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सिर्फ एक परिवार के जिम्मे पूरा श्रीलंका, ऐसा कैसे हुआ

२७ जुलाई २०२१

जुलाई की शुरुआत में 70 साल के बासिल राजपक्षे को श्रीलंका का वित्त मंत्री बना दिया गया. बासिल वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के तीसरे भाई हैं. उनके अन्य दो भाई पहले ही सत्ता में शीर्ष पदों पर काबिज हैं.

तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Wanniarachchi

दक्षिण एशिया अपने राजनीतिक परिवारों के लिए कुख्यात है. लेकिन जब यहां के ज्यादातर राजनीतिक परिवार मुसीबतों का सामना कर रहे हैं, श्रीलंका का राजपक्षे परिवार अपनी ताकत के चरम पर पहुंच गया है. जुलाई की शुरुआत में 70 साल के बासिल राजपक्षे को श्रीलंका का वित्त मंत्री बना दिया गया. बासिल वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के तीसरे भाई हैं. उनके अन्य दो भाई पहले ही सत्ता में शीर्ष पदों पर काबिज हैं.

फिलहाल श्रीलंकाई राजनीति पर राजपक्षे परिवार का ऐसा नियंत्रण हो चुका है कि एक मीडिया रिपोर्ट में श्रीलंका की सरकार को 'एक परिवार द्वारा संचालित कंपनी' तक कह दिया गया.

सरकार या राजपक्षे परिवार?

फिलहाल श्रीलंका की सरकार में राजपक्षे परिवार के आधा दर्जन से ज्यादा सदस्य बड़े पदों पर हैं. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (72) से बड़े भाई महिंदा राजपक्षे (75) प्रधानमंत्री हैं. उनके पास धार्मिक मामले और शहरी विकास मंत्रालय भी हैं. बता दें कि वे पूर्व में श्रीलंका के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं. इसके अलावा गोटबाया के सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे (78) फिलहाल सरकार में गृह राज्य मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री और आपदा प्रबंधन मंत्री हैं. इनके बाद अब चौथे भाई, बासिल राजपक्षे (70) को वित्त मंत्री बनाया जा चुका है.

भाईयों के अलावा भतीजे भी श्रीलंका सरकार में ऊंचे पदों पर हैं. महिंदा के पुत्र नमल राजपक्षे, श्रीलंका के युवा एवं खेल मंत्री हैं. वे डिजिटल टेक्नोलॉजी और उद्यम विकास मंत्री भी हैं. वहीं चमल के पुत्र शाशेंद्र राजपक्षे को एक अनोखा मंत्रालय सौंपा गया है. इसका नाम है- 'धान और अनाज, ऑर्गेनिक फूड, सब्जियां, फल, मिर्च, प्याज और आलू, बीज उत्पादन और उच्च तकनीक वाली कृषि का मंत्रालय.'

छवि से जुड़ी जनता

यह परिवार पिछले दो दशकों में ज्यादातर समय श्रीलंका की सत्ता पर काबिज रहा है. और इसे इतनी लोकप्रियता दिलाने का श्रेय महिंदा राजपक्षे को जाता है. जिन्होंने साल 2009 में लिट्टे (LTTE) का सफाया कर श्रीलंका के दशकों पुराने गृहयुद्ध को खत्म किया था. इस दौरान उनके भाई गोटबाया राजपक्षे रक्षा मंत्री हुआ करते थे और गृहयुद्ध के अंतिम दौर में उन पर मानवाधिकार हनन के कई आरोप लगे थे जबकि चमल संसद के स्पीकर और बासिल कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे.

एक ही परिवार को इतनी शक्ति देने के मसले पर दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर जसप्रताप बरार कहते हैं, "ऐसी नई अर्थव्यवस्थाएं, जिन्होंने औपनिवेशिक सत्ता संघर्ष या गृह युद्ध झेले हैं, उनमें इस तरह के एक परिवार का शासन कई बार देखा गया है.

दरअसल लोग देश के संघर्ष से जुड़ने के बजाए उस व्यक्ति या परिवार से जुड़ते हैं, जो संघर्ष का नेतृत्व कर रहा होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आमतौर पर लोगों का विश्वास संस्था के बजाए उस व्यक्ति विशेष पर होता है, जो समाज के ज्यादातर बंटवारों को खत्म कर उन्हें एकजुट करने का काम करता है."

निरंकुश राजपक्षे परिवार

साल 2015 तक महिंदा राजपक्षे दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे चुके थे. तीसरी बार भी उन्होंने संविधान में बदलाव कर जबरन चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें विपक्षी गठबंधन ने मात दे दी. लेकिन युद्ध अपराधों और अल्पसंख्यकों के मुद्दों को लेकर सत्ता में आई विपक्षी सरकार सफल नहीं हो सकी और जनमत फिर से राजपक्षे परिवार की ओर झुक गया. इस पूरे घटनाक्रम का निर्णायक समय तब आया, जब साल 2019 में श्रीलंका में ईस्टर बम धमाके हुए. इससे जनता को कड़ाई से कानून-व्यवस्था लागू कराने वाले राजपक्षे परिवार की जरूरत फिर से महसूस हुई और इसके बाद हुए आम चुनावों में गोटबाया राजपक्षे को आसान जीत मिल गई.

तस्वीरों मेंः भारतीय राजनीति में शिक्षक

तबसे कोरोना वायरस से निपटने, श्रीलंका की आर्थिक हालत खराब होने, उसके कर्ज में दबे होने आदि के मुद्दे पर राजपक्षे परिवार की आलोचना की जाती रही है लेकिन अभी उन्हें इससे कोई खतरा महसूस नहीं हो रहा और वे बिना किसी भय के अपने परिवार के लोगों की ऊंचे पदों पर नियुक्तियां करते जा रहे हैं. बल्कि ऐसी नियुक्तियों में नियम भी ताक पर रख दिए गए हैं. मसलन सिर्फ बासिल को वित्त मंत्री बनाने के लिए 'मंत्रियों की नागरिकता संबंधी नियम' बदल दिए गए क्योंकि बासिल अमेरिकी नागरिक भी हैं.

दक्षिण एशिया के अन्य राजनीतिक परिवार

जानकार मानते हैं कि अभी दक्षिण एशिया में ऐसे परिवारों का उभार जारी रह सकता है. जसप्रताप बरार कहते हैं, "ये देश संक्रमण के दौर में हैं. यहां लोग राजनीतिक तौर पर सचेत हैं लेकिन साक्षरता कम है. ऐसे में बड़े मुद्दों के बजाए चुनाव में पहचान की राजनीति जैसे मुद्दे विषय बनते हैं." वे यह भी कहते हैं, "राजनीतिक रूप से सचेत होने का मतलब हर बार राजनीतिक शक्ति के साथ संगठित होना भी नहीं होता, यूरोपीय राजनीति में युवाओं का घटती रुचि इसका उदाहरण है." बहरहाल आगे जैसा भी हो लेकिन फिलहाल दक्षिण एशिया में ज्यादातर राजनीतिक परिवारों की हालत खराब है.

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भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार गांधी-नेहरू फिलहाल सत्ता से बाहर है तो वहीं 'बांग्लादेश की बेगमों' का हाल भी ठीक नहीं है. शेख हसीना सत्ता में हैं लेकिन 12 साल सत्ता में रहने के बाद कोरोना से निपटने में कमजोर पड़ने के आरोपों का सामना कर रही हैं. वहीं खालिदा जिया 17 साल जेल की सजा काट रही हैं.

पाकिस्तान में क्रिकेटर इमरान खान ने भुट्टो और शरीफ दोनों ही परिवारों को सत्ता से बाहर कर दिया है. वहीं म्यांमार में जनरल आंग सान की बेटी आंग सान सू ची का तख्तापलट कर वहां मिलिट्री शासन लागू कर दिया गया है.

इस इलाके में सबसे ज्यादा जनसंख्या भारत की है तो यहां ऐसे कई छोटे राजनीतिक परिवार भी हैं. जिनमें से मुलायम परिवार, लालू परिवार, सिंधिया-राजे परिवार सत्ता में नहीं हैं. तो वहीं पवार, ठाकरे, डीएमके और चौटाला परिवार सत्ता पर काबिज हैं.

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