प्लास्टिक सालों साल गलता नहीं है और यह दुकान से होते हुए हमारे घर से लेकर समंदर तक रास्ता तय करता है लेकिन यह ना तो सड़ता है और ना ही गलता है. प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण भी चरम पर है.
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वैज्ञानिकों ने गहरे समंदर से दुग्ध उत्पाद के लिए इस्तेमाल होने वाला एक कंटेनर और एक प्लास्टिक का थैला निकाला है. यह दोनों 20 साल बाद भी नए जैसे हैं. 20 साल समंदर की गहराई में रहने के बावजूद इनमें कोई बदलाव नहीं मिला है. उत्तरी जर्मनी शहर कील स्थित जिओमर हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर ओशन रिसर्च के बायोकेमिस्ट श्टेफान क्राउजे के मुताबिक, "ना तो थैला और ना ही डेयरी उत्पाद के कंटेनर में कोई टूटने के संकेत नजर आए और तो और इसके घटकों में कोई गिरावट देखने को नहीं मिली."
इस शोध के नतीजे साइंस पत्रिका नेचर में छपे हैं. शोधकर्ताओं ने पहली बार ऐसे सबूत पेश किए हैं जिसमें समंदर की तलहटी में प्लास्टिक का भाग्य पता चलता है. समंदर में मिलने वाले प्लास्टिक कचरे का शायद ही कभी लंबे अर्से से डाटा रहा हो, क्योंकि 4,000 मीटर की गहराई से मिलने वाले प्लास्टिक के कचरे पर शायद ही तारीख लिखी होती है. लेकिन इस मामले में शोधकर्ताओं को संयोग से मदद मिल गई. हालांकि बाद का शोध एक जासूस के काम की तरह था.
समंदर में मिला थैला विशेष संस्करण का था, जो कि 1988 के डेविस कप के लिए कोका-कोला कैन और क्वार्क कंटेनर एक जर्मन निर्माता द्वारा बनाया गया था. इस पर पांच अंकों वाला पोस्टल कोड लिखा था, जो कि 1990 से ही चलन में है. इसके अलावा डेयरी निर्माता को 1999 में खरीद लिया गया जिसके बाद ब्रांड का नाम गायब हो गया.
पेरू के तट से लगभग 800 किलोमीटर दूर मैंगनीज नोड्यूस के संभावित खनन के प्रभावों पर शोध के दौरान इस कचरे को शायद जर्मन शोधकर्ताओं ने 1989 और 1996 के बीच छोड़ दिया था. 2015 में जब इस जगह पर दोबारा वैज्ञानिक पहुंचे तो उन्होंने इस प्लास्टिक के कचरे को पाया. पूर्वी प्रशांत में समंदर की गहराई में जाने वाले रोबोट की मदद से प्लास्टिक के इस कचरे को निकाला गया.
वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक का विश्लेषण करते समय यह भी देखा कि पैकिंज पर अलग सूक्ष्मजीव समुदाय बस गए हैं जो कि समुद्र की सतह पर मौजूद नहीं थे. क्राउजे के मुताबिक, "सूक्ष्म कीटाणु समंदर की गहरी सतह पर पाए जाते हैं लेकिन जाहिर तौर बड़े पैमाने पर प्लास्टिक के जमा होने से स्थानीय स्तर पर प्रचलित प्रजातियों के अनुपात में बदलाव का कारण बन सकता है." इसका मतलब है कि प्लास्टिक का कचरा समुद्र तल पर कृत्रिम आवास बना सकता है और इस तरह से इकोसिस्टम के कार्य को खतरे में डाल सकता है.
एए/सीके (डीपीए)
दम घोंट रहा है माइक्रोप्लास्टिक
इंसान प्लास्टिक से बुरी तरह घिर चुका है. वह प्लास्टिक खा रहा है, पी भी रहा है और पहन भी रहा है. देखिये कहां कहां मौजूद है अतिसूक्ष्म यानि माइक्रोप्लास्टिक.
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रोज सुबह मुंह में
पांच मिलीमीटर से कम परिधि वाले प्लास्टिक के कणों को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है. प्लास्टिक के ये बारीक कण हर जगह मौजूद हैं. सुबह सुबह टूथपेस्ट के साथ ही माइक्रोप्लास्टिक सीधे इंसान के मुंह में पहुंचता है.
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कॉस्मेटिक्स में
मेकअप के सामान, क्रीम, क्लीनजिंग मिल्क और टोनर में भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद होता है. घर के सीवेज सिस्टम से बहता हुआ यह माइक्रोप्लास्टिक नदियों और सागरों तक पहुंचता है.
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मछलियों में
पानी में घुला माइक्रोप्लास्टिक मछलियों के पेट तक पहुंचता है. मछलियों के साथ ही दूसरे सी खाने में भी माइक्रोप्लास्टिक मिल रहा है. 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडोनेशिया और कैलिफोर्निया की 25 फीसदी समुद्री मछलियों में प्लास्टिक मिला. आहार चक्र के जरिए यह इंसान तक पहुंचता है.
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नमक में
दुनिया में ज्यादातर नमक की सप्लाई समुद्री पानी से होती है. समुद्रों में बुरी तरह प्लास्टिक घुल चुका है. हर साल 1.2 करोड़ टन प्लास्टिक महासागरों तक पहुंच रहा है. नमक के साथ यह माइक्रोप्लास्टिक हर किसी की रसोई तक पहुंचता है.
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पीने के पानी में
दुनिया भर में नल के जरिए सप्लाई होने वाले पीने के पानी के 80 फीसदी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक मिला है. वैज्ञानिकों के मुताबिक नल के पानी में प्लास्टिक का इस कदर मिलना बताता है कि प्लास्टिक हर जगह घुस चुका है. इसी पानी का इस्तेमाल खाना बनाने और मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए भी किया जाता है.
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कपड़ों में
सिथेंटिक टेक्सटाइल से बने कपड़ों को जब भी धोया जाता है, तब उनसे काफी ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक निकलता है. रिसर्च में पता चला है कि छह किलोग्राम कपड़ों को धोने पर 7,00,000 से ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक फाइबर निकलते हैं. महासागरों में 35 फीसदी माइक्रोप्लास्टिक सिथेंटिक टेक्साटाइल से ही पहुंचता है.
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शहद में भी
पानी और जलीय जीवों के साथ ही वैज्ञानिकों को शहद जैसी चीजों में भी माइक्रोप्लास्टिक मिला है. हाल ही यूरोपीय संघ के प्लास्टिक के खिलाफ बनाई गई रणनीति में यह बात साफ कही गई कि शहद में माइक्रोप्लास्टिक की अच्छी खासी मात्रा मौजूद है.
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टायर बने मुसीबत
पर्यावरण में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक टायरों के जरिये घुलता है. सड़क पर घिसते टायर बहुत ही बारीक माइक्रोप्लास्टिक छोड़ते हैं. पानी और हवा के संपर्क में आते ही यह हर जगह पहुंच जाता है. (रिपोर्ट: इरेने बानोस रुइज/ओएसजे)