाचौंध सबको हैरान करती है.
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पूंजीपतियों को जगह
2002 में पार्टी की 16वीं कांग्रेस हुई जिसमें औपचारिक रूप से निजी उद्यमियों को पार्टी का सदस्य बनने की अनुमति दी गयी. यह अहम घटनाक्रम था क्योंकि आर्थिक सुधारों की बातें चीन में 1970 के दशक के आखिरी सालों में ही शुरू हो गयी थीं लेकिन पूंजीपतियों को लेकर फिर भी पार्टी में लोगों की त्यौरियां चढ़ी रहती थीं.
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अचानक उदय
2007 में हुई 17वीं पार्टी कांग्रेस शी जिनपिंग और ली कचियांग को सीधे नौ सदस्यों वाली पोलित ब्यूरो की एलिट स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया जबकि उस समय वह पार्टी के 25 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं थे. इस तरह ये दोनों नेताओं की पांचवी पीढ़ी के सितारे बन गये.
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नाम में क्या रखा है
शी से पहले चीन के दो राष्ट्रपतियों हू जिनताओ और जियांग जेमिन ने 2002 और 2007 की पार्टी कांग्रेस के दौरान अपने विचारों को चीन के संविधान का हिस्सा बनाया, लेकिन सीधे सीधे अपने नाम का उल्लेख नहीं कराया. वहीं इससे पहले माओ और तंग के नाम भी आपको संविधान में दिखेंगे.
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सांप्रदायिक तनाव का अंदेशा
पाकिस्तान में 1980 के दशक में जनरल जिया उल हक के शासन में गिलगित बल्तिस्तान में बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए थे. बताया जाता है कि सुन्नी शासक जिया उल हक ने खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत (उस वक्त के पश्चिमोत्तर प्रांत) के बहुत से सुन्नी लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे शिया बहुल गिलगित बल्तिस्तान इलाके में जाकर बसें. माना जाता है कि इस कदम के पीछे वहां शियाओं के दबदबे को कम करने की कोशिश की गई थी. कुछ राजनीतिक और सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान को इस इलाके की जरूरत थी ताकि इस रास्ते से भारत प्रशासित कश्मीर में अलगाववाद और उग्रवाद को भड़काने के लिए जिहादियों को भेजा जा सके.
कोरिडोर परियोजना के कारण फिर खैबर पख्तून ख्वाह से बड़ी संख्या में लोग गिलगित बल्तिस्तान का रुख कर सकते हैं. गिलगित बल्तिस्तान में सक्रिय एक राजनीतिक कार्यकर्ता शेर बाबू कहते हैं, "यहां के बहुत से होटल, दुकान, बाजार और बिजनेस पहले ही खैबर पख्तून ख्वाह और पंजाब से आए लोगों के हाथ में हैं. अब कोरिडोर परियोजना की वजह से और लोग यहां आएंगे. इसका नतीजा यह होगा कि स्थानीय लोग अल्पसंख्यक बन कर रहे जाएंगे."
कुछ स्थानीय लोग यह भी कहते हैं कि सुन्नी चरमपंथी गुटों ने पहले ही इस इलाके में पैर जमाने शुरू कर दिए हैं. नाम ना जाहिर करने की शर्त पर स्कार्दू के एक निवासी ने बताया, "जिहादी मजबूत हो रहे हैं और गिलगित बल्तिस्तान फिर एक बार सांप्रदायिक संघर्ष का केंद्र बन सकता हैं."