दुनिया के मर्दों में शुक्राणुओं की संख्या आधी हो गई
१६ नवम्बर २०२२
दुनिया भर के पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या तेजी से नीचे जा रही है. बीते 40 सालों में यह घट कर आधी रह गयी है. एक बड़ी रिसर्च के जरिये यह बात सामने आई है. इस पर चिंता जताते हुए इसका समाधान निकालने की मांग की गई है.
पुरुषों में तेजी से घट रहे हैं शुक्राणुतस्वीर: Colourbox
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इस्राएली महामारीविद् हगाई लवीने के नेतृत्व में हुई स्टडी ने 2017 में हुई एक रिसर्च का अपडेट दिया है. तब यह स्टडी सिर्फ उत्तरी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लोगों पर की गई थी. नई स्टडी में 53 देशों के 57,000 पुरुषों पर की गई 223 रिसर्चों के नतीजे को शामिल किया गया है. इस तरह से यह इस मुद्दे पर की गई अब तक की सबसे बड़ी रिसर्च और विश्लेषण बन गई है.
शुक्राणुओं की संख्या 51 फीसदी घटी
नये देशों को शामिल करने के बाद इसने बीते चार दशकों में शुक्राणुओं की संख्या आधी होने की जानकारी की पुष्टि कर दी है. सबसे पहले 2017 के रिसर्च में यह बात पता चली थी. 1973 से ले कर 2018 तक के बीच पुरुषों के शुक्राणुओं की संख्या में 51 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. ये वो पुरुष हैं जो नपुंसक नहीं हैं. नई रिसर्च में पता चला कि इनके प्रति मिलीलीटर वीर्य में 10.12 करोड़ शुक्राणुओं की जगह सिर्फ 4.9 करोड़ शुक्राणु ही मौजूद थे.
ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है, "इसके साथ ही आंकड़े बता रहे हैं कि दुनिया भर में इसकी कमी का यह दौर 21वीं सदी में और ज्यादा तेजी से जारी है." रिसर्च में पता चला है कि शुक्राणुओं की संख्या में हर साल लगभग 1.1 फीसदी की दर से कमी आ रही है. रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले में तुरंत और ज्यादा कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि, "पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य में और बाधा आने से रोका जा सके."
53 देशों के 57,000 लोगों पर रिसर्च के बाद शुक्राणुओं में तेजी से आती कमी का पता चला हैतस्वीर: JAAFAR ASHTIYEH/AFP/ Getty Images
फर्टिलिटी पर असर
शुक्राणुओ की संख्या वह अकेला कारण नहीं है जो फर्टिलिटी को प्रभावित करता है. शुक्राणुओं की गतिशीलता भी इसमें काफी असर डालती है लेकिन इस रिसर्च में इसकी जांच नहीं की गई.
शुक्राणुओं की 4.9 करोड़ की संख्या भी विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यूएचओ के मानकों के लिहाज से "सामान्य" मानी जाती है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1.5 करोड़ से 2.0 करोड़ प्रति मिलीलीटर शुक्राणु सामान्य है.
स्कॉटलैंड यूनिवर्सिटी में रिप्रोडक्टिव मेडिसिन की विशेषज्ञ सारा मार्टिंस दा सिल्वा का कहना है कि यह दिखाता है कि साल 2000 के बाद शुक्राणुओं की संख्या में कमी दोगुनी हो गई है.
धरती पर होमो सेपिएंस यानी आधुनिक मानव करीब 3 लाख साल पहले आया. मंगलवार, 15 नवंबर को धरती पर मानव की आबादी 8 अरब को पार कर गई. आंकड़ों में देखिये इस सफर की कहानी.
तस्वीर में दिख रहे होमो इरेक्टस के रूप में मानव का धरती पर सफर करीब 18.9 लाख साल पहले शुरू हुआ.11 लाख साल पहले यह लुप्त हो गये. करीब 3 लाख साल पहले होमो सेपिएंस यानी आधुनिक मानव की उत्पत्ति हुई. वर्तमान में पृथ्वी के कोने कोने में मानव की सारी प्रजाति है वह होमो सेपिएंस है.
ईसा पूर्व 10 हजार साल तक धरती पर सिर्फ 60 लाख होमो सेपिएंस थे जो ईसा पूर्व 2,000 में 1 करोड़ और ईसा बाद पहली शताब्दी में 2.5 करोड़ तक पहुंचे. धरती पर होमो सेपिएंस की संख्या एक से एक अरब तक पहुंचने में लाखों साल लगे. मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि सन 1803 में धरती पर एक अरब होमो सेपिएंस हो गये थे.
औद्योगिक विकास और जीवन स्तर में सुधार के चलते इंसान का विकास बड़ी तेजी से हुआ और महज 33 साल में ही एक अरब और लोग जुड़ गये. साल 1960 में दुनिया की आबादी 3 अरब हो गई.
तस्वीर: Rajanish Kakade/AP/dpa/picture alliance
15 साल बाद 4 अरब
विश्वयुद्ध के बाद के दौर में दुनिया तुलनात्मक रूप से थोड़ी शांत थी और इस दौर में इंसान की आबादी और तेजी से बढ़ी महज 15 साल में ही एक अरब लोग और जुड़ गये.
तस्वीर: Antonio Pisacreta/ROPI/picture alliance
हर 12 साल में एक अरब
पांचवें, छठे और सातवें अरब की हर सीढ़ी इंसानों ने 12 साल में पा कर ली. इस तरह से दुनिया की आबादी 1987 में पांच, 1999 में छह और 2011 में सात अरब पहुंच गई.
तस्वीर: Larry MacDougal/CANADIAN PRESS/picture alliance
11 साल बाद 8 अरब
धरती पर इस समय सबसे ज्यादा इंसान मौजूद है और सबसे कम समय में एक अरब की आबादी जुड़ गई है लेकिन इसके बाद यह समय लंबा होगा.
तस्वीर: Adekunle Ajayi/NurPhoto/picture alliance
आबादी में आधा इजाफा केवल 8 देशों से
केवल आठ देशों से ही दुनिया की आबादी में बढ़ोत्तरी का आधा हिस्सा भर जा रहा है. ये देश हैं, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलिपींस और तंजानिया. यूरोप और अमेरिका की आबादी में ज्यादा फर्क आने के आसार नहीं हैं यह थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होगा लेकिन एशिया और अफ्रीका में इसका बढ़ना जारी रहेगा.
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चीन में आबादी का बढ़ना रुका
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन में आबादी का बढ़ना अब रुक गया है, आने वाले सालों में इसके घटने के आसार हैं. अगले साल तक भारत चीन से आबादी में आगे होगा और अभी कुछ सालों तक वहां आबादी बढ़ेगी.
तस्वीर: Jia Minjie/Xinhua/dpa/picture alliance
9 अरब तक 15 साल बाद
दुनिया भर में मानव आबादी बढ़ने की जो दर है उसमें हुए बदलावों को देख कर संयुक्त राष्ट्र ने 2037 तक इसके 9 अरब तक पहुंचने अनुमान लगाया है. हालांकि इसके बाद आबादी के विकास की गति काफी धीमी पड़ जायेगी. 2080 तक दुनिया की आबादी 10.4 अरब पर पहुंचने की उम्मीद है.
तस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images
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दा सिल्वा इस रिसर्च में शामिल नहीं थीं लेकिन उनका कहना है, "हम वास्तव में नहीं जानते कि ऐसा क्यों हो रहा है. प्रदूषण, प्लास्टिक, धूम्रपान, नशीली दवाएं और पर्चे पर मिलने वाली दवाओं के साथ ही जीवनशैली, जैसे कि मोटापा और खराब पोषण ये सब इसमें योगदान देने वाले हो सकते हैं हालांकि इसके असर के बारे में ज्यादा समझ नहीं है और ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता."
फर्टिलिटी पर असर
दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि नई स्टडी से 2017 के बारे में उनकी आशंकाओं का समाधान नहीं हुआ है. ब्रिटेन की शेफिल्ड यूनिवर्सिटी के एलन पेसी का कहना है, "मैं आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर अब भी चिंतित हूं खासतौर से बहुत पीछे के समय के." यह विश्लेषण इन्हीं आंकड़ों पर आधारित है.
पेसी ने इस विश्लेषण को सहज बताया. उनका मानना है कि अब वैज्ञानिक शुक्राणुओं की गणना के मुश्किल काम में पहले से बहुत बेहतर हुए हैं और यह भी संख्या में कमी की एक वजह हो सकती है. हालांकि मार्टिंस दा सिल्वा रिसर्च के नतीजों की आलोचना को यह कहते हुए खारिज करती हैं कि "संख्या और लगातार खोजों की अनदेखी करना मुश्किल है."