अंतरिक्ष में भारत का एक और मील का पत्थर, विक्रम-एस
विवेक कुमार
१७ नवम्बर २०२२
शुक्रवार को भारत के सतीश धवन केंद्र से विक्रम-एस नाम का एक रॉकेट पृथ्वी की कक्षा की ओर छोड़ा जाएगा. हर छोटे-बड़े दर्जनों रॉकेट लॉन्च करने वाले भारत के लिए विक्रम-एस का प्रक्षेपण एक नया मील का पत्थर होगा.
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विक्रम-एस रॉकेट को एक निजी कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस ने तैयार किया है. यह भारत में किसी निजी कंपनी का पहला रॉकेट लॉन्च है. इस अहम मौके पर प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जीतेंद्र सिंह भी मौजूद रहेंगे.
बुधवार को केंद्र सरकार ने देश के पहले निजी रॉकेट लॉन्च को मंजूरी दी थी. इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) ने एक बयान में बताया कि एक निजी स्पेस स्टार्ट-अप स्काईरूट एयरोस्पेस के विक्रम-एस को 18 नवंबर को 11 से 12 बजे के बीच प्रक्षेपण के लिए मंजूरी दी गई है.
इस घटना की अहमियत जाहिर करते हुए केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह ने कहा कि इसरो की यात्रा में विक्रम-एस का प्रक्षेपण एक अहम मील का पत्थर साबित होगा. भारत ने दो साल पहले ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने की इजाजत दी थी. जीतेंद्र सिंह ने कहा कि रॉकेट लॉन्च करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो के साथ समझौता करने वाला स्काईरूट पहला स्टार्ट-अप था.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में किए गए सुधारों के चलते स्टार्ट-अप कंपनियों के लिए विकास के नए रास्ते खुल गए हैं और बहुत ही छोटी सी अवधि में 102 स्टार्ट-अप सक्रिय हो गए हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. इनमें रॉकेट लॉन्च से लेकर, अंतरिक्ष में कचरे का प्रबंधन और नैनो-सैटेलाइट स्थापित करने जैसी अत्याधुनिक तकनीकें शामिल हैं.
विक्रम-एस के लॉन्च के लिए अभियान को प्रारंभ नाम दिया गया है. श्रीहरिकोटा से शुक्रवार दोपहर करीब 11 बजे इसे पृथ्वी की कक्षा की ओर छोड़ा जाएगा. लगभग 550 किलोग्राम वजनी विक्रम-एस सिंगल-स्टेज रॉकेट है जो अधिकतम 101 किलोमीटर की ऊंचाई तक जा सकता है. पूरे प्रक्षेपण का कुल समय लगभग 300 सेकंड्स का होगा, जिसके बाद यह रॉकेट समुद्र में जा गिरेगा.
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अंतरिक्ष और भारतीय निजी क्षेत्र
प्रारंभ अभियान सिर्फ तकनीक का प्रदर्शन करने के लिए है जो दिखाएगा कि भारत के निजी क्षेत्र में इसरो के कंधों को हल्का करने की कितनी क्षमता है.
स्काईरूट ने एक ट्वीट में कहा, "श्रीहरिकोटा के रॉकेट इंटिग्रेशन केंद्र में विक्रम-एस की एक झलक. यह ऐतिहासिक दिन के लिए तैयार हो रहा है.”
50 साल बाद चांद की ओर चला नासा
आखिरकार नासा का नया मून रॉकेट अपने सफर पर रवाना हो गया. इसके साथ ही अमेरिका चांद पर अपने अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है. 50 साल बाद नासा ने चांद की ओर कोई यान भेजा है.
तस्वीर: /AP Photo/picture alliance
तीन हफ्ते की अंतरिक्ष यात्रा
सबकुछ अच्छा रहा तो तीन हफ्ते की उड़ान के दौरान कैप्सूल चांद के चारों ओर एक बड़ी कक्षा में परिक्रमा करने के बाद दिसंबर में पृथ्वी पर प्रशांत महासागर में लौट आयेगा.
तस्वीर: /AP Photo/picture alliance
उड़ चला रॉकेट
लगभग एक साल की देरी के बाद बुधवार सुबह स्थानीय समय के अनुसार 1 बजे केनेडी स्पेस सेंटर से रॉकेट ने उड़ान भरी. काले आकाश में नारंगी आग और धुआं छोड़ते रॉकेट ने कुछ ही सेकेंड में 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ ली.
तस्वीर: Joe Skipper/REUTERS
पृथ्वी की कक्षा से बाहर
दो घंटे से भी कम समय में इसने ओरियन कैप्सूल को पृथ्वी की कक्षा से बाहर धकेल दिया. जहां से वह चांद की कक्षा की ओर अपने सफर पर चल निकला. कैप्सूल में तीन मानव पुतले भी भेजे गये हैं. इन पुतलों में कई तरह के सेंसर लगे हैं जो कंपन, झटके, रेडियेशन समेत कई और चीजों के आंकड़े जुटायेंगे.
तस्वीर: Joe Rimkus Jr./REUTERS
कई बार टला लॉन्च
पिछले तीन महीने में कई बार इस रॉकेट की उड़ान का कार्यक्रम बना लेकिन हर बार आखिरी वक्त में तकनीकी दिक्कतों की वजह से इसे टालना पड़ा. ईंधन का रिसाव एक बड़ी समस्या बन गया था. इसके अलावा सितंबर के आखिर में इयान चक्रवात की वजह से भी इसे भेजने का कार्यक्रम टाला गया. मंगलवार को भी रिसाव हुआ लेकिन समय रहते ठीक कर लिया गया.
तस्वीर: Steve Nesius/REUTERS
चांद पर इंसान
नासा ने फिर से चांद पर इंसान भेजने के लिए आर्टेमिस अभियान शुरू किया है. पौराणिक कथाओं में आर्टेमिस अपोलो की जुड़वां बहन का नाम है. नासा चार अंतरिक्षयात्रियों के साथ चांद की अगली यात्रा की तैयारी कर रहा है जो 2024 में होगी. चांद पर इंसान को उतारने की योजना 2025 में पूरी हो सकती है.
तस्वीर: Heritage Images/picture alliance
ताकतवर रॉकेट
322 फुट यानी करीब 98 मीटर लंबा एसएलएस रॉकेट नासा का अब तक का बनाया सबसे ताकतवर रॉकेट है. इसने करीब 32 मंजिली इमारत जितनी ऊंची लॉन्च पैड से उड़ान भरी.
तस्वीर: Joe Skipper/REUTERS
चांद का चक्कर
ओरियन धरती से 370,000 किलोमीटर की यात्रा करके चांद के पास पहुंचेगा और चांद से करीब 130 किलोमीटर की दूरी पर रह कर एक विशाल कक्षा में उसके चक्कर लगायेगा. इस कक्षा का विस्तार करीब 64,000 किलोमीटर में है.
तस्वीर: Ted S. Warren/AP Photo/picture alliance
परीक्षण उड़ान
4.1 अरब डॉलर की लागत से हुई इस परीक्षण उड़ान की अवधि करीब 25 दिनों की है. अगली बार अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाते समय भी यह करीब इतने ही दिनों का होगा. इंसानों को चांद के पास ले जाने से पहले नासा रॉकेट और कैप्सूल के मार्ग में आने वाली सारी बाधाओं को समझ लेना चाहती है.
तस्वीर: Jim Watson/AFP/Getty Images
चांद पर नासा का ठिकाना
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी इस परियोजना पर 2025 तक करीब 93 अरब डॉलर खर्च करने वाली है. इस सारी कवायद का मकसद आखिर में चांद पर एक ठिकाना बनाना और वहां से मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजना है. यह काम 2030 के दशक के आखिर से लेकर 2040 के दशक के शुरुआती सालों तक हो सकता है.
तस्वीर: NASA
नासा की दिक्कतें
नासा ने कुछ समस्याएं सुलझा ली हैं लेकिन अभी कई बाधाओं से जूझना है. ओरियन कैप्सूल चांद की परिक्रमा कर सकता है लेकिन चांद पर उतरेगा नहीं. नासा ने इलॉन मस्क की स्पेस एक्स को विशेष यान बनाने के लिए काम पर रखा है. यह यान यात्रियों को ओरियन से चांद की सतह तक लाएगा और वापस लायेगा. 2025 में चांद को उतारने की जिम्मेदारी इसी यान की होगी.
तस्वीर: Red Huber/AFP/Getty Images
नये अंतरिक्ष यात्री
परीक्षण उड़ान पूरी हो जाने के बाद नासा उन अंतरिक्ष यात्रियों की जानकारी देगी जो इसकी अगली उड़ान पर चांद के पास जायेंगे और जो उसके बाद की यात्रा में चांद पर उतरेंगे. नासा में फिलहाल जो 42 सक्रिय अंतरिक्ष यात्री हैं. इनमें 10 ऐसे ट्रेनी हैं. वे 50 साल पहले चांद की पहली यात्रा के समय पैदा भी नहीं हुए थे.
तस्वीर: AFP
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भारत का इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है. उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में उसे विशेष दर्जा हासिल है. उसने 34 देशों के लगभग 350 उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाया है. लेकिन दो साल पहले भारत सरकार ने इस क्षेत्र को निजी कंपनियो के लिए खोलने का ऐलान किया गया.
इसके लिए इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) की स्थापना की गई जिसका मकसद भारत में निजी कंपनियों को बराबर के मौके उपलब्ध कराना है. यही एजेंसी इसरो और निजी क्षेत्र के बीच संपर्क सूत्र का भी काम करती है. इसके अलावा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड और इंडियन स्पेस एसोसिएशन नाम के दो संगठन भी बनाए गए हैं जो अंतरिक्ष अनुसंधान को बढावा देने के लिए काम करेंगे.
बाजार का विस्तार
निजी क्षेत्र के आने से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में विदेशी निवेश के रास्ते खुले हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई निजी कंपनियों ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी कामयाबियां हासिल की हैं. इनमें बोइंग, स्पेसएक्स, सिएरा नेवादा और ब्लू ऑरिजिन जैसी कंपनियां शामिल हैं जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ सहयोग से कई शोध और अनुसंधान कार्यों में लगी हैं.
अंतरिक्ष में हुई डार्ट की टक्कर से झूम उठे नासा वैज्ञानिक
पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर नासा के एक रॉकेट ने जब उल्कापिंड को टक्कर मारी तो मानवजाति के भविष्य ने एक नई दिशा में कदम रखा. इसीलिए नासा वैज्ञानिक टक्कर होते ही खुशी से झूम उठे.
तस्वीर: ASI/NASA/AP/dpa/picture alliance
डायमॉरफस से जा टकराया डार्ट
27 सितंबर को अमेरिकी अंतरिक्षएजेंसी नासा का 33 करोड़ डॉलर यानी लगभग 26 अरब रुपये से बना एक अंतरिक्ष यान डार्ट उल्कापिंड डायमॉरफस से जा टकराया.
तस्वीर: ASI/NASA/AP/dpa/picture alliance
पृथ्वी को बचाने के लिए
यह टक्कर विशाल पैमाने पर पहली बार किए गए एक प्रयोग का हिस्सा है जिसके जरिए भविष्य में आने वाली ऐसी किसी आपदा से पृथ्वी को बचाने की संभावनाएं आंकी जा रही हैं.
तस्वीर: NASA/UPI Photo/Newscom/picture alliance
क्या है डार्ट?
डबल एस्ट्रॉयड रीडाइरेक्शन टेस्ट यानी डार्ट (DART) नाम के इस अभियान के जरिए अंतरिक्ष विज्ञानी यह सीखना चाहते हैं कि अगर कोई उल्कापिंड पृथ्वी से टकराने के लिए इस ओर बढ़ रहा है तो उसका रास्ता बदला जा सकता है या नहीं.
तस्वीर: NASA/Johns Hopkins APL via CNP/Consolidated News Photos/picture alliance
छोटा सा चांद
इस अभियान के लिए वैज्ञानिकों ने डायमॉरफोस नामक उल्कापिंड को चुना था. इसे मूनलेट यानी नन्हा चांद भी कहा जाता है. यह पृथ्वी के नजदीक ही एक अन्य विशाल उल्कापिंड डिडायमॉस नामक उल्कापिंड का चक्कर लगा रहा है.
तस्वीर: ASI/NASA/AP/dpa/picture alliance
कुछ अद्भुत हासिल हुआ
इस टक्कर के नतीजे मिलने में अभी वैज्ञानिकों को कुछ हफ्ते लगेंगे लेकिन नासा अधिकारी डॉ. लॉरी ग्लेस ने कहा उन्हें पूरा यकीन है, कुछ अद्भुत हासिल हुआ है.
तस्वीर: NASA via AP/picture alliance
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एमरजेन रिसर्च के एक अध्ययन के मुताबिक 2028 तक अंतरिक्ष अनुसंधान का बाजार 630 अरब डॉलर को पार कर जाएगा. इस बाजार में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करन के मकसद से बड़ी तादाद में निजी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं. इनमें एमेजॉन और स्पेस एक्स जैसी कंपनियों की तो चांद और मंगल पर बेस बनाने जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शामिल हैं. इसके अलावा अंतरिक्ष पर्यटन का क्षेत्र भी तेजी से विकास कर रहा है. विक्रम-एस के लॉन्च के साथ भारत का निजी क्षेत्र भी इस बाजार में अपनी दावेदारी की शुरुआत कर देगा.