दक्षिण अफ्रीकी मीडिया में खबर आई है कि देश की सत्ताधारी एएनसी पार्टी ने राष्ट्रपति जैकब जूमा को हटाने का फैसला कर लिया है. यह फैसला पार्टी के शीर्ष अधिकारियों की 13 घंटे चली बैठक के दौरान लिया गया.
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राष्ट्रपति जैकब जूमा की अपनी पार्टी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) ने ही उन्हें हटाने का फैसला किया है. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति से मिली अंदरूनी खबरों में कहा गया है कि उन्हें पद से हटने के लिए 48 घंटों का समय दिया गया है.
एएनसी का नेतृत्व मंगलवार को अपने फैसले की आधिकारिक तौर पर घोषणा कर सकता है. मध्यरात्रि से पहले सरकारी टीवी चैनल एसएबीसी ने खबर दी कि पार्टी अध्यक्ष और भावी राष्ट्रपति समझे जा रहे सिरिल रामाफोसा ने निजी रूप से जूमा को बता दिया है कि उनके पास इस्तीफा देने के लिए 48 घंटे हैं.
दिसंबर में जब से रामाफोसा एएनसी के अध्यक्ष बने हैं, तभी से राष्ट्रपति जूमा की सत्ता से विदाई की अटकलें लग रही थीं. पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में रामाफोसा ने बेहद कम अंतर से जूमा की पत्नी नकोसाजाना द्लामिनी जूमा को हराया. स्थानीय मीडिया का कहना है कि पार्टी के फैसले के बाजवूद 75 वर्षीय जूमा पद छोड़ने से इनकार कर सकते हैं जिसके बाद उन्हें संसद के जरिए पद से हटाने का विकल्प बचेगा.
मंडेला की वह जेल
दक्षिण अफ्रीका के महान अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला ने अपनी कैद के 27 में से 18 साल खूंखार रोबेन आइलैंड जेल में बिताए. बाद में यह जेल स्वतंत्रता का प्रतीक बना. देखते हैं इतिहास से जुड़ी इस जेल की कुछ यादगार तस्वीरें...
तस्वीर: J. Schadeberg
टापू पर जेल
केपटाउन से कुछ किलोमीटर पर समुद्र के बीच एक टापू पर बनी यह जेल कैदियों को दुनिया से अलग थलग कर देती है. मंडेला ने अपनी जीवनी में इसे "देश से बाहर जाने की यात्रा" बताया है.
कड़ी मेहनत की सजा
भले ही मंडेला एक राजनीतिक कैदी की हैसियत से जेल में गए. लेकिन वहां उनसे दूसरे कैदियों जैसा ही व्यवहार किया गया. उनसे 10 से 14 घंटे तक मेहनत कराई गई. पत्थर तुड़वाए गए और इसकी वजह से उनकी आंखें हमेशा के लिए खराब हो गईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पति को छोड़ कर
यह तस्वीर 1964 में उस वक्त की है, जब विनी मंडेला अपने पति को जेल में छोड़ कर लौट रही थीं. मंडेला का कैदी नंबर 466 और साल 1964. बाद में उनकी पहचान 466/64 या 46664 से हुई.
तस्वीर: OFF/AFP/Getty Images
काल कोठरी
मंडेला की आत्मकथा में इस बात का जिक्र है कि अपनी कोठरी में लेटते हुए उनके पैर और सिर दोनों दीवारों को छूते थे. यही वह कोठरी है और इसे देख कर लगता है कि मंडेला की बात बिलकुल सही है.
तस्वीर: Getty Images
जेल से रिहाई
शायद यह दुनिया का इकलौता मामला हो, जहां संघर्ष कर रहा शख्स जेल में हो और उसकी बातें सुनने, समझने और मानने के लिए लाखों लोग सड़कों पर उतरें. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन के चरम पर मंडेला जेल में थे. उन्हें 12 फरवरी, 1990 को रिहा किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उफ, वो यादें
रिहाई के चार साल बाद नेल्सन मंडेला ने एक बार फिर रोबेन आइलैंड जेल का रुख किया. देश की तस्वीर बदल चुकी थी. यह जेल स्वतंत्रता की निशानी बन चुकी थी. मंडेला अपनी कोठरी की खिड़की से जेल के गलियारे को निहारते हुए.
तस्वीर: J. Schadeberg
सब कुछ वैसा ही
भले ही वक्त बदल गया हो लेकिन जेल के अंदर की वह कोठरी अब भी वैसी ही थी. कुर्सी लग गई थी, एक पौधा रख दिया गया था. और इस ऐतिहासिक क्षण को कैद करने सारे कैमरामैन बेताब थे.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Guy Tillim
संघर्ष का तीर्थ
फिर तो मंडेला कई बार इस जेल में आए. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को भी दिखाया कि वे कैसे यातना भरे साल थे. 1998 की इस तस्वीर में क्लिंटन का चेहरा बहुत कुछ कह जाता है.
तस्वीर: Reuters
गुरु की जेल में
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा कई बार कह चुके हैं कि उन्होंने नेल्सन मंडेला से बहुत कुछ सीखा है. जून, 2013 में उन्होंने भी इस जेल का दौरा किया. साथ में पत्नी मिशेल ओबामा हैं. लेकिन मंडेला बीमार थे.
तस्वीर: Reuters
हतप्रभ और निशब्द
ओबामा जिस वक्त मंडेला की कोठरी में आए, अपने चेहरे के भाव को छिपा नहीं पाए. ओंठ भींचे निर्विकार ओबामा के चेहरे का हर एक निशान बता रहा है कि मंडेला के दिनों को याद करके वह कितने दुखी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP
आजादी की मुट्ठी
चेहरे पर जोश और हवा में तनी दाहिने हाथ की मुट्ठी. मंडेला की यह पहचान थी. उनकी ऐसी ही मूर्ति जेल में लगाई गई है.
तस्वीर: Gianluigi Guercia/AFP/Getty Images
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एएनसी के सूत्रों ने बताया, "सिरिली उनसे बात करने गए थे." सूत्र ने आगे बताया कि जब सिरील वापस प्रिटोरिया के होटल में चल रही एएनसी की बैठक में लौटे तो "चर्चा बहुत ही तनावपूर्ण और मुश्किल" हो गई.
दूसरी तरफ जूमा के प्रवक्ता फोन नहीं उठा रहे हैं जिसके चलते उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिल पा रही है. शुक्रवार को जूमा की एक अन्य पत्नी टोबेका मदीबा जूमा ने इंस्टाग्राम पर लिखा कि जैकब जूमा लड़ने को तैयार हैं और वह खुद को पश्चिमी देशों की साजिश का शिकार समझते हैं. टोबेका मदीबा जूमा ने लिखा, "जो उन्होंने शुरू किया है, वे उसे खत्म करेंगे क्योंकि वे अटलांटिक महासागर के पार से आदेश नहीं लेते हैं."
जैकब जूमा पिछले नौ साल से दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति हैं. इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था ठहर गई है. बैंक और खनन कंपनियां देश में निवेश नहीं करना चाहती हैं, जिसकी वजह नीतिगत अनिश्चितता और अत्यधिक भ्रष्टाचार है.
एके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)
अश्वेत बस्ती सोवेतो का कायाकल्प
40 साल पहले रंगभेदी हिंसा के खिलाफ हुए सोवेतो विद्रोह का गढ़ रहा शहर आज दक्षिण अफ्रीका का एक जिंदादिल शहर है. रंगभेद खत्म होने के दो दशक बाद पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना बन चुका जोहानेसबर्ग का सोवेतो अपना इतिहास नहीं भूला.
तस्वीर: Reuters/S. Sibeko
फुटबॉल और आजादी
दक्षिण अफ्रीकी फुटबॉल का दिल मानी जाने वाली 'सॉकर सिटी' अब एफएनबी स्टेडियम कहलाती है. पिछले स्टेडियम की जगह इसका निर्माण 2010 विश्व कप के लिए हुआ. लेकिन यह केवल खेल के लिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी खास है क्योंकि 1990 में इसी जगह इकट्ठे होकर हजारों लोगों ने नेल्सन मंडेला की जेल से रिहाई के बाद उनका भाषण सुना था.
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press
हीरो का घर
नस्लवाद के खिलाफ जंग के मसीहा और दक्षिण अफ्रीका के महान अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला का घर सोवेतो में ही है. वे यहां अश्वेत कर्मचारियों के लिए बने सरकारी आवासों में रहे. ये मैचबॉक्स घर कहलाते थे क्योंकि यह बहुत छोटे और एक जैसे डिजायन के होते थे. अपनी आत्मकथा में मंडेला ने इस घर का भी बड़े प्यार से जिक्र किया है.
तस्वीर: Getty Images/C. Furlong
स्कूलों से सड़कों तक
सोवेतो के विद्रोह की जड़ें शहर के क्लासरूम में हैं. सन 1976 में जब सरकार ने स्कूलों में अफ्रीकान्स भाषा को लागू करने का आदेश दिया, उस समय अश्वेत समुदाय का शायद ही कोई व्यक्ति यह भाषा बोल सकता था. अश्वेत समुदाय ने इसे अत्याचारियों की भाषा माना और स्कूली छात्र इस आदेश के विरोध में सड़कों पर उतर आए. यह विरोध पूरी बंटू शिक्षा प्रणाली के खिलाफ था, जिससे स्कूलों में रंगभेद को बढ़ावा मिलता था.
तस्वीर: AFP/AFP/GettyImages
मेगा मॉल
सोवेतो का मापोन्या मॉल दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा शॉपिंग सेंटर है. इसका उद्घाटन खुद मंडेला ने 2007 में किया. इस महंगे मॉल को कमाई के एक जरिए और नई नौकरियां पैदा करने के मकसद से शुरु किया गया. लेकिन इसके कारण बंद होने की कगार पर आ पहुंचे छोटी दुकानों और व्यवसायों को लेकर काफी विवाद भी हुआ. इसे बनाने वाले रिचर्ड मापोन्या दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत करोड़पति थे. वे अभी भी सोवेतो में ही रहते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/I. Trower
गुस्से का सामना हिंसा से
हजारों अश्वेत छात्र जब सोवेतो की सड़कों पर मार्च करने उतरे तो उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन की नींव रखी. प्रदर्शनकारियों को हटाने की कोशिशें नाकाम रहने पर पुलिस ने उन पर गोलियां बरसा दीं. 16 जून 1976 को हुई इस गोलीबारी में 176 युवाओं की जान चली गई और यहां से विरोध प्रदर्शनों और हिंसा की लहर पूरे देश में फैल गई.
तस्वीर: AFP/Getty Images
पावर स्टेशन का ग्लैमर
ऑरलैंडो टॉवर्स मूल रूप से एक कोयले से बिजली बनाने वाले प्लांट का हिस्सा था. रंगील म्यूरल कला से सजा कर इसे अब नया रूप दे दिया गया है. पावर स्टेशन का निर्माण 1930 के दशक में हुआ और यहां से श्वेत लोगों की बस्तियों और जोहानेसबर्ग के शहरी इलाके में बिजली जाती थी. अश्वेत दक्षिण अफ्रीकी दक्षिण-पश्चिम की बस्तियों में रहते और खनन उद्योग में लगे थे.
तस्वीर: picture-alliance/WILDLIFE/M. Harvey
संस्कृति और रंग
सोवेतो का पहला थिएटर 2012 में खुला. बेहद खास वास्तुकला वाले इस थिएटर के विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम शहर के बदलते रूप के गवाह बने. रंगबिरंगे टाइलों से सजी फर्श वाली इस इमारत में तीन सभागार हैं. इन तीनों की डिजायन शहर के निवासियों की विविधता का प्रतिबिंब दिखाती हैं. इसका आधे से अधिक निर्माण कार्य जनता के पैसों से ही हुआ है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. de Sakutin
छाप छोड़ने वाली तस्वीर
1976 के विद्रोह की बलि चढ़े कुछ सबसे पहले लोगों में एक 13 साल का लड़का भी था. हेक्टर पीटरसन को पुलिस की गोली लगी थी. उसकी लाश उठाए एक स्थानीय पुरुष और उसकी बहन की यह तस्वीर दुनिया भर के अखबारों में छपी. इस तस्वीर ने ना केवल रंगभेदी शासन की क्रूरता और अन्याय की ओर विश्व का ध्यान खींचा बल्कि आज भी पीटरसन की हत्या की जगह पर स्मारक बना हुआ है.
तस्वीर: Imago/imagebroker
दक्षिण अफ्रीका की सबसे मशहूर सड़क
मशहूर इसलिए कि दुनिया की एकलौती सड़क है जिस पर दो नोबेल पुरस्कार विजेता रहते थे. नेल्सन मंडेला और आर्चबिशप डेसमंड टूटू दोनों ने किसी समय सोवेतो की इस विलाकाजी सड़क पर अपना आवास बनाया. एक सरकारी प्रोजेक्ट के तहत विकसित की गई सड़क आज की तारीख में दक्षिण अफ्रीका का टॉप टूरिस्ट आकर्षण है. दक्षिण अफ्रीका आने वाले 80 फीसदी पर्यटक यानि सालाना करीब 7 लाख लोग यहां जरूर पहुंचते हैं.
तस्वीर: Getty Images/C. Somodevilla
जारी है संघर्ष
तमाम निवेश प्रोजेक्टों से इस शहर का कायाकल्प हो चुका है. इसके बावजूद आज भी गरीबी और लचर शिक्षा व्यवस्था के कारण सोवेतो के सामने विकास की राह में बड़ी मुश्किलें हैं. कई लोग बताते हैं कि विद्रोह के 40 साल बीत जाने के बाद भी बराबरी के लिए संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है.