बड़े पैमाने पर हुए एक शोध के बाद कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कृत्रिम मीठा दिल के रोगों की वजह बन सकता है. हालांकि वैज्ञानिकों का एक अन्य समूह इन निष्कर्षों से बहुत संतुष्ट नहीं है.
शुगरफ्री कितना सेहतमंद?तस्वीर: Erich Geduldig/imagebroker/IMAGO
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चीनी की जगह तेजी से ले रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर रोजाना करोड़ों लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं. डायट सोडा से लेकर चाय-कॉफी तक में लोग इनका प्रयोग करते हैं. शुगर-फ्री होने के कारण इन्हें चीनी का बेहतर विकल्प माना जाता है क्योंकि कई वैज्ञानिक शोध यह कह चुके हैं कि चीनी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है. लेकिन इस कृत्रिम मीठे के सेहतमंद होने को लेकर भी खासा विवाद है.
फ्रांस के इनसर्म (INSERM) इंस्टिट्यूट के शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की है कि ये स्वीटनर दिल के रोगों से किस तरह जुड़े हैं. उन्होंने फ्रांस में रहने वाले एक लाख से ज्यादा लोगों द्वारा अपने खान-पान के बारे में दी गई जानकारी का विश्लेषण किया है. यहां यह बात उल्लेखनीय है कि यह जानकारी लोगों ने अपने आप दी थी. 2009 से 2021 के बीच इन लोगों अपने खान-पान, लाइफस्टाइल और स्वास्थ्य की जानकारी वैज्ञानिकों के साथ साझा की.
मीठे कोला का कड़वा सच
अगर आप कोला पीने के शौकीन हैं तो शौक से पिएं. लेकिन एक बार अपने ऊपर इसके असर के बारे में भी जान लें. क्या पता फिर आप किसी और पेय को अपनी पसंदीदा ड्रिंक बनाने के बारे में सोचने लगें.
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चीनी
हर दिन एक स्वस्थ वयस्क को 40 ग्राम से अधिक चीनी का सेवन नहीं करना चाहिए. केवल 250 मिलीलीटर या एक गिलास कोला पीने से ही वह सीमा पार हो जाती है. एक लीटर कार्बोनेटेड ड्रिंक में तो कम से कम 180 ग्राम चीनी होती है.
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कोला लाइट कितना हल्का
एक स्टडी दिखाती है कि कोला लाइट में मिलाया जाने वाला कृत्रिम मीठापन असल में खून में शर्करा की मात्रा को काफी बढ़ा सकता है. एक स्वस्थ आदमी को इसे पीने से भूख लगेगी, वहीं मधुमेह के मरीज के लिए यह खतरनाक हो सकता है. खून में मिलकर यह मिठास पाचन तंत्र के लिए जरूरी बैक्टीरिया को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
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कई साइड इफेक्ट
कई लोगों को लगता है कि चीनी की जगह कृत्रिम मिठास वाली गोलियां लेना बेहतर होगा. लेकिन कोला में मिलाए गए ऐसे स्वीटनर में अक्सर एस्पार्टेम नामक पदार्थ होता है, जिससे सिरदर्द, चक्कर आना, याददाश्त या दृष्टि खोना, अवसाद या वजन से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं.
दांत खराब
कोला में केवल चीनी ही नहीं बल्कि फॉस्फोरिक एसिड भी पाया जाता है. यह अम्ल मुंह में पहुंच कर दांतों के कैल्शियम को गला देता है और और दांत की सबसे ऊपरी परत एनामेल को भी नुकसान पहुंचाता है. इससे दांतों में कैविटी होने का खतरा बढ़ जाता है.
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हड्डियां कमजोर
कोला में पाए जाने वाले फॉस्फोरिक एसिड से शरीर की हड्डियां भी कमजोर हो सकती हैं. हड्डियों के साथ प्रतिक्रिया कर यह कैल्शियम लवण बनाता है जो कि शरीर के लिए अच्छे नहीं होते. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक स्टडी से पता चला कि जो महिला खिलाड़ी दिन में तीन बार से अधिक कोला पीती हैं उनमें अभ्यास के दौरान हड्डियों के टूटने की संभावना ज्यादा है.
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विश्लेषण में वैज्ञानिकों ने पाया कि 37 प्रतिशत लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का प्रयोग कर रहे थे. वे औसतन 42 मिलीग्राम स्वीटनर ले रहे थे जो इसका एक पैकेट या फिर एक डायट सोडा की एक तिहाई कैन के बराबर है. वैज्ञानिकों ने नौ साल तक तक इन लोगों के खान-पान की निगरानी की. उसके बाद पता चला कि 1,502 लोगों को हृदय संबंधी समस्याएं हो गई थीं जिनमें दिल का दौरा पड़ने से लेकर स्ट्रोक तक शामिल हैं.
क्या कहता है शोध?
बीएमजे पत्रिका में छपे शोध में यह संकेत दिया गया है कि एक लाख में से उन 346 लोगों को हृदय रोग हुआ जो भारी मात्रा में कृत्रिम मीठे का इस्तेमाल कर रहे थे. ये स्वीटनर ना खाने वालों में हृदय रोग की संख्या 314 रही.
इनसर्म की मैटील्डे टूविएर कहती हैं कि ये नतीजे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट को पुष्ट करते हैं. डबल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि संगठन स्वीटनर को शुगर का सुरक्षित विकल्प नहीं मानता.
अप्रैल में आई एक रिपोर्ट में डबल्यूएचओ ने कहा था कि "इस बात पर स्पष्ट सहमति नहीं है कि शुगरफ्री स्वीटनर लंबे समय में वजन कम करने में लाभदायक हैं या वे अन्य किसी तरह से सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं.”
इसी साल न्यूट्री-नेट आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले एक और शोध में कहा गया था कि स्वीटनर में पाए जाने वाले तत्व जैसे कि एसपार्टेम, पोटैशियम और सूकरलोस कैंसर से संबंधित हो सकते हैं. लेकिन ये जितने भी शोध हुए हैं, उन्हें तीखी आलोचना झोलनी पड़ी है क्योंकि वे अपने निष्कर्षों की कोई स्पष्ट वजह नहीं दे पाए हैं.
पहचानें डायबिटीज के शुरुआती संकेत
डायबिटीज बहुत ही चुपचाप आने वाली बीमारी है. लेकिन अगर आप अपने शरीर और व्यवहार पर ध्यान देंगे तो आप इससे बचाव कर सकते हैं.
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दो किस्म का डायबिटीज
डायबिटीज दो प्रकार हैं, टाइप-1 और टाइप-2. टाइप-1 आनुवांशिक होता है, यह बच्चों और युवाओं में देखने को मिलता है. लेकिन इसके मामले बहुत ही कम होते हैं. टाइप-2 डायबिटीज ज्यादा जीवनशैली से जुड़ा है और दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है.
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टाइप-1
इसमें शरीर इंसुलिन नहीं बनाता है. इंसुलिन खाने से मिलने वाले ग्लूकोज को तोड़ता है और ऊर्जा के रूप से कोशिकाओं तक पहुंचाता है. लेकिन टाइप-1 डायबिटीज के पीड़ितों को बचपन से इंसुलिन लेना पड़ता है.
टाइप-2
यह चुपचाप आता है. बढ़ती उम्र और बेहद आरामदायक जीवनशैली के चलते इंसान को यह बीमारी लगती है. इसमें शरीर शुगर को ऊर्जा में बदलने की रफ्तार धीमी या बंद कर देता है. और एक बार यह लगी तो फिर इससे पार पाना आसान नहीं होता. आगे देखिये टाइप-2 डायबिटीज के शुरूआती संकेत.
तेज प्यास लगना
टाइप-2 डायबिटीज का अहम शुरुआती लक्षण है, बार बार तेज प्यास लगना. मुंह में सूखापन रहना. ज्यादा भूख लगना और ज्यादा पानी न पीने के बावजूद बार बार पेशाब लगना.
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शारीरिक तकलीफ
शुरुआती संकेत मिलने पर अगर कोई न संभले तो ज्यादा मुश्किल होने लगती है. डायबिटीज के चलते सिर में दर्द रहना, नजर में धुंधलापन सा आना और बेवजह थकने जैसी समस्यायें सामने आती हैं.
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नींद न आना
शुगर का असर नींद पर भी पड़ता है. डायबिटीज के रोगियों को बहुत गहरी नींद नहीं आती है. उनके हाथ या पैरों में झनझनाहट सी रहती है.
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सेक्स में परेशानी
डायबिटीज के 30 फीसदी रोगियों को सेक्स में परेशानी भी होने लगी है. इसके पीड़ित महिला और पुरुष को आर्गेज्म में परेशानी होने लगती है.
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गंभीर संकेत
कुछ मामलों के टाइप-2 डायबिटीज के शुरुआती लक्षण बिल्कुल नजर नहीं आते. उनमें दूसरे किस्म के लक्षण नजर आते हैं, जैसे फुंसी, फोड़े या कटे का घाव बहुत देर से भरना. खुजली होना, मूत्र नलिका में इंफेक्शन होना और जननांगों के पास जांघों में खुजली होना. पिंडलियों में दर्द भी रहता है.
किसे ज्यादा खतरा
मोटे और खासकर मोटी कमर वाले लोगों को, आलसियों को, सुस्त जीवनशैली के साथ सिगरेट पीने वालों को, बहुत ज्यादा लाल मीट व मीठा खाने वालों डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा होता है.
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उम्र और टाइप-2 डाबिटीज का रिश्ता
आम तौर पर 45 साल के बाद इसका पता चलता है. लेकिन भारत समेत कई देशों में बदलती जीवनशैली के साथ 25-30 साल के युवाओं को डायबिटीज की शिकायत होने लगी है. लेकिन कड़ी शारीरिक मेहनत करने वाले और संयमित ढंग से खाना खाने वाले बुजुर्गों में कोई डायबिटीज नहीं दिखता.
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बैक्टीरिया की भी भूमिका
ताजा शोध में पता चला है कि बड़ी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया भी टाइप-2 डायबिटीज में भूमिका निभाते हैं. आंत में हजारों किस्म के बैक्टीरिया होते हैं, इनमें ब्लाउटिया, सेरेराटिया और एकेरमानसिया भी शामिल हैं. लेकिन डायबिटीज के रोगियों में इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है. वैज्ञानिकों को शक है कि इनकी बहुत ज्यादा संख्या के चलते मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है
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शक होने पर क्या करें
खुद टोटके करने के बजाए डॉक्टर से परामर्श करें और नियमित अंतराल में शुगर टेस्ट कराएं. डायबिटीज से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है, कसरत या शारीरिक मेहनत. अगर आपका शरीर थकेगा तो शुगर लेवल नीचे गिरेगा और नींद भी अच्छी आएगी.
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खुद के लिए 30 मिनट
हर दिन 30 मिनट कसरत कर लें, यह डायबिटीज से आपको बचाएगी. डायबिटीज हो भी गया तो कसरत उसे काबू में रखेगी. संतुलित आहार भी बहुत जरूरी है.
कैसी हो खुराक
खून में शुगर की मात्रा खाने पर निर्भर करती है. डायबिटीज के रोगियों को या डायबिटीज का शक होने पर कभी पेट भरकर न खाएं. तीन घंटे के अंतराल पर कुछ हल्का खाएं. प्याज, भिंडी, पत्ता गोभी, खीरा, टमाटर, दही, दाल, पपीता और हरी सब्जियां बेहद लाभदायक होती हैं.
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मिक्स खाना
वैज्ञानिकों के मुताबिक अलग अलग आहार में भिन्न भिन्न किस्म के बैक्टीरिया होते हैं. इसीलिए बेहतर है कि फल, अनाज, सब्जी, बीज और रेशेदार फलियों से संतुलित डायट बनाई जाए. इससे आंतों में अलग अलग बैक्टीरियों का अनुपात सही बना रहेगा.
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मीठा भी साथ रहे
डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो बहुत ज्यादा परहेज करने पर भी मारती है. शुगर लेवल अगर बहुत नीचे गिर जाए तो रोगी को चक्कर आ सकता. लिहाजा डायबिटीज से लड़ने के दौरान हमेशा कुछ मीठा अपने पास रखें. जब लगे कि शुगर लेवल बहुत गिर रहा है तो हल्का सा मीठा खा लें.
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ग्लासगो यूनिवर्सिटी में मेटाबॉलिक मेडिसिन पढ़ाने वाले नावीद सत्तार कहते हैं कि यह शोध सवालों के जवाब नहीं देता. सत्तार इस अध्ययन में शामिल नहीं थे. उन्होंने बताया, "जो सवाल पूछा गया, उसका जवाब नहीं मिला. ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वीटनर का प्रयोग करने वाले और ना करने वाले शोध में शामिल लोग एक-दूसरे से बहुत ज्यादा अलग थे.” सत्तार कहते हैं कि सरकारों को एक ज्यादा बड़े पैमाने पर लंबी अवधि का शोध कराना चाहिए ताकि सच्चाई के और करीब पहुंचा जा सके.
क्या चीनी नुकसानदायक है?
शोध संस्थान ‘जॉन हॉपकिंस मेडिसिन' के मुताबिक चीनी को अपने खान-पान से पूरी तरह हटाने से जरूरी पोषक तत्व भी हट जाते हैं जो कि फलों, डेयरी उत्पादों और अनाजों में पाए जाते हैं. विशेषज्ञ जेसिका सीजल लिखती हैं, "मूल रूप से तो चीनी बुरी नहीं है बल्कि जरूरी है. हमारा शरीर शुगर पर ही चलता है. हम जो खाना खाते हैं उसमें से हम कार्बोहाइड्रेट लेते हैं और उसे ग्लूकोस (शुगर) में परिवर्तित करते हैं. उस ग्लूकोस को हमारी कोशिकाएं रक्त में से सोखती हैं और ऊर्जा या ईंधन के रूप में प्रयोग करती हैं.”
बीमारी बढ़ा सकता है स्वीटनर
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सीजल स्पष्ट करती हैं कि कुदरती और प्रोसेस्ड शुगर में काफी फर्क है और प्रोसेस्ड शुगर में कोई पोषक तत्व नहीं होते बल्कि जरूरत से ज्यादा मात्रा में यह सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है. वह कहती हैं कि जूस, शहद और मेपल सिरप जैसी चीजों में कुदरती शुगर होती है जिसके कुछ फायदे हो सकते हैं. वह बताती हैं, "कच्चे शहद और मेपल सिरप में भी एंटीऑक्सिडेंट हो सकते हैं और आयरन, जिंक, कैल्शिय व पोटैशियम जैसे तत्व भी.”
क्या होते हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर?
ज्यादातर आर्टिफिशियल स्वीटनर, जिन्हें नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर भी कहा जाता है, प्रयोगशालाओं में केमिकल्स से तैयार किए जाते हैं. कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें कुदरती जड़ी-बूटियों से बनाया जाता है. ये स्वीटनर आमतौर पर प्रयोग होने वाली चीनी से 200 से 700 गुना ज्यादा मीठे हो सकते हैं.
जेसिका सीजल कहती हैं कि इस कृत्रिम मिठाई में कोई कैलरी या मीठा तो नहीं होता लेकिन इनमें विटामिन, फाइबर या एंटीऑक्सिडेंट जैसे फायदे भी नहीं होते. वह भी कहती हैं कि इनके सेहतमंद होने को लेकर फिलहाल शोध जारी हैं और किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता.
सीजल कहती हैं कि मीठा खाना ही है तो स्टेविया जैसे कुदरती स्वीटनर का इस्तेमाल करना चाहिए. वह साफ तौर पर कहती हैं कि सोडा, एनर्जी ड्रिंक, स्वीट टी और जूस आदि का प्रयोग करने से बचा जाना ही बेहतर है.