योनी में पहने जा सकने वाले छल्ले जो एड्स से बचाते हैं
३० नवम्बर २०२३
योनी में पहने जा सकने वाले सिलिकॉन के बने छल्ले एचआईवी से सुरक्षा दे सकते हैं. इन्हें और सस्ता किए जाने की कोशिशें हो रही हैं.
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दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी ने ऐसे छल्ले बनाने का ऐलान किया है जो योनी में पहने जा सकेंगे और एचआईवी वायरस से सुरक्षा दे सकेंगे. जनसंख्या परिषद ने ऐलान किया कि जोहानिसबर्ग की कियारा हेल्थ नामक कंपनी अगले कुछ सालों में ये छल्ले बनाना शुरू कर देगी.
एड्स की रोकथाम के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन छल्लों को सस्ता बनाए जाने की जरूरत होगी.ये छल्ले सिलिकॉन के बने होंगे और कंपनी का कहना है कि हर साल ऐसे करीब दस लाख छल्ले बनाए जा सकेंगे. ये छल्ले योनी में पहने जाते हैं और ऐसे रसायन छोड़ते हैं जो एचाईवी संक्रमण की रोकथाम में मदद करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अलावा करीब एक दर्जन देश इन छल्लों को मंजूरी दे चुके हैं.
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
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सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
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मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
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जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.
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गैरसरकारी जनहित संस्था जनसंख्या परिषद के पास इन छल्लों का पेटेंट है. फिलहाल ये छल्ले स्वीडन की एक कंपनी द्वारा बनाए जाते हैं. अफ्रीका में ऐसे करीब पांच लाख छल्ले उपलब्ध हैं, जिन्हें अफ्रीकी महिलाओं को मुफ्त दिया जाता है.
महिलाओं के लिए विकल्प
यूएन एड्स के प्रवक्ता बेन फिलिप्स ने कहा कि इन छल्लों का फायदा ये है कि महिलाएं इन्हें बिना किसी को बताए और किसी की इजाजत लिए बिना इस्तेमाल कर सकती हैं. उन्होंने कहा, "जिन महिलाओं के साथी कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते और उन्हें एचआईवी से बचाने वाली गोलियां नहीं लेने देते, उन्हें एक विकल्प मिल जाता है.”
अफ्रीका में एचआईवी महिलाओं के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वहां 60 फीसदी नए संक्रमण महिलाओं में ही होते हैं.
सस्ते करने पर जोर
इन छल्लों में डैपीवाइरिन नामक एक दवा होती है, जो एक महीने तक रिसती रहती है. फिलहाल एक छल्ले की कीमत 12 से 16 अमेरिकी डॉलर यानी एक से डेढ़ हजार रुपये के बीच होती है. लेकिन विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि अगर अफ्रीका में ही इनका बड़े पैमाने पर निर्माण होने लगे तो कीमतों में कमी आएगी.
एचआईवी की दवाई को तरसे मरीज
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विशेषज्ञ ऐसे छल्लों के विकास पर भी काम कर रहे हैं जो एक महीने के बजाय तीन महीने तक काम करें. उससे भी औसत कीमत कम हो सकेगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसी महिलाओं के लिए इन छल्लों के इस्तेमाल की सिफारिश की है, जो एचआईवी वायरस के सबसे ज्यादा खतरे में हैं. अफ्रीका के करीब एक दर्जन देश इन छल्लों को मंजूरी दे चुके हैं. इनमें दक्षिण अफ्रीका, बोट्सवाना, मलावी, युगांडा और जिम्बाब्वे शामिल हैं.
इस मंजूरी का आधार दो अध्ययनों को बनाया गया है, जिसका निष्कर्ष था कि इन छल्लों के इस्तेमाल से महिलाओं में एचआईवी संक्रमण का खतरा एक तिहाई तक कम हो सकता है. अन्य अध्ययनों में यह भी कहा गया था कि संक्रमण का खतरा आधा हो जाता है.