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समाज

बच्चों को "लाउडस्पीकर भैया" पढ़ाए पाठ

४ अगस्त २०२०

देश में स्कूल बंद है और वहां पढ़ने वाले बच्चे ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कुछ बच्चे ऑनलाइन कक्षा नहीं ले पा रहे हैं. कुछ जगहों पर "जुगाड़" के सहारे बच्चों को किताब के करीब लाया जा रहा है.

तस्वीर: DW/P. Samanta

महाराष्ट्र के डंडवाल के एक गांव में सुबह की बारिश के बीच स्कूली बच्चों का समूह मिट्टी के फर्श पर बैठा है और उनके ऊपर लकड़ी और बांस से बनी छत है, महीनों बाद बच्चे अपनी पहली क्लास के लिए इकट्ठा हुए हैं. यहां कोई शिक्षक मौजूद नहीं है बस एक आवाज है जो लाउडस्पीकर के जरिए आ रही है. बच्चों को रिकॉर्डेड सबक देने के लिए एक गैर लाभकारी संस्था ने छह गांवों में यह शुरूआत की है. चार महीनों से देश के स्कूल कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए बंद हैं. संस्था का लक्ष्य इस तरह से एक हजार बच्चों तक शिक्षा को पहुंचाना है. इस पहल के तहत बच्चे कविता सुनाते हैं और सवालों का जवाब देते हैं. कुछ बच्चे लाउडस्पीकर को 'स्पीकर भाई' या 'स्पीकर बहन' पुकारते हैं.

बच्चों के समूह में पढ़ने वाली 11 साल की ज्योति खुश हो कर कहती है, "मुझे स्पीकर भाई के साथ पढ़ना पसंद है." गैर लाभकारी संस्था के सदस्यों ने पिछले हफ्ते कई गांवों में स्पीकर लगाकर बच्चों को पढ़ाया. पहले से निर्धारित जगह और शारीरिक दूरी का पालन करते हुए बच्चे इस खास स्पीकर के इंतजार में थे. दिगंता स्वराज फाउंडेशन की प्रमुख श्रद्धा श्रृंगारपुरे कहती हैं, "हम सोच रहे थे कि क्या बच्चे और उनके माता-पिता एक लाउडस्पीकर को शिक्षक के रूप में स्वीकार करेंगे."

श्रृंगारपुरे एक दशक से भी अधिक समय से आदिवासी क्षेत्र में विकास का कार्य करती आ रही हैं. वो बताती हैं कि 'बोलकी शाला' या 'बोलता स्कूल' कार्यक्रम को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है जो उत्साहजनक है. यह कार्यक्रम उन बच्चों तक पहुंचता है जो अपने परिवार में स्कूल जाने वालों में पहले हैं. बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ सोशल स्किल और अंग्रेजी भाषा भी सिखाई जाती है. श्रृंगारपुरे कहती हैं, "इन बच्चों को उनके परिवार से कोई मार्गदर्शन नहीं हासिल है, वे खुद से ही सबकुछ कर रहे हैं."

शहरों के कई बच्चे तो ऑनलाइन क्लास में शामिल हो रहे हैं लेकिन डंडवाल जैसे क्षेत्र जहां टेलीकॉम नेटवर्क खराब है और बिजली की सप्लाई कई बार ठप हो जाती है, वहां के बच्चों ने कई महीनों से अपनी किताब खोली तक नहीं हैं. संगीता येले अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें मोबाइल क्लास में शामिल होने के लिए प्रेरित करती हैं. येले कहती हैं, "स्कूल बंद होने की वजह से मेरे बेटा जंगलों में भटकता था. बोलकी शाला हमारे गांव तक पहुंच गया और मैं बहुत खुश हूं. मुझे खुशी होती है कि मेरा बेटा गाना गा सकता है और कहानी सुना सकता है."

एए/सीके (रॉयटर्स)

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