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भारत में तेजी से फैल रहा है बच्चों का कातिल

विवेक कुमार१७ अगस्त २०१६

भारत में 50 हजार से ज्यादा बच्चे मामूली बीमारियों से मर रहे हैं. एक सुपरबग है जो इनकी जान ले रहा है. और यह संख्या बढ़ने वाली है.

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तस्वीर: imago/imagebroker

भारत में हर साल दसियों हजार बच्चे पैदा होने के महज कुछ दिन में मर जाते हैं. ये बच्चे ऐसी मामूली बीमारियों से मरते हैं जिनका इलाज आसानी से किया जा सकता है. लेकिन ये मामूली बीमारियां सबसे बड़ी कातिल बन गई हैं.

समाचार चैनल अल जजीरा की एक डॉक्युमेंट्री फिल्म द राइज ऑफ इंडियाज सुपरबग ने इस बीमारी से हुई मौतों और अपने बच्चे खोने वाले मां-बाप की दिल तोड़ देने वाली तस्वीर पेश की है. फिल्म में अमरावती की अंजली ठाकुर का इंटरव्यू है जो बताती हैं कि उनकी बेटी वक्त से पहले पैदा हो गई थी, डॉक्टरों ने उसे बहुत दवाएं दीं लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका.

सुपरबग दरअसल एक ऐसा बैक्टीरिया है जिसने ऐंटिबायॉटिक्स के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता विकसित कर ली है. यानी इस बैक्टीरिया पर अब ऐंटिबायॉटिक्स का असर ही नहीं होता. इसका नतीजा यह हो रहा है कि भारत ने हाल ही में जो बच्चों की मौत की दर घटाने में सफलता पाई थी, वह खतरे में पड़ गई है. दुनिया भर में होने वाली नवजात मौतों में से एक तिहाई अब भी भारत में होती हैं. हाल ही में दुनिया के जानेमाने माइक्रोबायोलॉजिस्ट प्रोफेसर रामनन लक्ष्मीनारायणन ने अपने शोध में अंदाजा लगाया कि सुपरबग्स भारत में हर साल 58 हजार बच्चों की जान ले रहा है. अल जजीरा से बातचीत में उन्होंने कहा, "एंटिबायॉटिक्स प्रतिरोध के खतरे के मामले में भारत सबसे आगे खड़ा है. प्रतिरोधक संक्रमणों से होने वाली मौतों में भारत सबसे आगे है. इसका मतलब यह है कि ऐसे इंफेक्शन बच्चों की जान ले रहे हैं जिन्हें अब एंटिबायॉटिक्स से ठीक नहीं किया जा सकता."

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दिल्ली और वॉशिंगटन से चलने वाले सेंटर फॉर डिजीज डायनमिक्स, इकनॉमिक्स एंड पॉलिसी के निदेशक डॉ. रामनन ने अल जजीरा को बताया कि मरने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ने वाली है.

लेकिन शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय हो चुकी है. भारत में पहचाना गया कम से कम एक बैक्टीरिया ऐसा है जिस पर एंटीबायॉटिक्स असर नहीं करती हैं और अब यह दुनिया के 70 से ज्यादा देशों तक पहुंच चुका है. यह बैक्टीरिया इतना घातक है कि बाजार में उपलब्ध सबसे स्ट्रॉन्ग एंटिबायॉटिक्स भी इस पर असर नहीं कर रही हैं. इसका नतीजा यह हो रहा है कि पेशाब के इंफेक्शन और न्यूमोनिया जैसी बीमारियां भी जानलेवा हो जाएंगी. यानी दुनिया 50 साल पीछे चली जाएगी.

सुपरबग के प्रसार का दोष साफ-सफाई की खराब व्यवस्था और बढ़ती भीड़ पर तो है ही, लेकिन सबसे ज्यादा जिम्मेदार है एंटिबायॉटिक्स का बेइंतहा इस्तेमाल. भारत में एंटिबायॉटिक्स बिना डॉ़क्टर की सलाह के, बिना किसी पर्ची के बड़ी आसानी से लिए जा सकते हैं. पश्चिमी देशों जैसे जर्मनी में डॉक्टर्स बहुत गंभीर स्थिति में ही एंटिबायॉटिक्स देते हैं लेकिन भारत में स्थिति इसके उलट है. गले के सामान्य इंफेक्शन के लिए भी एंटिबायॉटिक गोली खाना आम बात है.

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