अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत पख्तिया के अधिकारियों का कहना है कि हाल के दिनों में लड़कियों के लिए हाई स्कूल खोले गए हैं. हालांकि तालिबान सरकार ने इसे आधिकारिक तौर पर मंजूरी नहीं दी है.
विज्ञापन
अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में ज्यादातर लड़कियों के माध्यमिक स्कूल बंद कर दिए गए थे. तालिबान ने मार्च में इन स्कूलों को खोलने का वादा किया था, लेकिन वह अचानक अपने वादे से मुकर गया.
पख्तिया के संस्कृति और सूचना विभाग के प्रमुख मौलवी खालिक्यार अहमदजई ने कहा, "ये स्कूल कुछ दिन पहले खोले गए थे." उन्होंने कहा इस्लामी आचार संहिता और रीति-रिवाजों, मान्यताओं और परंपराओं का पालन किया जा रहा है. अहमदजई ने बताया कि स्कूलों के प्रिंसिपल को लड़कियों से स्कूल आने के लिए कहा गया है.
पख्तिया के शिक्षा विभाग के एक प्रवक्ता ने भी पुष्टि की कि लड़कियों के हाई स्कूल खुल गए हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके विभाग को स्कूलों के खुलने के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था. उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने इस संबंध में राष्ट्रीय शिक्षा मंत्रालय को एक पत्र भेजा है और उसके जवाब का इंतजार कर रहे हैं. अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने लड़कियों के लिए हाई स्कूल खोलने के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया है.
अफगानिस्तान को 30 साल पीछे ले कर जा रहा है तालिबान
बीते कुछ दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान में ऐसे आदेश जारी किए हैं जिनसे देश 30 साल पीछे की तरफ लौटने लगा है. तालिबान सत्ता हासिल करते समय किए गए अपने वादों से मुकर रहा है.
तस्वीर: Mohammed Shoaib Amin/AP Photos/picture alliance
लड़कियां नहीं जा सकती स्कूल
छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. शुरू में तालिबान ने वादा किया था कि लड़कियां स्कूल जाती रहेंगी लेकिन अब वो अपने वादे से पीछे हट गया है.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP/Getty Images
पुरुष का साथ जरूरी
महिलाओं के बिना किसी पुरुष रिश्तेदार (महरम) को साथ लिए हवाई जहाज में यात्रा करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. महिलाओं के सड़क मार्ग से बिना किसी पुरुष रिश्तेदार को साथ लिए एक शहर से दूसरे शहर जाने पर पहले से प्रतिबंध था.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
पार्कों में भी अलग अलग
पुरुषों और महिलाओं को एक साथ ही सार्वजनिक पार्कों में जाने की अनुमति नहीं है. दोनों अलग अलग दिन ही पार्कों में जा सकते हैं.
तस्वीर: Hector Retamal/AFP/Getty Images
टेलीफोन भी वर्जित
विश्वविद्यालयों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल को वर्जित कर दिया गया है.
तस्वीर: SAJJAD HUSSAIN/AFP/Getty Images
मीडिया पर प्रतिबंध
अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रसारण पर रोक लगा दी गई है. इसमें बीबीसी की पश्तो और फारसी भाषाएं भी शामिल हैं. इसके अलावा विदेशी टीवी कार्यक्रमों पर भी रोक लगा दी गई है.
तालिबान के नैतिकता मंत्रालय के सदस्य पारंपरिक पगड़ी नहीं पहनने वाले और दाढ़ी नहीं रखने वाले सरकारी अधिकारियों को घर वापस भेज रहे हैं. ऐसे अधिकारियों का कहना है कि उन्हें पता नहीं है कि वो काम पर वापस लौट भी पाएंगे या नहीं.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP/Getty Images
हैबतुल्लाह अखुंदजादा का आदेश
माना जा रहा है कि ये सब फैसले हाल ही में कंधार में हुई तालिबान की एक तीन दिवसीय बैठक में लिए गए. बताया जा रहा है कि कंधार में रहने वाले तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने इन नए नियमों के पालन का आदेश दिया. (एपी से जानकारी के साथ)
तस्वीर: Social Media/REUTERS
7 तस्वीरें1 | 7
जनता में खुशी
पख्तिया के निवासी अब्दुल हक फारूक ने कहा कि उन्हें खुशी है कि उनकी लड़कियां अपने स्कूलों में वापस जा रही हैं. फारूक ने कहा, "स्कूल खुल गए हैं, हमारे बच्चे अपने स्कूल में बहुत खुश हैं, हम खुश हैं. हर पिता और हर परिवार को उम्मीद है कि उनके बच्चे ज्ञान हासिल करेंगे."
उन्होंने कहा, "हमारे लिए, हमारे बच्चों के लिए और हमारे देश के लिए गर्व की बात है. जिसने भी यह काम किया वह पूरे अफगानिस्तान के लिए अच्छा है."
कुछ लोगों का कहना है कि स्कूल वास्तव में कुछ दिन पहले खुले थे और सोशल मीडिया पर इस कदम का स्वागत किया गया था. पख्तिया के अलावा कुछ अन्य प्रांतों ने भी छठी कक्षा तक की लड़कियों के लिए स्कूल खोले हैं. सभी अफगान बच्चे अपना पहला तीन साल प्राथमिक स्कूलों के बजाय मदरसों में बिताते हैं.
विज्ञापन
महिलाओं के अधिकारों की चिंता
तालिबान ने सत्ता में आने के बाद घोषणा की थी कि वह मार्च में लड़कियों के लिए हाई स्कूल दोबारा खोल देगा लेकिन वह अपने वादे से मुकर गया था. तालिबान ने कहा था कि ये स्कूल तब तक बंद रहेंगे जब तक इन स्कूलों को खोलने को लेकर इस्लामिक कानून के मुताबिक एक्शन प्लान तैयार नहीं हो जाता. तालिबान के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कड़ी आलोचना की थी. तालिबान के इस कदम से कूटनीतिक प्रयास भी जटिल हो गए थे.
कई पश्चिमी देशों का कहना है कि वे तालिबान सरकार को तब तक मान्यता नहीं देंगे जब तक कि लड़कियों के सभी स्कूल फिर से नहीं खुल जाते और महिलाओं के पूर्ण अधिकार बहाल नहीं हो जाते.
मानवाधिकार विशेषज्ञों और विश्व नेताओं का कहना है कि तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. मीडिया पर भी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं. यहां तक कि महिला एंकर और टीवी चैनलों पर आने वाली महिलाओं को भी अपना चेहरा ढकने का आदेश दिया गया है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी)
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
तस्वीर: Lev Radin/Pacific Press/picture alliance
मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.