"मैंने भले जन्म किसी और को दिया हो, लेकिन तीन साल से जिस बच्चे ने मुझे मां होने का अलौकिक सुख दिया, अब वही मेरा बेटा है. मेरे लिए खून के रिश्ते से ममता की अहमियत कहीं ज्यादा है." यह कहते हुए सलमा परवीन भावुक हो जाती हैं.
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सलमा के घर से लगभग 24 किलोमीटर दूर एक किसान अनिल बोरो की पत्नी शिवाली बोरो भी लगभग यही बात कहती हैं. वह कहती हैं, "अब यही मेरा बेटा है. शायद नियति को यही मंजूर था." यह पूरी कहानी कुंभ के मेले में बिछड़ने वाले बच्चों की किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.
असम के बोड़ो-बहुल दरंग जिले में रहने वाली सलमा और शिवाली में यूं तो कोई समानता नहीं है. सलमा मुस्लिम हैं और उनके पति शहाबुद्दीन अहमद शिक्षक हैं. उधर, बोड़ो जनजाति के अनिल बोरो पेशे से एक किसान हैं. वह अपने सात बीघे खेतों में खेती कर रोजी-रोटी कमाते हैं. राज्य के इस इलाके में बीते कुछ सालों से बोड़ो और मुसलमानों के बीच अक्सर हिंसा भड़कती रही है. लेकिन एक घटना ने इन दोनों परिवारों को एक ऐसे धागे से बांध दिया है जिसकी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले.
तीन साल पहले एक मानवीय भूल ने सांप्रदायिक और जातिगत ऊंच-नीच से ऊपर उठते हुए इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल तो कायम की ही है, मजहब की दीवारें भी ढहा दी हैं. लगभग तीन साल पहले 11 मार्च, 2015 को इन दोनों महिलाओं ने जिला मुख्यालय स्थित मंगलदै सिविल अस्पताल में एक ही दिन बेटों को जन्म दिया था. लेकिन अब इसे नियति कहें, अस्पताल के कर्मचारियों का लापरवाही या संयोग, दोनों के बच्चे आपस में बदल गए थे.
ये है आज का मोगली
पशुओं और इंसानों के बीच मोहब्बत, प्रेम और लगाव की तमाम कहानियां सुनने में आती है. ऐसी ही एक कहानी है लंगूर और चार साल के बच्चे समर्थ की. बंदरों के साथ इसकी सहजता देख इसे आज का "मोगली" कहना गलत नहीं होगा.
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लंगूर बने दोस्त
बेंगलूरु से 400 किमी दूर स्थित गांव अलापुर में रहने वाला समर्थ आज चर्चा का विषय बना हुआ है. कारण है समर्थ के लंगूर दोस्त. जो रोजाना उससे मिलने आते हैं. अगर वह सो रहा होता है तो उसे नींद से उठा दते हैं और उसके साथ खूब खेलते हैं.
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गहरा है याराना
समर्थ की उम्र महज चार साल है और वह ठीक से बोल भी नहीं पाता लेकिन बंदरों के साथ इसका याराना बेहद ही गहरा है. लोगों को बंदर के साथ इसे देखकर डर लगता था लेकिन इस बच्चे के चेहरे पर कभी कोई शिकन नहीं दिखती.
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आपसी सहजता
बच्चे के चाचा बरामा रेड्डी कहते हैं, "पहले हम सभी गांववालों को डर लगता था कि कही ये बंदर, समर्थ के माता-पिता की गैरमौजूदगी में उस पर हमला न कर दें." लेकिन जल्द वे समझ गए कि बंदर और समर्थ एक दूसरे के साथ आपस में बेहद ही सहज हैं.
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लोगों को होती हैरानी
हालांकि न केवल बच्चे का बल्कि बंदरों का भी समर्थ के साथ इस तरह का व्यवहार आसपास के लोगों के लिए हैरानी का विषय बना हुआ है. लोग अब देखने आते हैं कि कैसे समर्थ और लंगूरों की टोली आपस में व्यवहार करती हैं.
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साथ मिलकर खाना
यहां तक कि यह दो साल का बच्चा अपने इन दोस्तों के साथ खाना भी शेयर करता है. परिवार वाले बताते हैं कि ये लंगूर रोजाना आते हैं, और इनका आने का समय भी लगभग तय है. अगर कभी समर्थ घर पर सो रहा होता है तो उसे नींद से जगा देते हैं.
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लंगूरों का गुस्सा
पहले परिवारजनों को लगा की ये लंगूर बच्चों का साथ पसंद करते हैं और इनके आसपास सहज महसूस करते हैं. लेकिन जब अन्य बच्चे लंगूरों के पास गए तो लंगूरों की टोली थोड़ा उग्र हो गई, जैसे कि उन्हें गुस्सा आ गया हो.
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खास रिश्ता
अब सभी मानते हैं कि समर्थ और इन लंगूरों के बीच कोई खास रिश्ता है. हालांकि बच्चा अभी बोल नहीं पाता लेकिन परिजनों और अन्य लोगों को लगता है कि समर्थ का हां-हूं में कुछ कहना बंदरों को समझ आता है. इसलिए यह रिश्ता वक्त के साथ और गहरा होता जा रहा है.
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मोगली की याद
समर्थ का व्यवहार सभी को रुडयार्ड किपलिंग की किताब, "द जंगल बुक" की याद दिला देता है. इस किताब का मुख्य पात्र मोगली भी जंगलों में वन्य जीवों के बीच पलता है. ये किताब इंसानों और पशुओं के बीच गहरी होती खाई को कम करती है.
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अस्पताल से लौटने के बाद अपने बच्चों का रंग-रूप देख कर दोनों परिवारों को यह संदेह तो हो ही गया था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ हुई है. उसके बाद इस गड़बड़ी को दुरुस्त करने के प्रयास शुरू हुए. इसके तहत थाने और अस्पताल में अर्जी देने और चारों अभिभावकों और दोनों बच्चों के डीएनए टेस्ट का मिलान करने में कोई पौने तीन साल गुजर गए. लंबी कानूनी प्रक्रिया और पुलिस जांच से गुजरने के बाद मंगलदै जिला अदालत ने दोनों परिवारों को बच्चों की अदला-बदली के लिए बुलाया. लेकिन वहां इसकी नौबत आने पर दोनों बच्चे रोने-चीखने लगे. वह अपनी-अपनी मां की गोद से उतरने को ही तैयार नहीं थे. तमाम कोशिशें बेकार हो जाने के बाद चारों लोगों ने तय किया कि वह बच्चों की अदला-बदली नहीं करेंगे. उनका अनुरोध सुनने के बाद जज ने उन्हें इस बारे में हलफनामा दायर करने को कहा. अब बीती 24 जनवरी को दोनों परिवारों ने हलफनामा दायर कर एक-दूसरे की कोख से जन्मी संतान को ही अपना बेटा मान लिया है.
सलमा परवीन कहती है, "लंबी कानूनी प्रक्रिया में काफी समय निकल गया. इस बीच बच्चा मुझसे काफी हिल-मिल गया था. उनकी अदला-बदला के दिन वह किसी भी सूरत में मेरी गोद से उतरने को तैयार नहीं हुआ." वह बताती है कि शिवाली की गोद में पले-बढ़े उनके बेटे का भी वही हाल था. यह देख कर दोनों परिवारों ने काफी सोच-समझ कर फैसला किया कि अब उन्होंने जिनका पालन-पोषण किया है, वही उनका बेटा है.
सलमा बताती हैं कि उन्हें अस्पताल से घर आने के एक सप्ताह बाद ही बेटे को लेकर शक हुआ था. इसकी वजह यह थी कि उसकी शक्ल-सूरत परिवार में किसी से नहीं मिलती थी. इसके उलट उसका चेहरा उस बोड़ो महिला से मिलता था जो उसी दिन उसी अस्पताल में प्रसव के लिए दाखिल हुई थी. परवीन और उनके पति ने अपने बेटे का नाम जुनैद रखा है जबकि अनिल बोरो ने अपने बेटे का रियान चंद्र.
आज बच्चे हैं लेकिन यही कल राजा रानी बनेंगे
21वीं सदी में भी दुनिया के कई देशों में राजशाही व्यवस्था है और वहां शाही परिवारों को बहुत मान सम्मान दिया जाता है. चलिए मिलते हैं इन्हीं परिवारों के नन्हें सदस्यों से जो भविष्य में राजा और रानी बनेंगे.
तस्वीर: AFP/Kensington Palace
प्रिंस जॉर्ज (ब्रिटेन)
ब्रिटेन के प्रिंस जॉर्ज की तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छायी रहती हैं. 22 जुलाई 2013 को पैदा हुए प्रिंस जॉर्ज अपने दादा प्रिंस चार्ल्स और पिता प्रिंस विलियम के बाद राजगद्दी के तीसरे दावेदार होंगे.
तस्वीर: AFP/Kensington Palace
प्रिंसेस शारलोट (ब्रिटेन)
प्रिंस शारलोट में उनकी परदादी महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की छलक दिखती है. वह अपने भाई प्रिंस जॉर्ज से दो साल छोटी हैं और राजगद्दी के उत्तराधिकारियों की सूची में चौथे नंबर पर हैं.
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प्रिंस जिगमे नामग्येल वांगचुक (भूटान)
प्रिंस जिगमे नामग्येल वांगचुक के जन्म के सम्मान में भूटान में 108,000 पेड़ लगाये गये थे. 16 अप्रैल 2016 को जन्मे प्रिंस जिगमे नामग्येल भूटान के राजा जिगमे खेसर नामग्येल वांगचुक की पहली संतान हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Royal Office for Media, Bhutan
प्रिंस हीसाहीतो (जापान)
जापान के राजकुमार का जन्म 6 सितंबर 2006 को हुआ. राजगद्दी के वारिसों में वह तीसरे स्थान पर आते हैं. यह तस्वीर 2009 की है जब टोक्यो के जू में तीन साल के राजकुमार ने खरगोश के साथ खूब मस्ती की थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/MAXPPP
प्रिंसेस लियोनोर (स्पेन)
प्रिंसेस लियोनोर (दायें) और उनकी बहन सोफिया (बायें) स्पेन के मौजूदा राजा फेलिपे छठे की बेटियां हैं. 31 अक्टूबर 2005 को जन्मी प्रिंसेस लियोनोर बड़ी बेटी होने के नाते पिता के बाद राजगद्दी संभालेंगी.
तस्वीर: Getty Images/C. Alvarez
प्रिंसेस कैथरीन अमालिया (नीदरलैंड्स)
7 दिसंबर 2003 को जन्मी प्रिंसेस कैथरीन अमालिया नीदरलैंड्स की राजगद्दी की वारिस हैं. अभी उनके पिता विलियम अलेक्जांडर देश के राजा हैं जिन्होंने 30 अप्रैल 2013 को शासन की बाडगोर संभाली.
बेल्जियम में भी राजशाही व्यवस्था है और अभी किंग फिलिप राजा हैं. उनके बाद उनकी बेटी प्रिंसेस एलिजाबेथ महारानी बनेंगे. 25 अक्टूबर 2001 को जन्मी प्रिंसेस एलिजाबेथ अभी डचेस ऑफ ब्राबैंट हैं.
तस्वीर: picture alliance/DPR
प्रिंसेस एमालिया (लक्जमबर्ग)
प्रिंसेस एमालिया लक्जमबर्ग के राजा फेलिक्स की सबसे बड़ी संतान हैं. 15 जून 2014 को जन्मी प्रिंसेस अमालिया ऑफ नसाऊ पिता के बाद राजगद्दी की उत्तराधिकारी हैं.
तस्वीर: Getty Images
प्रिंसेस इंग्रिड एलेक्जांड्रा (नॉर्वे)
नॉर्वे की राजकुमारी इंग्रिड एलेक्जांड्रा का जन्म 21 जून 2004 को हुआ. वह क्राउन प्रिंस हाकोन की बड़ी बेटी हैं. अभी राजकुमारी इंग्रिड के दादा किंग हेराल्ड पांचवें गद्दी पर हैं.
तस्वीर: Getty Images/N. Waldron
प्रिंस क्रिस्टियान (डेनमार्क)
डेनमार्क के क्राउन प्रिंस फ्रेडेरिक की चार संतानें हैं जिनमें प्रिंस क्रिस्टियान सबसे बड़े हैं. 15 अक्टूबर 2005 को जन्मे प्रिंस क्रिस्टियान अपनी दादी और मौजूदा महारानी मार्ग्रारेथा द्वितीय और अपने पिता के बाद गद्दी के तीसरे वारिस हैं.
तस्वीर: picture alliance/Scanpix Denmark
प्रिंस मौले एल हसन (मोरक्को)
मोरक्को के प्रिंस मौले एल हसन 2015 से अपने पिता और मोरक्को के शाह मोहम्मद छठे के साथ सार्वजनिक आयोजन में दिखने लगे. 8 मई 2003 को जन्मे प्रिंस मौले हसन ही पिता के बाद राजगद्दी के वारिस हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images/F. Senna
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अनिल बोरो कहते हैं, "अगर हमने जबरन बच्चों की अदला-बदली की होती तो वह रोते-रोते ही अपनी जान दे देते. इसलिए हमने मानवता के नाते इसी को नियति मान लिया है. अब हम लोग बेहद खुश हैं." छठी कक्षा में पढ़ने वाली अनिल की पुत्री चित्रलेखा भी नहीं चाहती है कि अब उसका भाई बदले. उधर, अहमद की पुत्री निडाल भी अब जुनैद को ही अपना भाई मानती है. वह इसे किसी दूसरे को देने के पक्ष में नहीं है.
वह बताते हैं कि गांव की पंचायत और अस्पताल अधीक्षक से शुरू में जब कोई सहायता नहीं मिली तो उन्होंने पुलिस के पास फरियाद की. दिसंबर, 2015 में पुलिस एफआईआर दायर करने के बाद दोबारा सबकी डीएनए जांच हुई. उसके बाद मामला अदालत के समक्ष पहुंचा. अदालत ने एक निश्चित तारीख को दोनों परिवारों को बच्चों की अदला-बदली के लिए बुलाया. लेकिन अदालत परिसर में बेहद मार्मिक दृश्य पैदा हो गया. बच्चों ने चीख-चीख कर आसमान सिर पर उठा लिया. यह देख कर दोनों परिवारों ही नहीं, अदालत परिसर में मौजूद तमाम लोगों की आंखें भी नम हो उठीं. घंटों कोशिश करने के बावजूद बच्चे जब अपने परिवारों से अलग होने को तैयार नहीं हुए तो दोनों परिवारों ने अदला-बदली नहीं करने का फैसला किया.
इन दोनों परिवारों का कहना है कि अब वह कभी इन बच्चों की अदला-बदली का प्रयास नहीं करेंगे. शहाबुद्दीन और अनिल कहते हैं, "अब हम नजदीकी रिश्तेदार बन गए हैं और यह रिश्ता आजीवन बना रहेगा." उन दोनों ने अदालत में दायर अपने हलफनामे में भी यही बात कही है. उन्होंने अदालत से इस लापरवाही के लिए अस्पताल के दोषी कर्मचारियों को सजा देने की अपील जरूर की है ताकि आगे से किसी परिवार को इस मानसिक यंत्रणा से नहीं गुजरना पड़े.
75 फीसदी बच्चे हैं हिंसा का शिकार
भारत के एडवोकेसी ग्रुप "नो वॉयलेंस इन चाइल्डहुड" की एक स्टडी मुताबिक दुनिया के चार में तीन बच्चे किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार हैं. स्टडी अनुसार दुनिया के तकरीबन 1.7 अरब बच्चे मानसिक या शारीरिक हिंसा का शिकार हैं.
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घरों में होती पिटाई
घरों में दिया जाने वाला शारीरिक दंड, हिंसा का सबसे आम रूप है, इस घरेलू हिंसा से दुनिया में 14 साल तक की उम्र वाले करीब 1.3 अरब बच्चे प्रभावित हैं.
तस्वीर: picture-alliance/MITO images/R. Niedring
दादागिरी और गुंडागर्दी
13-15 साल की आयु वर्ग के तकरीबन 13.8 करोड़ बच्चे दादागिरी, गुंडागर्दी के शिकार बनते हैं तो वहीं 12.3 करोड़ बच्चे स्कूलों में होनेवाली लड़ाइयों में हिंसा का शिकार होते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. de Sakutin
यौन प्रताड़ना के मामले
तीन साल के अध्ययन के बाद तैयार की गयी इस रिपोर्ट मुताबिक 15 से 19 साल के आयु वर्ग में आने वाली दुनिया की 1.8 करोड़ लड़कियां यौन शोषण का शिकार होती हैं.
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हिंसा का शिकार
रिपोर्ट के मुताबिक यौन हिंसा की दर सबसे अधिक अफ्रीका में नजर आती है. यहां 15-19 साल की उम्र वाली तकरीबन 10 फीसदी लड़कियां अपने जीवन में कभी न कभी यौन हिंसा का शिकार होती हैं.
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परंपराओं में हिंसा
इस अध्ययन में हिंसा को समाज की परंपराओं से जुड़ा कहा गया है. रिपोर्ट मुताबिक कई समाजों में पत्नियों और बच्चों की पिटाई को अनुशासन बनाये रखने के लिए जरूरी समझा जाता है.
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वैश्विक प्रतिबद्धता
साल 2015 में दुनिया के कई देशों ने वैश्विक लक्ष्यों को तय करते हुए साल 2030 तक दुनिया भर में बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा को खत्म करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी थी.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/P. Cairns
खरबों का नुकसान
साल 2014 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि बचपन की हिंसा भविष्य में उत्पादकता को तकरीबन 70 खरब डॉलर का नुकसान पहुंचाती है. गरीब परिवारों के बच्चे तनाव में जीते हैं और उनके साथ हिंसा सबसे अधिक होती है.
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हिंसा यहां है कम
स्टडी मुताबिक बच्चों में होने वाली हिंसा उन देशों में कम है जहां बाल जीवन दर अपने उच्च स्तर पर है और अधिक लड़कियां स्कूल जाती हैं. रिपोर्ट में बलात्कार, मानव तस्करी में हिंसा का शिकार बनते बच्चों को शामिल नहीं किया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Lipinski
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अनिल के गांव बेजपाड़ा की पंचायत समिति के सदस्य सुरेश्वर बसुमतारी कहते हैं, "मानवता का रिश्ता आखिर में हर रिश्ते पर भारी साबित हुआ. यह घटना पूरे इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द्र की एक मिसाल बन गई है." बसुमतारी का कहना है कि इससे बेहतर बात क्या हो सकती है कि एक हिंदू का बच्चा मुसलमान के घर में पले और मुसलमान का हिंदू के घर में.
अनिल कहते हैं कि अगर अहमद ने शुरू में इस मुद्दे को तूल ही नहीं दिया होता तो अच्छा होता. तीन साल के दोनों मासूमों जुनैद और रियान को अब तक इस बात का अहसास तक नहीं है कि उन्होंने बोड़ो और मुस्लिम हिंसा के लंबे इतिहास वाले इस इलाके में इन दोनों तबके के दो परिवारों को आजीवन एक अनूठे व अटूट रिश्ते के धागों से बांध दिया है.