लंबे समय से डिप्रेशन का शिकार मरीजों पर ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि जो लोग दवाएं छोड़ना चाहते हैं, उनके लिए भी ऐसा करना कितना मुश्किल होता है.
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ब्रिटेन में शोधकर्ताओं ने लंबे समय से डिप्रेशन की दवाएं ले रहे मरीजों पर शोध किया है. इस शोध में सामने आया कि जिन मरीजों ने धीरे-धीरे दवा छोड़ने की कोशिश भी की, उनमें से आधे एक साल के भीतर ही दोबारा डिप्रेशन का शिकार हो गए. इसके उलट जिन लोगों ने दवाएं नहीं छोड़ीं, उनमें दोबारा डिप्रेशन होने की संभावना लगभग 40 प्रतिशत रही.
दोनों समूहों के मरीज डिप्रेशन के लिए रोजाना दवा ले रहे थे और हाल ही में आए अवसाद से उबरकर स्वस्थ महसूस कर रहे थे. ये सभी मरीज दवाएं छोड़ने के बारे में सोचने लायक स्वस्थ महसूस कर रहे थे.
तनाव का शरीर पर असर
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पहले भी ऐसे अध्ययन हो चुके हैं कि डिप्रेशन का लौट आना आम बात है. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे एक संपादकीय में कहा गया है कि जिन लोगों को कई बार अवसाद हो चुका है उनके लिए उम्रभर खाने के लिए दवाएं लिखी जा सकती हैं.
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कैसे छूटे दवा?
जो मरीज दवाएं छोड़ना चाहते हैं उनके लिए काउंसलिंग और व्यवहार थेरेपी के विकल्प हैं. कई अध्ययन दिखा चुके हैं कि दवा के साथ इस तरह की थेरेपी काफी मरीजों के लिए फायदेमंद साबित होती है. लेकिन ये थेरेपी काफी महंगी होती हैं और जिन देशों में पब्लिक हेल्थ सिस्टम के तहत उपलब्ध हैं वहां लाइन बहुत लंबी हैं.
मुख्य शोधकर्ता यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की जेमा लुइस कहती हैं कि ब्रिटेन में डिप्रेशन के मरीजों का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ही कर रहे हैं.
डिप्रेशन या अवसाद मूड से जुड़ी बीमारी है. इस बीमारी में मरीज लगातार उदास और निराश महसूस करता है और सामान्य गतिविधियों में उसकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 5 प्रतिशत लोगों में इस बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं.
तस्वीरेंः नजरअंदाज न करें ये लक्षण
नजरअंदाज ना करें डिप्रेशन के ये 10 लक्षण
अवसाद जैसी मानसिक बीमारियों को आज भी मन का वहम और दिमाग का फितूर कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है. लेकिन आप खुद में या अपने प्रियजनों में इन लक्षणों को देखें, तो जरूर ध्यान दें.
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नींद में गड़बड़
डिप्रेशन कई तरह के होते हैं, इसलिए नींद का कोई एक पैट्रन नहीं होता. कुछ लोग अवसाद के कारण रात रात भर नहीं सो पाते. इसे इंसॉम्निया कहा जाता है. तो कुछ जरूरत से ज्यादा सोने लगते हैं.
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थकान
मन अच्छा तो तन चंगा. जब दिमाग ही ठीक से काम नहीं कर रहा होगा, तो वह शरीर को कैसे संभालेगा. इसलिए डिप्रेशन से गुजर रहे लोग कई बार ज्यादा थका हुआ महसूस करते हैं.
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बुरे ख्याल
डिप्रेशन से गुजर रहे लोग अक्सर अपनी या दूसरों की जान लेने के बारे में सोचते हैं. यहां तक कि नींद में भी उन्हें बुरे ख्याल आते हैं. कई बार इन बुरे सपनों के डर से भी वे सो नहीं पाते.
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गुस्सा
गुस्से और चिड़चिड़ेपन में फर्क होता है. डिप्रेशन के दौरान इंसान काफी तनाव से गुजरता है. वह सिर्फ सामने वाले पर ही नहीं, खुद पर भी गुस्सा हो जाता है. झगड़ने की जगह उस व्यक्ति को समझने, उससे बात करने की कोशिश करें.
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चिड़चिड़ापन
किसी के चिड़चिड़ेपन का मजाक उड़ाना बहुत आसान है. औरतों को "उन दिनों" का ताना मिल जाता है, तो मर्दों को बीवी से लड़ाई का. लेकिन यह इससे कहीं ज्यादा हो सकता है.
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एकाग्रता की कमी
अगर दिमाग को कंप्यूटर मान लिया जाए, तो समझिए कि डिप्रेशन में उसका प्रोसेसर ठीक से काम नहीं कर पाता. आप एक काम पर टिक नहीं पाते, छोटी छोटी बातें भूलने लगते हैं.
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डर
किसी के डर को निकालने के लिए उसे तर्क समझाने लगेंगे तो कोई फायदा नहीं होगा. अवसाद से गुजर रहा व्यक्ति तर्क नहीं समझता. उसे किसी भी चीज से डर लग सकता है, अंधेरे से, बंद कमरे से, ऊंचाई से, अंजान लोगों से.
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पीठ में दर्द
हमारी रीढ़ की हड्डी गर्दन से ले कर कूल्हे तक शरीर को संभालती है. ज्यादा तनाव से यह प्रभावित होती है और पीठ का दर्द शुरू होता है. कई लोगों को लगातार सर में दर्द भी रहता है जो दवाओं से भी दूर नहीं होता.
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खराब हाजमा
आप सोच रहे होंगे कि भला दिमाग का हाजमे से क्या लेना देना हो सकता है? याद कीजिए बचपन में परीक्षा के डर से कैसे पेट खराब हो जाया करता था. डिप्रेस्ड इंसान हर वक्त उसी अनुभव से गुजरता है.
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सेक्स में रुचि नहीं
मर्दों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन आम होता है. परेशानी की बात यह है कि यह किसी दुष्चक्र जैसा है क्योंकि अपने पार्टनर की उम्मीदों पर खरा ना उतरना भी डिप्रेशन की वजह बन सकता है.
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मदद
बहुत जरूरी है कि डिप्रेस्ड इंसान की मदद की जाए. डॉक्टर के पास जाने और दवाई से हरगिज परहेज नहीं करना चाहिए. जिस तरह किसी भी शाररिक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा और प्यार दोनों की जरूरत पड़ती है, ठीक वैसा ही मानसिक बीमारी के साथ भी होता है.
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लुइस कहती हैं कि ब्रिटेन में डिप्रेशन के दर्ज मामले अमेरिका के मुकाबले कम हैं लेकिन डिप्रेशन आंकने के अलग-अलग तरीकों के चलते विभिन्न देशों के बीच डिप्रेशन के मरीजों की तुलना मुश्किल हो जाती है.
ज्यादातर को नहीं हुआ दोबारा डिप्रेशन
शोध में इंग्लैंड के चार शहरों के 478 मरीजों को शामिल किया गया था. इनमें से ज्यादातर प्रौढ़ श्वेत महिलाएं थीं. ये सभी सामान्य एंटी डिप्रेसेंट दवाएं ले रही थीं जिन्हें सिलेक्टिव सेरोटोनिन रेप्युटेक इन्हीबिटर्स कहा जाता है. प्रोजैक और जोलोफ्ट जैसी दवाएं इसी श्रेणी में आती हैं.
शोध में शामिल आधे मरीजों को धीरे-धीरे दवा छोड़ने को कहा गया जबकि बाकियों की दवाओं में कोई बदलाव नहीं किया गया. शोधकर्ता इस बात पर निश्चित नहीं हैं कि अन्य दवाएं ले रहे मरीजों में भी ऐसे ही नतीजे मिलेंगे या नहीं.
दवा छोड़ने वालों में से 56 प्रतिशत मरीज शोध के दौरान ही दोबारा डिप्रेशन का शिकार हो गए. लुइस कहती हैं कि दवाएं न छोड़ने वालों को मिला लिया जाए तो ज्यादातर लोग दोबारा डिप्रेशन के शिकार नहीं हुए.
तस्वीरेंः हर मानसिक रोग डिप्रेशन नहीं
हर मानसिक रोग डिप्रेशन नहीं होता
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन और ड्रग एडिक्शन जैसे शब्दों का काफी इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन हर मानसिक रोग डिप्रेशन नहीं होता. जानिए तनाव और डिप्रेशन में क्या फर्क है.
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एंग्जाइटी डिसऑर्डर
बात बात पर डर लगना इसका सबसे बड़ा लक्षण है. जिस शख्स को इस तरह का मानसिक रोग हो, उसे तर्क दे कर डर से बाहर नहीं निकला जा सकता. ऐसे में पैनिक अटैक भी होते हैं, दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, सांस लेने में दिक्कत आती है और खूब पसीना भी छूटने लगता है.
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मूड डिसऑर्डर
जैसा कि नाम से पता चलता है इस रोग में व्यक्ति के मूड पर असर होता है. कभी वह बहुत दुखी रहने लगता है तो कभी अचानक ही बहुत खुश. डिप्रेशन और बायपोलर डिसऑर्डर इसी के अलग अलग रूप हैं.
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साइकोटिक डिसऑर्डर
इस रोग में इंसान को आवाजें सुनाई देने लगती हैं, वह काल्पनिक किरदारों को देखने लगता है. ऐसा व्यक्ति हैलुसिनेशन का शिकार हो सकता है या स्कित्सोफ्रीनिया का भी.
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ईटिंग डिसऑर्डर
अपनी भावनाओं पर काबू ना होने के कारण कुछ लोगों की भूख मर जाती है, तो कुछ जरूरत से ज्यादा खाने लगते हैं. दोनों ही मामलों में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
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एडिक्शन डिसऑर्डर
शराब की लत हो, ड्रग्स की या जुए की, ये सब एडिक्शन हैं. ऐसे रोग में व्यक्ति खुद को और अपने आसपास वालों को भूल जाता है और उसका सारा ध्यान लत पर ही केंद्रित होता है. इसे छुड़वाने के लिए दवाओं की जरूरत पड़ती है.
इस रोग से प्रभावित शख्स ऐसी हरकतें करता है जिन्हें आम भाषा में "अजीब" कहा जाता है. वह खुद को और दूसरों को नुकसान पहुंचा सकता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है पैरानोया जिसमें व्यक्ति हमेशा दूसरों की गलतियां खोजने में लगा रहता है.
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ऑबसेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर
ऐसा व्यक्ति किसी एक चीज या बात पर अटक जाता है और उसे दोहराता रहता है. मिसाल के तौर पर अगर किसी को गंदगी नापसंद है तो वह लगातार सफाई करता रहेगा और उसे फिर भी छोटे से छोटी गंदी चीज नजर आएगी.
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पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर
किसी बुरे अनुभव के कारण सदमा लगने से यह रोग होता है. ऐसा सड़क दुर्घटना के बाद या किसी प्रियजन की मौत या बलात्कार के बाद होना स्वाभाविक है. कुछ लोगों को लंबे समय तक डर लगने लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Klose
मानसिक रोगों को समझें
जैसा कि आपने देखा हर रोग एक दूसरे से अलग है. हो सकता है कि किसी को एक से ज्यादा डिसऑर्डर हो जाएं लेकिन एक ही इंसान को एंग्जाइटी, बायपोलर, स्कित्सोफ्रीनिया और पैरानोया सब एक साथ नहीं होता है.
तस्वीर: picture-alliance
क्यों होता है?
इनकी कई वजह हो सकती हैं. ये जेनेटिक भी होते हैं यानी माता पिता से बच्चों को मिल सकते हैं. तनाव और बुरे तजुर्बों के कारण हो सकते हैं या फिर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर भी हो सकते हैं.
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तो क्या करें?
मेंटल डिसऑर्डर किसी भी तरह का हो, डॉक्टर से सलाह लेना और वक्त रहते उसका इलाज कराना बहुत जरूरी है. 21वीं सदी के भारत में भी इस मुद्दे पर खुल कर चर्चा नहीं होती और नतीजतन हर साल लाखों लोग अपनी जान ले लेते हैं.
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वह कहती हैं, "ऐसे बहुत से लोग हैं जो दवाएं लेना जारी रखना चाहेंगे और हमारे शोध से पता चलता है कि उनके लिए यह एक सही फैसला है.”
संपादकीय लिखने वाले मिलवाकी वेटरंस अफेयर्स मेडिकल सेंटर के डॉ. जेफरी जैक्सन ने इस शोध के नतीजों को अहम लेकिन निराशाजनक बताया. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के लिए दवा छोड़ना संभव है.
उन्होंने लिखा, "जिन लोगों को एक ही बार डिप्रेशन हुआ है, खासकर जीवन में घटी किसी घटना के कारण, मैं उन्हें छह महीने के इलाज के बाद दवा कम करने को प्रोत्साहित करता हूं.”