सऊदी अरब में 10 हजार भारतीय भूखे मरने को मजबूर हैं. उन्होंने ट्विटर पर गुहार लगाई है. भारत सरकार की ओर से वीके सिंह उनकी मदद को जा रहे हैं.
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सऊदी अरब में रह रहे करीब 10 हजार भारतीयों के लिए भूखे मरने की नौबत आ गई है. उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है. उनके मालिक ने उन्हें तन्ख्वाह भी नहीं दी है. कुछ लोगों की तन्ख्वाह तो छह-छह महीने से नहीं मिली है. और समाचार चैनल एनडीटीवी के मुताबिक बहुत से लोगों के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वे भारत लौट सकें.
भारत सरकार ने स्थानीय भारतीयों के मदद से इन लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया है. साथ ही इन्हें वापस लाने की योजना पर भी काम शुरू हो गया है. संभावना है कि इस हफ्ते सभी को वापस लाया जाएगा. और सऊदी अधिकारियों से भी बातचीत की जा रही है ताकि लोगों की बची हुई तन्ख्वाहें दिलवाई जा सकें.
विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह इन लोगों से मिलने जेद्दा जा रहे हैं. जेद्दा में भारतीय कॉन्सुलेट ने विभिन्न लेबर कैंपों में रह रहे करीब ढाई हजार भारतीयों की सूची तैयार की है. माना जा रहा है कि जब यह सूचना फैलेगी कि भारत सरकार लोगों को वापस ले जा रही है तो और ज्यादा लोग अपनी सूचनाएं दर्ज कराएंगे. 29 जुलाई को ट्विटर के जरिये इन लोगों की हालत की सूचना विदेश मंत्री को मिली. सुषमा स्वराज को टैग कर किए गए एक ट्वीट में विदेश मंत्री से मदद की अपील की गई थी.
तस्वीरों में: कोई सरहद ना इन्हें रोके
कोई सरहद ना इन्हें रोके...
इंजन वाले विमान के लिए भी 14,000 किलोमीटर की उड़ान भरना कठिन चुनौती है. मगर पानी के ये पक्षी कितने ही महासागरों और महाद्वीपों को पार कर जाते हैं वो भी बिना किसी जेट इंजन की मदद के.
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अफसर पक्षी
सारस परिवार के ये पक्षी किसी सैनिक अधिकारी जैसी अपनी चाल ढाल के कारण ही अफसर कहलाते हैं. दुर्भाग्य से इन अफसरों के पास अब कोई जमीन नहीं बची है. दुर्लभ हो चुके इन पक्षियों की केवल दो ब्रीडिंग कॉलोनियां भारत और कंबोडिया में पाई जाती हैं. इसके अलावा साल भर ये दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में घूमते हैं.
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लंबी दूरी के चैंपियन
आर्कटिक तटों के किनारे प्रजनन करने वाले ये बगुले की किस्म वाले पक्षी जाड़ों में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड चले जाते हैं. 2007 में ऐसे एक पक्षी को टैग कर उस पर नजर रखी गई. वह पक्षी लगातार नौ दिनों तक उड़ते हुए 11,600 किलोमीटर की दूसरी तय कर पश्चिमी अलास्का से न्यूजीलैंड पहुंचा था, जो कि सभी जीव जन्तुओं में एक रिकॉर्ड है.
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'दि बर्ड'
60 के दशक में आई हिचकॉक की मशहूर फिल्म 'दि बर्ड' जिस बर्ड पर आधारित थी वह यही है. पानी के बिल्कुल साथ साथ उड़ने वाले ये पक्षी वसंत ऋतु में प्रशांत और अटलांटिक सागर पार करते हुए ऊपर जाते हैं और पतझड़ में नीचे की ओर आते हुए करीब 14,000 किलोमीटर की दूसरी तय कर लेते हैं. ये 60 मीटर ऊपर से पानी में डाइव भी लगा सकते हैं.
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स्नो बर्ड
आर्कटिक टर्न्स ने ठंड से निपटने की बहुत अच्छी तरकीब निकाली है. ये उत्तरी गोलार्ध के आर्कटिक की गर्मियों में प्रजनन करती हैं और फिर 80,000 किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा कर दूसरे छोर अंटार्कटिक की गर्मियों का आनंद लेने पहुंच जाती हैं. इस तरह वे हर बार जाड़ों से बच जाती हैं.
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पवित्र चिड़िया
गंभीर संकट में पड़ चुकी यह नॉर्दर्न बॉल्ड आइबिस अब केवल दक्षिणी मोरक्को में ही पाई जाती है. पहले यह यूरोप, अफ्रीका और मध्यपूर्व तक में आप्रवासन किया करती थी. प्राचीन मिस्र में इसे पूज्य माना जाता था और नोआह की नाव में भी इसे रखे जाने की मान्यता है. कहते हैं कि तुर्की हजयात्री इसे देखते हुए मक्का तक पहुंच जाया करते थे.
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कॉमनर क्रेन
यह क्रेन पक्षी उत्तरी यूरोप और एशिया के कई इलाकों में दिखता है. प्रजनन के लिए यह दलदली इलाकों में चली जाती है और जाड़ों में उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका, इस्राएल और ईरान तक पहुंच जाती है.
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दुखद अंत
इन बत्तखों ने उत्तरी अफ्रीका से भूमध्यसागर के ऊपर से होते हुए अल्बेनिया तक की दूरी तय कर ली थी लेकिन पहुंचते ही शिकारियों की गोली की शिकार बन गईं. हर साल शिकारी भोजन, पैसे या केवल मजे के लिए यहां लाखों प्रवासी पक्षियों को मार गिराते हैं.
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मध्य पूर्व में रहने वाले भारतीय मजदूरों की हालत अच्छी नहीं है. उनके शोषण और बदतर हालात की खबरें अक्सर आती रहती हैं. मध्य पूर्व में करीब 60 लाख भारतीय कामगार हैं. ज्यादातर मजदूरी ही करते हैं. उनके काम के हालात बेहद खतरनाक और मुश्किल होते हैं. बताया जाता है कि उन्हें बहुत कम वेतन मिलता है और बहुत ज्यादा काम करना पड़ता है. उनके रहने के हालात भी कुछ अच्छे नहीं हैं. बहुत सारे मजदूर एक साथ रहते हैं. कुछ जगहों पर तो एक छोटे से कमरे में 10-10 मजदूर रहते हैं. ऐसी भी खबरें आती रहती हैं कि मजदूरों को मारा-पीटा गया या उनके पासपोर्ट छीन लिए गए ताकि वे कहीं आ जा ना सकें.
2015 में खाड़ी देशों में काम करने वाले 5,900 भारतीयों की मौत हुई थी. इनमें से सबसे ज्यादा 2,691 मौतें सऊदी अरब में ही हुई थीं. यूएई में 1,540 भारतीय मारे गए. कतर में, जहां 2022 के फुटबॉल वर्ल्ड कप की तैयारियां चल रही हैं, 2012 से अब तक 500 से ज्यादा भारतीयों की मौत हो चुकी है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा भारतीय कामगार यूएई में हैं. यहां लगभग 35 लाख भारतीय काम करते हैं. सऊदी अरब में 19 लाख भारतीय कामगार हैं.
मिलिए, आधुनिक गुलामों से
21वीं सदी के "गुलाम"
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों के हनन के लिए एक बार फिर कतर की आलोचना की है. फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी करने जा रहे कतर में विदेशी मजदूरों की दयनीय हालत है.
अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संघ (फीफा) ने विवादों के बावजूद कतर को 2022 के वर्ल्ड कप की मेजबानी सौंपी. मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि कतर में स्टेडियम और होटल आदि बनाने पहुंचे विदेशी मजदूरों की बुरी हालत है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल भी कतर पर विदेशी मजदूरों के शोषण का आरोप लगा चुका है. वे अमानवीय हालत में काम कर रहे हैं.
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एमनेस्टी के मुताबिक वर्ल्ड कप के लिए निर्माण कार्य के दौरान अब तक कतर में सैकड़ों विदेशी मजदूरों की मौत हो चुकी है.
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मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक कतर ने विदेशी मजदूरों की हालत में सुधार का वादा किया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया है.
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वर्ल्ड कप के लिए व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य चल रहा है. उनमें काम करने वाले विदेशी मजदूरों को इस तरह के कमरों में रखा जाता है.
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स्पॉन्सर कानून के तहत मालिक की अनुमति के बाद ही विदेशी मजदूर नौकरी छोड़ या बदल सकते हैं. कई मालिक मजदूरों का पासपोर्ट रख लेते हैं.
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ब्रिटेन के "द गार्डियन" अखबार के मुताबिक कतर की कंपनियां खास तौर नेपाली मजदूरों का शोषण कर रही हैं. अखबार ने इसे "आधुनिक दौर की गुलामी" करार दिया.
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अपना घर और देश छोड़कर पैसा कमाने कतर पहुंचे कई मजदूरों के मुताबिक उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि हालात ऐसे होंगे.
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कई मजदूरों की निर्माण के दौरान हुए हादसों में मौत हो गई. कई असह्य गर्मी और बीमारियों से मारे गए.
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कतर से किसी तरह बाहर निकले कुछ मजदूरों के मुताबिक उनका पासपोर्ट जमा रखा गया. उन्हें कई महीनों की तनख्वाह नहीं दी गई.
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कुछ मजदूरों के मुताबिक काम करने की जगह और रहने के लिए बनाए गए छोटे कमचलाऊ कमरों में पीने के पानी की भी किल्लत होती है.
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मजदूरों की एक बस्ती में कुछ ही टॉयलेट हैं, जिनकी साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है.
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खाड़ी देशों में काम करने वाले ये भारतीय हर साल 30 अरब डॉलर भारत भेजते हैं. यह विदेशों में बसे दो करोड़ से ज्यादा भारतीयों में सबसे ज्यादा धन है जो एक इलाके से आता है. पिछले एक साल से तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई है. इसका असर खाड़ी देशों की सरकारों के खर्चों पर भी पड़ा है. और स्थानीय कंपनियों ने भी अपने खर्चे घटाए हैं. इसका सीधा असर वहां काम करने वाले भारतीयों पर भी हुआ है. अब कम संख्या में मजदूरों को नौकरी मिल रही है. फिर सऊदी अरब ने निताकत कानून भी लागू कर दिया है जिसके चलते विदेशी मजदूरों की भर्ती मुश्किल हो गई है क्योंकि अब स्थानीय लोगों को तरजीह देने पर जोर दिया जा रहा है.