शोध: महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा में गंभीर खामियां
४ जनवरी २०२४
एक रिपोर्ट कहती है कि असुरक्षा का अनुभव करने वाली 40 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं पोश अधिनियम द्वारा प्रस्तावित सुरक्षात्मक उपायों से अनजान हैं.
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वालचंद प्लस की रिपोर्ट कार्यस्थल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की तत्काल जरूरत पर जोर देती है. रिपोर्ट से पता चलता है कि केवल 42 फीसदी कर्मचारियों को ही पीओएसएच अधिनियम की पूरी समझ है. कर्मचारियों के बीच जागरूकता की यह कमी, जैसा कि शोध द्वारा उजागर किया गया है, अधिनियम के प्रावधानों पर बेहतर शिक्षा की अनिवार्यता को रेखांकित करता है.
पीओएसएच अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले यौन उत्पीड़न के मुद्दे को संबोधित करने के लिए साल 2013 में बनाया गया था.
बुधवार को जारी रिपोर्ट संगठनों के भीतर प्रचलित गलत धारणाओं को भी उजागर करती है, जहां अधिनियम के अनुपालन को अक्सर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देने की वास्तविक प्रतिबद्धता के बजाय केवल एक चेकबॉक्स के रूप में देखा जाता है.
सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 53 प्रतिशत मानव संसाधन पेशेवर इस अधिनियम को लेकर भ्रमित हैं. इसके अलावा, शोध में पाया गया कि मानव संसाधन प्रबंधक महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व और वरिष्ठ प्रबंधन के भीतर उत्पीड़न के मुद्दों को कम महत्व देने की प्रवृत्ति को लेकर चिंतित हैं.
वालचंद पीपलफर्स्ट की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक पल्लवी झा ने एक बयान में कहा, "एक महिला के रूप में मुझे लगता है कि जब लैंगिक असमानता को पाटने की बात आती है तो भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है."
उन्होंने कहा, "कई मायनों में हम अभी भी एक पितृसत्तात्मक समाज हैं. कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा एक बुनियादी अपेक्षा होनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से कई संगठन इसे बहुत ही दिखावटी स्तर पर मानते हैं."
शोध से पता चलता है कि कई अन्य बाधाओं के अलावा आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) में वरिष्ठ महिला प्रतिनिधित्व की कमी जैसी बाधाओं के कारण जब पीओएसएच अधिनियम के कार्यान्वयन और पालन की बात आती है, तो बहुत कुछ अधूरा रह जाता है.
छह महीने में भारतीयों ने कॉस्मेटिक्स पर खर्च किए 5000 करोड़ रुपये
पिछले छह महीनों में भारतीय ग्राहकों ने पांच हजार करोड़ रुपये खर्च कर 10 करोड़ कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स खरीदे. जिनमें से 40 फीसदी से अधिक ऑनलाइन खरीदे गए.
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कॉस्मेटिक्स का क्रेज
कांतार वर्ल्ड पैनल के एक शोध से पता चला है कि भारत के शीर्ष 10 शहरों में छह महीनों में लिपस्टिक, नेल पॉलिश और आईलाइनर जैसी 10 करोड़ से अधिक कॉस्मेटिक चीजें बेची गईं. भारत में इस तरह का पहला शोध हुआ है.
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महिलाओं के दफ्तर जाने से मांग बढ़ी
इस रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से खरीदारी करने वालों में ज्यादातर कामकाजी महिलाएं हैं
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कौन से कॉस्मेटिक प्रोडक्ट ज्यादा बिके
इस रिपोर्ट से पता चला कि होंठों से जुड़े 3.1 करोड़ प्रोडक्ट्स बिके, इसके बाद नाखून से जुड़े 2.6 करोड़ और आंखों से जुड़े 2.3 करोड़ प्रोडक्ट्स बिके.
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भारत में बढ़ रही है कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स की मांग
कांतार वर्ल्ड पैनल डिविजन, साउथ एशिया के एमडी के. रामाकृष्णन कहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के कार्यबल में शामिल होने से भविष्य में इस सेक्टर में और सुधार होगा.
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एशिया दुनिया का सौंदर्य केंद्र
रामाकृष्णन कहते हैं, "एशिया पहले से ही दुनिया का सौंदर्य केंद्र है, दक्षिण कोरिया जैसे देश दुनिया भर में ब्यूटी ट्रेंड्स स्थापित कर रहे हैं."
पिछले छह महीनों में भारतीय ग्राहकों ने औसतन 1,214 रुपये के रंगीन कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स खरीदे.
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काजल और लिपस्टिक से आगे
इस सेक्टर के जानकारों का कहना है कि भारतीय ग्राहक अब पारंपरिक उत्पाद जैसे काजल और लिपस्टिक से आगे बढ़कर प्राइमर, आई शैडो और कंसीलर जैसे डेवलप्ड प्रोडक्ट्स अपना रहे हैं.
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भारत में कॉस्मेटिक बूम
रामाकृष्णन कहते हैं, "तेजी से शहरीकरण और ऑनलाइन चैनलों के प्रसार के साथ भारत में कॉस्मेटिक चीजों की बिक्री और इस्तेमाल में उछाल दिख रहा है."
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यह शोध प्रशिक्षण सत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित करता है. रिपोर्ट संगठनों से सक्रिय प्रतिक्रिया का आग्रह करती है, साथ ही रिपोर्ट यह सिफारिश करती है कि जो कमियां हैं उन्हें दूर किया जाना चाहिए.
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं ने साल 2021 में भारत के औपचारिक और अनौपचारिक कार्यबल का 23 फीसदी से कम प्रतिनिधित्व किया, जो साल 2005 में लगभग 27 फीसदी थी. वहीं इसकी तुलना में पड़ोसी देशों बांग्लादेश में 32 फीसदी और श्रीलंका में 34.5 फीसदी है.
भारत सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि महिला श्रम बल भागीदारी 2020-21 में बढ़कर 25.1 फीसदी हो गई जो कि साल 2018-19 में 18.6 फीसदी थी.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी
सर्वे: भारतीय कंपनियों में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी
जॉब्स फॉर हर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कॉर्पोरेट भारत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियां महिलाओं को अधिक रोजगार देने के लिए तरह-तरह के कदम उठा रही है.
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बढ़ी कामकाजी महिलाएं
जॉब्स फॉर हर ने 300 कंपनियों का सर्वे किया और पाया कि सर्वे में शामिल कंपनियों में महिलाएं लगभग 50 फीसदी हैं. 2021 की तुलना में यह 17 फीसदी की वृद्धि है.
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लिंग विविधता पर जोर
अध्ययन के मुताबिक 70 फीसदी कंपनियों के पास अब अपनी नियुक्ति में लिंग विविधता हासिल करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित लक्ष्य हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि का संकेत है.
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काम पर महिलाओं के लौटने के लिए आसान होते रास्ते
काम पर लौटने वाली महिलाओं के समर्थन में 57 प्रतिशत बड़े उद्यमों और 43 प्रतिशत स्टार्टअप/एसएमई ने उनकी सहायता के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं.
महिलाओं की भर्ती बढ़ाने के लिए भी कंपनियां जोर दे रही हैं. सर्वे में शामिल 51 फीसदी कंपनियों ने बताया कि उन्होंने नौकरी देने वाले प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी की है.
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वर्क फ्रॉम होम का चलन घटा
कोरोना काल के दौरान वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ा था. 2022 में आयोजित विविधता सर्वे ने महामारी के बाद की अवधि के दौरान इस नीति को अपनाने में धीरे-धीरे कमी का संकेत दिया है. वर्तमान कार्यान्वयन दर अभी भी महामारी-पूर्व युग से अधिक है. 2019 में वर्क फ्रॉम होम को लागू करने वाली कंपनियों का प्रतिशत 59 प्रतिशत था, जो 2020 में बढ़कर 85, 2021 में 83 और फिर 2022 में घटकर 63 प्रतिशत हो गया.