जर्मनी के बवेरिया स्थित पासाउ डायसिस में कैथोलिक पादरियों के सैकड़ों बच्चों और किशोरों के साथ यौन शोषण और हिंसा के मामलों का खुलासा हुआ है. नई रिपोर्ट बताती है कि यह दुर्व्यवहार सात दशक से भी लंबे समय तक चला.
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जर्मनी के बवेरिया प्रांत में स्थित पासाउ डायसिस में 1945 से 2022 के बीच लगभग 700 बच्चों और किशोरों के यौन शोषण और हिंसा का शिकार होने की पुष्टि हुई है. नई रिपोर्ट कई दशकों की संस्थागत नाकामी और दबाव की संस्कृति की ओर इशारा करती है.
यह खुलासा पासाउ यूनिवर्सिटी के जांचकर्ताओं ने सोमवार को प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन में किया है. जिस इलाके के चर्चों की देखरेख एक बिशप करता है, उसे डायसिस कहा जाता है. आमतौर पर एक डायसिस को कई पैरिश में बांटा जाता है, और हर पैरिश की जिम्मेदारी एक पादरी के पास होता है.
क्या कहती है नई रिपोर्ट
400 पन्नों की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कम से कम 154 कैथोलिक पादरियों ने नाबालिगों के साथ यौन शोषण, शारीरिक हिंसा या दोनों तरह की यातनाएं दीं. इनमें से अधिकांश पीड़ित लड़के थे. जांचकर्ताओं का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है.
स्टडी के अनुसार, 672 से अधिक बच्चे और किशोर कैथोलिक बोर्डिंग स्कूलों, छात्रावासों, धार्मिक शिक्षा की कक्षाओं और ऑल्टर-सर्विस के दौरान उत्पीड़न का शिकार हुए. कई मामलों में स्रोतों ने केवल "बच्चों के समूह" के बारे में लिखा है जिन्हें कथित तौर पर किसी पादरी ने किसी क्लास या गाने की प्रैक्टिस के दौरान उत्पीड़ित किया था. यही वजह है कि असल पीड़ितों की पक्की संख्या का अनुमान लगाना कठिन रहा.
उन्होंने यह भी पाया कि 1945 से 2022 के बीच पासाउ डायसिस में सेवा देने वाले करीब 2,400 पादरियों में से 6.4 फीसदी पर नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार करने का संदेह है. इनमें 128 पादरी ऐसे हैं जिन पर सीधे तौर पर यौन शोषण का आरोप है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 86 फीसदी संदिग्ध पादरी ऐसे थे जिन्होंने ऐसा पहली बार नहीं किया था.
तीन साल तक चली इस स्टडी को पासाउ यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम ने पूरा किया. स्टडी का नेतृत्व करने वाले मार्क फॉन क्लॉरिंग ने कहा कि जो कुछ हुआ "वो कभी नहीं होना चाहिए," और जोर दिया कि पीड़ितों के साथ इसका बुरा असर पूरे जीवन रहता है. पासाउ के बिशप श्टेफान ओस्टर ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे चर्च की "भारी विफलता" बताया.
इससे पहले, 2018 में राष्ट्रीय स्तर पर हुई एक व्यापक स्टडी में जर्मनी भरके कैथोलिक पैरिशों में हजारों यौन शोषण के मामलों का खुलासा हुआ था, जिसने चर्च की विश्वसनीयता को गहरा झटका दिया था. इसके बाद देशभर के कई डायसिस ने अपने-अपने स्तर पर विस्तृत जांच शुरू की ताकि दशकों से दबी इन अमानवीय घटनाओं की पूरी सच्चाई सामने लाई जा सके.
ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से छोटे बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन
ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला देश बन गया है जिसने 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पूरी तरह रोक लगा दी है. बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर कई और देश भी इसी तरह के उपायों पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
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ऑस्ट्रेलिया की पहल
ऑस्ट्रेलिया 10 दिसंबर 2025 से 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर रहा है. इसमें टिकटॉक, यूट्यूब और मेटा की इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसी बड़ी ऐप्स शामिल हैं. नवंबर 2024 में पारित कानून का उल्लंघन करने पर कंपनियों पर 4.95 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
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ब्रिटेन
2023 में पारित 'ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट' से सोशल मीडिया कंपनियों पर सख्ती बढ़ी है. इसके बाद से हानिकारक सामग्री से नाबालिगों को बचाने के लिए कंपनियों को उम्र-आधारित उपाय करने जरूरी हो गए. हालांकि, सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए ब्रिटेन में अभी कोई तय आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है.
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चीन
चीन में "माइनर मोड" सिस्टम लागू है. इसके अंतर्गत उम्र के आधार पर स्क्रीन टाइम सीमित करने के लिए डिवाइस में और ऐप में भी खास तरह के कंट्रोल के विकल्प देना जरूरी है.
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डेनमार्क
डेनमार्क ने इसी साल नवंबर में घोषणा की है कि वहां 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगेगा. 13 साल तक के बच्चों को पेरेंट्स अनुमति दे सकते हैं. इसे संसद का समर्थन मिल चुका है.
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फ्रांस में तकनीकी बाधा
फ्रांस ने 2023 में कानून पारित किया जिसके अनुसार 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के लिए अभिभावक की सहमति लेना जरूरी है. लेकिन फिलहाल तकनीकी जटिलताओं के कारण इसे लागू करने में दिक्कत आ रही है.
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जर्मनी में और सख्ती की जरूरत
फिलहाल यहां 13 से 16 वर्ष के किशोर सोशल मीडिया का इस्तेमाल तभी कर सकते हैं, जब उनके माता-पिता सहमति दें. लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि जर्मनी में मौजूदा नियंत्रण काफी नहीं हैं.
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इटली में टीनएजर्स को थोड़ी ज्यादा छूट
इटली में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट के लिए अभिभावकों की अनुमति चाहिए. 14 वर्ष के बाद सहमति आवश्यक नहीं है.
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मलेशिया में भी कड़ाई
मलेशिया ने नवंबर में घोषणा की है कि वह 2026 से 16 वर्ष से कम उम्र के यूजर्स के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाएगा.
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नॉर्वे के नियम
नॉर्वे में 2024 में प्रस्ताव आया कि सोशल मीडिया इस्तेमाल करने की न्यूनतम आयु 13 से बढ़ाकर 15 वर्ष की जाए. 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को पेरेंट्स से अनुमति लेनी होगी. सरकार इस समय 15 वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा को अनिवार्य बनाने का कानून तैयार कर रही है.
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अमेरिका में क्या चलता है
अमेरिका में लागू एक कानून कंपनियों को 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का डेटा पेरेंट्स की सहमति के बिना इकट्ठा करने से रोकता है. कई अमेरिकी राज्यों ने सोशल मीडिया चलाने के लिए माता-पिता की अनिवार्य सहमति लेने के लिए कानून बनाए हैं, लेकिन वहां उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के कारण कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
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यूरोप में कैसे हैं कानून
यूरोपीय संसद ने नवंबर में एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें सोशल मीडिया पर न्यूनतम आयु सीमा 16 वर्ष करने की सिफारिश की गई. साथ ही पूरे ईयू में 13 वर्ष की डिजिटल आयु सीमा और वीडियो-शेयरिंग सेवाओं और "एआई साथियों" के लिए भी 13 वर्ष की सीमा तय करने की बात कही गई.
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टेक कंपनियों के अपने नियम
टिकटॉक, फेसबुक और स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म खुद भी कम से कम 13 साल के यूजर चाहते हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन प्लेटफॉर्मों पर इसे सख्ती से लागू नहीं किया जाता. कई यूरोपीय देशों के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 13 साल से कम उम्र के बहुत से बच्चे यहां सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं.