कोरोनावायरस के कारण एक बार फिर समुद्र में एक संकट तैयार हो रहा है. एक लाख लोग ऐसे हैं जो समुद्र में भटक रहे हैं और जमीन देखने को तरस गए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इसे मानवीय संकट करार दिया है.
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"मैंने आदमियों को रोते हुए देखा है.” कैप्टन तेजिंदर सिंह का यह कहना सुनकर लोग चौंक जाते हैं. बीते सात महीनों से सिंह ने जमीन पर कदम नहीं रखा है और उन्हें बिल्कुल पता नहीं कि वह कब अपने घर जा पाएंगे. महीनों से समुद्र में भटक रहे सिंह कहते हैं कि हम ‘भुलाए हुए लोग हैं जिनकी किसी को परवाह नहीं है. वह कहते हैं, "लोगों को पता नहीं है कि उनकी सुपरमार्किट में सामान कहां से आता है.”
तेजिंदर सिंह एक जहाज के कैप्टन हैं जो पिछले सात महीने से यहां से वहां भटक रहा है. वह और उनके चालक-दल के 20 सदस्य भारत से अमेरिका होते हुए चीन पहुंचे और हफ्तों तक वहीं फंसे रहे. वहां उन्हें अपने जहाज से सामान उतारना था लेकिन जहाजों की भीड़ के कारण नंबर ही नही आया. अब वह ऑस्ट्रेलिया के रास्ते पर हैं.
भटक रहे हैं एक लाख लोग
तेजिंदर सिंह जैसे एक लाख से ज्यादा लोग हैं जो इस वक्त दुनिया के अलग-अलग समुद्रों में फंसे हुए हैं. आमतौर पर ये लोग तीन से नौ महीने तक एक बार में यात्रा करते हैं लेकिन इंटरनेशनल चैंबर ऑफ शिपिंग के मुताबिक इन एक लाख लोगों को अपने तय समय कहीं ज्यादा हो चुका है, जबकि ये समुद्र में ही हैं. यहां तक कि जमीन पर इन्हें आमतौर पर मिलने वाला ब्रेक भी नहीं मिला है. इसके अलावा एक लाख से ज्यादा नाविक ऐसे हैं जो जहाज पर नहीं जा पा रहे हैं और बेरोजगार हैं.
तस्वीरेंः श्रीलंका में जलता जहाज
श्रीलंका के जल में जलता जहाज
श्रीलंका पर्यावरण प्रदूषण की एक अभूतपूर्व घटनासे जूझ रहा है. प्लास्टिक कचरे से भरे जहाज के जलने के बाद उसके अवशेष बहकर उसके द्वीपों पर पहुंच रहे हैं और जल-जीवन के लिए खतरा बन गए हैं.
तस्वीर: Sri Lanka Airforce Media/REUTERS
कोलंबो के पास हादसा
एमवी एक्स-प्रेस पर्ल नाम के एक मालवाहक जहाज में दस दिन पहले आग लग गई थी. कोलंबो हार्बर के पास हुए हादसे की चपेट में आया. जहाज सिंगापुर का था और कॉस्मेटिक्स व केमिकल्स से भरा था.
तस्वीर: Sri Lanka Air Force/AFP
सेना का ऑपरेशन
जहाज में लगी आग बुझाने में अधिकारियों को अब तक संघर्ष करना पड़ रहा है. इसके लिए श्रीलंका की नौसेना और वायुसेना की मदद लेनी पड़ी है.
तस्वीर: Lakruwan Wanniarachchi/AFP
प्लास्टिक का मलबा
जहाज का अधजला कई टन मलबा बहकर देश के विभिन्न समुद्र तटों पर पहुंच रहा है. इस कचरे में प्लास्टिक के बारीक टुकड़े हैं जो जलवायु के लिए बेहद खतरनाक हैं और हिंद महासागर के जल जीवन को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
तस्वीर: Pushpa Kumara/AA/picture alliance
सबसे बुरा हादसा
श्रीलंका की मरीन प्रोटेक्शन अथॉरिटी के चेयरमैन धर्शानी लहंदापुरा ने कहा कि संभवतया यह देश के इतिहास का सबसे बुरा समुद्री तटीय प्रदूषण है.
तस्वीर: Sri Lanka Airforce/REUTERS
भारत से भी मदद
श्रीलंका की जल सेना के प्रवक्ता इंडिका डिसिल्वा ने कहा कि अब भी जहाज से धुआं और लपटें उठती देखी जा सकती हैं. भारत की नौसेना भी आग बुझाने में मदद कर रही है.
तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS
संकट का अंत नहीं
एक नौसैनिक मंजुला दुलन्जाला ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि उनकी टीम ने शुक्रवार को बीच को पूरी तरह साफ कर दिया था पर अगली सुबह वह स्तब्ध रह गए जब देखा कि बीच फिर से पूरी तरह कचरे से भर गया था.
तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS
ऐसा कभी नहीं देखा
एक अन्य जगह पर सफाई में लगी एक टीम के मुताबिक अधजला कचरे की परत 60 सेंटिमीटर तक मोटी है. एक स्थानीय मछुआरे, 68 साल के पीटर फर्नान्डो कहते हैं कि उन्होंने कभी ऐसा कुछ नहीं देखा.
तस्वीर: Lakruwan Wanniarachchi/AFP
मछुआरों पर संकट
घटना के बाद से तट से 80 किलोमीटर के दायरे में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है. मछुआरों के हजारों परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. एक रोमन कैथलिक चर्च में पादरी सुजीवा अथुकोराले कहते हैं कि उन्हीं के समुदाय में 4,500 मछुआरे परिवार हैं और उन्हें फौरन समुद्र में जाने की जरूरत है.
तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS
खतरे में मैंग्रोव
पर्यावरण कर्मियों को चिंता है कि यह कचरा मैंग्रोव और उथले पानी में पैदा होने वाली मछलियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है. समुद्र तट के नजदीक कोरल भी खतरे में हैं. जहाज में 278 टन तेल और 50 टन डीजल था जिसके लीक होने से खतरा और बढ़ जाएगा.
तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS
सवा अरब का मुआवजा
मौजूदा हादसे के बाद श्रीलंका ने जहाज कंपनी के मालिकों से सफाई आदि के एवज में 17 मिलियन डॉलर यानी करीब सवा अरब रुपये का हर्जाना मांगा है.
तस्वीर: Ishara S. Kodikara/AFP
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इस वक्त कोरोनावायरस का डेल्टा वेरिएंट एशिया के कई देशों में कहर बरपा रहा है. ऐसे में कई देशों ने समुद्री जहाजों को अपने यहां आने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है. एशिया में 17 लाख से ज्यादा नाविक हैं, जो इन पाबंदियों से प्रभावित हुए हैं. आईसीएस का अनुमान है कि नाविकों में से सिर्फ ढाई फीसदी को ही वैक्सीन मिली है.
संयुक्त राष्ट्र ने इसे एक मानवीय संकट बताया है और सरकारों से आग्रह किया है कि नाविकों को जरूरी कामगार माना जाए. दुनिया के व्यापार में 90 फीसदी सामान की आवाजाही समुद्र के रास्ते ही होती है, इसलिए यह संकट व्यापारों पर भी कहर बनकर टूटा है क्योंकि तेल से लेकर खाद्य पदार्थों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों तक तमाम चीजों की सप्लाई प्रभावित है.
कोई उम्मीद नहीं
तेजिंदर सिंह को फिलहाल तो कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. उन्होंने कहा है कि पिछली बार वह 11 महीने तक समुद्र में फंसे रहे थे. वह बताते हैं कि उनके चालक दल के भारतीय और फिलीपीनी नाविक 15x6 फुट के एक केबिन में बसर करने को मजबूर हैं. सिंह कहते हैं, "बहुत ज्यादा समय तक समुद्र में रहना बहुत मुश्किल होता है. सबसे मुश्किल सवाल होता है बच्चों का, कि पापा घर कब आओगे.”
देखिएः कंटेनर से माल भेजने के 65 साल
कंटेनर से माल भेजने के 65 साल
कंटेनर जहाज 26 अप्रैल, 1956 को दुनिया में पहली बार भेजा गया था. व्यापार का यह तरीका मैल्कम पी मैकलीन द्वारा पेश किया गया था. वह एक स्कॉटिश अमेरिकी थे और उन्होंने समुद्र के रास्ते व्यापार को एक नया आयाम दिया.
तस्वीर: Maersk Sealand
एक आदमी और उसके बक्से
1965 में जहाज-मालिक और फ्रेट फॉरवर्डर मैल्कम मैकलीन को विचार आया कि माल को अलग-अलग बक्से में रखने की बजाय अगर एक ही बड़े कंटेनर में रखा जाए तो समय के साथ-साथ पैसे की भी बचत होगी. इस विचार के कारण कंटेनर की खोज हुई. इस तरह से कंटेनर से माल भेजने की लागत कम हुई.
तस्वीर: Maersk Sealand
नौकरियों पर पड़ा असर
मैकलीन ने बंदरगाह व्यापार में क्रांति ला दी, जिससे दुनिया के बंदरगाहों में हलचल पैदा हो गई. वे उन लोगों के जीवन को आसान बनाना चाहते थे जो बंदरगाहों पर बोझ ढोते थे लेकिन इस खोज के कारण कई लोगों की नौकरी भी चली गई.
1956 में मैकलीन ने एक तेल टैंकर को खरीदा और इसे एक मालवाहक जहाज में बदल डाला. आज, समुद्र में बहुत बड़े कार्गो जहाज तैर रहे हैं. एक-एक मालवाहक जहाज कई हजार टन माल ढो सकते हैं.
तस्वीर: Joe Giddens/PA Wire/picture alliance
जर्मनी पहुंचने वाले पहले कंटेनर
मई 1966 में, मैकलीन की कंपनी के जहाज द फैरलैंड ने ओवरसीज पोर्ट ऑफ ब्रेमेन में लंगर डाला और कंटेनरों की पहली खेप जर्मनी में उतारी गई. इस खेप में 110 कंटेनर थे. मैकलीन की कंटेनर सेवा समय के साथ संपन्न हो रही थी.
एक कंटेनर की लंबाई और चौड़ाई समय के साथ निर्धारित होती गई. मानक कंटेनर एक बीस फुट इकाई है. कंटेनर कोल्ड स्टोरेज सहित कई आकारों में आते हैं. जानवरों और बड़े माल के लिए कंटेनर का आकार बदलना संभव है, लेकिन सामान्य तौर पर उनका आकार समान है.
तस्वीर: Robert Schmiegelt/Geisler/picture alliance
दिन और रात चलता रहता है काम
विश्व व्यापार का नब्बे प्रतिशत माल समुद्र के रास्ते भेजा जाता है. लोडिंग और अनलोडिंग की प्रक्रिया बंद नहीं होती है. दुनिया के सबसे प्रमुख बंदरगाहों से लाखों टन माल कंटेनर के द्वारा भेजे जाते हैं.
देश में जहाजों से बंदरगाहों को माल की आपूर्ति करने के लिए, रेलवे ट्रैक को बंदरगाहों तक पहुंचाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई. हैम्बर्ग के बंदरगाह का अपना शिपिंग स्टेशन है. इस तस्वीर में क्रेन से कंटेनर को ट्रेनों पर लादा जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/F. Bimmer
सुरक्षित प्रणाली
बंदरगाहों पर पहुंचने वाले माल की अच्छी डिलीवरी एक सुरक्षित प्रणाली के तहत ही संभव है. हैम्बर्ग के इस बंदरगाह में माल की आवाजाही की निगरानी के लिए एक बहुत ही कुशल प्रणाली है. यह सिस्टम एक एयरपोर्ट कंट्रोल टॉवर की तरह काम करता है.
तस्वीर: HHLA
तस्करी का जरिया
विश्व व्यापार में हजारों कंटेनरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है. प्रत्येक कंटेनर को खोलना संभव नहीं है, इसलिए तस्कर इस खामी का फायदा उठाते हैं और माल को कंटेनर में छिपाते हैं. इस तस्वीर में पाकिस्तानी ब्रिगेडियर अशफाक रशीद खान मादक पदार्थ के साथ खड़े नजर आ रहे हैं जो उनकी टीम ने कंटनेर से पकड़ा है.
तस्वीर: AP
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आईसीएस के महानिदेशक गाय प्लैटन कहते हैं कि दुनिया के एक तिहाई कमर्शल नाविक भारत और फिलीपीन से ही आते हैं और दोनों ही देश इस वक्त कोविड की मार झेल रहे हैं. वह कहते हैं समुद्र में यह दूसरा संकट तैयार हो रहा है. पिछली बार 2020 में भी ऐसा ही हुआ था जब दो लाख नाविक महीनों तक समुद्र में फंसे रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र नाविकों के लिए एक बार में अधिकतम 11 महीने की यात्रा की ही इजाजत देता है. लेकिन एक सर्वे के मुताबिक फिलहाल नौ प्रतिशत मर्चेंट सेलर ऐसे हैं जो अधिकतम सीमा पार कर चुके हैं. मई में ऐसे नाविकों की संख्या 7 प्रतिशत थी.