ब्रिटेन में गुलामों जैसी जिंदगी जी रहे सैकड़ों भारतीय
१२ मार्च २०२४
लाखों रुपये खर्च कर विशेष वीजा पर नौकरी करने ब्रिटेन गए सैकड़ों भारतीयों की हालत अब बंधुआ मजदूरों जैसी हो गई है.
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जब भारत में ऑफिस मैनेजर के तौर पर काम कर रहीं माया ने ब्रिटेन में काम करने के मौके के बारे में सुना तो उन्होंने दोबारा सोचने की भी जरूरत नहीं समझीं. विदेश में काम करने और वहां से पैसा कमाकर घर भेजने का मौका बार-बार कहां मिलता है! इस उत्साह से शुरू हुआ एक बेहद दर्दनाक अनुभव और जो भारी कर्ज में खत्म हुआ.
अपना असली नाम उजागर ना करने की शर्त पर माया कहती हैं कि उनके साथ "गुलामों जैसा व्यवहार किया गया.”
दो बच्चों की मां माया उन दसियों हजार लोगों में से हैं जो 2022 में ब्रिटेन में शुरू हुई एक नई योजना के तहत वहां गए थे. ब्रिटेन ने अपने देश में बुजुर्गों और बच्चों की देखभाल करने वाले कर्मियों की भारी कमी को पूरा करने के लिए यह योजना शुरू की थी.
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
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सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
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मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
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इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
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जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
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कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
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बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.
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लेकिन इस योजना के लागू होने के बाद से कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण की इतनी रिपोर्ट आ चुकी हैं कि एक माइग्रेशन एक्सपर्ट ने तो इसे ‘पूरा जंगलराज' करार दिया.
माया और इस स्कीम के अन्य पीड़ित बताते हैं कि इस नौकरी के लिए भारत में एजेंट को उन्होंने बहुत बड़ी रकम दी थी. और ब्रिटेन पहुंचने पर बहुत कम तन्ख्वाह पर उनसे बहुत अधिक घंटों तक काम करवाया गया.
वे बताते हैं कि उत्तरी इंग्लैंड में एक कंपनी के लिए काम करने गए ये लोग नौकरी जाने के डर से अपनी तकलीफें बताने से भी घबराते थे. नौकरी जाने पर उन्हें डिपोर्ट होने का खतरा था क्योंकि उनका वीजा उनकी नौकरी से जुड़ा हुआ था.
माया कहती हैं, "हमने वापस जाने के बारे में भी सोचा लेकिन इतना कर्ज चुकाना है, तो भारत में जाने पर कैसे काम चलेगा. मैंने बैंक से लोन लिया था और रिश्तेदारों से भी कर्ज ले रखा है.”
बंधुआ जिंदगी
घरेलू कामकाज करने वाले लोगों की प्रतिनिधि संस्था होमकेयर एसोसिएशन की चीफ एग्जिक्यूटिव जेन टाउनसन कहती हैं कि उद्योग जगत के लोग ऑपरेटर्स की अनैतिक गतिविधियों को लेकर बहुत चिंतित हैं. वह बताती हैं लोगों के साथ ठगी की "शर्मनाक और अपमानजनक” कहानियां सुनने को मिलती हैं जबकि लोगों को "कॉकरोच से भरे हुए घरों में रखा जा रहा है.”
पांच करोड़ लोग आज भी हैं आधुनिक गुलामी की गिरफ्त में
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट ने दावा किया है कि दुनिया भर में पांच करोड़ लोग आज भी गुलामी के किसी ना किसी रूप में कैद हैं. इनमें जबरन मजदूरी से लेकर जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी महिलाएं भी शामिल हैं.
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मिटती नहीं गुलामी
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक आधुनिक गुलामी को जड़ से मिटा देने का लक्ष्य बनाया था, लेकिन एक नई रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2021 के बीच जबरन मजदूरी और जबरदस्ती कराई गए शादियों में फंसे लोगों की संख्या में एक करोड़ की बढ़ोतरी हो गई. अध्ययन संयुक्त राष्ट्र की श्रम और आप्रवासन से जुड़ी संस्थाओं ने वॉक फ्री फाउंडेशन के साथ मिल कर कराया.
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हर 150 में से एक गुलाम
अध्ययन में पाया गया कि 2021 के अंत में दुनिया में 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे और 2.2 करोड़ लोग ऐसी शादियों में जी रहे थे जो उन पर जबरदस्ती थोपी गई थीं. इसका मतलब दुनिया में हर 150 लोगों में से एक व्यक्ति गुलामी के किसी आधुनिक रूप में फंसा है.
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कोविड-19 ने बढ़ाई गुलामी
जलवायु परिवर्तन और हिंसक संघर्षों के असर के साथ साथ कोविड-19 ने "अभूतपूर्व रूप से रोजगार और शिक्षा को प्रभावित किया, चरम गरीबी को और जबरन, असुरक्षित आप्रवासन को बढ़ाया." इस तरह महामारी ने भी गुलामी में पड़ने के जोखिम को बढ़ा दिया है.
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प्रवासी श्रमिक भी खतरे में
रिपोर्ट के मुताबिक आम श्रमिकों के मुकाबले प्रवासी श्रमिकों की जबरन मजदूरी में होने की तीन गुना ज्यादा संभावना है. इसलिए आप्रवासन को सुरक्षित बनाने की जरूरत है.
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दीर्घकालिक समस्या
रिपोर्ट के मुताबिक यह एक दीर्घकालिक समस्या है. अनुमान है कि जबरन मजदूरी में लोग सालों तक फंसे रहते हैं और जबरदस्ती कराई गई शादियां तो अक्सर "आजीवन कारावास" की सजा जैसी होती हैं.
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महिलाएं और बच्चे सबसे असुरक्षित
रिपोर्ट में कहा गया है कि जबरन मजदूरी में फंसे हर पांच लोगों में से एक बच्चा होता है. आधे से ज्यादा बच्चे तो व्यावसायिक यौन शोषण में फंसे हुए हैं. मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां ही जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी हुई हैं. 2016 के बाद से ऐसी महिलाओं और लड़कियों की संख्या में पूरे 66 लाख की बढ़ोतरी हुई है.
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अमीर देशों में भी है गुलामी
आधुनिक गुलामी हर देश में मौजूद है. जबरन मजदूरी के आधे से ज्यादा मामले और जबरदस्ती कराई गयउ शादियों के एक चौथाई से ज्यादा मामले ऊपरी-मध्यम आय वाले और ऊंची-आय वाले देशों में हैं.
रिपोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था द्वारा उठाई गई चिंताओं की तरफ भी इशारा किया, कि उत्तर कोरिया में "बेहद कड़े हालात में जबरन मजदूरी के विश्वसनीय रिपोर्ट है." चीन में शिनजियांग समेत कई इलाकों में जबरन मजदूरी कराए जाने की संभावना है. (सीके/एए (एएफपी))
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कुछ मामलों में तो लोगों को ब्रिटेन में नौकरियों का लालच देकर लाया गया लेकिन जब वे आए तो उन्हें पता चला कि कोई नौकरी नहीं है. कुछ लोगों की नौकरियां आते ही चली गईं क्योंकि उन्हें नौकरियां देने वाले भाग गए.
टाउनसन कहती हैं, "वे लोग अब चैरिटी और फूडबैंक पर निर्भर हैं. बहुत से लोग कर्ज में बंधुआ जिंदगी जी रहे हैं. यहां आने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ बेच दिया.”
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आधुनिक गुलामी के उदाहरण
कर्मचारियों के शोषण के मामलों की जांच करने वाली सरकारी संस्था गैंगमास्टर्स एंड लेबर अब्यूज अथॉरिटी ने बताया है कि पिछले साल देखभाल उपलब्ध कराने वाली 44 कंपनियों की जांच की गई है, जो 2022 के मुकाबले दोगुना है. 2020 में तो सिर्फ एक कंपनी की शिकायत आई थी.
गुलामी के खिलाफ काम करने वाली सामाजिक संस्था ‘अनसीन' के आंकड़े बताते हैं कि उनकी हेल्पलाइन पर इस क्षेत्र में काम करने वाले 800 से ज्यादा लोगों ने फोन किया. 2021 में इनकी संख्या सिर्फ 63 थी.
गुलामी के भवर में आज भी फंसे हैं भारत के कई लोग
भारत और अफ्रीका जैसे देशों को आजादी सालों पहले मिल गई, लेकिन फिर भी कई लोग आज भी अलग-अलग रूपों में गुलामों वाली जिंदगी जी रहे हैं.
तस्वीर: Daniel Berehulak/Getty Images
भारत में दुर्दशा
80 लाख की संख्या के साथ भारत में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं. इसके बाद 38.6 लाख के साथ चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर आता है. पाकिस्तान में 31.9 लाख, उत्तर कोरिया में 26.4 लाख और नाइजीरिया में 13.9 लाख लोग आज भी गुलाम हैं.
मुनाफे के लिए लोगों से हर तरह का काम कराया जा रहा है. उन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी और अपराधों की दुनिया में धकेला जा रहा है. कहीं उनसे भीख मंगवाई जा रही है, तो कहीं घरों में उनका शोषण हो रहा है. जबरन शादी और अंगों के व्यापार में भी उन्हें मुनाफे का जरिया बनाया जा रहा है.
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कुल कितने गुलाम
दुनिया में कम से 4.03 करोड़ लोग गुलामों की तरह रह रहे हैं. इसमें से दो करोड़ से खेतों, फैक्ट्रियों और फिशिंग बोट्स पर काम लिया जा रहा है. 1.54 करोड़ को शादी के लिए मजबूर किया जाता है जबकि पचास लाख लोग देह व्यापार में धकेले गए हैं.
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यूएन का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इंसानों की तस्करी तेजी से बढ़ते हुए अपराध उद्योग की जगह ले रही है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक बंधुआ मजदूरी और जबरी विवाह को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन यह काम बहुत ही चुनौतीपूर्ण है.
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इंसानी तस्करी विरोधी दिवस
कहां पर कितने लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है, इस पर कहीं विश्वसनीय आंकड़े नहीं मिलते. लेकिन कुछ आंकड़े और तथ्य इतना जरूर बता सकते हैं कि समस्या कितनी गंभीर है. इसी की तरफ ध्यान दिलाने के लिए यूरोपीय संघ 18 अक्टूबर को इंसानी तस्करी विरोधी दिवस मनाता है.
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महिलाएं और लड़कियां निशाना
आधुनिक गुलामों में हर दस लोगों में सात महिलाएं और लड़कियां हैं जबकि इनमें एक चौथाई बच्चे शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर देखें तो हर 185 लोगों में से एक गुलाम है. आबादी के हिसाब से उत्तर कोरिया में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं.
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कहां क्या स्थिति
उत्तर कोरिया में 10 प्रतिशत आबादी को गुलाम बनाकर रखा गया है. इसके बाद इरिट्रिया में 9.3 प्रतिशत, बुरुंडी में चार प्रतिशत, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 2.2 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 2.2 प्रतिशत लोग गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं.
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तो किसे अपराध कहेंगे?
2019 की शुरुआत तक 47 देशों में इंसानी तस्करी को अपराध घोषित नहीं किया गया था. 96 देशों में बंधुआ मजदूरी अपराध नहीं थी जबकि 133 देशों में जबरन शादी को रोकने वाला कोई कानून नहीं था.
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विकसित देश भी पीछे नहीं
अनुमान है कि इंसानी तस्करी से हर साल कम से कम 150 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया जा रहा है. विकासशील ही नहीं, विकसित देशों में भी आधुनिक गुलाम मौजूद हैं. ब्रिटेन में 1.36 लाख और अमेरिका में चार लाख लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है. (स्रोत: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, वॉक फ्री फाउंडेशन)
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सरकारी कर्मचारियों की यूनियन का कहना है कि असली पीड़ितों की संख्या तो और ज्यादा हो सकती है क्योंकि बहुत से लोग तो डिपोर्ट हो जाने के डर से रिपोर्ट ही नहीं करते हैं. बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता है कि मदद कहां से मिलेगी.
यूनियन में सोशल केयर एक्सपर्ट गैविन एडवर्ड्स कहते हैं, "बहुत से इंपलॉयर उन्हें दबाकर रखते हैं. सत्ता के साथ संबंध इतने गहरे हैं कि अनैतिक लोगों का कुछ नहीं बिगड़ता." एडवर्ड्स इस क्षेत्र को सरकारी फंडिंग की कमी को भी इस हालत की एक वजह बताते हैं.
ब्रिटेन ने 2022 में नया वीजा जारी किया था जिसका मकसद ब्रेक्जिट और कोविड-19 के बाद पैदा हुईं करीब एक लाख 65 हजार रिक्तियों को भरना था. इस नई योजना के तहत एक लाख 40 हजार लोगों को वीजा मिले हैं जिनमें से अधिकतर भारत, जिम्बाब्वे और नाईजीरिया से हैं.
माया की तरह ही भारत से आईं दीपा कहती हैं, "जब हम भारत में थे तो हमें लगता था कि ब्रिटेन में गुलामी और शोषण बिल्कुल नहीं होगा. हमें लगता था ब्रिटेन बहुत सुरक्षित है क्योंकि वहां नियम-कानून होते हैं.”