महाराष्ट्र विधान सभा से बीजेपी के 12 विधायकों के एक साल के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा है कि निलंबन ज्यादा से ज्यादा सत्र की अवधि के लिए हो सकता था, लेकिन पूरे साल के लिए करना असंवैधानिक है.
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मामला जुलाई 2021 का है जब महाराष्ट्र विधान सभा में बीजेपी के 12 विधायकों को विधान सभा अध्यक्ष के साथ कथित रूप से हाथापाई करने के लिए सभा से एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था.
इन 12 विधायकों में आशीष शेलर, संजय कुटे, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भटखल्कर, हरीश पिम्पले, जयकुमार रावल, योगेश सागर, नारायण कुचे, बंटी भांगड़िया, पराग अलवाणी और राम सटपुटे शामिल थे.
क्या हुआ था विधान सभा में
उस समय कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन की महाराष्ट्र सरकार केंद्र सरकार से पिछड़े वर्गों के आंकड़े मांगने के लिए एक प्रस्ताव ले कर आई थी. बीजेपी ने इस पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा था कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का राज्य सरकार ने पालन नहीं किया था जिसकी वजह से वो रद्द हो गए थे.
इस बात को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में बहस हुई और उसके बाद बीजेपी के विधायक उस समय अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे शिवसेना विधायक भास्कर जाधव के स्थान पर चढ़ गए और उनका माइक मोड़ दिया.
भास्कर ने बाद में आरोप लगाया कि ये सब होने के बाद जब सभा की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया तब बीजेपी के विधायकों ने उपाध्यक्ष के कमरे में उनको घेर लिया और उन्हें अपशब्द कहे.
इसके बाद सदन की कार्यवाही कई बार बाधित हुई. बाद में संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब बीजेपी के इन विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव ले कर आए, जो ध्वनि मत से पारित कर दिया गया.
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'नैसर्गिक न्याय' का उल्लंघन
नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने माना कि बीजेपी के विधायकों ने गलत किया था जिसकी लिए उन्होंने जाधव से माफी भी मांग ली थी, लेकिन विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करना अलोकतांत्रिक है.
फडणवीस ने आरोप लगाया था कि सरकार ऐसा विधान सभा में जानबूझ कर विपक्ष के विधायकों की संख्या कम करने के लिए कर रही है. बाद में बीजेपी के विधायकों ने अपने निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
विधायकों ने अदालत से कहा कि उनका निलंबन संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के आगे बराबरी) का और 'नैसर्गिक न्याय' के सिद्धांतों का उल्लंघन है. उन्होंने अभद्र भाषा के इस्तेमाल और हाथापाई करने के आरोपों से इनकार भी किया और कहा कि इसके बावजूद उन्होंने अध्यक्ष से माफी भी मांगी थी.
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि हाथापाई के आरोपों की जांच के लिए उन्होंने उपाध्यक्ष के कमरे की सीसीटीवी फुटेज दिखाने की मांग की थी लेकिन उनकी मांग को विधान सभा के नियमों का हवाला देते हुए ठुकरा दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में निलंबन को रद्द करते हुए कहा कि विधान सभा के नियमों के तहत विधायकों को सिर्फ उस सत्र की अवधि के लिए निलंबित किया जा सकता था, पूरे साल के लिए नहीं. अदालत ने कहा, "विधान सभा के सभा प्रस्ताव कानून की नजर में द्वेषपूर्ण हैं और उन्हें कानूनी तौर पर अप्रभावी घोषित किया जाता है."
भारत में सत्ता और संवैधानिक संकट
राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के कारण एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है, जिसमें स्पीकर को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. हाल में और किन राज्यों में हुआ है सत्ता को लेकर संवैधानिक संकट?
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
मध्य प्रदेश
नवंबर 2018 में हुए विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस ने सरकार बनाई गई थी और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कमल नाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट का सामना करने का आदेश दिया. इसके कमल नाथ ने इस्तीफा दे दिया और शिवराज नए मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: imago images/Hindustan Times
कर्नाटक
2018 में हुए विधान सभा चुनावों के बाद राज्यपाल ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए निमंत्रण दे दिया. कांग्रेस इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई और आधी रात को अदालत में सुनवाई हुई. बाद में अदालत ने राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराते हुए फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जेडी (एस) के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: IANS
कर्नाटक (दोबारा)
जुलाई 2019 में जेडी (एस) और कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की सरकार अल्पमत में आ गई. विधायक जब मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए तब अदालत ने स्पीकर को विधायकों का इस्तीफा मंजूर करने का आदेश दिया और बाद में उन्हें अयोग्य घोषित किए जाने से सुरक्षा भी प्रदान की. विधान सभा में फ्लोर टेस्ट हुआ और कुमारस्वामी की सरकार गिर गई. बीजेपी के येदियुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/S. Forster
महाराष्ट्र
नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के नतीजे आ जाने के दो सप्ताह तक रही अनिश्चितता के बीच एक दिन अचानक राज्यपाल ने बीजपी नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. कांग्रेस और एनसीपी ने राज्यपाल के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. अदालत के फ्लोर टेस्ट के आदेश देने पर फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना ने मिलकर सरकार बनाई.
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जम्मू और कश्मीर
जून 2018 में जम्मू और कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार से बीजेपी के अचानक समर्थन वापस ले लेने से राजनीतिक और संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस्तीफा देना पड़ा. राज्य में राज्यपाल का शासन लगा दिया गया. छह महीने बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और अगस्त 2019 में केंद्र ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर दिया और उसकी जगह दो केंद्र-शासित प्रदेश बना दिए.
तस्वीर: Getty Images/S. Hussain
बिहार
जुलाई 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली अपनी ही सरकार गिरा दी. कुमार को बीजेपी के विधायकों का समर्थन मिल गया और राज्यपाल ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का निमंत्रण दे दिया. आरजेडी ने पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर कर दी जो खारिज कर दी गई और कुमार फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित कर फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: IANS
गोवा
मार्च 2017 में गोवा विधान सभा चुनावों के बाद जब राज्यपाल ने बीजेपी नेता मनोहर परिकर को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया, तब सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी कांग्रेस ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, जिसमें मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण करने के बाद परिकर ने बहुमत साबित कर दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
अरुणाचल प्रदेश
दिसंबर 2015 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुछ विधायकों और डिप्टी स्पीकर ने विद्रोह के बाद स्पीकर पर महाभियोग लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. स्पीकर ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. जनवरी 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. फरवरी में कलिखो पुल ने सरकार बना ली. जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को गैर-कानूनी करार दिया और कांग्रेस की सरकार को बहाल किया.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Yadav
उत्तराखंड
मार्च 2016 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के विद्रोही विधायकों ने विपक्ष के साथ मिलकर बजट पर वोटिंग की मांग की, लेकिन स्पीकर ने ध्वनि मत से बजट पारित करा दिया. विद्रोही विधायक राज्यपाल के पास चले गए और उनकी अनुशंसा पर केंद्र ने मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार बर्खास्त कर दी. राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. रावत की याचिका पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटा दिया और रावत सरकार को बहाल किया.