अफ्रीका के आइवरी कोस्ट में कचरे को रिसाइकिल करने वाला एक उपकरण किसानों के खूब काम आ रहा है. इसकी मदद से किसान खेती के उप-उत्पादों को खाद और ईंधन जैसी चीजों में बदल रहे हैं.
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केमिकल इंजीनियर नोएल एन'गेस्सान ने इस छोटे से हरे रंग के डिब्बे 'कुबेको' को आइवरी कोस्ट में हर साल पैदा होने वाले करोड़ों टन कृषि कचरे को उपयोगी बनाने के लिए बनाया था. देश में हर साल करीब तीन करोड़ टन कृषि कचरा और गोबर जैसा बायोकचरा पैदा होता है.
ताड़ का तेल बनाने वाले मिशेल अहोरी जैसे किसानों को इस डिब्बे में बस कचरे को फेंक कर चार हफ्तों तक इंतजार करना होता है. एक डिब्बा हर महीने 150 किलो कम्पोस्ट तक बना सकता है.
ब्रिटेन से पुरस्कार
कम्पोस्ट को अपने ताड़ के पेड़ों की जड़ों में फैलाने के बाद अहोरी ने बताया, "यह प्राकृतिक है, आर्गेनिक है, हमारी मिटटी और हमारे खेतों के लिए उपयुक्त है. हमारी पैदावार तीन गुना बढ़ जाएगी."
जुलाई में इस खोज के लिए एन'गेस्सान को यूके की रॉयल अकैडमी ऑफ इंजीनियरिंग की तरफ से 33,700 डॉलर का इनोवेशन पुरस्कार दिया गया. उस समय तक उनकी टीम ने आइवरी कोस्ट में 50 डिब्बे बेच भी दिए थे. डिब्बों को कोको, ताड़ का तेल और आम उगाने वाले किसानों ने खरीदा.
अकैडमी के मुताबिक इन डिब्बों को बनाने में 700 डॉलर की लागत आई थी. एन'गेस्सान की टीम बायोडाइजेस्टर भी बनाती है. वो भी देखने में ऐसे ही धातु के डिब्बे जैसे दिखते हैं. वो एक दिन में पांच किलो कचरे में से इतनी गैस निकाल सकते हैं जिससे दो घंटों तक खाना पकाया जा सकता है.
पर्यावरण की रक्षा
गैस बनाने के साथ साथ ही ये डिब्बे कई लीटर लिक्विड कम्पोस्ट भी बना देते हैं. 2018 में आई यूरोपीय आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक गैस उत्पादन का यह तरीका पश्चिमी अफ्रीका में ग्रामीण इलाकों के लिए स्वच्छ ऊर्जा के एक सस्टेनेबल वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में उभर सकता है.
बायोगैस मुख्य रूप से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण होती है. रिपोर्ट में बताया गया कि हर क्यूबिक मीटर बायोगैस से लगभग पांच किलो लकड़ी या तीन किलो कोयले को बदला जा सकता है.
किसान अहोरी कहते हैं, "अपने कचरे को फेंकने की जगह हम उसे इकठ्ठा करते हैं. उसे सड़ने के लिए छोड़ने की जगह उसका इस्तेमाल करके पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं."
सीके/एए (रॉयटर्स)
घास फूस खाकर पर्यावरण को बचाने चला कचरा किंग
अमेरिकी पर्यावरण कार्यकर्ता रॉब ग्रीनफील्ड अपने अनोखे तरीकों से पर्यावरण की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते हैं. आइए देखें कि स्थायी जीवन के लिए वह किन बदलावों की वकालत करते है.
तस्वीर: DW/G. Bencheghib
शाक सब्जी खाओ
एक साल से अपने खाने की चीजें खुद ही उगाने और बाकी के लिए आसपास उगने वाले शाक सब्जी पर निर्भर रहे ग्रीनफील्ड अपने अनुभव से बताते हैं कि ऐसा करना संभव है. उनका आइडिया है कि लॉन में घास की जगह खाने लायक हरी भरी चीजें उगाई जाएं. वह देखना चाहते थे कि क्या "ग्लोबल इंडस्ट्रियल फूड सिस्टम से बाहर रह कर" जिया जा सकता है और उन्होंने दिखा दिया कि ऐसा संभव है.
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हजारों छोटे छोटे बदलाव
करोड़पति बनने की कोशिशों में लगे उद्यमी से पृथ्वी को बचाने का सपना देखने वाले ग्रीनफील्ड ने हर हफ्ते एक छोटा बदलाव अपनाया. शुरुआत शॉपिंग के लिए अपना बैग ले जाने, पानी की बोतल रखने, स्थानीय विक्रेताओं से सब्जी खरीदने जैसे कदमों से की. आगे चलकर उन्होंने कार बेच दी और बांस से बनी साइकिल से चलने लगे. लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा बदलाव था इसकी फिक्र छोड़ना कि लोग क्या सोचेंगे.
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छोटा सा आशियाना
अमेरिका के ऑरलैंडो में अपने 100 वर्ग फुट के घर में रहने वाले ग्रीनफील्ड ने अपना घर भी पुराने मैटीरियल से बनाया है. पिछले 10 साल से वह ऐसे जीने की कोशिश कर रहे हैं जिससे पृथ्वी को नुकसान ना पहुंचे. घर में बिजली की जगह सोलर पॉवर है, पैसों का इस्तेमाल बिरले ही करते हैं. जो पैसे कमाते हैं उसे भी दान कर देते हैं. उसके पहले अमीर बनने के लिए अपनी कंपनी चलाते थे.
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सादा जीवन जीना ही है उच्च विचार
ग्रीनफील्ड का मानना है कि सरल जीवन जीना ही भविष्य का मॉडल है. उन्होंने पाया कि जो लोग कम चीजों का उपभोग करते हैं वे बर्बादी भी कम करते हैं. अपने शरीर पर औसत अमेरिकी के एक महीने का कचरा पहन कर वह अमेरिका भर का दौरा कर चुके हैं. जहां न्यूयॉर्क की सड़कों पर टहलना आसान था तो वहीं कार में फिट नहीं हुए. मकसद था इस बर्बादी की ओर सबका ध्यान दिलाना.
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कचरा किंग बनने से भी परहेज नहीं
2016 में एक प्रयोग कर उन्होंने देखा कि औसत अमेरिकी हर दिन करीब दो किलो कचरा निकालता है. महीने के अंत में लगभग 40 किलो कचरे को अपने शरीर पर बांध कर उन्होंने पृथ्वी पर पड़ने वाले इसके बोझ को अपने अनोखे अंदाज में दुनिया के सामने रखा. यह पर्यावरण कार्यकर्ता किसी को गलत नहीं कहता बल्कि समस्या की ओर ध्यान खींच कर हर किसी को अपने स्तर पर सही करने के लिए प्रेरित करना चाहता है. (जेनिफर कॉलिन्स/आरपी)