दक्षिण कोरिया: सेना के गे विरोधी कानून पर ऐतिहासिक फैसला
२२ अप्रैल २०२२
दक्षिण कोरियाई सेना पर समलैंगिक सैनिकों से भेदभाव के आरोप लगते आए हैं. 2017 में कई सैनिकों पर "सोडोमी या अभद्र गतिविधियों" के लिए कार्रवाई की गई थी, जिसे आलोचकों ने समलैंगिक सैनिकों को निशाना बनाने की कार्रवाई बताया था.
इसे लेकर उन दोनों पर सेना के नियम तोड़ने का आरोप लगा और मुकदमा चला. निचली सैन्य अदालत ने दोनों को दोषी माना. एक को चार महीने और दूसरे को तीन महीने जेल की सजा सुनाई गई. मिलिट्री हाई कोर्ट ने भी निचली सैन्य अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा और आरोपियों को निलंबित जेल की सजा सुनाई. दोनों आरोपी अधिकारियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.अब सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य अदालतों के फैसले को खारिज कर दिया है. साथ ही, आगे की कार्यवाही के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को आर्म्ड फोर्सेज के हाई कोर्ट में भी भेज दिया है.
ताइवान की पहली एलजीबीटीक्यू काउंसलर
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ऐतिहासिक फैसला
दक्षिण कोरिया की सेना में समलैंगिकों से जुड़े सख्त कानूनों के मद्देनजर यह फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है. यहां लागू 1962 के 'मिलिट्री क्रिमिनल एक्ट' में आर्टिकल 92-6 यौन संबंधों के स्वभाव से जुड़े कानून हैं. इसके मुताबिक, अगर कोई शख्स सेना के किसी व्यक्ति के साथ "ऐनल इंटरकोर्स या बाकी अभद्र गतिविधियां" करता है, तो उसके लिए दो साल तक की जेल का प्रावधान है. ऐसे मामलों में सेना का रवैया बेहद सख्त रहता आया है. सैनिक आपसी सहमति से सेक्स करें, सैन्य बेस से बाहर या ऑफ ड्यूटी सेक्स करें, अब तक ऐसे तमाम मामलों में भी सजा सुनाई जाती थी.
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मगर 21 अप्रैल के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसलों को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 13 न्यायाधीशों के साथ फुल पैनल में इस मामले पर विमर्श किया. इसके बाद चीफ जस्टिस किम मायॉन-सू ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पुरुष सैन्यकर्मी अगर ड्यूटी से इतर के अपने निजी समय में सेना के बेस या सैन्य ढांचे के बाहर आपसी सहमति से सेक्स करते हैं, तो ऐसे मामलों में यह कानून लागू नहीं होता है.
लंबे समय से हैं शाही परिवारों में भी एलजीबीटीक्यू सदस्य
पिछले सप्ताह डच शाही परिवार के सदस्यों को बिना राजगद्दी छोड़े हुए अपने समलैंगिक पार्टनर से शादी करने की अनुमति दे दी गई. शाही परिवारों में भी एलजीबीटीक्यू सदस्य हमेशा से रहे हैं, लेकिन वो खुल कर बात करने से बचते थे.
तस्वीर: Instagram: ivar_mountbatten
राजकुमार मानवेंद्र सिंह गोहिल
राजकुमार मानवेंद्र सिंह गोहिल 2006 में दुनिया के सामने आने के बाद अपने समलैंगिक होने के बारे में बताने वाले दुनिया के पहले राजकुमार बन गए. उनके परिवार ने तुरंत उनका त्याग कर दिया. 2013 में उन्होंने अमेरिका में शादी कर ली. आज वो एलजीबीटीक्यू लोगों के अधिकारों के एक मुखर ऐक्टिविस्ट हैं और एचआईवी/एड्स के बारे में जागरूकता फैलाते हैं. उन्होंने एलजीबीटीक्यू लोगों को अपने महल में शरण भी दी है.
तस्वीर: Karin Törnblom/Imago Images
फिलिप्प प्रथम, ऑरलींस के ड्यूक (1640-1701)
फिलिप्प प्रथम फ्रांस के "सन किंग" के नाम से जाने जाने वाले लुई सोलहवें के छोटे भाई थे. उन्होंने जनाना व्यवहार के प्रति कभी शर्म व्यक्त नहीं की. ड्यूक इत्र, जेवर और लेस और सिल्क के महंगे कपड़ों के शौक के लिए मशहूर थे. उनके कई प्रेमी थे, पुरुष भी और स्त्री भी. उनके मनपसंद साथी थे लोरेन के ड्यूकल हाउस के एक फ्रांसीसी रईस. कहा जाता है कि वे दोनों दशकों तक एक दूसरे के प्रेमी रहे थे.
तस्वीर: Public Domain
ग्रेट ब्रिटेन की रानी ऐन (1665-1714)
रानी ऐन ने ग्रेट ब्रिटेन पर 1702 से 1714 तक शासन किया. उनकी शादी हुई थी लेकिन कहा जाता है कि उनका उनकी बचपन की दोस्त सारा चर्चिल के साथ प्रेम संबंध था. सारा विंस्टन चर्चिल की पूर्वज थीं और एक दूसरे के लिए उनका प्रेम उनकी चिट्ठियों में साफ नजर आता है. उनकी कहानी ही 2018 में बनी फिल्म "द फेवरिट" की प्रेरणा थी. फिल्म में ओलिविया कोलमैन रानी ऐन बनी थीं और रेचल वाइज ने सारा की भूमिका अदा की थी.
तस्वीर: National Portrait Gallery, London
सम्राट हेड्रियन (76-138 एडी)
शहंशाह हेड्रियन 117 से 138 ईसा पश्चात तक रोम के सम्राट थे. उन्होंने यूनानी युवक ऐंटिनूस के प्रति अपने प्रेम को छिपाने की कभी कोशिश नहीं की. वो दोनों आधिकारिक समारोहों और सम्राट के दौरों पर एक साथ जाया करते थे. ऐंटिनूस की मौत के बाद हेड्रियन ने आदेश दिया कि उसे देवता की उपाधि दी जाए, एक ऐसा सम्मान जो सामान्य रूप से सम्राटों के परिवार को ही मिलता था.
लॉर्ड अल्फ्रेड डगलस (1870-1945)
क्वीन्सबेरी के मार्क्वेस का बेटा लॉर्ड अल्फ्रेड डगलस 20वीं शताब्दी की शुरुआत में आयरिश कवी ऑस्कर वाइल्ड का प्रेमी था. उनके पिता को इस रिश्ते से नफरत थी और उन्होंने वाइल्ड पर सोडोमी का आरोप लगा दिया. सोडोमी इस समय एक अपराध था और वाइल्ड को उसके लिए जेल की सजा हुई. इन दुखद घटनाओं के बाद डगलस ने एक महिला से शादी कर ली और सार्वजनिक रूप से खुद को वाइल्ड से अलग कर लिया.
तस्वीर: Imago Images/Leemage
राजकुमार एगोन फोन फुर्स्टेन्बर्ग (1946-2004)
जर्मनी के राजकुमार एगोन फोन फुर्स्टेन्बर्ग एक सोशलाइट, डिजाइनर और टैब्लॉइड अखबारों के प्रिय पात्र थे. उन्होंने कभी अपनी बाईसेक्सुएलिटी को छुपाया नहीं. उन्होंने दो बार महिलाओं से शादी की लेकिन उनके पुरुष पार्टनर भी रहे. फोन फुर्स्टेन्बर्ग को गे नाइटलाइफ बहुत पसंद थी.
तस्वीर: Holt, Rinehart and Winston
लुईसा इसाबेल अल्वारेज दे टोलेदो (1936-2008)
लुईसा इसाबेल अल्वारेज दे टोलेदो स्पेन के मेदिना-सिडोनिया परिवार से थीं, जो स्पेन के सबसे प्रमुख नवाबी घरानों में से एक था. वो अपने विचारों के समर्थन में खड़े होने से डरती नहीं थीं. वो सार्वजनिक रूप से धर्म की निंदा करती थीं और एक समर्पित ऐक्टिविस्ट थीं. वो अपनी सचिव से 20 सालों तक प्रेम संबंध में रहीं. 2008 में उन्होंने अपनी मृत्यु शय्या पर अपनी प्रेमिका से शादी कर ली.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लॉर्ड इवर माउंटबैटन
लॉर्ड इवर माउंटबैटन खुले तौर पर एक समलैंगिक रिश्ते में रहने वाले रानी एलिजाबेथ द्वितीय के परिवार के पहले सदस्य थे. उन्होंने 2018 में अपने पार्टनर जेम्स कॉएल से शादी भी की. ऐसा प्रतीत होता है कि उनके परिवार ने इस पर कोई आपत्ति भी नहीं की. बल्कि उनके और उनकी पूर्व पत्नी के बच्चों के मुताबिक, उनकी पत्नी ही उन्हें विवाह स्थल तक लेकर आईं और उनकी शादी करवाई. (केविन टी.)
तस्वीर: Instagram: ivar_mountbatten
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समलैंगिक अधिकारों के लिए उम्मीद
इसके अलावा कोर्ट ने "अभद्रता" की परिभाषा पर भी अहम टिप्पणी की. चीफ जस्टिस ने कहा, "अभद्रता क्या है, अभद्र व्यवहार के दायरे में क्या आता है, इससे जुड़े विचारों में समय और समाज के मुताबिक बदलाव आए हैं. एक ही लिंग के दो लोगों के बीच में यौन गतिविधि होना, उनके अपमान की वजह बने,बाकी लोग उनसे घृणा करें और ऐसे संबंध भद्र नैतिक विचारों के खिलाफ माने जाएं, ऐसे विचारों को सार्वभौमिक और नैतिक मापदंड के तौर पर मुश्किल ही स्वीकार किया जा सकता है."
अदालत ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि सेना के लोगों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक यौन संबंध अब अपराध नहीं समझे जाएं,ताजा निर्णय इस दिशा में भी अहम है. मानवाधिकार संगठनों ने कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है. संगठनों ने इसे एलजीबीटीक्यू के लिए बड़ी जीत बताया है. एमनेस्टी एशिया के शोधकर्ता बोराम यांग ने एक बयान में कहा, "संबंधित कानून मानवाधिकारों का खौफनाक उल्लंघन है. लेकिन आज के अदालती फैसले से सैन्यकर्मियों के लिए नई राह खुलनी चाहिए, ताकि वे सजा के डर बिना आजाद होकर जी सकें."