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विधायकों के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

चारु कार्तिकेय
२८ जनवरी २०२२

महाराष्ट्र विधान सभा से बीजेपी के 12 विधायकों के एक साल के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा है कि निलंबन ज्यादा से ज्यादा सत्र की अवधि के लिए हो सकता था, लेकिन पूरे साल के लिए करना असंवैधानिक है.

Indien Maharashtra Ministerpräsident Devendra Fadnavis
तस्वीर: P. Paranjpe/AFP/Getty Images

मामला जुलाई 2021 का है जब महाराष्ट्र विधान सभा में बीजेपी के 12 विधायकों को विधान सभा अध्यक्ष के साथ कथित रूप से हाथापाई करने के लिए सभा से एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था.

इन 12 विधायकों में आशीष शेलर, संजय कुटे, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भटखल्कर, हरीश पिम्पले, जयकुमार रावल, योगेश सागर, नारायण कुचे, बंटी भांगड़िया, पराग अलवाणी और राम सटपुटे शामिल थे.

क्या हुआ था विधान सभा में

उस समय कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन की महाराष्ट्र सरकार केंद्र सरकार से पिछड़े वर्गों के आंकड़े मांगने के लिए एक प्रस्ताव ले कर आई थी. बीजेपी ने इस पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा था कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का राज्य सरकार ने पालन नहीं किया था जिसकी वजह से वो रद्द हो गए थे.

महाराष्ट्र में शिव सेना, कोंग्रेस और एनसीपी की सरकार बनने के बाद इन पार्टियों की बीजेपी के साथ उठापठक जारी हैतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/H. Bhatt

इस बात को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में बहस हुई और उसके बाद बीजेपी के विधायक उस समय अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे शिवसेना विधायक भास्कर जाधव के स्थान पर चढ़ गए और उनका माइक मोड़ दिया.

भास्कर ने बाद में आरोप लगाया कि ये सब होने के बाद जब सभा की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया तब बीजेपी के विधायकों ने उपाध्यक्ष के कमरे में उनको घेर लिया और उन्हें अपशब्द कहे.

इसके बाद सदन की कार्यवाही कई बार बाधित हुई. बाद में संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब बीजेपी के इन विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव ले कर आए, जो ध्वनि मत से पारित कर दिया गया.

'नैसर्गिक न्याय' का उल्लंघन

नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने माना कि बीजेपी के विधायकों ने गलत किया था जिसकी लिए उन्होंने जाधव से माफी भी मांग ली थी, लेकिन विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करना अलोकतांत्रिक है.

फडणवीस ने आरोप लगाया था कि सरकार ऐसा विधान सभा में जानबूझ कर विपक्ष के विधायकों की संख्या कम करने के लिए कर रही है. बाद में बीजेपी के विधायकों ने अपने निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

इस फैसले से एक बार फिर विधायिका और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र पर बहस छिड़ सकती हैतस्वीर: picture-alliance/dpa/STR

विधायकों ने अदालत से कहा कि उनका निलंबन संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के आगे बराबरी) का और 'नैसर्गिक न्याय' के सिद्धांतों का उल्लंघन है. उन्होंने अभद्र भाषा के इस्तेमाल और हाथापाई करने के आरोपों से इनकार भी किया और कहा कि इसके बावजूद उन्होंने अध्यक्ष से माफी भी मांगी थी.

उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि हाथापाई के आरोपों की जांच के लिए उन्होंने उपाध्यक्ष के कमरे की सीसीटीवी फुटेज दिखाने की मांग की थी लेकिन उनकी मांग को विधान सभा के नियमों का हवाला देते हुए ठुकरा दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में निलंबन को रद्द करते हुए कहा कि विधान सभा के नियमों के तहत विधायकों को सिर्फ उस सत्र की अवधि के लिए निलंबित किया जा सकता था, पूरे साल के लिए नहीं. अदालत ने कहा, "विधान सभा के सभा प्रस्ताव कानून की नजर में द्वेषपूर्ण हैं और उन्हें कानूनी तौर पर अप्रभावी घोषित किया जाता है."

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