बर्लिन फुटबॉल कैसे दिखा रहा है जेंडर समानता की राह
७ नवम्बर २०२३वर्ल्ड एक्वेटिक्स ने जब पिछले महीने बर्लिन में तैराकी वर्ल्ड कप के लिए ओपन-जेंडर कैटेगरी शामिल करने की बात कही, तो यह नई शुरुआत थी. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर की गई इस पहल का मकसद है लैंगिक सीमाओं को तोड़कर समावेश की नीति. हालांकि, नतीजा उत्साहजनक नहीं रहा, क्योंकि इस श्रेणी में एक भी प्रतियोगी ने रजिस्टर नहीं किया, जिसकी आशंका कुछ लोगों को पहले से थी.
लेस्बियन और गे असोसिएशन ऑफ जर्मनी की बोर्ड मेंबर मारा गेरी ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमने पहले ही इस कैटेगरी का विरोध किया था. यह सच कि कोई सामने नहीं आया, समझ में आता है और इसमें हमें कोई हैरानी नहीं है. तैराकी में बहुत सारे पेशेवर खिलाड़ी नहीं हैं. उस पर एक ट्रांस के तौर पर अलग से रजिस्टर करना खुद को दुनिया के सामने खुलकर जताने के कगार पर ले आता है. यह लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाता है, जिनकी जगह नहीं है. हमारी राय में यह समावेश बिल्कुल नहीं, लेकिन बाहर निकालने की दिशा में बड़ा कदम जरूर है."
भेदभाव का डर
ऐसा नहीं है कि ट्रांसजेंडर सिर्फ उच्च क्षमता वाले खेलों में खुद को अलग-थलग पाते हैं. 2019 में कोलोन की जर्मन स्पोर्ट यूनिवर्सिटी ने एलजीबीटीक्यू+ खिलाड़ियों के बीच एक बड़ा यूरोपीय सर्वे किया. इसमें 20 फीसदी खिलाडि़यों ने कहा कि वे अपने पसंदीदा खेलों में इसलिए भाग नहीं लेते, क्योंकि उन्हें भेदभाव, अलग-थलग पड़ने और नकारात्मक टिप्पणियों का डर है.
सर्वेक्षण में पाया गया कि 56 फीसदी ट्रांसजेंडरों और 73 फीसदी ट्रांस पुरुषों ने अपनी लैंगिक पहचान की वजह से खुद को कुछ खेलों से बाहर पाया. सर्वे में लगभग सभी ने यह माना कि खेलों में होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया है, यानी समलैंगिकों और ट्रांस लोगों के खिलाफ भावनाएं हैं.
बर्लिन की अलग राह
2019 में बर्लिन फुटबॉल असोसिएशन ने खेल में लैंगिक समावेश के लिए नियम बनाकर नई जमीन तैयार की. इसके तहत जो लोग खुद को 'डायवर्स' यानी अलग मानते हैं, उन्हें यह चुनने का हक है कि वह महिलाओं के खेल में हिस्सा लेना चाहते हैं या पुरुषों के. साथ ही, ट्रांसजेंडरों को जेंडर दोबारा निर्धारित करने के दौरान मनचाही टीम चुनने का भी अधिकार दिया गया.
असोसिएशन में लैंगिक विविधता की सलाहकार जेसिका शित्श्के ने डीडब्ल्यू से कहा, "आपको यह अंतर करना होगा. हमारे पास लोग हैं, जो गैर-पेशेवर लीग में खेलते हैं और वे भी, जो बस खेलते हैं." वह कहती हैं कि बर्लिन फुटबॉल में करीब 15 ट्रांसजेंडरों का समावेश किया जा रहा है. ये लोग मुख्य तौर पर महिला टीमों में खेलते हैं. महिलाएं आमतौर पर ट्रांसजेंडरों के प्रति उदार हैं.
स्वीकृति का सवाल
शित्श्के कहती हैं कि अगर ट्रांसजेंडरों को अपनी टीम में पूरी तरह स्वीकृति मिल भी जाए, तब भी उन्हें विपक्षी टीमों से पूर्वाग्रहों का सामनाकरना पड़ता है. फिर समस्या पैदा होती है. दुर्भाग्य से, यह आमतौर पर इस धारणा पर आधारित है कि वे अपने प्रदर्शन के मामले में लाभ वाली स्थिति में है. हालांकि, शित्श्के यह भी मानती हैं कि जो पुरुष महिला टीम में खेलते हुए भी टेस्टोस्टेरॉन लेते रहते हैं, वे निश्चित तौर पर फायदे में रहते हैं.
इसके बावजूद इन मामलों के अलावा ऐसे कोई फायदे नहीं हैं, जिन्हें रेखांकित किया जा सके. 43 साल की शित्श्के एक ट्रांस महिला होने के नाते ना केवल बर्लिन की एक महिला टीम के लिए खेलती हैं, बल्कि वह अपने क्लब में कोच भी हैं. पिछले साल जर्मन फुटबॉल असोसिएशन ने अपने मैचों के नियम बदले, ताकि बर्लिन में अपनाए गए समावेशी नियमों को लागू किया जा सके. शित्श्के कहती हैं, "कुछ क्षेत्रीय संघों ने पहले ही नियम लागू कर दिए हैं. कुछ और में चीजें रुकी हुई हैं." हालांकि, इससे प्रभावित खिलाड़ियों की संख्या कम ही होगी, लेकिन शित्श्के मायूस नहीं हैं. वह मानती हैं, "हमने पहले ही कुछ बदलाव ला दिया है."
एसबी/वीएस