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समाज

रिया चक्रवर्ती को ‘डायन’ बता कर ‘सती’ करने पर उतारू लोग

७ सितम्बर २०२०

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले पर देश के तमाम लोगों ने बिना सुबूत, गवाही या किसी भी अदालत में सुनवाई के रिया चक्रवर्ती को हत्या का दोषी मान लिया है. 21वीं सदी के समाज में यह कैसी मध्ययुगीन अदालत है?

Rhea Chakraborty indische Schauspielerin
तस्वीर: IANS

रिया और सुशांत एक दूसरे के प्यार में थे और सुशांत की मौत के कुछ दिन पहले तक एक साथ उनके घर में लिव-इन में रहते थे. ये दोनों उसी बॉलीवुड से आते हैं, जो हिंदी फिल्में देखने वालों को सौ साल से दिखाता आया है कि प्यार और तकरार, रूठना और मनाना, मिलना और बिछड़ना रोमांटिक संबंधों में लगा ही रहता है. ऐसे एक रोमांटिक जोड़े के बीच क्या हुआ होगा, यह तो किसी को ठीक ठीक पता नहीं लेकिन सबने अपनी अपनी फिल्मी कहानियां रच डालीं.

इस पूरे मामले पर मीडिया की मनमानी और गैरजिम्मेदाराना कवरेज ने समाज के तमाम रूढ़िवादी धारणाओं से ग्रस्त लोगों की सोच को हवा दे दी, जो अव्वल तो अपनी मर्जी से किसी पुरुष के साथ रहने वाली महिला की इज्जत नहीं करते और मौका मिलने पर उसे डायन करार देने से भी पीछे नहीं हटते. ऐसे लोगों की चले तो वे बिना किसी के दोषी साबित हुए ही आज के युग में भी महिला को चिता सजा कर जिंदा जला दें. सैकड़ों साल पहले तमाम संघर्ष के बाद जिन कुप्रथाओं को मिटाया गया, उसकी जड़ें कहीं ना कहीं आज भी इस सोच के रूप में हमारे अंदर मौजूद हैं.

ऋतिका पांडेय तस्वीर: DW/P. Henriksen

आर्थिक और सामाजिक रूप से भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल बिहार से आकर भी सुशांत ने अपनी प्रतिभा और लगन के बल पर अपना सपना पूरा किया. नहीं पता कि इसके बाद उनके अपने परिवार से रिश्ते कितने बदले, लेकिन रिया के साथ उनके 'लिव-इन' रिश्ते में होना सबको खटका और दोनों पक्षों के रवैये से साफ है कि रिया और सुशांत के परिवार के किसी भी सदस्य की आपस में नहीं बनती थी. लेकिन एक प्रतिभाशाली अभिनेता के इस दुखद अंत के बाद से तो उनके परिवार से रिश्ते खराब होने से लेकर खुद उनकी मौत के लिए भी सीधे तौर पर एक ही इंसान पर निशाना साधा गया और वह रहीं गर्लफ्रेंड रिया.

बिहार में जेडीयू नेता महेश्वर हजारी ने रिया को विष-कन्या का विशेषण देते हुए बयान दिया कि "उन्हें एक सोची-समझी साजिश के तहत भेजा गया सुशांत को प्यार के जाल में फंसाने के लिए और उन्होंने उनका क्या हाल किया हम सब जानते हैं.” ऐसे बयानों की सोशल मीडिया पर तो जैसे झड़ी लग गई जिसमें रिया ही नहीं सभी "बंगाली औरतों” पर लैंगिक भेदभाव के साथ साथ क्षेत्रवाद में लिपटी हुई टिप्पणियां की गईं. बिहार समेत समूचे गोबर पट्टी से लिव-इन करने वाली, अंग्रेजी बोलने वाली, शादी के पहले यौन संबंध को पाप ना मानने वाली और ऊंचे स्वर में स्पष्टता से अपनी बात रखने वाली तमाम बंगाली औरतों के चरित्र की बधिया उधेड़ दी गई "जो काला जादू कर उत्तर भारत के मर्दों को बिगाड़ देती हैं.”

इतिहास के मध्यकाल में ऐसे ही काला जादू करने का आरोप लगा कर महिलाओं को निशाना बनाया जाता था. उन्हें घर से बाहर खींच कर सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाता और कभी पत्थर मार कर तो कभी सूली चढ़ाकर इसकी ‘सजा' दी जाती. आज रिया भी उसी सलीब पर टांगी गई हैं. भारत समेत दुनिया भर में पहले न्याय व्यवस्था से बाहर समाज में ही कभी अपने किसी फायदे तो कभी कोई कुंठा निकालने के लिए तमाम महिलाओं को डायन, चुड़ैल बता कर उनका अपमान करने और क्रूर अंजाम तक पहुंचाने की अनगिनत मिसालें रही हैं.

महिलाओं पर अत्याचार करने से भी ज्यादा मजा कई कुंठित लोगों को उन पर अत्याचार होते देखने मे आता है. इसका प्रमाण मध्यकाल में खुले मैदानों में इकट्ठे हुए लोगों से लेकर, आज के गावों में चुड़ैल बता कर रस्सी से बांध कर, मुंह काला कर, कपड़े फाड़ कर और अंतत: पेड़ से बांध कर तब तक कष्ट देने की घटनाओं में साफ समझ आता है, जब तक वह महिला टूट कर खत्म ना हो जाए. महिला-सशक्तिकरण की थीम पर बनी पुरानी से लेकर इस साल आई बुलबुल जैसी कुछ फिल्में देखिए तो पता चलता है कि इनमें महिलाओं पर हिंसा और अत्याचार को कितने विस्तार से दिखाया जाता है. ऐसा लगता है कि फिल्म बनाने वाले भी इसका एक एक पल इत्मीनान से दिखाना चाहते हैं क्योंकि दर्शकों में इसे देखने की इतनी भूख है. अंत में महिला (या उसके भूत) के हाथों अत्याचारियों की हत्या करवा कर कहानी खत्म कर दी जाती है.

इस समय मीडिया में जैसी कहानी रिया के इर्द गिर्द बुनी गई है, वैसा कुछ दशक पहले सदाबहार अभिनेत्री रेखा के साथ भी हुआ था. जो रेखा 1970 और 1980 के दशक तक आजादख्याल और अपने ख्यालों को बेबाकी से रखने के लिए जानी जाती थीं, अचानक उनके पति की आत्महत्या के बाद बदल गईं. इतनी बड़ी निजी त्रासदी से किसी का थोड़ा बदल जाना समझा जा सकता है लेकिन उस समय भी मीडिया ने रेखा का जैसा चरित्र हनन किया और उनके पति मुकेश अग्रवाल की मां ने उन्हें "बेटे को खाने वाली डायन” बताया था, उसका असर यह रहा कि अपने स्वभाव के विपरीत रेखा ने तबसे खुद को बाकी दुनिया से काट कर जिया है. कम उम्र में केवल कुछ महीनों की शादी के बाद अपने पति को खोने वाली महिला से सहानुभूति दिखाने के बजाए रेखा को ही डायन, चुड़ैल और ना जाने क्या क्या कहा गया और अब कुछ वैसा ही रिया के साथ होता दिख रहा है.

सच तो ये है कि घर के बेडरूम, किचन और बच्चों के कमरे से बाहर निकल कर कुछ भी करने वाली हर आम महिला पर यह खतरा हमेशा मंडराता रहता है. अभिनेत्रियां तो आमतौर पर औसत से ज्यादा खूबसूरत और आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती हैं, इसलिए उन पर इसका खतरा और ज्यादा है. जिस महिला के लिए पितृसत्तात्मक समाज ने घर में खाना पकाने और परोसने का काम तय किया था, वो अगर ऐसा नहीं करती तो खाने में जहर देने वाली औरत हो सकती है. जिसे बच्चे पैदा करने और परवरिश करने का काम दिया था, वो अगर अपने बच्चे पैदा नहीं करना चाहती, तो उसे भी चुड़ैल करार दिया जा सकता है क्योंकि ऐसी हर औरत इन एकतरफा मानकों पर खरी ना उतरने वाली एक ‘मिसफिट' है. सुशांत के परिवार का दुख तो समझ आता है लेकिन बाकी लोग जो इस मामले में रिया का खून मांग रहे हैं, उन्हें एक बार सोचना चाहिए कि वे खुद क्या बन गए हैं.

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