देश में स्कूल बंद है और वहां पढ़ने वाले बच्चे ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कुछ बच्चे ऑनलाइन कक्षा नहीं ले पा रहे हैं. कुछ जगहों पर "जुगाड़" के सहारे बच्चों को किताब के करीब लाया जा रहा है.
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महाराष्ट्र के डंडवाल के एक गांव में सुबह की बारिश के बीच स्कूली बच्चों का समूह मिट्टी के फर्श पर बैठा है और उनके ऊपर लकड़ी और बांस से बनी छत है, महीनों बाद बच्चे अपनी पहली क्लास के लिए इकट्ठा हुए हैं. यहां कोई शिक्षक मौजूद नहीं है बस एक आवाज है जो लाउडस्पीकर के जरिए आ रही है. बच्चों को रिकॉर्डेड सबक देने के लिए एक गैर लाभकारी संस्था ने छह गांवों में यह शुरूआत की है. चार महीनों से देश के स्कूल कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए बंद हैं. संस्था का लक्ष्य इस तरह से एक हजार बच्चों तक शिक्षा को पहुंचाना है. इस पहल के तहत बच्चे कविता सुनाते हैं और सवालों का जवाब देते हैं. कुछ बच्चे लाउडस्पीकर को 'स्पीकर भाई' या 'स्पीकर बहन' पुकारते हैं.
बच्चों के समूह में पढ़ने वाली 11 साल की ज्योति खुश हो कर कहती है, "मुझे स्पीकर भाई के साथ पढ़ना पसंद है." गैर लाभकारी संस्था के सदस्यों ने पिछले हफ्ते कई गांवों में स्पीकर लगाकर बच्चों को पढ़ाया. पहले से निर्धारित जगह और शारीरिक दूरी का पालन करते हुए बच्चे इस खास स्पीकर के इंतजार में थे. दिगंता स्वराज फाउंडेशन की प्रमुख श्रद्धा श्रृंगारपुरे कहती हैं, "हम सोच रहे थे कि क्या बच्चे और उनके माता-पिता एक लाउडस्पीकर को शिक्षक के रूप में स्वीकार करेंगे."
श्रृंगारपुरे एक दशक से भी अधिक समय से आदिवासी क्षेत्र में विकास का कार्य करती आ रही हैं. वो बताती हैं कि 'बोलकी शाला' या 'बोलता स्कूल' कार्यक्रम को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है जो उत्साहजनक है. यह कार्यक्रम उन बच्चों तक पहुंचता है जो अपने परिवार में स्कूल जाने वालों में पहले हैं. बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ सोशल स्किल और अंग्रेजी भाषा भी सिखाई जाती है. श्रृंगारपुरे कहती हैं, "इन बच्चों को उनके परिवार से कोई मार्गदर्शन नहीं हासिल है, वे खुद से ही सबकुछ कर रहे हैं."
शहरों के कई बच्चे तो ऑनलाइन क्लास में शामिल हो रहे हैं लेकिन डंडवाल जैसे क्षेत्र जहां टेलीकॉम नेटवर्क खराब है और बिजली की सप्लाई कई बार ठप हो जाती है, वहां के बच्चों ने कई महीनों से अपनी किताब खोली तक नहीं हैं. संगीता येले अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें मोबाइल क्लास में शामिल होने के लिए प्रेरित करती हैं. येले कहती हैं, "स्कूल बंद होने की वजह से मेरे बेटा जंगलों में भटकता था. बोलकी शाला हमारे गांव तक पहुंच गया और मैं बहुत खुश हूं. मुझे खुशी होती है कि मेरा बेटा गाना गा सकता है और कहानी सुना सकता है."
दुनिया ने शिक्षा के तमाम लक्ष्य तय किए हैं लेकिन दुनिया के कई देश शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. हालांकि कुछ ऐसे देश भी हैं जहां ये टीचर-स्टूडेंट अनुपात सबसे अच्छा है. मतलब इन देशों में शिक्षकों की कोई कमी नहीं है.
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10. पोलैंड
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि देश में साक्षरता दर तकरीबन 99.8 फीसदी है. प्राइमरी स्कूलों में हर 10 बच्चों पर यहां एक शिक्षक है. आंकड़ों के मुताबिक देश की शिक्षा प्रणाली काफी विकसित है और स्कूलों में बच्चों पर पूरा ध्यान दिया जाता है.
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9. आइसलैंड
मानवाधिकारों के मामले में अच्छा देश माने जाने वाला आइसलैंड शिक्षा और साक्षरता के स्तर में काफी आगे है. यहां भी हर 10 स्कूली बच्चों पर 1 शिक्षक मौजूद है. देश में 6 से 16 साल तक के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. आइसलैंड में हर बच्चे को पूरी तरह से मुफ्त और अच्छी शिक्षा का अधिकार प्राप्त है.
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8. स्वीडन
स्वीडन की शिक्षा प्रणाली बेहद उन्नत और विकसित मानी जाती है जिसकी बानगी देश के उच्च साक्षरता दर में साफ झलकती है. शिक्षा प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चे को ऐसी शिक्षा मिले जिससे उसका चहुंमुखी विकास हो. यही कारण है कि स्वीडन के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या सबसे अधिक है. यहां भी तकरीबन हर 9-10 बच्चों पर एक शिक्षक होता है.
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7. एंडोरा
फ्रांस और स्पेन के पास बसे इस यूरोपीय देश की साक्षरता दर तकरीबन 100 फीसदी है. देश में 6-16 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. स्थानीय भाषा एंडोरन के अलावा फ्रेंच और स्पेनिश भाषा भी यहां के स्कूलों में पढ़ाई जाती है. यहां के प्राइमरी स्कूलों में हर 9 छात्रों पर एक शिक्षक है.
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6. क्यूबा
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि इस देश की साक्षरता दर 99.7 फीसदी है. यहां सरकार अपने बजट का 10 फीसदी हिस्सा देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित करती है. प्राइमरी स्तर तक की स्कूली शिक्षा अनिवार्य है. यहां भी हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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5. लक्जमबर्ग
पश्चिमी यूरोप के इस छोटे से देश लक्जमबर्ग में शिक्षा प्रणाली बेहद संगठित है. यहां 4-16 साल के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. देश के अधिकतर स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दी जाती है. यहां भी हर नौ छात्रों पर एक शिक्षक होता है.
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4. कुवैत
साल 2013 में जारी विश्व बैंक के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य एशियाई देश कुवैत में साक्षरता दर 96 फीसदी है. यहां प्राइमरी और इंटरमीडिएट स्तर तक की शिक्षा कानूनी रूप से अनिवार्य है. देश की नागरिकता प्राप्त बच्चों के लिए सरकारी स्कूल में शिक्षा मुफ्त है. प्राइमरी स्तर के स्कूलों में यहां हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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3. लिष्टेनश्टाइन
जर्मन भाषा बोलने वाले मध्य यूरोप के इस देश में वयस्क साक्षरता दर लगभग 100 फीसदी है. देश न केवल अपनी अच्छी स्कूली शिक्षा के लिए जाना जाता है बल्कि यहां शिक्षकों को अच्छा वेतन भी मिलता है. देश की कुल जनसंख्या साल 2013 के आंकड़ों मुताबिक महज 36 हजार के करीब है.
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2. बरमूडा
कैरेबियाई द्वीप बरमूडा भी साक्षरता के मामले में काफी आगे है. देश की वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. देश में 5-18 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. साथ ही देश के 60 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. देश के प्राइमरी स्कूलों में हर सात छात्र पर एक शिक्षक है.
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1. सैंट मैरिनो
चारों ओर इटली से घिरे इस छोटे से देश में वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. यहां हर छह छात्रों पर एक शिक्षक है. इस देश की शिक्षा व्यवस्था इटली की शिक्षा व्यवस्था पर आधारित है.