बिहार में पीले सोने की आंच से दागदार हो रही अफसरशाही
मनीष कुमार, पटना
२७ जुलाई २०२१
पीले सोने के नाम से विख्यात बिहार की सोन नदी की रेत (बालू) ने राज्य के नेताओं-नौकरशाहों की नींद हराम कर रखी है. मालामाल होने की राह में जैसे ही सरकार की कार्रवाई आ गई, भ्रष्टाचार की परतें उघड़ती चली गईं.
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बिहार में बालू के अवैध खनन में माफिया और अधिकारियों पर कार्रवाई हुी है. लेकिन, जैसा कि पहले भी होता रहा है, कार्रवाई की गाज अफसरों पर ही गिरी, सफेदपोश बच निकले. बालू के अवैध उत्खनन तथा माफिया से साठगांठ के आरोप में दो पुलिस अधीक्षकों (एसपी) समेत परिवहन, खान व भूतत्व, पुलिस तथा राजस्व व भूमि सुधार विभाग के 41 अधिकारियों को पदों से हटा दिया गया. इस संबंध में कार्रवाई अभी जारी है.
आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) द्वारा बालू लूट में संलिप्तता के आरोपी इन 41 अफसरों की संपत्ति की जांच की जाएगी और अवैध संपत्ति का साक्ष्य मिलने पर इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा. ईओयू ने इसके लिए तीन दर्जन अधिकारियों की टीम बनाकर कार्रवाई शुरू कर दी है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति वाले बिहार में किसी एक मामले में पहली बार इतने अधिकारियों के खिलाफ संपत्ति जांच की कार्रवाई की जा रही है.
दरअसल, दो साल पहले तक बिहार के 24 जिलों में बालू का खनन हो रहा था. इन जिलों में बालू घाटों की बंदोबस्ती की गई थी यानी सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को खनन का पट्टा दिया गया था. किंतु, 2020-24 की बंदोबस्ती के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं मिली. तब राज्य सरकार ने एक व्यवस्था के तहत 2015-19 के बालू ठेकेदारों को बंदोबस्ती की राशि में 50 फीसद की वृद्धि के साथ खनन की इजाजत दे दी.
लेकिन 14 जिलों के ठेकेदार ही इस व्यवस्था से बालू घाटों के संचालन के लिए सहमत हुए. साल 2021 के लिए 30 मार्च के बाद बंदोबस्त की पुरानी राशि में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बाद सरकार ने फिर से खनन का पट्टा दिया, लेकिन महज आठ जिलों के बंदोबस्त धारी ही इसके लिए तैयार हुए.
सरकारी व्यवस्था के अनुसार अब केवल नवादा, किशनगंज, बांका, मधेपुरा, वैशाली, बक्सर, बेतिया व अरवल में बालू खनन हो रहा है. किंतु वास्तविक स्थिति इसके उलट है. शेष 16 जिलों में भी बालू के अवैध उत्खनन का कार्य बदस्तूर जारी है. इससे बालू माफिया की चांदी हो गई है. सरकार के पास आठ जिले हैं तो उनके पास 16 जिले हैं.
अवैध कमाई का गणित
जानकार बताते हैं कि बालू खनन का मौजूदा तौर-तरीका ही अवैध कमाई को प्रोत्साहित करने वाला है. पिछले तीन साल में सरकार ने ठेके की राशि में ढाई गुणा वृद्धि की, किंतु सरकार की आमदनी घट गई. साफ है, बालू माफिया और अवैध कारोबारियों की आमदनी बढ़ती गई.
ऐसा इसलिए संभव हुआ कि इन इलाकों में ये वैध बंदोबस्त धारियों की दर से ही अवैध उत्खनन कर बालू की बिक्री करने लगे. बालू के इस खेल में जनता ने तो महंगा बालू खरीदा, लेकिन सरकार का राजस्व नहीं बढ़ा.
लूट की गणित का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रेत माफिया के दो माह के कमाई के बराबर सरकार के पूरे साल की आमदनी है. जाहिर है, जनता का पैसा इन लुटेरों की जेब में ही गया. सबसे बेहतर रेत के रूप में विख्यात सोन नदी के पीले बालू का सबसे बड़ा स्त्रोत भोजपुर जिले का कोईलवर क्षेत्र है. सरकार की नजर में इस इलाके में बालू का खनन नहीं हो रहा है, किंतु हकीकत में यहां तीन हजार से अधिक नावें रोजाना 12 करोड़ से अधिक का बालू लूटतीं हैं.
एक बड़ी नाव से सरकारी दर के आधार पर कम से कम 40,000 रुपये के राजस्व की चोरी होती है. बाजार में यही बालू माफिया चार से पांच गुणा ऊंची दर पर बेचते हैं, अर्थात 48 से 60 हजार रुपये की राशि प्रतिदिन उनकी जेब में जाती है. 2020-21 में सरकार को पूरे राज्य से महज 678 करोड़ रुपये की आय हुई, जो केवल कोईलवर के अवैध कारोबारियों के दो महीने की आय है.
सरकार को एक पैसा दिए बिना ये अपनी जेब भरते रहे. वैसे फिलहाल वैध बालू खनन पर भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक जून से रोक लगा रखी है. सरकारी दस्तावेजों में भले ही खनन बंद हो किंतु हकीकत में किसी जिले में बालू का खनन बंद नहीं है. रोज रेत ढोने वाली नावें, पोकलेन मशीनें अपने काम में लग जाती हैं.
आखिरकार यह सब नेताओं व पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत के बिना कैसे संभव है? प्रदेश के खान व भूतत्व मंत्री जनक राम भी मानते हैं कि अवैध खनन से सरकार को औसतन सात सौ करोड़ का सालाना नुकसान पहुंच रहा है जबकि राज्य सरकार के लिए बालू खनन ही राजस्व का सबसे बड़ा स्त्रोत है.
तस्वीरों मेंः रिश्वतखोरी में भारत अव्वल
रिश्वत के लेनदेन में भारत एशिया में सबसे आगे
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पाया है कि सभी एशियाई देशों में भारत में सबसे ज्यादा रिश्वत ली और दी जाती है. आखिर पिछले 12 महीनों में भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है या घटा?
तस्वीर: DW/P. Samanta
सबसे ऊंची रिश्वत की दर
इसी साल जुलाई से सितंबर के बीच एशिया के 17 देशों में 20,000 लोगों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया. भारत में 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी. ये एशिया में सबसे ऊंची रिश्वत की दर है. नेपाल में यह दर 12 प्रतिशत, बांग्लादेश में 24, चीन में 28 और जापान में दो प्रतिशत पाई गई.
तस्वीर: Catherine Davison
सबसे ज्यादा रिश्वत पुलिस को
सर्वेक्षण के लिए लोगों से छह सरकारी सुविधाओं से संबंधित उनके तजुर्बे के बारे में पूछा गया - पुलिस, अदालत, सरकारी अस्पताल, पहचान पत्र लेने की प्रक्रिया और बिजली, पानी जैसी सेवाएं. सबसे ज्यादा (42 प्रतिशत) लोगों ने माना कि उन्हें पुलिस को रिश्वत देनी पड़ी. पहचान पत्र और अन्य सरकारी कागजात लेने के लिए 41 प्रतिशत लोगों को रिश्वत देनी पड़ी.
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निजी संपर्कों का इस्तेमाल
पुलिस, अदालतें और कागजात हासिल करने जैसे कामों में निजी ताल्लुकात का इस्तेमाल करने की बात भी भारत में बड़ी संख्या (46 प्रतिशत) में लोगों ने मानी. यह दिखाता है कि प्रक्रियाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं जिसकी वजह से जान पहचान का सहारा लेना पड़ता है. चीन में यह दर 32 प्रतिशत है और जापान में चार प्रतिशत.
तस्वीर: DW/P. Tewari
चुनावी भ्रष्टाचार
एशिया में बड़ी मात्रा में रिश्वत ले कर वोट देने की बात भी लोगों ने मानी है. 18 प्रतिशत की दर के साथ भारत इसमें चौथे नंबर पर है. सबसे ऊपर हैं थाईलैंड और फिलीपींस, 28 प्रतिशत दर के साथ. 26 प्रतिशत की दर के साथ इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है.
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सेवा के बदले सेक्स
पहली बार सर्वेक्षण में सरकारी अधिकारियों द्वारा सेवा के बदले सेक्स मांगने को भी शामिल किया है. भारत में इसकी दर 11 प्रतिशत है. 18 प्रतिशत की दर के साथ इंडोनेशिया सबसे ऊपर है. श्रीलंका में यह दर 17 प्रतिशत है पाई गई और थाईलैंड में 15 प्रतिशत.
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बढ़ा है भ्रष्टाचार
भारत में 47 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पिछले 12 महीनों में भ्रष्टाचार बढ़ा है. नेपाल में ऐसा 58 प्रतिशत लोगों को लगता है, जबकि चीन में 64 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके देश में भ्रष्टाचार कम हुआ है.
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सरकार की छवि
भारत में भ्रष्टाचार बढ़ने के बावजूद 63 प्रतिशत लोगों को लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भारत का प्रदर्शन अच्छा है. म्यांमार में यह दर 93 प्रतिशत है और बांग्लादेश में 87.
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सरकार में विश्वास
भ्रष्टाचार की वजह से सरकार की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता है. भारत में 51 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सरकार पर या तो कम विश्वास है या बिल्कुल विश्वास नहीं है. जापान में ऐसा 56 प्रतिशत लोगों ने कहा.
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बोलने से डर
भारत में 63 प्रतिशत लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोला तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. बांग्लादेश में भी 63 प्रतिशत लोग ऐसा ही महसूस करते हैं.
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वह कहते हैं, ‘‘अवैध खनन पर रोक को लेकर लगातार जिला स्तर के अधिकारियों को लिखता रहा हूं. बालू माफिया और अधिकारियों के गठजोड़ के बारे में मुख्यमंत्री को भी बताया है. अंतत: अब ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई की जा रही है.''
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थानावार बढ़ती है कीमत
रेत की कालाबाजारी से मोटी कमाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भोजपुर में तीन हजार प्रति सीएफटी (वर्ग फुट) मिलने वाला बालू पश्चिम चंपारण जिले में 15 हजार रुपये में बिकता है. इसी तरह अरवल में 6,500 रुपये में मिलने वाला बालू पटना आते-आते 13 हजार का हो जाता है. साफ है जितने थाने से रेत ले जा रहा वाहन गुजरता है, उसी के अनुसार उसकी कीमत भी बढ़ती जाती है. और, बढ़ा हुआ यह पैसा तो सरकारी खजाने में जाता नहीं है.
उत्तर बिहार की नदियों के बालू की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती, इसलिए यहां बालू का खेल दक्षिण बिहार जैसा नहीं है. बालू की तस्करी के लिए औरंगाबाद जिला सबसे अधिक बदनाम है. यहां सोन, पुनपुन व बटाने नदी से बालू निकाला जाता है जो गाजीपुर, वाराणसी व फैजाबाद समेत अन्य जिलों में जाता है.
इसके बाद सबसे ज्यादा लूट भोजपुर में मची है. यहां बालू का उत्खनन करने वाली ब्राडसन कंपनी ने इस साल एक मई से काम बंद कर दिया. उसके अनुसार माफिया उसे यहां काम करने नहीं दे रहे थे. इसके बाद यहां बालू की लूट शुरू हो गई. इसे रोकने के लिए तीन सौ से अधिक छापेमारी की गईं, जिसके तहत करीब सवा सौ एफआइआर दर्ज किए गए, दो सौ से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हुई, करीब ढाई करोड़ से ज्यादा जुर्माना वसूला गया और एक हजार वाहन जब्त किए गए, किंतु बालू लूट का सिलसिला नहीं रूका.
केवल भोजपुर जिले में एक साल के अंदर 12 पुलिसकर्मियों को जेल जाना पड़ा है. यहां का बालू राज्य के अन्य जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश तक जाता है. यहां की खनन पट्टाधारी ब्राडसन कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी थी जिसे एक अरब 48 करोड़ 41 लाख में बंदोबस्त का ठेका मिला था.
जानकार बताते हैं कि ब्राडसन कंपनी को पर्दे के पीछे से सुभाष यादव चलाते हैं जिनका लालू परिवार से नजदीकी रिश्ता रहा है. हालांकि सुभाष यादव इससे इंकार करते रहे हैं. राजद के टिकट पर वह झारखंड के चतरा से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं.
तस्वीरों मेंः भारत के महाघोटाले
भारत के महाघोटाले
भारत में भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीति के केंद्र में है. यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही. फिर भ्रष्टाचार मुक्त शासन के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आयी. एक नजर भारत के अब तक के महाघोटालों पर.
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कोलगेट स्कैम
यूपीए टू के समय सामने आया कोलगेट घोटाला 1993 से 2008 के बीच सार्वजनिक और निजी कंपनियों को कम दामों में कोयले की खदानों के आवंटन का था. कैग (सीएजी) की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया था कि गलत आवंटन कर इन कंपनियों को 10,673 अरब का फायदा पहुंचाया गया था. इस घोटाले ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पर नकारात्मक असर डाला. हालांकि अदालत में यह घोटाला साबित नहीं हुआ.
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टूजी स्कैम
कंपनियों को गलत तरह से टूजी स्पैक्ट्रम आवंटित करने का यह महाघोटाला भी यूपीए सरकार के समय का है. कैग के एक अनुमान के मुताबिक जिस कीमत में इन स्पैक्ट्रमों को बेचा गया और जिसमें इसे बेचा जा सकता था उसमें 17.6 खरब रूपये का अंतर था. यानि देश को लगा कई खरब का चूना लगा. लेकिन अदालत में सीबीआई इसको साबित नहीं कर सकी. अदालत ने कहा कि कोई घोटाला ही नहीं हुआ.
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व्यापमं घोटाला
भाजपा शासित मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल की ओर से मेडिकल समेत अन्य सरकारी क्षेत्रों की भर्ती परीक्षा में धांधली से जुड़ा 'व्यापमं घोटाला' अब तक का सबसे जानलेवा घोटाला है. अब तक इससे जुड़े, इसकी जांच कर रहे या इस की खबर लिख रहे पत्रकारों समेत दर्जनों लोगों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो चुकी है.
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बोफोर्स घोटाला
स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तोपों की खरीद के सौदे में घूसखोरी का ये घोटाला भारतीय राजनीति का सबसे चर्चित घोटाला है. 410 तोपों के लिए कंपनी के साथ 1.4 अरब डॉलर का सौदा किया गया जो कि इसकी असल कीमतों का दोगुना था. अदालत ने राजीव गांधी को इस मामले से बरी कर दिया था.
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कफन घोटाला
2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौर में सामने आया यह घोटाला कारगिल युद्ध के शहीदों के ताबूतों से जुड़ा था. शहीदों के लिए अमेरीकी कंपनी ब्यूट्रॉन और बैजा से तकरीबन 13 गुना अधिक दामों में ताबूत खरीदे गए थे. हर एक ताबूत के लिए 2,500 डॉलर दिए गए.
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हवाला कांड
एलके आडवानी, शरद यादव, मदन लाल खुराना, बलराम जाखड़ और वीसी शुक्ला समेत भारत के अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं का नाम इस घोटाले में सामने आया. इस घोटाले में हवाला दलाल जैन बंधुओं के जरिए इन राजनेताओं को घूस दिए जाने का मामला था. इसकी जांच में सीबीआई पर कोताही बरतने के आरोप लगे और धीरे-धीरे तकरीबन सभी आरोपी बरी होते गए.
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शारदा चिट फंड
200 निजी कंपनियों की ओर से साझे तौर पर निवेश करने के लिए बनाए गए शारदा ग्रुप में हुआ वित्तीय घोटाला भी महाघोटालों में शामिल है. चिट फंड के बतौर जमा राशि को लौटाने के समय में कंपनी को बंद कर दिया गया. इस घोटाले में त्रिणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष जेल भजे गए. साथ ही बीजू जनता दल, बीजेपी और त्रिणमूल कांग्रेस के कई अन्य नेताओं की भी गिरफ्तारियां हुई हैं.
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ऑगस्टा वेस्टलैंड डील
इटली की हेलीकॉप्टर निर्माता फर्म ऑगस्टा वेस्टलैंड से 12, एडब्लू101 हेलीकॉप्टर्स की खरीददारी के इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कुछ भारतीय राजनीतिज्ञों और सेना के अधिकारियों पर घूस लेने के आरोप हैं. ऑगस्टा वेस्टलैंड के साथ इन 12 हेलीकॉप्टर्स के लिए ये सौदा 36 अरब रूपये में हुआ था.
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चारा घोटाला
करीब 9.4 अरब के गबन का चारा घोटाला भारत के मशहूर घोटालों में से एक है. यह घोटाला राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक अवसान की वजह बना. वहीं इस घोटाले से पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और शिवानंद तिवारी का भी नाम जुड़ा था.
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कॉमनवेल्थ
2010 में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ खेल, भारत में खेल जगत का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुए. इस खेल में अनुमानित तौर पर 70 हजार करोड़ रूपये खर्च किए गए. गलत तरीके से ठेके देकर, जानबूझ कर निर्माण में देरी, गैर वाजिब कीमतों में चीजें खरीद कर इस पैसे का दुरूपयोग किया गया था. इन अनियमितताओं के केंद्र में मुख्य आयोजनकर्ता सुरेश कल्माड़ी का नाम था.
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आखिरकार बालू की लूट को रोकने में नाकाम रहने के आरोप में सरकार ने दो पुलिस अधीक्षकों (एसपी), दो जिला परिवहन अधिकारियों (डीटीओ), पांच खनन पदाधिकारियों (माइनिंग अफसर), एक अनुमंडल अधिकारी (एसडीओ), पांच अंचल अधिकारियों (सीओ) तथा तीन एमवीआई समेत डेढ़ दर्जन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को एक बार में उनके पद से हटा दिया.
बताया जाता है कि ईओयू ने बालू माफिया से गठजोड़ के संबंध में करीब आधा दर्जन जिलों के पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका की जांच कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसके आधार पर कार्रवाई की गई.
बालू लूट पर नक्सलियों की भी नजर
जांच के क्रम में यह भी पता चला है कि लाल बालू की काली कमाई के खेल में नक्सलियों ने भी जोर-आजमाइश शुरू कर दी है. खुफिया एजेंसियों को इसके प्रमाण भी मिले हैं. बालू की लूट में नक्सलियों की इंट्री को लेकर खुफिया एजेंसियों ने सरकार को सतर्क भी किया है.
औरंगाबाद, रोहतास, अरवल, भोजपुर और पटना से गुजरने वाली सोन नदी का अधिकांश इलाका नक्सल प्रभावित रहा है. कहा जाता है कि नक्सली पहले तो बालू माफिया से लेवी वसूलते थे, किंतु मोटी कमाई को देखकर वे भी इसके अवैध धंधे में उतर चुके हैं.
जानकार बताते हैं कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर बालू की तस्करी में नक्सलियों ने अपनी पकड़ बना ली तो उनके पास न तो पैसों की कमी रहेगी और न ही असलहों की. फिर उसी के बूते नक्सली संगठन एक बार फिर से राज्य में दबदबा कायम करने की कोशिश करेंगे, जो किसी भी स्थिति में उचित नहीं होगा.
देखिएः 15 साल का हुआ सूचना का अधिकार
15 साल का हुआ सूचना का अधिकार कानून
सूचना का अधिकार कानून लागू हुए 15 साल पूरे हो गए हैं. 12 अक्टूबर 2005 को कानून लागू हुआ था. इसका मकसद सरकारी काम में पारदर्शिता लाना और भ्रष्टाचार को खत्म करना था लेकिन 15 साल बाद भी लाखों शिकायतें आज भी लंबित हैं.
तस्वीर: Imago-Image/CHROMORANGE
लंबित मामले
केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग में 2.20 लाख से अधिक अपील और शिकायतें अब भी लंबित हैं. लंबित मामलों के यह आंकड़े 31 जुलाई 2020 तक के हैं. यही नहीं चिंता का विषय यह है कि कुल 29 सूचना आयोग में से 9 (31 फीसदी) में कोई मुख्य सूचना अधिकारी है ही नहीं. इसके अलावा अगस्त महीने से मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) का पद खाली है.
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रिपोर्ट कार्ड
सूचना का अधिकार कानून के 15 साल पूरे होने पर सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है. इस रिपोर्ट में पाया गया कि सबसे ज्यादा लंबित मामले महाराष्ट्र में 59,000 हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश (47,923) और सीआईसी में (35,653) हैं.
तस्वीर: DW/Prabhakar
खाली पद
रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड और त्रिपुरा में सूचना आयुक्त का पद खाली है और वहां सूचना के अधिकार से जुड़े मामले लंबित पड़े हैं और लोगों को सूचना नहीं मिल पा रही है. ओडिशा में चार आयुक्त काम कर रहे हैं और राजस्थान में सिर्फ तीन आयुक्त हैं.
तस्वीर: Catherine Davison
बढ़ता बोझ
प्रक्रिया धीमी होने के कारण मुख्य सूचना आयोग में भी लंबित मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वहां 36,500 से ज्यादा मामले लंबित हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
सजा कम
विश्लेषण में यह भी पाया गया कि सरकारी अधिकारियों को कानून का उल्लंघन करने के लिए किसी भी सजा का शायद ही सामना करना पड़ता है. 2019-20 में 16 आयोगों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में पाया गया कि जुर्माना केवल 2.2% मामलों में लगाया गया था.
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जुर्माना
1,995 मामलों में 18 आयोग ने करीब 2.5 करोड़ जुर्माना लगाया. सबसे ज्यादा जुर्माना हरियाणा में (65.4 लाख रुपये), उसके बाद मध्य प्रदेश में (43.3 लाख रुपये) और उत्तराखंड में (35.8 लाख रुपये) लगाया गया.
तस्वीर: Fotolia/ARTEKI
सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आम नागरिक सरकारी प्राधिकरण से सूचना पाने के लिए आवेदन कर सकता है. कानून के मुताबिक 30 दिनों के भीतर सूचना देने की व्यवस्था की गई है. आरटीआई के तहत सरकारी काम में पारदर्शिता लाना, भ्रष्टाचार को खत्म करना, उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना और नागरिकों को सशक्त करना है.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP/Getty Images
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इस संबंध में एडीजी (पुलिस मुख्यालय) जितेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘अवैध खनन में नक्सलियों को रोकना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन हम इसके लिए तैयार हैं. हमारी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) इसमें माहिर है. इसी के बदौलत सुदूर इलाके में हम नक्सलियों को खत्म करने में कामयाब रहे हैं.''
बालू की मनमाने तरीके से बेतहाशा बढ़ती कीमत तथा अवैध खनन पर रोक नहीं लगा पाने का कलंक झेल रही सरकार ने बिहार खनिज नियमावली, 2019 में भी बदलाव कर दिया है. इसके तहत अवैध रूप से खनन किए गए बालू के मूल्य का 25 गुणा जुर्माना वसूला जाएगा. इस काम में लगे वाहन जब्त होंगे और फिर उन्हें नीलाम कर दिया जाएगा. वहीं अवैध खनन के आरोप में पकड़े गए लोगों को दो साल की सजा दी जाएगी.
देखने वाली बात तो यह होगी कि इस नियमावली पर कितनी सख्ती से पुलिस-प्रशासन व संबंधित विभाग द्वारा अमल किया जाएगा, क्योंकि बालू की लूट रोकने के तमाम उपायों के बावजूद लूट तो होती ही रही है.