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भारत के अक्षय ऊर्जा उद्योग में कुशल कामगारों की कमी

२० नवम्बर २०२४

सौर उद्योग में घरेलू उत्पादन की महत्वाकांक्षी योजना में भारत के सामने अपर्याप्त धन और हुनर की कमी बाधा बन रही है. बहुत से लोगों का मानना है कि इसकी वजह से स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में भारत पिछड़ सकता है.

हैदराबाद की एक फैक्ट्री में सोलर सेल पर काम करता एक कर्मचारी
अक्षय ऊर्जा उद्योग के लिए जिस तरह के कुशल कामगारों की जरूरत है, उनकी भारत में कमी हैतस्वीर: Mahesh Kumar A./AP Photo/picture alliance

कुशल कामगारों के लिए दुनिया भर की कंपनियां भारत की तरफ देखती हैं, लेकिन भारत का अक्षय ऊर्जा उद्योग भी कामगारों की कमी से जूझ रहा है. युवाओं के कौशल विकास और प्रशिक्षण का मौजूदा ढांचा नई जरूरतों के लिहाज से सक्षम नहीं हैं.

देश में सोलर पैनल, सेल और स्टोरेज बैट्री बनाने वाली कंपनियां बढ़ते खर्च औरपरियोजनाओं में हो रही देरी से जूझ रही हैं. इसका नतीजा भारत की कार्बन फुटप्रिंट घटाने की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकामी के रूप में सामने आ सकता है. इसकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम को भी धक्का पहुंच सकता है. मेक इन इंडिया के तहत जिन 15 क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की बात है, उनमें अक्षय ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री इस कार्यक्रम के जरिए भारत को औद्योगिक केंद्र बनाना चाहते हैं.

भारत सरकार ने चीन के सोलर पैनलों पर 40 फीसदी और सेलों पर 25 फीसदी का शुल्क लगाया है. सरकार ने करीब 3 अरब डॉलर की रकम स्थानीय कंपनियों को उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन के तौर पर देने का फैसला किया है. 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने की दिशा में इसके जरिए काफी मदद मिलने की उम्मीद की गई है.

भारत के पारंपरिक तकनीकी संस्थान अक्षय ऊर्जा उद्योग से जुड़ा प्रशिक्षण नहीं दे पा रहे हैंतस्वीर: Rafiq Maqbool/AP Photo/picture alliance

कुशल कामगारों की कमी

हालांकि इस उद्योग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि भारत को धन मुहैया कराने और प्रशिक्षण देने के कार्यक्रमों में तेजी दिखानी होगी, अगर वह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है. भारत फिलहाल दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है. भारत सरकार ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से पैदा होने वाली ऊर्जा को मौजूदा 50 गीगावाट क्षमता से बढ़ा कर 500 गीगा वाट पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है.

भारतः अक्षय ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने के लिए चाहिए 24,420 अरब रूपये

सौर उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार की तरफ से मजबूत कदम नहीं उठाने की स्थिति में उत्पादन बढ़ाने की जो कोशिशें हुई हैं, उन्हें भी नुकसान पहुंचेगा. पिछले पांच सालों में सरकारी प्रोत्साहन के तौर पर लगभग 24 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए गए हैं. इसके साथ ही हर साल ट्रेनिंग और कौशल विकास के लिए 20 अरब रुपये की रकम निकाली गई है. हालांकि अक्षय ऊर्जा उद्योग जगत लगातार कुशल लोगों की कमी की बात कर रहा है.

जरूरी प्रशिक्षण नहीं मिल रहा

अक्षय ऊर्जा से जुड़ी कंसल्टेंसी फर्म जीएसईएस इंडिया के प्रबंध निदेशक द्विपेन बरुआ का कहना है कि कुशल कामगारों की कमी एक बड़ी समस्या है. बरुआ की कंपनी ने अक्षय ऊर्जा से जुड़ी तकनीकों के लिए 7,000 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षण दिया है. बरुआ चाहते हैं के सरकार इस सेक्टर में शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए सब्सिडी को ज्यादा बढ़ाए.

बरुआ का कहना है कि प्रति छात्र कुछ हजार की छोटी-छोटी सब्सिडियां प्रभावी शिक्षा में समस्या बनती हैं. बरुआ ने यह भी कहा, "सैकड़ों निजी संस्थान इन सब्सिडियों का फायदा उठाते हैं लेकिन अच्छा प्रशिक्षण नहीं देते."

भारत में अक्षय ऊर्जा से जुड़ी कंपनियां कुशल कामगारों की कमी से जूझ रही हैंतस्वीर: Mahesh Kumar A./AP Photo/picture alliance

बरुआ और इस उद्योग से जुड़े दूसरे लोगों का कहना है कि भारत में हर साल 10 लाख से ज्यादा इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बढ़ जाते हैं लेकिन पारंपरिक कॉलेज सौर, पवन या दूसरे अक्षय ऊर्जा तकनीकों के बारे में शिक्षा देने योग्य नहीं हैं. इन लोगों में से कुछ का कहना है कि ट्रेनिंग के लिए सरकार के मौजूदा बजट को 10 गुना बढ़ाए जाने की जरूरत है. 

पिछले हफ्ते भारत के अक्षय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों के साथ एक संयुक्त पैनल बनाने की घोषणा की है. यह पैनल स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रशिक्षण समेत तमाम प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देगा.

12 लाख कुशल लोगों की जरूरत

अक्षय ऊर्जा उद्योग के सामने करीब 12 लाख कुशल लोगों की कमी है. भारत में प्रशिक्षण देने वाली कंपनी टीमलीज, उद्योगों और सरकार के साथ काम करती है. टीमलीज के मुताबिक कुशल लोगों की मांग 26 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद की जा रही है और 2027 तक करीब 17 लाख कुशल कामगारों की कमी होगी.

भारत के सोलर उत्पादक संघ प्रमुख अश्वनी सहगल का कहना है, "कौशल की कमी उद्योग में सभी स्तरों पर है." सहगल ने बताया कि उद्योग में हर साल लगभग 20 फीसदी कुशल कामगार कम हो जाते हैं. ऐसे में उत्पादन की योजनाओं के लिए जोखिम पैदा हो जाता है. इस साल की शुरुआत में सरकार ने कौशल विकास को बढ़ावा देने के साथ ही तकनीक के चीनी जानकारों की वीजा मुश्किलों को आसान करने का प्रस्ताव रखा. कई फर्मों की शिकायत है कि चीन से आयात की गईं महंगी मशीनें इस्तेमाल नहीं हो पा रही हैं क्योंकि कुशल कामगार नहीं हैं.

भारत अक्षय ऊर्जा की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है लेकिन अभी कई चीजों में सुधार करना जरूरी हैतस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance

भारत की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा कंपनियों में एक रीन्यू की सह संस्थापक वैशाली निगम सिन्हा का कहना है, "कुशल इंजीनियरों, टेक्नीशियनों और प्रोजेक्ट मैनेजरों की कमी परिचालन खर्चों को बढ़ा रही है." यह चिंता अक्षय ऊर्जा उद्योग से जुड़े कई और लोगों ने भी जताई है.

कुशल कामगारों की कमी इसलिए हो रही है क्योंकि भारत ने मार्च 2025 तक सौर और पवन ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली की क्षमता में 35 गीगावाट और जोड़ने की योजना पर तेजी से काम बढ़ाया है. उत्पादकों का कहना है कि कुशल कामगारों की कमी भारत के सोलर मोड्यूल के निर्यात को भी प्रभावित कर सकती है. पिछले साल भारत ने 1.9 अरब डॉलर के सोलर मॉड्यूल निर्यात किए थे. इनमें से ज्यादातर अमेरिका भेजे गए थे.

6 गीगावाट की क्षमता वाले टाटा पावर ने पिछले साल 11 प्रशिक्षण केंद्र बनाए हैं, यहां 30,000 से ज्यादा युवाओं को सोलर इंस्टॉलेशन, बैटरी मैनेजमेंट और दूसरी ग्रीन टेक्नोलॉजियों के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.

सुदूर जगहों पर नहीं जाना चाहते लोग

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा उत्पादन का एक हब है. यहां कंपनियां नए कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए जूझ रही हैं. डिजाइन इंजीनियर, टेक्नीशियन, इंस्टॉलर और सेल्स मैनेजर की नौकरियां देने वाले विज्ञापनों से जॉब पोर्टल भरे हुए हैं. इनका वेतन प्रतिमाह 20,000 से लेकर 1,00,000 रुपये तक होता है. कुछ कंपनियां तो युवाओं को लुभाने के लिए उन्हें ताइवान और वियतनाम में ट्रेनिंग के लिए भेज रही हैं.

कंपनियों के सामने एक और मुश्किल ये है कि ज्यादातर लोग बड़े शहरों में काम करना चाहते हैं. उन्हें राजस्थान या गुजरात के सुदूर इलाकों में काम पर रखना काफी चुनौतीपूर्ण है. 19 साल के कपिल शर्मा टेक्नीशियन हैं. हाल ही में उन्हें दिल्ली के पास एल्पेक्स फैक्ट्री में अच्छे वेतन पर नौकरी मिली है. इससे पहले वह राजस्थान के रेगिस्तान में एक कंपनी के लिए काम कर रहे थे.

कपिल शर्मा बताते हैं, "तीन साल के इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग कोर्स में मैंने सोलर पैनल कभी नहीं देखा, मुझे सारी ट्रेनिंग नौकरी के दौरान ही मिली." शर्मा का कहना है कि टेक्स्टाइल या ऑटो फैक्ट्रियों की तुलना में सोलर पैनल की फैक्ट्री ज्यादा पैसे देती है. इसके बलबूते वो अपने परिवार को हर महीने 20,000 की रकम भेजते हैं. शर्मा ने बताया, "अब मैं विदेश में ट्रेनिंग और वेतन में बड़ी बढ़ोत्तरी के इंतजार में हूं."

एनआर/एडी (रॉयटर्स)

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