पतंजलि पर आयुर्वेदिक उत्पादों के प्रचार के लिए आधुनिक चिकित्सा की छवि खराब करने वाले भ्रामक विज्ञापन चलाने पर मुकदमा चल रहा है. अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण की क्षमा प्रार्थना अस्वीकार करते हुए कंपनी को फटकार लगाई है.
अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण को सुनवाई में मौजूद रहने का आदेश दिया था. तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
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सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल को कहा कि वह अदालत की अवमानना के मामले में पतंजलि के सह-संस्थापक बाबा रामदेव और प्रबंधक निदेशक आचार्य बालकृष्ण की क्षमा प्रार्थना को अस्वीकार कर सकती है. पतंजलि और इन दोनों पर भ्रामक प्रचार चलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के आरोप हैं.
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने फटकार लगाते हुए कंपनी के रवैये की कड़े शब्दों में निंदा की. जजों ने यहां तक कहा कि पतंजलि अदालत में झूठी गवाही देने की भी दोषी प्रतीत हो रही है. सॉलिसिटर जनरल के हस्तक्षेप पर अदालत ने पतंजलि को एक हफ्ते का अतिरिक्त समय दिया.
क्या है मामला
मूल मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर की गई एक याचिका से जुड़ा है. इसमें आईएमए ने आरोप लगाया था कि पतंजलि और रामदेव ने कोविड-19 टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ विज्ञापन अभियान चलाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के मामलों में कानून के महत्व को समझने की जरूरत पर जोर दिया. तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo
नवंबर 2023 में अदालत ने बीमारियों का समूचा इलाज करने वाली दवाओं के झूठे दावों पर प्रति शिकायत पतंजलि के ऊपर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी थी. यह भी आदेश दिया था कि कंपनी भविष्य में झूठे विज्ञापन ना निकाले. इस आदेश के बावजूद पतंजलि ने फिर से ऐसे विज्ञापन निकाले, जिसके बाद अदालत ने ऐसे विज्ञापनों पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया. साथ ही, पतंजलि और बालकृष्ण के नाम अवमानना के नोटिस जारी कर दिए.
अवमानना के मामले में जब कंपनी ने अपना जवाब अदालत में दाखिल नहीं किया, तो 19 मार्च को कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को अगली सुनवाई में मौजूद रहने का आदेश दिया. इसके बाद 21 मार्च को बालकृष्ण ने इन विज्ञापनों के लिए अदालत में हलफनामा दाखिल कर बिना शर्त माफी मांगी.
कंपनी ने यह दलील दी कि वह कानून के शासन का पूरा आदर करती है, लेकिन उसके मीडिया विभाग को विज्ञापन रोकने के अदालती आदेश की जानकारी नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ठुकरा दिया और कहा, "अवमानना के मामलों में इस तरह का सलूक नहीं किया जाता है. कुछ मामलों को उनकी तार्किक परिणति तक ले ही जाना पड़ता है. इतनी दरियादिली नहीं दिखाई जा सकती."
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सरकार को भी फटकार
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय पर भी इस मामले में कोई कदम नहीं उठाने के लिए नाराजगी जताई. पीठ ने कहा कि कोविड के दौरान 2022 में खुद मंत्रालय ने कहा था कि पतंजलि के उत्पाद महामारी के खिलाफ आधुनिक दवाइयों के सप्लीमेंट से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
इलाज के और भी कई तरीके हैं
भारत में डॉक्टर एनएमसी विधेयक से नाराज हैं क्योंकि यह वैकल्पिक चिकित्सा को मुख्यधारा से जोड़ता है. लेकिन यह वैकल्पिक चिकित्सा या अल्टरनेटिव मेडिसिन है क्या?
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एलोपैथी
भारत के अलावा शायद ही कहीं इस शब्द का इस्तेमाल होता है. आम तौर पर इसे मेनस्ट्रीम मेडिसिन कहा जाता है क्योंकि दुनिया भर में दवा से इलाज का यही तरीका स्थापित है. इसके अलावा हर तरीके को अल्टरनेटिव माना जाता है. इसमें घरेलू नुस्खे भी आते हैं और कुछ तरह की खास तकनीक भी.
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आयुर्वेद
जड़ी बूटियों पर आधारित भारत का प्राचीन विज्ञान आयुर्वेद अब विदेशों में भी प्रचलित होने लगा है. भारत में कई कॉलेज हैं जहां आयुर्वेद की पढ़ाई की जा सकती है. आयुर्वेद के डॉक्टर अक्सर नाड़ी पकड़कर ही बीमारी के बारे में बता देते हैं.
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नैचुरोपैथी
यह भी आयुर्वेद जैसा ही है लेकिन पश्चिम के सिद्धांतों और वहां मिलने वाली चीजों पर आधारित है. जैसा कि नाम से पता चलता है, इसमें नेचर यानि कुदरत पर यकीन किया जाता है. दवाओं की जगह तरह तरह के फूल पत्तों और बीजों का इस्तेमाल किया जाता है.
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होम्योपैथी
जर्मनी से निकला चिकित्सा का यह तरीका आज जर्मनी से ज्यादा भारत में लोकप्रिय है. इसका सिद्धांत है कि जहर को जहर ही काटता है, इसलिए बीमारी की वजह से ही बीमारी को ठीक किया जाता है. होम्योपैथी का नाम सुनते ही चीनी की छोटी छोटी गोलियां याद आती हैं लेकिन इन गोलियों में दवा मिली होती है.
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एक्यूप्रेशर
हाथों और पैरों पर कुछ खास बिंदुओं पर जोर लगाया जाता है और इससे बीमारी को ठीक किया जाता है. इस तकनीक में माना जाता है कि हाथों और पैरों से पूरे शरीर में ऊर्जा पहुंचती है. ऊर्जा के बहाव के रुकने के कारण ही इंसान बीमार होता है. इसलिए बिंदुओं पर जोर लगा कर ऊर्जा के बहाव को फिर से शुरू करना होता है.
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एक्यूपंक्चर
इसका सिद्धांत भी एक्यूप्रेशर जैसा ही है, फर्क इतना है कि बिंदुओं को दबाने की जगह उनमें सुई लगाई जाती है. जोड़ों के दर्द ने निजात पाने के लिए और अवसाद में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. चीन से निकला इलाज का यह तरीका आज पश्चिम में अपनी जगह बना चुका है.
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रेकी
यहां भी ऊर्जा ही केंद्र में है. रेकी में माना जाता है कि बीमारी या अवसाद शरीर में ऊर्जा के कम होने का संकेत हैं. जब शरीर में ऊर्जा की मात्रा सही होती है, तो शरीर स्वस्थ और व्यक्ति खुशमिजाज रहता है. रेकी के दौरान चिकित्सक अपने हाथों के जरिये मरीज में ऊर्जा उतारने की कोशिश करता है.
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कायरोप्रैक्टिस
पारंपरिक रूप से पीठ में दर्द होने पर पहलवान के पास मालिश के लिए भेजा जाता है. कायरोप्रैक्टिकर भी कुछ ऐसे ही काम करता है. इस चिकित्सक का मुख्य काम रीढ़ की हड्डी को ठीक करना है. रीढ़ पर दबाव डाल कर वह उसे सीधा करता है और रीढ़ की मांसपेशियों के संतुलन पर ध्यान देता है.
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अरोमा थेरेपी
यहां अरोमा यानि खुशबू से इलाज किया जाता है. तरह तरह के फूल पत्तों और बीजों के तेल का इस्तेमाल होता है. अक्सर इस तेल को पानी में मिला कर जलाया जाता है, जिससे मरीज खुशबू ले सके. कई बार इस तेल से मालिश भी की जाती है. सरदर्द, घबराहट और डिप्रेशन में इसका काफी फायदा देखा गया है.
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कीगॉन्ग
यह एक चीनी विद्या है जो व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान और मार्शल आर्ट्स का मिश्रण है. यह आध्यात्म से भी जुड़ा है और माना जाता है कि कीगॉन्ग के सही इस्तेमाल से मरीज खुद ही अपना इलाज कर सकता है.
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पीठ ने रेखांकित किया कि इसके बावजूद मंत्रालय ने इस बात का जरा भी प्रचार नहीं किया, जबकि उस समय केंद्र सरकार के बिना कोई काम नहीं हो सकता था. अदालत ने कहा, "हमारे पास आयुष (मंत्रालय) के लिए सवाल हैं. आपने पतंजलि को नोटिस जारी किया था और उन्होंने आपको जवाब भेजा था, लेकिन वो जवाब आपने हमें नहीं दिया. हम सोच रहे हैं कि आपने ऐसा क्यों किया."
मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी. अदालत ने उस सुनवाई में भी रामदेव और बालकृष्ण को मौजूद रहने के लिए कहा है और तब क्षमा प्रार्थना के लिए एक बेहतर हलफनामा भी दाखिल करने का निर्देश दिया है.