अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में गवर्नर के आवास के अंदर एक नई ऐतिहासिक चीज को प्रदर्शनी पर रखा गया है. यह प्रदर्शनी है उस पूर्व अमेरिकी सैन्य अड्डे की दीवार के टुकड़ों की जिसे तालिबान ने उड़ा दिया था.
विज्ञापन
कंक्रीट के इन टुकड़ों में से एक पर गजनी में पूर्व में तैनात किए गए अमेरिकी सैनिकों के नाम और उनके रेजिमेंटों के नाम खुदे हुए हैं. जैसा कि इतिहास में अक्सर होता आया है, यहां भी अमेरिकी सैनिक अपने अड्डों और तैनाती के स्थानों की दीवारों पर अपना नाम लिख देते थे.
लेकिन अब 20 साल की लड़ाई के बाद अमेरिकी और दूसरी सेनाओं को हराने की कहानी को और मजबूती देने के लिए इस ऊंची दीवार को नुमाइश के लिए रखा गया है.
इतिहास के लिए
प्रांत में तालिबान के संस्कृति प्रमुख मुल्ला हबीबुल्ला मुजाहिद कहते हैं, "हमें यह दिखाना है ताकि अफगानिस्तान और दुनिया के लोग और आने वाली पीढ़ियां यह जान सकें कि खुद को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत कहने वाले अमेरिकियों को हराया है."
गजनी काबुल से 150 किलोमीटर दूर स्थित है और तालिबान के लड़ाकों ने इसे 15 अगस्त 2021 को काबुल पर कब्जा करने से तीन दिन पहले ही फतह कर लिया था. इस इलाके का 3,500 सालों का समृद्ध इतिहास है और अब तालिबान अपनी सैन्य जीत के सबूत की मदद से इसका सबसे नया अध्याय लिख रहा है.
प्रचार के ऐसे नए कदम ऐसे समय में उठाए जा रहे हैं जब अफगानिस्तान के नए शासक लड़ाकों से प्रशासक बनाने की कोशिश में लगे हैं और देश आर्थिक रूप से विनाश के कगार पर है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि देश की आधी से ज्यादा आबादी भीषण भूख का सामना कर रही है.
विज्ञापन
विदेशी साम्राज्यों पर जीत
लेकिन लगभग 2,00,000 की आबादी वाले गजनी शहर के बाहर सड़कों पर तालिबान की जीत की एक और अनौपचारिक स्मारक खड़ी कर दी गई है. यह है नष्ट की हुई अमेरिकी बख्तरबंद गाड़ियों के जंग खाते हुए अवशेष. गाड़ियों से उनके हथियार हटा दिए गए हैं, टायरों की हवा निकल गई है और वे घिस भी गए हैं.
इस कबाड़ में पूर्व में छोड़ दिए गए सोवियत टैंक भी हैं. बच्चे इसके आस पास खेलते हैं और कभी कभी तो गाड़ियों पर चढ़ भी जाते हैं. सोवियत संघ के लिए अफगानिस्तान पर चढ़ाई करने का अंत शर्मिंदगी में हुआ था और अफगान यहां आने वाले लोगों को अब तुरंत याद दिला रहे हैं कि देश ने अब तीन विदेशी साम्राज्यों को हरा दिया है.
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन को भी यहां शिकस्त का सामना करना पड़ा था. 18 साल के तालिबान के लड़ाके ओजैर कहते हैं, "हम जब इसे देखते हैं तब हमें अपनी उपलब्धि पर गर्व होता है." ओजैर की तरह देश में कई लोगों का कोई उपनाम नहीं है.
कबाड़ बन चुकी हम्वीयों और जली हुई दूसरी गाड़ियों को देखते हुए वो कहते हैं, "हमने दिखा दिया कि यहीं पैदा हुए अफगान अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को हरा सकते हैं."
क्या सच, क्या प्रचार
पूरे देश में अमेरिका की दो दशकों की मौजूदगी की याद दिलाने वाली कई चीजें बिखरी पड़ी हैं, जिनमें से कुछ अभी भी इस्तेमाल के लायक हैं. अफगान पुलिस और सैनिकों को भेंट में दिए हुए काफी सैन्य उपकरण अमेरिका समर्थित सरकार के आखिरी के अव्यवस्थित दिनों में तालिबान के पास पहुंच गए.
इन्हीं हथियारों, गाड़ियों और वर्दियों के अप्रत्याशित लाभ ने काबुल के नए शासकों को काफी ठोस लूट का सामान दे दिया है जिसे वे अपनी जीत के सबूत के रूप में दिखा रहे हैं. लेकिन इन सब चीजों को तालिबान की सत्ता में वापसी की विश्वसनीय श्रद्धांजलि के रूप में सजाना एक चुनौती बना हुआ है.
टूटी हुई दीवारों के पास खड़े मुल्ला हबीबुल्ला मुजाहिद गर्व से कहते हैं कि दीवार पर खुदे करीब 20 नामों में लड़ाई में मारे गए "महत्वपूर्ण कमांडरों और जनरलों" के नाम भी शामिल हैं. लेकिन उनके नामों के आगे जो रैंक लिखी है वो सब कनिष्ठ हैं और उनमें से कोई भी नाम युद्ध में मारे गए अमेरिकियों की सूचियों में नहीं है.
सीके/एए (एएफपी)
अफगान शरणार्थियों का स्वागत करता एक छोटा सा शहर
तालिबान के चंगुल से खुद को बचाकर काबुल से भागा एक परिवार अमेरिका के केंटकी राज्य के एक छोटे से शहर में आ पहुंचा है. देखिए कैसे ये शरणार्थी और यह शहर एक दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
काबुल से केंटकी तक
बोलिंग ग्रीन नाम का यह शहर शरणाथियों को पनाह देने के लिए जाना जाता है. काबुल से आया जदरान परिवार को इंटरनैशनल सेंटर नाम की स्थानीय पुनर्वास संस्था की मदद से यहां एक घर मिल गया है और बच्चों को एक स्कूल में दाखिला भी.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
कभी नेता, अब शरणार्थी
41 साल के वजीर खान जदरान अफगानिस्तान में एक कबायली नेता थे जिन्होंने तालिबान के हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. वो बताते हैं कि अगस्त 2020 में अमेरिकियों ने उन्हें और उनके परिवार को एक चिनूक हेलीकॉप्टर में बिठा कर काबुल हवाई अड्डे तक पहुंचाया, जहां से वो अफगानिस्तान छोड़ सके.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
बाहें फैलाने वाला शहर
जदरान और उनकी पत्नी नूरीना का बोलिंग ग्रीन में स्वागत हुआ है. इस शहर ने पिछले चार दशकों में कई शरणार्थियों को पनाह दी है. सबसे पहले 1980 के दशकों में कंबोडिया से शरणार्थी आए, फिर 90 के दशकों में बॉस्निया से. बाद में इराक, म्यांमार, रवांडा और फिर कॉन्गो जैसी जगहों से लोगों ने यहां बस कर मात्र 72,000 की आबादी के इस शहर को विविधताओं से भर दिया और आर्थिक रूप से संपन्न बना दिया.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
स्थानीय लोगों से मिली मदद
जदरान यहां खुश हैं. उनके छह बच्चे यहां स्कूल जा रहे हैं, अंग्रेजी में गाने सीख रहे हैं, लाइब्रेरी से किताबें उधार ले रहे हैं और उन्होंने सैंटा क्लॉस को चिट्ठियां भी लिखी हैं. जदरान कहते हैं, "हम बोलिंग ग्रीन में बहुत खुश हैं. स्थानीय लोग हमारी मदद कर रहे हैं और यहां की संस्कृति से हमारा परिचय करा रहे हैं."
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
घुलते-मिलते बच्चे
सुपरमैन की पोशाक पहने छह साल के सनाउल्ला खान जदरान, चार साल की जहरा जदरान और 13 साल के समीउल्ला खान जदरान खेल रहे हैं. यह वियतनाम युद्ध के बाद अमेरिकी सरकार का सबसे बड़ा शरणार्थी निकास कार्यक्रम है. इसके तहत अमेरिका में 75,000 लोगों को बसाया जाना है. उम्मीद है कि अकेले बोलिंग ग्रीन में ही 2022 में 350 अफगान आएंगे.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
अमेरिका से हो रहा परिचय
परिवार अमेरिका में रहने के तौर तरीके सीख रहा है, जैसे गाड़ी चलाना, क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करना जैसी चीजें. इसके अलावा जब बवंडर आए तो क्या करना है, वो भी. दिसंबर में केंटकी में जो बवंडर आए थे उन्होंने इस परिवार की सुरक्षा के एहसास को एक झटका दिया. जदरान कहते हैं, "हमने पहले कभी इस तरह का तूफान नहीं देखा था...हमें लगा जैसे हम फिर किसी युद्ध में जा रहे हों. लेकिन अल्लाह ने हमें बचा लिया."
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
सुरक्षा का एहसास
बवंडरों को हटा दें, तो जदरान परिवार सुरक्षित है और खुशकिस्मत है कि उसे स्वागत करने वाले लोगों के बीच बगीचे वाला एक घर मिल गया है. बोलिंग ग्रीन के नए निवासियों के लिए यहां कई नौकरियां भी हैं. यह कृषि और औद्योगिक गतिविधियों का एक केंद्र है जिसे शायद सबसे ज्यादा जाना जाता है जनरल मोटर्स कंपनी के असेंबली प्लांट के लिए जहां उसकी लोकप्रिय कोरवेट स्पोर्ट्स कार बनती है.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
ताकि अपनी पहचान भी बाकी रहे
बोलिंग ग्रीन शरणार्थियों को अपनी पहचान बरकरार रखने की भी इजाजत देता है. यहां सब अपना अपना धर्म भी मान सकते हैं और एक पारिवारिक जीवन जी सकते हैं.
तस्वीर: Amira Karaoud/Reuters
एक नई संस्कृति
जदरान परिवार में बच्चे तेजी से यहां की नई संस्कृति में ढल रहे हैं. सबसे बड़ी 15 साल की जुलेखा अपने भाई बहनों को अंग्रेजी गाना "व्हाट आर यू थैंकफुल फॉर" सीखा रही हैं. बच्चे अपने ही प्रदर्शन पर तालियां बजाते हैं और "हो गया!" कहती हुई सुलेखा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट खिल जाती है. (केविन मर्टेन्स, रॉयटर्स से जानकारी के साथ)