इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के सत्यापन को लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस मामले पर दो जजों की बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश जारी किए.
लोकसभा चुनाव के दौरान वोटों की गिनती करते अधिकारीतस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
विज्ञापन
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा, याचिका में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जली हुई मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट के सत्यापन की अनुमति देने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है.
सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा, "डाटा मिटाएं नहीं. डाटा को फिर से लोड न करें." कोर्ट ने कहा, "हमने केवल इतना निर्देश दिया था कि एक इंजीनियर आकर आवेदक-उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रमाणित करे कि माइक्रोचिप के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है."
चुनाव आयोग को चुनाव के बाद ईवीएम मेमोरी और माइक्रोकंट्रोलर जलाने की प्रक्रिया के बारे में कोर्ट को जानकारी देनी होगी.तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images
ईवीएम को लेकर कोर्ट का क्या आदेश था
दरअसल, एडीआर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि ईवीएम के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल, 2024 के आदेश के अनुरूप नहीं है. पिछले साल अप्रैल में जारी अपने आदेश में कोर्ट ने दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5 प्रतिशत ईवीएम की जली हुई मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर को नतीजों की घोषणा के बाद ईवीएम निर्माताओं के इंजीनियरों की एक टीम द्वारा जांच और सत्यापित कराने का विकल्प दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर के सत्यापन के लिए शुल्क का भुगतान करके चुनाव नतीजे घोषित होने के सात दिनों के भीतर अनुरोध किया जा सकता है. अगर ईवीएम में छेड़छाड़ पाई जाती है तो फीस लौटाई जाएगी.
एडीआर की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ईवीएम के सत्यापन के लिए केवल मॉक पोल करता है. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि कोई ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करें और देखें कि उनमें किसी तरह की हेराफेरी की गई है या नहीं."
ईवीएम को लेकर भारत में सवाल उठते रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग हर बार यह कहता आया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए ईवीएम बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
ईवीएम को लेकर जब राजनीतिक दल सवाल उठाने लगे तो चुनाव आयोग ने वीवीपैट को चुनावों में पेश किया. दरअसल इस वीवीपैट की मदद से मतदाता यह देख पाता है कि उसका वोट सही तरीके से पड़ा है या नहीं. जब वोटर अपना वोट डाल देता है तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है और वह बॉक्स में गिर जाती है. उस पर्ची पर वोटर ने जिस पार्टी को वोट दिया है उसका चुनाव चिन्ह दर्ज होता है. विवाद होने पर पर्ची को निकाला भी जाता है और उसे वेरिफाई किया जाता है.
सबसे पहले वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल 2013 में नागालैंड विधानसभा चुनाव में हुआ था. 2014 के लोकसभा चुनावों में भी कुछ सीटों पर इस मशीन का इस्तेमाल हो चुका है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था.
वोट देने से पहले जान लें कैसे काम करती है ईवीएम
चुनावों के दौरान अकसर ईवीएम के खराब होने या फिर हैक किए जाने जैसी खबरें भी शुरू हो जाती हैं. ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन होती क्या है और कैसे काम करती है, जानिए यहां.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पहली बार इस्तेमाल
1982 में केरल विधानसभा के उपचुनावों में पहली बार 50 मतदान केंद्रों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया. यह एक टेस्ट फेज था. फिर 1998 में 16 विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम लगाई गईं. इनमें से पांच मध्य प्रदेश में, पांच राजस्थान में और छह दिल्ली में थीं. ये मशीनें 1989 से 1990 के बीच बनाई गई थीं. साल 2000 के बाद से तीन लोकसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल हो चुका है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
इंटरनेट से लेना देना नहीं
भारत में इस्तेमाल होने वाली वोटिंग मशीनें वाईफाई या किसी भी तरह के नेटवर्क से जुड़ी नहीं होती हैं और ना ही एक मशीन दूसरी से कनेक्टेड होती है. चुनाव आयोग के अनुसार इस वजह से इन पर हैकिंग का खतरा नहीं रहता है. हर मशीन अपने आप में एकल डिवाइस है. एक मशीन के खराब होने का पूरी चुनावी प्रक्रिया पर कोई असर नहीं होता.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Beck
माइक्रो चिप का कमाल
वोटिंग का सारा डाटा एक माइक्रो चिप में सुरक्षित होता है. इस चिप के साथ ना तो कोई छेड़छाड़ की जा सकती है और ना ही रीराइट किया जा सकता है. यही ईवीएम को फूल प्रूफ भी बनाता है. लेकिन बावजूद इसके 2014 के लोकसभा चुनावों में धांधली के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि इन्हें सिद्ध नहीं किया जा सका है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/S. P. Chaudhury
कैसे काम करती है?
जिस किसी ने ईवीएम इस्तेमाल किया है या फिर उसकी तस्वीर देखी है, वह समझ सकता है कि हर पार्टी के निशान के सामने एक बटन होता है. एक व्यक्ति एक ही बार बटन दबा सकता है. इसके बाद मशीन लॉक हो जाती है. बार बार बटन दबाने से वोटिंग दोबारा नहीं होती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Rahi
मशीन के दो हिस्से
हर मशीन में एक बैलेटिंग यूनिट होती है और एक कंट्रोल यूनिट. बैलेटिंग यूनिट के जरिए मतदाता अपना वोट देता है और कंट्रोल यूनिट के जरिए पोलिंग अधिकारी मशीन को लॉक करता है. मतदान पूरा होने के बाद जो लॉक का बटन दबाया जाता है, उसके बाद मशीन कोई डाटा नहीं स्वीकारती.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Rahi
कुल कितने वोट?
एक ईवीएम में अधिकतम 3,840 वोट जमा किए जा सकते हैं. मतदान केंद्रों की योजना इस तरह से बनाई जाती है कि एक केंद्र में 1400 से ज्यादा मतदाताओं को आने की जरूरत ना पड़े. इस तरह से लोगों को घंटों लंबी लाइनों में नहीं लगना पड़ता है. और इसका मतलब यह भी है कि हर मशीन बूथ की क्षमता से दोगुना से भी ज्यादा लोगों के वोट जमा कर सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/V. Bhatnagar
कितनी लंबी सूची?
एक मशीन में 16 उम्मीदवार दर्ज किए जा सकते हैं. लेकिन अगर उम्मीदवारों की सूची इससे लंबी हो तो एक और मशीन को साथ में जोड़ा जा सकता है. इसी तरह अगर 32 में भी सूची पूरी ना हो रही हो तो एक तीसरी और चौथी मशीन को भी कनेक्ट किया जा सकता है. लेकिन ईवीएम की सीमा 64 है यानी पांचवीं मशीन को नहीं जोड़ा जा सकता. वैसे, अब तक इसकी जरूरत भी नहीं पड़ी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki
क्या वोट हो जाते हैं ट्रांसफर?
वोटिंग मशीन हो या फिर बैलेट पेपर, पार्टी के निशान किस क्रम में लगाए जाएंगे ये इस पर निर्भर करता है कि नामांकन कब दाखिल किया गया था और कब उसकी जांच पूरी हुई. इस प्रक्रिया को पहले से निर्धारित नहीं किया जा सकता. इसलिए पहले से किसी के लिए भी पार्टी के क्रम को जानना और मशीन को उस हिसाब से सेट करना संभव नहीं होता.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath
कहां कौन सी मशीन?
कौन सी मशीनें किस मतदान केंद्र में पहुंचेंगी इसकी जानकारी भी गुप्त रखी जाती है. मशीनें दो चरणों में चुनी जाती हैं और वो भी बेतरतीब ढंग से ताकि योजनाबद्ध उन्हें किसी एक केंद्र में ना भेजा जा सके. पहला चरण कंप्यूटर के हाथ में होता है और दूसरा पोलिंग अधिकारी के हाथ में.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/V. Bhatnagar
कैसे चुनते हैं मशीन को?
हर मशीन का एक क्रमांक होता है. इनके आधार पर एक सूची बनाई जाती है. फिर पहले चरण में कंप्यूटर इस सूची में से अनियमित रूप से कुछ मशीनों को चुनता है. इसे फर्स्ट लेवेल रैंडमाइजेशन कहा जाता है. दूसरे चरण में अधिकारी अपने पोलिंग बूथ के लिए कुछ मशीनों को साथ ले कर जाता है. ये सेकंड लेवेल रैंडमाइजेशन कहलाता है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/V. Bhatnagar
वीवीपैट क्या होता है?
2010 में चुनाव आयोग ने वीवीपैट यानी वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल की शुरुआत की. इसके तहत वोट डालने के बाद हर मतदाता को उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न वाली एक पर्ची मिलती है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वोट सही डला है. वीवीपैट का इस्तेमाल पहली बार 2013 में नागालैंड के उपचुनाव में हुआ. जून 2014 में चुनाव आयोग ने इसे 2019 लोकसभा चुनावों में हर पोलिंग बूथ पर लागू करने का आदेश दिया.
तस्वीर: picture alliance/Pacific Press/F. Khan
कितने देश करते हैं इस्तेमाल?
दुनिया भर के 31 देशों में ईवीएम का इस्तेमाल हो चुका है. लेकिन भारत के अलावा केवल ब्राजील, भूटान और वेनेजुएला ही देश भर में इनका इस्तेमाल कर रहे हैं. जर्मनी, नीदरलैंड्स और पराग्वे में इनका इस्तेमाल शुरू किया गया और फिर रोक लगा दी गई. जर्मनी और नीदरलैंड्स के अलावा इंग्लैंड और फ्रांस में भी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता है. हालांकि वहां इस पर रोक नहीं लगाई गई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ईवीएम से दूरी
2009 में जर्मनी की एक अदालत ने कहा कि कंप्यूटर आधारित इस सिस्टम को समझने के लिए प्रोग्रामिंग की जानकारी होना जरूरी है, जो आम नागरिकों के पास नहीं हो सकती, इसलिए मतदान का यह तरीका पारदर्शी नहीं है. अमेरिका में फैक्स या ईमेल के जरिए ई-वोटिंग की जा सकती है लेकिन मशीनों का इस्तेमाल वहां भी नहीं होता.