एक शोध के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण विश्व भर में एक अरब से अधिक लोग अत्यधिक गरीब हो सकते हैं. इस शोध के मुताबिक कोविड-19 के कारण लोगों की आय में कमी आई है.
विज्ञापन
कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन लगाए गए और सख्त पाबंदियां लगाई गईं. इस वक्त दुनियाभर में 73 लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. 210 देशों और क्षेत्रों में वायरस फैल चुका है. इस घातक महामारी के कारण अब तक 4,12,976 लोगों की मौत हो चुकी है.
इस महामारी के बीच एक शोध का कहना है कि वैश्विक गरीबी की चपेट में एक बार फिर एक अरब से भी ज्यादा लोग आ सकते हैं. कोरोना वायरस महामारी के कारण लोगों की आय कम हो रही है. शुक्रवार को प्रकाशित शोध के मुताबिक विश्व भर के गरीबों की आय रोजाना 50 करोड़ डॉलर कम हो रही है.
किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोध में यह बताया गया है कि मध्यम आय वाले विकासशील देशों में गरीबी का स्तर नाटकीय रूप से बढ़ा है. इन देशों में गरीबी रेखा से ठीक ऊपर लाखों लोग रहते हैं. एशियाई देश जैसे कि बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिलीपींस में गरीबी का खतरा हो सकता है क्योंकि महामारी की वजह से लगा लॉकडाउन आर्थिक गतिविधियां को गंभीर रूप से प्रभावित कर चुका है.
किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय विकास के प्रोफेसर और शोध के सह-लेखक एंडी समनर कहते हैं, ''विकासशील देशों के लिए महामारी तेजी से आर्थिक संकट बनती जा रही है.'' शोध के मुताबिक लाखों लोग गरीबी रेखा के बिल्कुल ऊपर रहते हैं, महामारी के कारण उनकी आर्थिक स्थिति अनिश्चित है. सबसे खराब परिदृश्य में अत्यंत गरीबी में रहने वालों की संख्या 70 करोड़ से बढ़कर 1.1 अरब हो सकती है. अत्यंत गरीबी में रहने वालों की कमाई 1.9 डॉलर प्रतिदिन परिभाषित है. सुमनर कहते हैं, ''बिना कार्रवाई यह संकट वैश्विक गरीबी पर हुई प्रगति को 20 या 30 साल पीछे धकेल सकता है.''
शोधकर्ताओं ने वैश्विक नेताओं से तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया है. इससे पहले संयुक्त राष्ट्र भी कह चुका है करीब 4.9 करोड़ लोग कोविड-19 और उसके प्रभावों के कारण अत्यधिक गरीबी का शिकार हो सकते हैं.
एए/सीके (एपी)
चॉकलेट: गरीब किसानों का अमीर प्रोडक्ट
दुनिया चॉकलेट का मजा लेती है, लेकिन उसे उगाने वालों के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल होता है. देखिए, चॉकलेट की मिठास में छुपी स्याह दुनिया को.
तस्वीर: AP
खराब फसल
2016 में पश्चिमी अफ्रीका में कोकोआ की ज्यादातर फसल खराब हो गई. इसी इलाके से 70 फीसदी काकोआ सप्लाई होता है. चॉकलेट कोकोआ से ही बनाई जाती है. खराब फसल के चलते निर्यातकों ने दाम बढ़ा दिए लेकिन कोकोआ उगाने वाले किसानों को इससे फायदा नहीं हुआ.
तस्वीर: Fotolia
2017 से उम्मीदें
ब्राजील में भी कोकोआ की फसल खराब हुई. निर्यातकों और चॉकलेट कंपनियों को 2017 में आइवरी कोस्ट समेत पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में अच्छी फसल के संकेत मिले हैं.
तस्वीर: imago/Nature Picture Library
भारी मांग
दुनिया भर में चॉकलेट की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है. बीते 10 साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोकोआ का दाम दोगुना हो चुका है. लेकिन महंगी फसल के बावजूद कोकोआ उगाने वाले कई लोगों ने आज तक चॉकलेट चखा तक नहीं है. चॉकलेट उनके लिए बहुत महंगा है.
तस्वीर: jf Lefèvre/Fotolia
छोटे किसानों को ठेंगा
ऊंची कीमत का मतलब है, बेचने वालों को ज्यादा मुनाफा. पश्चिम अफ्रीका, इंडोनेशिया और दक्षिण अमेरिका में करीब 60 लाख से ज्यादा छोटे किसाने कोकोआ उगाते हैं. लेकिन उन्हें बाजार में चॉकलेट बार की कीमत का सिर्फ छह फीसदी दाम ही मिलता है. 1980 के दशक में किसानों को 16 फीसदी पैसा मिलता था.
तस्वीर: picture alliance/Photoshot
कहां से करें निवेश
आइवरी कोस्ट या घाना में कोकोआ की खेती करने वाले एक आम परिवार को बेहद गरीबी का सामना करना पड़ता है. ज्यादातर किसान गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. वे नई पौध में निवेश नहीं कर सकते. पुराने पेड़ों पर कम फल आते हैं. नए किसान खरीद नहीं सकते.
तस्वीर: AP
बुजुर्गों के बुजुर्ग पेड़
पश्चिमी अफ्रीका के किसानों की औसत उम्र 50 साल है. बहुत ही कम आमदनी के चलते युवा कोकोआ की खेती में कोई भविष्य नहीं देखते. घाना में सिर्फ 20 फीसदी किसान अपने बच्चों को कोकोआ की खेती करते देखना चाहते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Nabil Zorkot
फेयर ट्रेड की कोशिश
एक तरफ कोकोआ के किसानों की गरीबी है तो दूसरी तरफ अमीर चॉकलेट निर्माता कंपनियां. तीन कंपनियां दुनिया भर में लिक्विड चॉकलेट के 74 फीसदी बाजार को नियंत्रित करती हैं. अब इन कंपनियों को साथ लाकर गरीब किसानों को उनका हक दिलाने की कोशिश की जा रही है. जर्मनी समेत कई देशों में फेयरट्रेड से बनी चॉकलेट की मांग बढ़ रही है.