आम तौर पर लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में शहरों में रहने आते हैं. लेकिन दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में उल्टा हो रहा है. लाखों लोग बेतहर जिंदगी के लिए इस महानगर को छोड़ रहे हैं.
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बहुत से दक्षिण कोरियाई लोग सोल को छोड़ कर जा रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह घरों का महंगा होना है. वे अपने परिवार और बच्चों के साथ रहने के लिए उपनगरीय इलाकों या फिर छोटे शहरों को चुन रहे हैं. दक्षिण कोरिया की सरकार की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि इस साल मई महीने तक सोल महानगर में रहने वालों की संख्या 94.9 लाख है. इस शहर में रहने वालों की सबसे ज्यादा संख्या 1992 में दर्ज की गई थी जब यह आंकड़ा 1.097 करोड़ था.
दक्षिण कोरियाई राजधानी की आबादी 2016 में ही एक करोड़ के आंकड़े से कम हो गई थी. गृह और सुरक्षा मामलों के मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक शहर की आबादी घटकर 72 लाख पर आ सकती है.
सोल के पास कभी इस इलाके की सबसे बड़ी और प्रभावशाली राजधानी होने का रुतबा था, लेकिन अब उसका आकर्षण घटता जा रहा है. इससे सोल की उन कोशिशों को भी झटका लग सकता है जिनके तहत वह चीन की सख्ती के बीच हांग कांग छोड़ रही कंपनियों को आकर्षित करना चाहता है. सोल खासतौर से वित्तीय सेक्टर से जुड़ी कंपनियों को अपनी तरफ खींचना चाहता है, ताकि वह टोक्यो और सिंगापुर को टक्कर देते हुए एशिया प्रशांत क्षेत्र का अहम बाजार बन सके.
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कोरिया को बांटने वाली जंग
25 जून 1950 को कोरियाई युद्ध शुरू हुआ. इसमें सोवियत रूस समर्थित उत्तर कोरिया की तरफ से 75000 सैनिक पश्चिम समर्थित दक्षिण कोरिया से भिड़ने चले. जुलाई आते आते अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया की ओर से आ गई.
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अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ
अमेरिकी अधिकारियों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ जंग थी. उनके पास इस युद्ध का विकल्प एक ही था रूस और चीन के साथ जंग या फिर कुछ लोग जिसकी चेतावनी देते है यानी तीसरा विश्वयुद्ध. अमेरिका इससे बचना चाहता था.
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50 लाख लोगों की मौत
1953 के जुलाई के अंत में जंग खत्म हुई तो सब मिला कर 50 लाख लोगों की जान जा चुकी थी. इसमें आधे से ज्यादा आम लोग थे. 40 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक कोरिया में मारे गए और 1 लाख से ज्यादा घायल हुए.
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जापानी साम्राज्य का हिस्सा
बीसवीं सदी की शुरुआत से ही कोरिया जापानी साम्राज्य का हिस्सा था. दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका और रूस को यह तय करना था कि दुश्मनों के साम्राज्य का क्या किया जाए. 1945 में अमेरिका के दो अधिकारियों ने इसे 38 वें समानांतर के साथ दो हिस्से में बांटने का फैसला किया.
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38 वां समानांतर
यह वो अक्षांश रेखा है जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा से उत्तर में 38 डिग्री पर स्थित है. यह यूरोप, भूमध्यसागर, एशिया, प्रशांत महासागर, उत्तर अमेरिका, और अटलांटिक सागर से होकर गुजरती है. कोरियाई प्रायद्वीप में इसके एक तरफ उत्तर तो दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया है.
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रूस और अमेरिका
दशक का अंत होते होते दो राष्ट्र अस्तित्व में आ गए. दक्षिण में साम्यवाद विरोधी नेता सिंगमान री को अमेरिका का थोड़े ना नुकुर के साथ समर्थन मिला तो उत्तर में साम्यवादी नेता किम इल सुंग को रूस का वरदहस्त. दोनों में से कोई अपनी सीमा में खुश नहीं था और सीमा पर छिटपुट संघर्ष लगातार हो रहे थे. जंग शुरू होने के पहले ही दोनों ओर के 10 हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके थे.
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कोरिया की जंग और शीत युद्ध
इतना होने पर भी अमेरिकी अधिकारी उत्तर कोरिया के हमले से हतप्रभ थे. उन्हें इस बात की चिंता थी कि यह दो तानाशाहों के बीच सीमा युद्ध ना होकर दुनिया को अपने कब्जे में करने की साम्यावादी मुहिम का पहला कदम है. यही वजह थी कि तब फैसला करने वालों ने हस्तक्षेप नहीं करने जैसे कदमों के बारे में सोचना गवारा नहीं किया. उत्तर कोरिया सोल की तरफ बढ़ा और अमेरिकी सेना साम्यवाद के खिलाफ तैयार होने लगी.
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साम्यवादियों की शुरुआती बढ़त
पहले यह जंग सुरक्षात्मक थी और मित्र देशों पर भारी पड़ी. उत्तर कोरिया की सेना अनुशासित, प्रशिक्षित, और उन्नत हथियारों से लैस थी जबकि री की सेना भयभीत, परेशान और हल्के से उकसावे पर मैदान छोड़ने के लिए तैयार थी. यह कोरियाई प्रायद्वीप के लिए सबसे सूखे और गर्म दिन थे. अमेरिकी सैनिक भी बेहाल थे.
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नई रणनीति
गर्मी खत्म होते होते अमेरिकी सेना के जनरलों ने युद्ध को नई दिशा दी. अब उनके लिए कोरियाई युद्ध का मतलब हमलावर जंग हो गई जिसमें उन्हें उत्तर कोरिया को साम्यवादियों से आजाद कराने का लक्ष्य रखा. शुरुआत में बदली नीति सफल रही और उत्तर कोरियाई सैनिकों को सोल से खदेड़कर 38 वें समानांतर के पार पहुंचा दिया गया.
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चीन का डर और दखल
जैसे ही अमेरिकी सेना सीमा पार कर उत्तर में यालू नदी की ओर बढ़ी चीन को अपनी सुरक्षा का डर सताने लगा और उसने इसे चीन के खिलाफ जंग कह दिया. चीनी नेता माओत्से तुंग ने अपनी सेना उत्तर कोरिया में भेजी और अमेरिका को यालू की सीमा से दूर रहने को कहा.
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चीन से लड़ाई नहीं
अमेरिका राष्ट्रपति ट्रूमैन चीन से सीधा युद्ध नहीं चाहते थे क्योंकि इसका मतलब होता एक और बड़ा युद्ध. अप्रैल 1951 में अमेरिकी सेना के कमांडर को बर्खास्त किया गया और जुलाई 1951 में राष्ट्रपति और नए सैन्य कमांडर ने शांति वार्ता शुरू की. 38 समानांतर पर लड़ाई भी साथ साथ चल रही थी. दोनों पक्ष युद्ध रोकने को तैयार थे लेकिन युद्धबंदियों पर समझौता नहीं हो पा रहा था.
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युद्ध खत्म हुआ
आखिरकार दो साल की बातचीत के बाद 27 जुलाई 1953 को संधि पर दोनों पक्षों के दस्तखत हुए. इसमें युद्धबंदियों को जहां उनकी इच्छा हो रहने की आजादी मिली, नई सीमा रेखा खींची गई जो 38 पैरलल के करीब ही थी और इसमें दक्षिण कोरिया को 1500 वर्गमील का इलाका और मिल गया. इसके साथ ही 2 मील की चौड़ाई वाला एक असैन्य क्षेत्र भी बनाया गया. यह स्थिति आज भी कायम है.
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लोग क्यों छोड़ रहे हैं सोल
किम ह्युन जुंग 2015 में सोल को छोड़कर गांकवन प्रांत में चली गईं, जहां उनके पास बड़ा सा घर है. उन्हें अपने इस फैसले पर ज्यादा अफसोस नहीं है. वह कहती हैं, "लोगों के सोल छोड़ने के फैसले के पीछे वजह घरों के बढ़ते दाम हैं. कीमतें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. बहुत से लोगों के लिए यहां रहना मुश्किल हो रहा है."
किम और यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले उनके पति ने कीमतें बढ़ने से काफी पहले ही सोल छोड़ दिया था. मार्च 2017 में ग्रेटर सोल में एक घर की औसत कीमत 34.1 करोड़ कोरियन वॉन थी. इस मार्च में यह कीमत बढ़कर 62.6 करोड़ कोरियन वॉन हो गई.
डान पिंकस्टन सोल की ट्रोय यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर हैं. वह कहते हैं कि लोग सोल को छोड़कर उपनगरीय इलाकों और बड़े शहरों के पास बसे छोटे शहरों में जा रहे हैं. वह कहते हैं, "सरकार ने बुनियादी ढांचे में बहुत निवेश किया है. लंबी दूरी की ट्रेन चलाई हैं ताकि लोग भले ही दूर रहें लेकिन काम करने के लिए शहर में आसानी से आ जा सकें."
आर्थिक नुकसान
वह कहते हैं कि बहुत सारे लोग शहरों के पास बसाए जा रहे नए शहरों को पंसद कर रहे हैं, क्योंकि वहां सब सुविधाएं हैं जैसे आधुनिक स्कूल, अस्पताल और बेहतर जिंदगी के लिए खुला परिवेश. सोल छोड़कर जा रहे लोगों में कोई गिरावट नहीं दिखाई दे रही. इससे शहर की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकते हैं. एक ताजा रिपोर्ट कहती है कि सोल विदेशियों के लिए दसवां सबसे महंगा शहर है जहां घर के किराए से लेकर परिवहन और दूसरी चीजें बहुत महंगी हैं.
पिंकस्टन इस बात से सहमत हैं कि इन हालात में वैकल्पिक ठिकाने तलाश रही कंपनियां भी कहीं और जा सकती हैं, हालांकि इसकी एक वजह काम करने के तौर तरीकों में आ रहे बदलाव भी हो सकते हैं. उनके मुताबिक आज के दौर की हाई टेक कंपनियों को किसी महंगी जगह पर अपने हेडक्वार्टर बनाने की जरूरत नहीं है. ऐसे में सोल जैसी महंगी जगह से दूर रहने में ही वे भलाई समझेंगे.