हाथ मिलाने या छूने भर से डोपिंग हो सकती है. जर्मन यूनिवर्सिटी में 12 लोगों पर प्रयोग करने के बाद यह बात साबित हुई है.
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हाथ, गर्दन और बांह को छूने से भी डोपिंग टेस्ट पॉजिटिव आ सकता है. जर्मनी के सरकारी प्रसारक एआरडी और कोलोन यूनिवपर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेंसिक मेडिसिन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. प्रयोग में 12 प्रतिभागियों पर टेस्ट किया गया. उन्हें कुछ देर के लिए बस छुआ गया. गर्दन, बांह और हथेली के जरिए किया हल्का बॉडी टच, एनाबॉलिक स्टेरॉयड्स के ट्रांसमिशन के लिए काफी था. त्वचा के जरिए इन प्रतिभागियों के शरीर में स्टेरॉयड्स दाखिल हो गए.
कुछ घंटे बाद से लेकर 14 दिन बाद भी जब डोप टेस्ट किया गया, तो प्रतिभागी पॉजिटिव निकले. एआरडी के मुताबिक प्रयोग में हिस्सा लेने वाले की उम्र 18 से 40 साल के बीच थी. उन्हें शारीरिक संपर्क के जरिए चार प्रकार के स्टेरॉयड्स दिए गए. इस संपर्क के एक घंटे बाद प्रतिभागियों के पेशाब के नमूने लिए गए. कुछ में तुरंत स्टेरॉयड्स की मौजूदगी सामने आ गई. 14 दिन बाद लिए गए नमूनों में सभी प्रतिभागी डोप पॉजिटिव आए.
फंसने वाले खिलाड़ियों का क्या?
2014 में रूसी डोपिंग स्कैंडल को लेकर अहम खुलासे करने वाले एआरडी के पत्रकार हागो जेपेल्ट के मुताबिक बॉडी टच से डोपिंग एक बड़ी चिंता है. ओलंपिक समेत तमाम बड़े खेल आयोजनों में हर मुकाबले के बाद खिलाड़ियों का एक दूसरे से हाथ मिलाना और सांत्वना देने के लिए गले मिलते हुए गर्दन टच करना आम बात है. अगर इस दौरान डोपिंग की जाए तो क्या होगा?
फिलहाल डोप टेस्ट पॉजिटिव आते ही खिलाड़ी को एक तरह से दोषी मान लिया जाता है. उसके पदक छिन जाते हैं और उसे अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाता है. यह निलंबन तब तक चलता है जब तक खिलाड़ी यह साबित न कर दे कि उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया. अगर खिलाड़ी ऐसा करने में नाकाम रहे तो उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है.
"बहुत ही दुर्लभ मामले"
वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) के मुताबिक इस बात की संभावना "बहुत ही दुर्लभ" है कि कोई खिलाड़ी सिर्फ शारीरिक संपर्क के कारण डोपिंग टेस्ट में पकड़ा जाएगा. एआरडी की डॉक्यूमेंटी रिलीज होने के बाद वाडा ने कहा, "एंटी डोपिंग कम्युनिटी इस संभावना को अच्छी तरह जानती है. इसे बहुत ही दुर्लभ माना जाता है क्योंकि ऐतिहासिक तौर पर ऐसे मामले बहुत ही कम सामने आए हैं."
खेलों में डोपिंग के मामलों पर नजर रखने वाली शीर्ष अंतरराष्ट्रीय संस्था वाडा के मुताबिक बहुत ही कम ऐसे तत्व हैं जो त्वचा के लिए जरिए किसी व्यक्ति के शरीर में पहुंचाए जा सकते हैं. वाडा का कहना है कि एआरडी और जर्मन यूनिवर्सिटी की इस रिपोर्ट पर प्रतिष्ठित समीक्षा पत्रों का भी इंतजार किया जाएगा. यह रिपोर्ट टोक्यो ओलंपिक से ठीक पहले सामने आई है. जापान की राजधानी टोक्यो में 23 जुलाई से 8 अगस्त तक ओलंपिक खेल होने हैं.
ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी)
डोपिंग की ए बी सी
खिलाड़ियों के डोपिंग करने के विवाद अब आम होते जा रहे हैं. देखिए कि डोपिंग क्या होती है और खिलाड़ियों को इन प्रतिबंधित चीजों का इस्तेमाल करने से कैसे फायदे या नुकसान होते हैं.
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शुरुआत
डोपिंग कोई नई बात नहीं है. मुकाबले में दूसरों को हराने के लिए प्राचीन ग्रीक खिलाड़ियों के भी ऐसा करने की कहानियां हैं. एक खिलाड़ी का करियर आम तौर पर काफी छोटा होता है. अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही वे अमीर और मशहूर हो सकते हैं. इसी जल्दबाजी में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं.
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कानूनी हद
बीमार आदमी के लिए दवा जरूरी हो सकती है लेकिन एथलीट जब दवा लेते हैं तो उसके असर और इस्तेमाल के कानूनी पहलू पर ध्यान देना होता है. जैसे कि दर्दनाशक दवाई इबुप्रोफेन की जगह अगर कोई खिलाड़ी मॉर्फीन का इस्तेमाल करे तो वह डोपिंग की श्रेणी में आएगा. क्योंकि वह आम दवा से कहीं भारी और नशीली है और उस पर प्रतिबंध है.
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स्टीरॉयड
डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच श्रेणियों में रखा गया है जिनमें स्टीरॉयड सबसे आम हैं. हमारे शरीर में स्टीरॉयड पहले से ही पाया जाता है लेकिन कुछ पुरुष एथलीट मांसपेशियां और पौरुष बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं. इसके साइट इफेक्ट के तौर पर पुरुषों में स्तनों का उभरना एवं हृदय और तंत्रिका तंत्र पर बुरा असर देखा गया है.
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उत्तेजक पदार्थ
उत्तेजक पदार्थ शरीर को चुस्त और दिमाग को तेज कर देते हैं. इनका इस्तेमाल प्रतियोगिता के दौरान प्रतिबंधित हैं लेकिन कुछ खिलाड़ी इसे खेल से पहले लेते हैं जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है. 1994 फुटबॉल विश्व कप के दौरान अर्जेंटीनियाई खिलाड़ी मैराडोना ऐसे ही उत्तेजक पदार्थ एफेड्रीन के इस्तेमाल के दोषी पाए गए थे.
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पेप्टाइड हार्मोन
स्टीरॉयड की ही तरह पेप्टाड हार्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं. इसलिए इनका अलग से सेवन शरीर में असंतुलन पैदा करता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए जीवन रक्षक हार्मोन इंसुलिन को अगर स्वस्थ व्यक्ति ले तो शरीर से वसा घटती है और मांसपेशियां बनती हैं. इसके ज्यादा इस्तेमाल से शरीर में ग्लूकोज का स्तर अचानक काफी घट सकता है. ऐसे में शरीर जल्दी थकता है और हार्मोनों का तालमेल बिगड़ता है.
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नार्कोटिक्स
नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां डोपिंग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं. इनके इस्तेमाल से बेचैनी, थकान और नींद जैसे लक्षण हो सकते हैं. सिर दर्द और उल्टी भी इनसे होने वाले नुकसान हैं. इनकी लत पड़ने की भी काफी संभावना होती है. कई बार इन दवाइयों के सेवन से यह भी मुमकिन है कि खिलाड़ी खुद को कम दर्द के अहसास में ज्यादा चोटिल कर लें.
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डाइयूरेटिक्स
डाइयूरेटिक्स के सेवन से शरीर पानी बाहर निकाल देता है जिससे कुश्ती जैसे खेलों में कम भार वाली श्रेणी में घुसने का मौका मिलता है. डाइयूरेटिक्स का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में होता है. लेकिन अगर शरीर से अचानक पानी बाहर निकल जाए तो रक्तचाप भी कम हो जाता है. ब्लडप्रेशर घटने से रक्त संचार तंत्र सही ढंग से काम नहीं कर पाता और व्यक्ति अचानक बेहोश भी हो सकता है.
ब्लड डोपिंग एक दशक पहले ही पकड़ में आई. आम तौर पर ब्लड कैंसर के मरीजों का खून समान ब्लड ग्रुप के खून से बदलना पड़ता है. ऐसे मरीजों के लिए किशोरों का खून सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उसमें लाल रुधिर कणिकाओं की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है. लेकिन कुछ खिलाड़ी प्रदर्शन बेहतर करने के लिए किशोरों का खून चढ़ाते रहे, जिसे ब्लड डोपिंग कहा जाता है.
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डोपिंग का भविष्य
वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी और जर्मनी की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी, डोपिंग को रोकने के लिए इससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. वे दवाइयों की कंपनियों के साथ इसकी जांच के तरीके निकालने और काला बाजारी पर कानूनी रोकथाम की भी कोशिश कर रही हैं.