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मलेरिया से लड़ाई में नया हथियार 

१० जनवरी २०२२

मलेरिया के मच्छरों को कीटनाशकों से मारने में इंसानों और पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव का खतरा रहता है. इसलिए स्वीडन में शोधकर्ता इन मच्छरों के खात्मे के लिए एक नए तरीके पर काम कर रहे हैं.

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तस्वीर: Robin Loznak/ZUMA/picture alliance

स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम की एक प्रयोगशाला में मच्छरों से भरे हुए पिंजरे रखे हुए हैं. मच्छरों को पिंजरों के अंदर बंद रखने के लिए उन पर महिलाओं के टाइट्स चढ़ाए गए हैं. मलेरिया से लड़ने की एक बड़ी योजना के तहत इन मच्छरों को रोज घातक विष मिला कर चुकंदर का जूस दिया जा रहा है.

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि मलेरिया फैलाने वाले एनोफेलीज मच्छर को मारने के लिए उन्होंने एक ऐसा तरीका खोज निकाला है जो पर्यावरण के अनुकूल है. ये शोधकर्ता इतने आशान्वित हैं कि उन्होंने अपनी खोज को व्यावसायिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए एक कंपनी की स्थापना कर ली है.

कैसे फंसते हैं मच्छर

इससे पहले इन मच्छरों को मारने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन ये कीटनाशक इंसानों और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं. 44 साल की शोधकर्ता नौशीन इमामी कहती हैं कि ये एक पालतू पशु या पक्षी रखने जैसा है, लेकिन फर्क इतना है कि पालतू पशुओं को इस तरह धोखे से जहरीले शरबत नहीं पिलाए जाते.

मलेरिया फैलाने वाला एनोफिलीज मच्छरतस्वीर: David Spears/Ardea/imago images

इमामी स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में मॉलिक्यूलर इन्फेक्शन बायोलॉजिस्ट हैं. वो बताती हैं इन मच्छरों को धोखा देने के लिए जूस में एक ऐसा मॉलिक्यूल मिलाया जाता है जो इन मच्छरों को आकर्षित करता है.

इमामी के मुताबिक, "किसी भी सॉल्यूशन में इस मॉलिक्यूल को मिलाने से वो सॉल्यूशन मच्छरों के लिए काफी स्वादिष्ट हो जाता है. जैसे किसी भूखे व्यक्ति के लिए एक ताजा बैगेट या ओवन में से निकला हुआ पिज्जा."

दिसंबर 2021 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि 2020 में दुनिया भर में मलेरिया के 24.1 करोड़ मामले सामने आए, जो 2019 में सामने आए 21.9 करोड़ मामलों से ज्यादा हैं. 2020 में इस बीमारी ने 6.27 लाख लोगों की जान ले ली. इनमें से 96 प्रतिशत मौतें अफ्रीका में हुईं. मरने वालों में करीब 80 प्रतिशत पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे.

असरदार तरीका

मलेरिया सिर्फ बीमार ही नहीं करता है बल्कि जिन्हें इसका संक्रमण हो जाता है वो मच्छरों के लिए और आकर्षक हो जाते हैं. मच्छर फिर उन्हें काटने के बाद और लोगों को भी संक्रमित करते हैं. 2017 में इमामी और उनके साथी शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसा एक विशेष मॉलिक्यूल की वजह से होता है जिसे एचएमबीपीपी कहते हैं.

यह मॉलिक्यूल तब निकलता है जब मलेरिया फैलाने वाला परजीवी शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करता है. इमामी एक विशालकाय फ्रिज को खोलती हैं जिसमें 27 डिग्री सेल्सियस तापमान बरकरार रखा गया है. फ्रिज में पानी से भरे हुए डिब्बे में मच्छरों के डिम्भक (लार्वा) कुलबुला रहे हैं.

दिल्ली में मच्छरों को मारने के लिए छोड़ा जाता है धुंआतस्वीर: Naveen Sharma/SOPA/ZUMA/picture alliance

इमामी समझाती हैं, "इस मॉलिक्यूल को विषों में मिला कर फिर विष को चुकंदर के जूस में मिला देने से मच्छर उसे पीते हैं और मर जाते हैं." इमामी के साथ 'मॉलिक्यूलर अट्रैक्शन' नाम की कंपनी की स्थापना करने वाले लेच इग्नाटॉविच ने बताया कि यह नया तरीका मलेरिया के खिलाफ लड़ाई को पूरी तरह से बदल सकता है.

उन्होंने बताया, "मच्छरों को मारने का सबसे अच्छा तरीका अभी भी कीटनाशक हैं, लेकिन हमें मालूम है कि कीटनाशक ना सिर्फ मच्छरों को बल्कि दूसरे कीड़ों और अन्य जीवों को भी मार रहे हैं." कीटनाशकों की प्रभावित कम होने के भी सबूत सामने आ रहे हैं.

करीब 80 देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को बताया कि 2010 से 2019 के बीच में मच्छरों में आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले चार कीटनाशकों में से कम से कम एक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता देखने को मिली.

सीके/एए (एएफपी)

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