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समाज

म्यांमार: सू ची की पार्टी ने किया जीत का दावा

१० नवम्बर २०२०

आंग सान सू ची की पार्टी देश की संसद में दोबारा बहुमत पाने के लिए अग्रसर दिख रही है. वहीं इस चुनाव में आलोचना हो रही है कि कई हजार रोहिंग्या मुसलमानों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने से वंचित किया गया.

तस्वीर: Aung Shine Oo/AP Photo/picture alliance

आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रैसी पार्टी (एनएलडी) ने कहा है कि उसने संसदीय चुनाव में अभूतपूर्व जीत दर्ज की है. म्यांमार में रविवार को संसदीय चुनाव हुए थे और पार्टी का कहना है कि वह पिछले चुनाव से भी अधिक सीटें जीतने वाली हैं. 2015 के चुनाव में भी एनएलडी ने भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी. सोमवार को सू ची की पार्टी ने दावा किया कि वह इस चुनाव में भी जीत दर्ज करने जा रही है. रविवार को हुए चुनाव में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों को मतदान के अधिकार से वंचित किया गया जिसकी आलोचना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई थी. एनएलडी के प्रवक्ता मोन्यवा आंग शिन ने कहा, "मैं पुष्टि करता हूं कि हम 322 से अधिक सीटें जीत रहे हैं." देश की संसद में कुल 642 सीटें हैं और शिन के मुताबिक उनकी पार्टी का लक्ष्य 377 से अधिक सीटें हासिल करने का है. उनके मुताबिक, "हो सकता है कि हम इससे भी ज्यादा सीटें जीत जाएं."

चुनाव आयोग ने सोमवार को नतीजों का ऐलान करना शुरू किया, लेकिन नतीजे जारी होने तक एक हफ्ता लग सकता है. अभी तक नौ विजेताओं के नाम की घोषणा की गई है और सभी एनएलडी के सदस्य है.

शांति का नोबेल जीतने वाली सू ची की पार्टी ने 2015 चुनाव में जीत हासिल की थी और इसी के साथ देश से 50 साल के सैन्य शासन का अंत हुआ था. गौरतलब है कि संसद की 25 प्रतिशत सीटें म्यांमार की सेना के लिए आरक्षित हैं. 2008 के संविधान के अनुसार संसद की 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई हैं. इसी वजह से सरकार वहां संविधान में सुधार करने में नाकाम रहती हैं. पीपुल्स एलायंस फॉर क्रेडिबल इलेक्शंस नाम की संस्था का कहना है कि चुनाव में हिंसा की आशंका के बावजूद रविवार को हुए मतदान शांतिपूर्ण रहे.

मताधिकार से वंचित!

एक समय में सू ची को क्षेत्र में लोकतंत्र की सबसे मजबूत नेता के तौर पर देखा जाता था. लेकिन रोहिंग्या मुस्लमानों के साथ देश में संकट को संभाल पाने में नाकाम होने पर उनकी साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिरी है. 2020 के चुनावों में मुख्य चिंता का विषय उन रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर था जिनको वोट देने के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए. फॉर्टिफाई राइट्स संगठन के इस्माइल वॉल्फ के मुताबिक, "अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत चुनावों का एक मुख्य सिद्धांत सार्वभौमिक और समान मताधिकार है और रविवार को यह नहीं हुआ. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को रोहिंग्या और अन्य जातीय लोगों से अधिकार छीने जाने की निंदा करनी चाहिए और भविष्य में ऐसा ना हो इसको सुनिश्चित करना चाहिए."

देश में 3.7 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं, जिसमें पांच लाख युवा हैं, जिन्होंने पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

एए/सीके (एपी, एएफपी)

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