दक्षिणी और दक्षिण पूर्वी एशिया में पांव जमाता इस्लामिक स्टेट
१६ अक्टूबर २०१९पिछले हफ्ते इंडोनेशिया के सुरक्षा मंत्री वीरांतो के ऊपर कार से उतरते समय हमला हुआ. उन्हें चाकुओं से गोदकर घायल कर दिया गया. फिलहाल उनका जकार्ता के सैनिक अस्पताल में इलाज चल रहा है. उनकी हालत अभी स्थिर है. वीरांतो पर हमला करने वाला 31 वर्षीय स्याहरिल अलास्याह आतंकवादी संगठन जमाह अंशहारुत दौलाह (जेएडी) से जुड़ा हुआ है. जेएडी दक्षिण पूर्वी एशिया में सक्रिय एक आतंकवादी संगठन है जिसके इस्लामिक स्टेट के साथ संबंध हैं. इसके अलावा फिलीपींस के अबु सयफ और माउते समूह के साथ थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर में दर्जनों आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. ये आतंकवादी संगठन अलग अलग समय पर हमलों को अंजाम देते रहते हैं.
ये सारे आतंकवादी संगठन आईएस से जुड़े हुए नहीं हैं. जैसे आतंकी संगठन जिमाह इस्लामियाह (जेआई). जेआई ने 2002 में इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर धमाके किए थे. इन धमाकों में 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे. इन धमाकों के बाद सुरक्षाबलों ने आक्रामक रूप से जेआई के खिलाफ अभियान चलाया. इस अभियान से जेआई पर तब काबू पा लिया गया था. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जेआई अब फिर से सक्रिय हो गया है. यह संगठन अब अपनी क्षमताओं को फिर से बढ़ा रहा है.
काबू पाने के लिए मुश्किल इलाका
वॉशिंगटन के नेशनल वॉर कॉलेज के जचार्य अबूजा और रैंड कॉर्पोरेशन के कॉलिन पी क्लार्क ने सिक्योरिटी ब्लॉग फॉर्च्यूना कॉर्नर पर एक रिपोर्ट लिखी. इस रिपोर्ट में बताया गया कि दक्षिण पूर्वी एशिया कैसे चरमपंथी संगठनों के विस्तार के लिए एक नया इलाका हो सकता है. मार्च 2019 में जब इस्लामिक स्टेट ने सीरिया और इराक में अपना नियंत्रण खोया है तब से इस संगठन ने काम करने का तरीका बदल लिया है. अब आईएस ने अपने आप को विकेंद्रित कर लिया है. आईएस के चरमपंथी अब अलग अलग जगह बिखर गए हैं. ये दक्षिण पूर्वी एशिया के कई द्वीपों पर भी चले गए हैं. ऐसे में हजारों द्वीपों पर फैले इन देशों में इन आतंकवादियों को तलाश पाना मुश्किल होगा.
अप्रैल 2019 में श्रीलंका में हुए बम धमाकों के बाद फ्रैंकफर्ट में मौजूद फ्रैंकफर्ट रिसर्च सेंटर फॉर ग्लोबल इस्लाम की निदेशक सुजैन श्रोएडर ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समूहों से संबंध रखने वाले जिहादी समूह दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया में सभी जगह सक्रिय हैं. दक्षिण पूर्वी एशिया के आतंकी समूह 2014 के बाद से आईएस से जुड़ने लगे थे. 2016 से आईएस द्वारा निकाली जाने वाली मैगजीन अल फतिहिन हर सप्ताह मलय और इंडोनेशियाई भाषा में भी निकाली जाने लगी. 2018 से इंडोनेशिया में 11 और फिलीपींस में छह आत्मघाती हमले हो चुके हैं. हर सप्ताह स्थानीय अखबारों में चरमपंथियों के पकड़े जाने की खबरें आती हैं. अकेले मलेशिया में पिछले छह साल में 500 से ज्यादा लोगों को चरमपंथ फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है. सरकार को उम्मीद है कि इराक और सीरिया से अभी और चरमपंथी वापस लौटेंगे. एक मलेशियाई अखबार बेनार न्यूज के मुताबिक 53 मलेशियाई और 100 इंडोनेशियाई लड़ाके आईएस छोड़कर वापस घर लौट चुके हैं.
अलग अलग तरीके
फिलीपींस के मरावी शहर में 2017 में हुई हिंसा से देखा जा सकता है कि इस्लामिक चरमपंथी क्या करने की क्षमता रखते हैं. तब उन्होंने दो लाख की आबादी वाले शहर को अपने कब्जे में ले लिया था. फिलीपींस की सेना को महीनों तक उनके साथ लड़ाई लड़नी पड़ी. इस सब में वो पूरा शहर बर्बाद हो गया. उस जंग का नतीजा ये है कि मरावी के 50 हजार लोग आज भी अस्थाई कैंपों में रह रहे हैं. इस इलाके की सरकारों ने आतंकवाद को रोकने के लिए नए कानून भी बनाए हैं. यही वजह है कि अकेले इंडोनेशिया में 2018 में बने कानूनों के बाद सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया.
वीरांतो पर हमला करने वाले को भी चरमपंथी ही माना जा रहा है. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस आदमी ने पहले कोई अपराध नहीं किया है. इसलिए ना तो इसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड है और ना ही इसे पहले कभी गिरफ्तार किया गया है. रक्षा विशेषज्ञ स्तानिसलॉस रियांता का कहना है, "ऐसा नहीं है कि सुरक्षाबलों को पता नहीं है कि उनके आस पास क्या चल रहा है. लेकिन वो सिर्फ चेतावनी ही जारी कर सकते हैं और हमला होने पर उससे निपट सकते हैं. आतंकवादियों ने कड़े कानूनों के चलते अपने तरीकों को बदला है. अब वो बड़े हमले ना कर व्यक्तिगत रूप से किए जाने वाले छोटे हमले कर रहे हैं. क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें समय रहते नहीं पहचाना जा सकता."
फिलीपींस के बारे में अमेरिका में रह रहे विशेषज्ञों अबूजा और क्लार्क का कहना है कि फिलीपींस की सेना ने भी अपने ऑपरेशनों के दौरान मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन किया है. इसके चलते कई लोग इस्लामिक चरमपंथियों से जुड़ गए हैं. कई ऐसे लोग जो सरकार की नीतियों से संतुष्ट नहीं थे वो भी इन लोगों के झांसे में आ गए हैं. साथ ही सेना द्वारा किए गए ऐसे ऑपरेशनों और जिहादियों द्वारा चलाए गए प्रोपेगैंडा का शिकार भी कई लोग हो गए हैं.
सामाजिक समस्याएं
विशेषज्ञों का मानना है कि चरमपंथ की इस समस्या को सिर्फ सुरक्षाबलों और सुरक्षा मानकों द्वारा ही नहीं निपटा जा सकता. बॉन यूनिवर्सिटी में इंडोनेशिया विशेषज्ञ सुजैन श्रोएटर का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में इस इलाके में चरमपंथ बढ़ा है और सहिष्णुता घटी है. वो कहते हैं, "युवा लोगों का कट्टर इस्लाम की तरफ झुकाव बढ़ा है. वे इस्लाम में चल रही रूढ़ियों की तरफदारी करते हैं. राजनीतिक पार्टियां उनके वोट पाने के लिए इन रूढ़ियों का समर्थन कर रही हैं. इस वजह से समाज का इस्लामीकरण हो रहा है जो धीरे धीरे चरमपंथ में बदल जाता है."
धार्मिक सहिष्णुता को इंडोनेशिया के पांच मूल सिद्धांतों पंचशील में शामिल किया गया है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में इसका पालन नहीं हुआ है. कई धार्मिक कट्टरपंथियों को अपना एजेंडा चलाने की खुली छूट दी गई. इससे वो अपनी रूढ़िवादी सोच को आगे बढ़ाने लगे. इंडोनेशिया में संविधान में दिए गए नियमों का पालन ठीक तरीके से ना हो पाना भी इसका एक बड़ा कारण है. अब देखना ये है कि लोकतांत्रिक और कट्टरपंथ के बीच चल रही इस लड़ाई में कौन सी ताकतें अपना वजूद बनाए रखती हैं.
रिपोर्ट: रोडियॉन एबिगहाउजेन, रित्स्की अकबर पुत्रा
__________________________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore