सीमेंट को सोलर एनर्जी का वाहक बनाकर हर दीवार को सौर ऊर्जा पैदा करने की जगह में बदला जा सकता है. जर्मन वैज्ञानिक इसमें कामयाब भी हो गए हैं.
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बिजली बनाने के लिए सौर पैनलों का इस्तेमाल बढ़ रहा है. अब तक ये पैनल घरों की छतों पर लगाए जाते हैं ताकि सूर्य की किरणें उस पर सीधी गिरें. लेकिन अब घर की दीवारों के इस्तेमाल की भी सोची जा रही है. कितना अच्छा हो कि घर की दीवार पर लगा सीमेंट सोलर पैनल का कैरियर बन जाए. जर्मनी की कासेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ऐसी ही एक कोशिश कर रहे हैं. वे इसके लिए पौधों की नकल करना चाहते हैं. तीन अरब साल से हरे पौधे क्लोरोफिल पिगमेंट की मदद से सूरज की रोशनी का संस्लेषण कर रहे हैं. हरे पत्ते फोटोसिंथेसिस के जरिये रोशनी को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं. यह धरती पर हर प्रकार की जिंदगी का आधार है. वैज्ञानिक भी ऊर्जा प्राप्ति के इस तरीके की नकल कर रहे हैं. आर्किटेक्टों, कलाकारों, नैनो वैज्ञानिकों और डिजायनरों की एक टीम की ऐसा मैटेरियल बना रही है जो सोलर पैनल का भी काम करता है और सूरज की रोशनी को बिजली में भी बदलता है.
देखें, रेगिस्तान से फूटा ऊर्जा का सोता
रेगिस्तान से फूटा ऊर्जा का झरना
मोरक्को के रेगिस्तान में बनने वाले दुनिया के सबसे बड़े केंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र का पहला चरण शुरु हो गया. अब तक अपनी जरूरत की लगभग सारी ऊर्जा बाहर से आयात करने वाला देश मोरक्को भविष्य में आत्मनिर्भर हो जाएगा.
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घर घर में बिजली
इस सोलर प्लांट को साल 2018 तक पूरा करने की योजना है. इसे बनाने वाले विश्व बैंक और मोरक्को सोलर एनर्जी एजेंसी (मासेन) का मानना है कि यह प्रोजेक्ट मोरक्को के 11 लाख घरों के लिए पर्याप्त ऊर्जा पैदा कर सकेगा.
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विशाल सहारा मरूस्थल
इस अफ्रीकी देश के रेगिस्तान में स्थापित सोलर संयत्र से मिलने वाली सोलर ऊर्जा से शुरुआत में करीब 6,50,000 स्थानीय लोगों की जरूरत पूरी की जा सकेगी. यह भोर से लेकर शाम को सूरज ढलने के तीन घंटे बाद तक इतने लोगों के काम की ऊर्जा दे सकता है.
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राजधानी जितना बड़ा
इसके सौर पैनल लगभग उतने क्षेत्र में फैले हैं जितनी बड़ी मोरक्को की राजधानी राबात है. नूर-1 नामके इस प्रोजेक्ट के पहले सेक्शन से 160 मेगावॉट की ऊर्जा पैदा हो रही है और इसकी अधिकतम क्षमता 580 मेगावॉट तक जाएगी. इससे मोरक्को अपने भारी कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी लाएगा.
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ग्रीन डेजर्ट
केंद्रित सौर संयत्र सामान्य फोटोवोल्टेइक सोलर से इस मायने में अलग होता है कि इसमें शीशों के खास विन्यास से सूरज की ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा पैनलों पर डाली जाती है. इस गर्मी से पैनल का एक द्रव्य गर्म होता है और फिर भाप पैदा होती है. इस भाप से जनरेटर चलता है और बिजली मिलती है.
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सीएसपी का होगा बोलबाला
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने बताया है कि 2050 तक दुनिया की कुल बिजली का करीब 11 फीसदी ऐसे ही केंद्रित सौर ऊर्जा पैनलों यानि सीएसपी से आएगा. इस रास्ते पर आगे बढ़कर अफ्रीका और मध्यपूर्व आने वाले समय के सबसे बड़े पावरहाउस बन सकते हैं.
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नवंबर में यूएन सम्मेलन
उत्तर अफ्रीका का देश मोरक्को 2010 तक ही अपनी जरूरत की 42 प्रतिशत ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से हासिल करना चाहती है. इसका एक तिहाई हिस्सा सोलर, विंड और हाइड्रोपावर स्रोतों से होगा. इसी साल नवंबर में अगली संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन बैठक मोरक्को में होने वाली है.
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बहुत दूरगामी असर
कुल 3.9 अरब डॉलर के निवेश से बने उआरजाजाटे सोलर कॉम्प्लेक्स में जर्मन निवेश बैंक के एक अरब डॉलर भी लगे हैं. यूरोपीय निवेश बैंक ने इसमें करीब 60 करोड़ डॉलर और विश्व बैंक ने 40 करोड़ डॉलर का निवेश किया है. भविष्य में यहां पैदा हुई ऊर्जा को यूरोप भेजने की भी योजना है.
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इस प्रयोग के सबसे शुरू में कंडक्टर सीमेंट को बनाया जाएगा. सीमेंट में ग्रेनाइट मिलाकर उसे संवाहक बना लिया गया है. सीमेंट और कंक्रीट का मिश्रण सूखने के बाद कड़ा होकर प्लस या माइनस पोल की तरह काम करता है और वह इलेक्ट्रॉन को संवाहित कर सकता है. आर्किटेक्ट टॉर्स्टन क्लूस्टर और आर्टिस्ट हाइके क्लूसमन के मन में विचार आया कि इस सीमेंट के मिक्सचर को सौर ऊर्जा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाए. हाइके क्लूसमन कहती हैं, “हमने जो सीमेंट बनाया है उसकी खास बात यह है कि यह टच सेंसिटिव है. छूने की संवेदनशीलता इसलिए है कि हमने इसे कंडक्टिव बना दिया है. और ये कंडक्टिव सीमेंट हमारे सोलर सीमेंट का आधार है.”
सीमेंट को इलेक्ट्रिकली एक्टिवेट करने के लिए रिसर्चर सीमेंट पर रंग की विभिन्न परतें स्प्रे करते हैं. नतीजे में एक पिगमेंटेड सोलर सेल बनता है तो बिजली पैदा करता है. इसमें रंग की पतली परतों का क्रम बहुत ही महत्वपूर्ण है. वैज्ञानिक टॉर्स्टन क्लूस्टर बताते हैं कि यदि रंग की परतों को सही तरीके से मिलाया जाए तो वह फोटोवोल्टिक सेल की तरह काम करता है और सूरज की रोशनी जब रंगों पर पड़ती है तो इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं जिससे बिजली बहनी शुरू होती है.
देखें, सूरज की रोशनी से उड़ा प्लेन
सोलर इम्पल्स 2
रोमांचप्रेमी बैर्ट्रांड पिकार्ड का एक सपना है. वे सौर ऊर्जा से चलने वाले विमान में पूरी दुनिया का चक्कर लगाना चाहते हैं. वे और उनके साथी आंद्रे बोर्शबर्ग इस मिशन पर हैं. अब उनका विमान भारत के बाद म्यांमार पहुंचा है.
भारत में पिकार्ड के सोलर इम्पल्स 2 मिशन को नौकरशाही बाधाओं का सामना करना पड़ा. अहमदाबाद में उन्हें कई दिनों तक रुकना पड़ा. लेकिन बाद में वाराणसी तक की पंद्रह घंटे की उड़ान अच्छी रही. इस बीच विमान वाराणसी से म्यांमार पहुंचा है.
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विदाई पर सेल्फी
पायलट पिकार्ड के लिए नौकरशाही बाधा भले ही परेशान करने वाली रही हो, सौर ऊर्जा से चलने वाले विमान में दिलचस्पी लेने वाले अहमदाबाद के निवासियों के लिए यह खुशी की बात रही. लोग उसे देखने आते रहे और यादगार के लिए सेल्फी लेना नहीं भूले.
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सिर्फ एक पायलट
अहमदाबाद से वाराणसी की उड़ान के पायलट आंद्रे बोर्शबर्ग थे. बैर्ट्रांड पिकार्ड ने वाराणसी से म्यांमार की राह पर कमान संभाली. अहमदाबाद में भारत के विमानन अधिकारियों के साथ भारत से निकलने के बारे में परमिट लेने की जिम्मेदारी उनकी थी.
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अद्भुत मिशन
सोलर इम्पल्स 2 के मिशन की शुरुआत 9 मार्च को संयुक्त अरब अमीरात में अबु धाबी से हुई. 13 घंटे 2 मिनट की उड़ान के बाद विमान ओमान की राजधानी मस्कट पहुंचा. वहां से अगले चरण में विमान भारत के अहमदाबाद पहुंचा.
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दुनिया का चक्कर
कुल मिलाकर 12 चरणों में सौर विमान 35,000 किलोमीटर की दूरी तय करेगा. यात्रा के दौरान पिकार्ड और उनके साथी बोर्शबर्ग बारी बारी विमान की कमान संभालेंगे. उड़ान में कुल 25 दिन का समय लगेगा. बीच में आराम और नौकरशाही जटिलताओं से निबटने का समय अलग से.
बदल बदल कर उड़ान
उड़ान से प्यार करने वाले पायलट बैर्ट्रांड पिकार्ड पेशे से मनोचिकित्सक हैं जबकि आंग्रे बोर्शबर्ग इंजीनियर हैं. लंबी और सागर के ऊपर निश्चित रूप से उबाऊ उड़ान के दौरान समय काटने के लिए दोनों ने ध्यान का अभ्यास किया है.
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अच्छे मौसम का इंतजार
आधुनिक विमानों के विपरीत सोलर इम्पल्स 2 हर तरह के मौसम में उड़ान भरने में सक्षम नहीं है. विमान तभी उड़ान भरता है जब मोंटे कार्लो के नियंत्रण केंद्र से हरी झंडी मिलती है. रेतीले तूफान, भारी वर्षा और बर्फबारी मिशन को खतरे में डाल सकते हैं.
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हर चीज पर नजर
मोंटे कार्लो के नियंत्रण केंद्र में सोलर इम्पल्स मिशन से जुड़ी सारी जानकारी लगातार इकट्ठा होती है. ग्राउंड कंट्रोल सेंटर के अधिकारियों को हमेशा पता होता है कि विमान की बैटरियां, दोनों पायलट और विमान के पुर्जे किस हालत में हैं.
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क्रमिक विकास
सोलर इम्पल्स 2 दूसरा सौर विमान है जिसे पिकार्ड और उनकी टीम ने बनाया है. सोलर इम्पल्स 1 के मुकाबले इसमें कॉकपिट में ज्यादा जगह है. नया विमान बनाते समय उसमें आधुनिक लाइटें और नई सौर तकनीक लगाई गई है.
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लाइटवेट विमान
एक पायलट के लिए छोटा सा केबिन और उसके दोनों ओर बायीं और दायीं तरफ 64 मीटर लंबे पंख. सोलर इम्पल्स 1 का वजन पायलट सहित 1.6 टन था. सोलर इम्पल्स 2 का वजन 2.3 टन है. इसके मुकाबले एयरबस 340 का वजन बिना यात्री और सामान के 125 टन होता है.
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सौर ऊर्जा का कमाल
विमान के लंबे पंख के भी अपने फायदे हैं. उस पर 17,000 सोलर सेल लगे हैं जो विमान के चार मोटरों और प्रोपेलरों को 70 से 140 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति दिलाने में मदद करते हैं. विमान की अधिकतम ऊंचाई 8500 मीटर है.
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साफ सुथरी उड़ान का सपना
इस मिशन का सबसे अहम लक्ष्य है दुनिया भर में पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना. पिकार्ड को पूरा विश्वास है कि एक दिन सौर ऊर्जा से चलने वाले विमान सैकड़ों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकेंगे.
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एक सोलर सेल कुछ सौ मिली वोल्ट करंट पैदा करता है. इन सोलर सेलों की कुशलता का फैक्टर फिलहाल सिर्फ दो प्रतिशत है. जो अभी भले ही बहुत कम है लेकिन प्रयोग की कामयाबी की शुरुआत का संकेत है. हाइके क्लूसमन बताती हैं कि सोलर सीमेंट इसलिए भी दिलचस्प है कि इसे आसानी से बनाया जा सकता है, यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह नहीं है और इसे बड़ी सतहों पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है. वह कहती हैं, “यदि आप भविष्य की सोचें तो शहर की सारी समतल सतहें बिजली पैदा कर सकती हैं.“
घरों की दीवारों पर जितने ज्यादा सीमेंट सेल लगाए जाएंगे, उतनी ही ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा हो सकेगी. आदर्श स्थिति में एक वर्गमीटर की जगह में 20 वॉट बिजली पैदा की जा सकेगी. पांच साल में इस सेल का औद्योगिक उत्पादन शुरू हो सकता है. तब इसे नए घरों में तो लगाया ही जा सकेगा, इससे पुराने घरों को भी बिजली के मामले में आधुनिक बनाया जा सकेगा.