युद्ध अपराध: यूएन में श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव पास
२४ मार्च २०२१
संयुक्त राष्ट्र ने श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान किए गए मानवाधिकार हनन के सबूतों को उजागर करने के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है. परिषद ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की.
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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने मंगलवार को श्रीलंका के 37 साल पुराने गृह युद्ध के दौरान किए गए युद्ध अपराधों की जानकारी और सबूत इकट्ठा करने के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी, गृह युद्ध के दौरान हजारों नागरिकों की मौत हुई थी. श्रीलंका पर पेश प्रस्ताव के समर्थन में 47 में से 22 सदस्यों ने मतदान किया जबकि 11 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया. भारत समेत 14 देश मतदान से अनुपस्थित रहे.
47 सदस्यीय परिषद ने श्रीलंका में "नागरिक सरकार के कार्यों के त्वरित सैन्यकरण", "न्यायपालिका की आजादी में कमी" और तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के "बढ़े हुए हाशिएकरण" को संबोधित करने के लिए भी प्रस्ताव को अपनाया. परिषद ने "पिछले सालों में उभर रहे रुझानों की ओर इशारा किया, जो श्रीलंका में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति के साफ शुरुआती संकेत का प्रतिनिधित्व करता है" परिषद ने इस पर गंभीर चिंता जाहिर की.
मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव पर चिंता
यूके, जर्मनी, कनाडा और अन्य मुख्य देशों के प्रस्तावित प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाचेलेत और उनकी टीम को भविष्य के अभियोगों के नजरिए से श्रीलंका की जांच करने की अधिक शक्ति प्रदान करता है. हालांकि चीन और पाकिस्तान ने श्रीलंका के पक्ष में मतदान किया. प्रस्ताव में यह भी खास चिंता व्यक्त की गई कि श्रीलंका की कोविड-19 पर प्रतिक्रिया ने "मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव को और गहरा किया है." बाचेलेत का कार्यालय जांच रिपोर्ट को परिषद के सामने पेश करेगा.
दूसरी ओर श्रीलंका ने प्रस्ताव को "अवांछित" और "अनुचित" करार दिया है. राजधानी कोलंबो में एक संवाददाता सम्मेलन में विदेश मंत्री दिनेश गुणावर्धने ने कहा कि प्रस्ताव में कमी है और अधिक देशों ने खिलाफ में मतदान किया या उसके पक्ष में रहने के बजाय गैरहाजिर रहे. मतदान से पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत के एक प्रतिनिधिन ने बयान में कहा, "हम श्रीलंकों में तमिलों के लिए न्याय, समानता, सम्मान और शांति के पक्षधर रहे हैं. इसके अलावा हम श्रीलंका की एकात्मता, एकता और स्थिरता चाहते हैं." श्रीलंका के गृह युद्ध का 2009 में अंत हो गया था. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक इसमें 1,00,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
जापानी युद्ध अपराधी जिनका होता है सम्मान
जापान के यासुकूनी टेंपल में द्वितीय विश्वयुद्ध के 14 युद्ध अपराधियों की समाधि है. उन्हें शहीद का सम्मान दिया जाता है. चीन के साथ जापान के विवाद का यह भी एक कारण है. कौन हैं ये अपराधी और उन पर क्या आरोप हैं?
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हिदेकी तोयो
हिदेकी तोयो 1941 से 1944 तक जापान का प्रधानमंत्री और सेना का सर्वोच्च कमांडर था. उस पर 40 लाख चीनियों की हत्या और युद्धबंदियों पर रासायनिक परीक्षण करवाने का आरोप है. 1945 में जापान के समर्पण के बाद उसने आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन बच गया. उसने अपना अपराध कबूल किया और दिसंबर 1948 में उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया.
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केंजी दोइहारा
चीन विशेषज्ञ दोइहारा ने अपना करियर 1912 में बीजिंग में खुफिया एजेंट के तौर पर शुरू किया. सरकारी चीनी के अलावा चीन की कई बोलियां फर्राटे से बोलने वाले दोइहारा ने 1932 में चीन के अंतिम सम्राट पूयी के साथ मंचूरिया में अंतिम साम्राज्य बनाया. यह जापानी नियंत्रण वाली कठपुतली सरकार थी. 1940 में उसने पर्ल हार्बर पर हमले का समर्थन किया. 1948 में उसे फांसी दे दी गई.
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इवाने मात्सुई
मात्सुई को 1937 के नानजिंग जनसंहार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया जिसमें एक हफ्ते के अंदर 300,000 लोग मारे गए थे. इतिहासकारों का मानना है कि जनसंहार का फैसला शाही महल में लिया गया था. लेकिन सम्राट पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया. युद्ध अपराधों की जांच करने वाले न्यायाधिकरण ने मात्सुई को बी क्लास का युद्ध अपराधी करार दिया. उसे 1948 में फांसी दे दी गई.
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किमूरा हाइतारो
पूर्वी चीन में हाइतारो ने 1939 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सेना के साथ बर्बर युद्ध का नेतृत्व किया. उसने एक यातना शिविर बनवाया जिसमें हजारों बंदी मारे गए. 1944 में उसे बर्मा में जापानी सैनिकों का मुख्य कमांडर नियुक्त किया गया. बर्मा और थाइलैंड के बीच 415 किलोमीटर लंबी रेललाइन बनाने में हाइतारो ने युद्धबंदियों का इस्तेमाल किया. करीब 13,000 बंदी मारे गए. 1948 में उसे फांसी दे दी गई.
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कोकी हिरोता
फरवरी 1937 तक कोकी हिरोता जापान के प्रधानमंत्री थे. बाद में उन्हें विदेशमंत्री बना दिया गया. उस पर नानजिंग जनसंहार को बर्दाश्त करने और उसे रोकने की कोशिश नहीं करने के आरोप में मुकदमा चलाया गया. हिरोता जापान का एकमात्र असैनिक राजनीतिज्ञ था जिसे द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किए गए अपराधों के कारण फांसी की सजा दी गई.
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साइशीरो इतागाकी
18 सितंबर 1931 को इतागाकी ने चीन के पूर्वोत्तर में मंचूरिया की एक रेललाइन पर बम हमले का नाटक करवाया. इस घटना का इस्तेमाल जापान ने चीन के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने के लिए किया. बाद में इतागाकी ने उत्तरी कोरिया, इंडोनेशिया और मलेशिया में युद्ध का नेतृत्व किया. 1945 में उसने सिंगापुर में आत्मसमर्पण कर दिया. उसे युद्ध फैलाने के आरोप में फांसी की सजा दी गई.
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अकीरा मूतो
एशिया में युद्ध भड़कने के बाद मूतो ने चीन में जापानी सेना की ओर से लड़ाई लड़ी. उसे नानजिंग के जनसंहार के अलावा और कई बर्बर अत्याचारों का जिम्मेदार पाया गया. युद्ध अपराध न्यायाधिकरण के अनुसार मूतो ने यातना दी, हत्याएं की और युद्धबंदियों को भूखा रखा.
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योसूके मात्सुओका
उसके नेतृत्व में जापान ने उस समय के विश्व संगठन की सदस्यता इसलिए छोड़ दी कि कुछ सदस्य देश जापान को चीन के खिलाफ युद्ध के लिए जिम्मेदार मानते थे. देश के विदेश मंत्री (1940-41) के रूप में मात्सुओका ने नाजी जर्मनी और फासिस्ट इटली के साथ समझौता कर युद्ध में धुरी बनाई. अदालत में सजा पाने से पहले 1946 में उसकी टीबी से मृत्यु हो गई.
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हीरानुमा कीचीरो
जनवरी से अगस्त 1939 के बीच कीचीरो जापान का प्रधानमंत्री था. इस अवधि में जापान ने जर्मनी और इटली के साथ दोस्ती बढ़ाई. बाद में कीचीरो सम्राट हीरोहीतो का अंतरंग सलाहकार बन गया. उसे न्यायाधिकरण ने उम्रकैद की सजा दी. उसे 1952 में रिहा किया गया लेकिन उसी साल उसकी मृत्यु हो गई.
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कोइसो कुनियाकी
कुनियाकी जुलाई 1944 से अप्रैल 1945 के बीच जापान का प्रधानमंत्री था. उसने चीन और उत्तरी कोरिया में युद्ध में हिस्सा लिया था. न्यायाधिकरण ने माना कि वह सेना के अत्याचारों में शामिल नहीं था, लेकिन फिर भी उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई क्योंकि उसके पास सेना के अत्याचारों को रोकने की संभावना थी. कुनियाकी की कैद में मौत हो गई.
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तोगो शिगेनोरी
शिगेनोरी ने जर्मन भाषा और साहित्य की पढ़ाई की थी और जर्मन महिला से शादी की थी. उसे 1937 में बर्लिन में जापान का राजदूत नियुक्त किया गया. 1941 से 1945 के बीच वह दो बार देश का विदेशमंत्री रहा. अपने दूसरे कार्यकाल में उसने जापान से आत्मसमर्पण करने की सलाह दी और युद्ध की राजनीतिक जिम्मेदारी ली. उसे 20 साल कैद की सजा मिली और कैद में ही उसकी मौत हो गई.