स्पेस एक्स का रॉकेट लैंडिंग के दौरान विस्फोट से तबाह
१० दिसम्बर २०२०
स्पेस एक्स का एक रॉकेट परीक्षण उड़ान पूरी करने के बाद लैंडिंग के दौरान विस्फोट के बाद शोलों में तब्दील हो गया. इलॉन मस्क ने इस कोशिश को सफल बताया है. यह रॉकेट मानवरहित था.
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मशहूर उद्योगपति और स्पेस एक्स के मालिक इलॉन मस्क ने स्टारशिप रॉकेट की उड़ान के पहले ट्वीट किया "मंगल ग्रह, हम आ रहे हैं." स्टारशिप रॉकेट के जरिए कंपनी भविष्य में लोगों को मंगल गृह पर ले जाने की योजना बना रही है. बुधवार को परीक्षण उड़ान के बाद स्टारशिप रॉकेट लैंडिंग के दौरान आग के गोले में तब्दील हो गया और विस्फोट के बाद रॉकेट पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया. कंपनी ने ट्वीट कर लैंडिंग का वीडियो भी साझा किया है. जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि रॉकेट जब धरती की ओर आ रहा था तो उसमें आग लगती है और उसके बाद विस्फोट होता है.
परीक्षण उड़ान करीब साढ़े छह मिनट चली और उड़ान के दौरान स्टारशिप कई मीलों तक ऊपर गई और लैंडिंग से पहले लौटते समय रॉकेट ने गुलाटी मारी. स्टारशिप के इंजन को लैंडिंग से कुछ सेकंड पहले ही फिर से शुरू किया गया ताकि रॉकेट की गति को धीमा किया जा सके. हालांकि ऐसा हुआ नहीं और रॉकेट आग के शोलों में बदल गया. भविष्य में स्टारशिप इंसानों और माल को मंगल गृह तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
इलॉन मस्क ने कहा है कि तेल टैंक में कम दबाव के कारण टचडाउन के वक्त गति बहुत अधिक थी लेकिन उनकी टीम ने वह सभी आंकड़े हासिल कर लिए हैं जिसकी उन्हें जरूरत थी. रॉकेट ने करीब 13 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भरी जो कि पहले की कोशिश से करीब 100 गुना अधिक है.
टेक्सास के बोका चिका में इससे पहले मंगलवार को परीक्षण उड़ान आखिरी पल में रद्द कर दी गई थी. यह रॉकेट 160 फीट ऊंचा था और इसमें तीन रैप्टर इंजन लगे हुए थे. विस्फोट के बाद रॉकेट का मलबा लैंडिंग पैड के आसपास बिखर गया.
मस्क कह चुके हैं कि उन्हें उम्मीद है कि मंगल गृह पर इंसान को अगले छह वर्षों में उनकी कंपनी उतार देगी.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यह पांचवा मार्स रोवर उसका आज तक का सबसे बड़ा और भारी अभियान है. फरवरी 2021 में यह मंगल पर उतरने वाला है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
एटलस V रॉकेट की सवारी
नासा के इंजीनियरों ने जुलाई 2020 की शुरुआत में ही मार्स रोवर को एटलस V रॉकेट पर लोड कर दिया. ‘परसिवरेंस’ अमेरिका के फ्लोरिडा से 30 जुलाई को छोड़ा जाना है
तस्वीर: NASA
करीब से ऐसे दिखता है
नासा का यह पांचवा रोवर मंगल पर पहले से काम कर रहे ‘क्यूरियोसिटी’ रोवर की मदद करेगा. इसका वजन क्यूरियोसिटी से करीब एक टन ज्यादा है और इसकी लंबाई 3 मीटर (10 फीट) है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
रोवर में क्या क्या है
कई रिसर्च उपकरण और सेंसर के अलावा इसकी भुजाओं पर 23 कैमरे और दूसरे कई टूल लगे हैं. इन्हीं की मदद से मंगल पर हर तरह के सैंपल इकट्ठे किए जाएंगे. मंगल की चट्टानों से ऑक्सीजन निकालने की संभावना तलाशना मिशन का एक अहम लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
मंगल पर हेलिकॉप्टर
पहली बार किसी ग्रह पर भेजे जाने वाले ऐसे अभियान में रोवर के साथ साथ एक हेलीकॉप्टर भी भेजा जा रहा है. मंगल पर गुरुत्व बल धरती का करीब एक तिहाई होता है और ऐसे में हेलिकॉप्टर की उड़ान से कई नई जानकारियां हासिल करने का लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/Cory Huston
तीन पीढ़ियां एक साथ
सबसे छोटा है सोजोर्नर, जो केवल 10.6 किलोग्राम भारी था. फिर 185 किलो वजन वाला ऑपर्चुनिटी और 900 किलो भारी क्यूरियोसिटी रोवर. छोटे की स्पीड एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड तो वहीं बड़े रोवरों की स्पीड भी चार से पांच सेंटीमीटर प्रति सेकंड ही होती है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
भविष्य के रास्ते खोलने वाले मिशन
सोजोर्नर से मिली सीख के कारण 2004 में उसी के मॉडल पर स्पिरिट और ऑपर्चुनिटी रोबोट भेजे गए. स्पिरिट ने छह साल तक काम किया और ऑपर्चुनिटी से तो 13 फरवरी, 2019 को जाकर संपर्क टूटा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लाल ग्रह की दुनिया
मंगल की सतह की यह तस्वीर क्यूरियोसिटी ने अपने कैमरे में कैद की थी. वह अब भी काम कर रहा है और अगले पांच साल या उससे भी लंबे समय तक सक्रिय रह सकता है. फिलहाल मंगल ग्रह पर केवल रोबोटों ने ही कदम रखा है लेकिन भविष्य असीम संभावनाओं से भरा है.