क्या चीन की प्रयोगशाला से निकला कोरोना वायरस?
१९ अप्रैल २०२०![Italien Nachweis Coronavirus im Labor Symbolbild](https://static.dw.com/image/52685296_800.webp)
चीन के वुहान में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत कैसे हुई, इसमें दुनिया भर के रिसर्चरों और पत्रकारों की महीनों से रुचि रही है. शुरुआती शोध में वुहान के एक बाजार की बात कही गई जहां मच्छी के साथ साथ जंगली जानवरों का मांस भी बेचा जा रहा था. बताया गया कि यहां चमगादड़ बेचे जा रहे थे और यहीं से कोरोना संक्रमण शुरू हुआ. लेकिन अब पश्चिमी मीडिया में रिपोर्ट किया जा रहा है कि पास के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से वायरस लीक हुआ.
सोशल मीडिया वेबसाइटों पर तो जनवरी से ही ऐसी बातें चल रही थीं. कॉन्सपिरेसी थ्योरी तो यहां तक बनी कि चीन की खुफिया सैन्य प्रयोगशाला में इस वायरस को जैविक हथियार के रूप में बनाया गया था. उस वक्त वॉशिंगटन पोस्ट ने एक आर्टिकल छाप कर इन खबरों का खंडन किया. अखबार ने जानकारों के हवाले से लिखा कि रिसर्च दिखाती है कि वायरस प्राकृतिक है, इंसानों द्वारा प्रयोगशाला में बनाया गया नहीं. इसके बाद 17 मार्च को नेचर मेडिसिन विज्ञान पत्रिका में क्रिस्टियान जी एंडरसन की रिसर्च छपी जिसने वायरस के प्राकृतिक स्रोत से आने की बात की पुष्टि की.
नवंबर में शुरू हुआ संक्रमण
इस बात पर यकीन करने की एक और वजह यह भी थी कि वुहान की प्रयोगशाला गोपनीय नहीं है, बल्कि वहां होने वाली हर रिसर्च साइंस पत्रिकयों में छपती रहती हैं. इसके अलावा वुहान में होने वाली बहुत सी रिसर्च में पश्चिमी देश भी शामिल होते हैं. इनमें से एक पार्टनर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की गैलवेस्टन नेशनल लैब भी है. ब्रिटेन के अखबार डेली मेल के अनुसार अमेरिका की सरकार वुहान की लैब में हो रहे शोध में निवेश भी करती है.
लेकिन इस सब के बावजूद यकीन से तो फिर भी नहीं कहा जा सकता कि वुहान की लैब से गलती से वायरस लीक नहीं हुआ. रिसर्च हर दिशा में हुई है. जनवरी के अंत में "साइंस" नाम की विज्ञान पत्रिका ने एक लेख छापते हुए चीन के आधिकारिक बयान पर सवाल उठाया जिसके अनुसार वायरस मीट बाजार में जानवरों से इंसानों में फैला. इसके बाद "द लैंसेंट" पत्रिका ने लिखा कि कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती 41 मामलों में से 13 कभी वुहान के मीट बाजार गए ही नहीं.
ऐसा भी माना जा रहा है कि पहला संक्रमण नवंबर 2019 में हुआ. अमेरिका की जॉर्जटन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के डेनियल लूसी ने एक इंटरव्यू में कहा कि क्योंकि संक्रमण की शुरुआत नवंबर में ही हो चुकी थी, इसलिए मुमकिन है कि पहले संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों में वायरस पहुंचा हो. इसलिए उनका मीट बाजार में जाए बिना भी संक्रमित होना मुमकिन था.
गुफाओं से जमा किया चमगादड़ों का मल
लेकिन वायरस वुहान के बाजार तक पहुंचा ही कैसे? वुहान इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर शी झेंगली के पास शायद इसका जवाब है. इन्होंने चमगादड़ों में मौजूद वायरसों के बारे में अपना शोध "नेचर" पत्रिका के फरवरी अंक में छापा. इसके बाद चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने प्रोफेसर शी का इंटरव्यू लिया जो 6 फरवरी को अखबार में छपा. इस इंटरव्यू में प्रोफेसर शी ने बताया कि कैसे चमगादड़ों के सैंपल लेने के लिए वे चीन के अलग अलग इलाकों में गईं. 28 गुफाओं में जा कर उन्होंने चमगादड़ों का मल जमा किया.
कुछ अन्य पत्रिकाओं में भी उनके शोध के बारे में जानकारी दी गई. "साइंटिफिक अमेरिकन" के अनुसार उन्होंने इन सैंपल को जमा कर के चमगादड़ के वायरसों का एक पूरा आर्काइव तैयार किया. इसमें नॉवल कोरोना वायरस का भी जिक्र था जो हॉर्सशू बैट में पाया गया था. क्योंकि प्रोफेसर शी इस वायरस को पहचानती थीं, इसलिए संक्रमण फैलने के बाद उन्होंने अपनी टीम के साथ मिल कर काफी जल्दी वायरस के जैविक ढांचे को प्रकाशित किया जिसके बाद ही जगह जगह टीका बनाने पर काम शुरू हो सका.
महामारी का राजनीतिकरण?
पिछले महीनों से प्रोफेसर शी को सोशल मीडिया पर लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. वुहान लैब के एक अमेरिकी पार्टनर इको हेल्थ अलायंस के अध्यक्ष पीटर दाचाक प्रोफेसर शी के बचाव में भी आए हैं. अमेरिका के रेडियो चैनल डेमोक्रेसी नाउ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने वायरस को लैब में बनाने की बात को "बकवास" बताते हुए कहा कि वे 15 साल से इस प्रयोगशाला के साथ काम कर रहे हैं और जानते हैं कि वहां कोरोना वायरस नहीं रखा गया है. उन्होंने कहा, "यह महामारी के स्रोत का राजनीतिकरण हो रहा है और यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है."
इस सब के बाद भी चिंता की बात यह है कि पिछले कुछ वक्त में चीन सरकार संक्रमण के स्रोत से जुड़ी खबरों को सेंसर करने में लगी है. डेली मेल में छपे इन आरोपों पर जब लंदन स्थित चीनी दूतावास से जवाब मांगा गया तो उन्होंने इसे "बेबुनियाद" बताया. दूतावास के अनुसार यह महामारी कैसे फैली, इस बारे में अब भी चीन में रिसर्च जारी है.
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