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समाजऑस्ट्रेलिया

सैकड़ों भाषाओं के विलुप्त होने का खतरा

३ जनवरी २०२२

दुनिया भर में लगभग 7,000 मान्यता प्राप्त भाषाएं हैं, लेकिन उनमें से कई जल्द ही हमेशा के लिए विलुप्त हो सकती हैं. ऑस्ट्रेलिया के एक अध्ययन के मुताबिक सभी भाषाओं में से लगभग आधी खतरे में हैं.

तस्वीर: Getty Images/C.Hopkins

ऑस्ट्रेलिया में हुए शोध में कहा गया है कि इस सदी के अंत तक 1,500 भाषाएं विलुप्त हो सकती हैं. शोधकर्ताओं ने अपने शोध में लिखा, "हस्तक्षेप के बिना 40 वर्षों के भीतर भाषा की हानि तिगुनी हो सकती है, जिसमें एक भाषा मासिक आधार पर विलुप्त हो सकती है."

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि बच्चों के पाठ्यक्रम को द्विभाषी के रूप में विकसित किया जाए और क्षेत्रीय रूप से मजबूत भाषाओं के साथ-साथ प्राचीन भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए. शिक्षा, नीति, सामाजिक-आर्थिक संकेतकों और समग्र परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न भाषाओं के इस अध्ययन के लिए कई पैमानों को अपनाया गया.

ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (एएनयू) के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया और यह शोध नेचर इकोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. यह अध्ययन भाषाओं के सामने आने वाले अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक खतरों की पड़ताल करता है.

इस अध्ययन रिपोर्ट के सह-लेखक लिंडेल ब्रोमहैम के मुताबिक, "किसी क्षेत्र में बेहतर सड़क अवसंरचना भाषाओं के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है. उदाहरण के लिए इनमें एक अच्छी तरह से विकसित सड़क नेटवर्क शामिल है." वे आगे कहते हैं, "हमने देखा कि जितनी अच्छी सड़कें हैं, उतना ही बेहतर क्षेत्र बाकी हिस्सों से जुड़े हैं. सड़कों पर प्रमुख भाषाओं का बोलबाला लगता है. वे मदद करती हैं उन्हें स्थानीय भाषा सीखने के लिए."

अध्ययन में यह भी पाया गया कि विभिन्न भाषाओं के परस्पर संपर्क से स्वदेशी भाषाओं को खतरा नहीं है, बल्कि यह तथ्य है कि अन्य भाषाओं के संपर्क में आने वाली भाषाएं कम खतरे में हैं. अध्ययन रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया की लुप्तप्राय स्वदेशी भाषाओं को कैसे बचाया जाए, इस पर भी सिफारिशें करती है. रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में स्वदेशी और प्राचीन भाषाओं के विलुप्त होने की दर दुनिया में सबसे अधिक है. इस महाद्वीप पर 250 भाषाएं बोली जाती थीं, लेकिन अब केवल 40 हैं.

ब्रोमहैम के मुताबिक, "जब कोई भाषा विलुप्त हो जाती है, या 'सो रही होती है' जैसा कि हम उन भाषाओं के लिए कहते हैं जो अब बोली नहीं जाती हैं, तो हम अपनी मानव सांस्कृतिक विविधता को खो देते हैं."

एए/सीके (डीपीए, एपी)

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